उत्तर नीचे से नहीं, ऊपर से
क्रमविकास सिखाता है कि परिवर्तनों की एक श्रृंखला ने धीरे-धीरे हमें उच्च-जाति पशु बना दिया। दूसरी ओर, बाइबल कहती है कि हमारी शुरूआत परिपूर्ण थी, हम परमेश्वर के स्वरूप में थे, लेकिन उसके कुछ ही समय बाद अपरिपूर्णता आ गयी और मनुष्यजाति पतित होती गयी।
हमारे मौलिक माता-पिता, आदम और हव्वा पतन की राह पर चल पड़े जब उन्होंने नैतिक स्वतंत्रता चाही और जानबूझकर परमेश्वर की आज्ञा तोड़ने के द्वारा अपने अंतःकरण को चोट पहुँचायी। वे मानो जानबूझकर एक गाड़ी में बैठकर परमेश्वर के नियम की सुरक्षा-दीवार को तोड़ते हुए निकल गये और वहाँ जा गिरे जहाँ आज हम पड़े हैं, जहाँ दुःख-मुसीबत, बीमारी, बुढ़ापा, और मृत्यु है। जातीय पूर्वधारणाएँ, धार्मिक घृणा, और भयंकर युद्ध की तो बात अलग है।—उत्पत्ति २:१७; ३:६, ७.
पशु जीन या दोषपूर्ण जीन?
बाइबल वैज्ञानिक भाषा में नहीं समझाती कि पाप करने पर आदम और हव्वा के परिपूर्ण शरीरों को क्या हुआ। बाइबल कोई विज्ञान पुस्तक नहीं है, वैसे ही जैसे मोटरगाड़ी की उपयोग-पुस्तिका ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग की पाठ्यपुस्तक नहीं होती। लेकिन उपयोग-पुस्तिका की तरह बाइबल यथार्थ है; यह कोई मिथ्या नहीं।
जब आदम और हव्वा परमेश्वर के नियम की सुरक्षा-दीवार तोड़कर बाहर निकल गये, तो उनके शरीर को चोट पहुँची। उसके बाद, वे धीरे-धीरे मृत्यु की तरफ जाने लगे। आनुवंशिकता के नियमों के अनुसार, उनके बच्चों अर्थात् मानव परिवार को अपरिपूर्णता विरासत में मिली। इसलिए वे भी मरते हैं।—अय्यूब १४:४; भजन ५१:५; रोमियों ५:१२.
दुःख की बात है कि पाप की प्रवृत्ति भी हमें विरासत में मिली है, जो स्वार्थ और अनैतिकता के रूप में प्रकट होती है। हाँ, लैंगिक संबंध का अपना उचित स्थान है। परमेश्वर ने पहले मानव जोड़े को आज्ञा दी: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ।” (उत्पत्ति १:२८) और प्रेममय सृष्टिकर्ता होने के नाते, उसने इस आज्ञा को पूरा करना पति-पत्नी के लिए सुखमय बनाया। (नीतिवचन ५:१८) लेकिन मानव अपरिपूर्णता के कारण सॆक्स का दुरुपयोग किया गया है। असल में, अपरिपूर्णता हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है, जिसमें हमारे तन और मन का काम भी सम्मिलित है, जैसा कि हम सब जानते ही हैं।
लेकिन अपरिपूर्णता ने हमारे नैतिक बोध को नहीं कुचला। यदि हम सचमुच “कमान” अपने हाथ में लेना चाहते हैं तो हम ऐसा कर सकते हैं और पाप की प्रवृत्ति से लड़ने के द्वारा जीवन की राह में आये गड्ढों से बच सकते हैं। यह सच है कि कोई अपरिपूर्ण मनुष्य पूरी तरह पाप से नहीं लड़ सकता। लेकिन परमेश्वर दया दिखाते हुए इसको ध्यान में रखता है।—भजन १०३:१४; रोमियों ७:२१-२३.
हम मरना क्यों नहीं चाहते
बाइबल एक और ऐसी पहेली पर रोशनी डालती है जिसकी संतोषजनक व्याख्या क्रमविकास नहीं देता: चाहे मृत्यु स्वाभाविक और निश्चित ही क्यों न प्रतीत हो, फिर भी मनुष्य मृत्यु को क्यों नहीं स्वीकार करना चाहता?
जैसे बाइबल प्रकट करती है, मृत्यु पाप के कारण, परमेश्वर की अवज्ञा करने के कारण आयी। यदि हमारे मौलिक माता-पिता आज्ञाकारी रहे होते, तो वे अपने बच्चों के साथ-साथ सर्वदा जीवित रहे होते। असल में, परमेश्वर ने मानव मन को अनंत जीवन की अभिलाषा के साथ बनाया था। “उसने [मनुष्यों] के मनों में अनन्तता का ज्ञान भी उत्पन्न किया है,” सभोपदेशक ३:११ (NHT) कहता है। इसलिए मृत्यु-दंड मिलने से मनुष्यों में आंतरिक संघर्ष शुरू हो गया, स्थायी असंगति उत्पन्न हो गयी।
इस आंतरिक संघर्ष को दूर करने के लिए और जीते रहने की स्वाभाविक लालसा को संतुष्ट करने के लिए मनुष्यों ने तरह-तरह के मत गढ़े हैं, अमर आत्मा के सिद्धांत से लेकर पुनर्जन्म में विश्वास तक। वैज्ञानिक बुढ़ापे के रहस्य को खोलने में लगे हैं क्योंकि वे भी मृत्यु से बचना चाहते हैं या कम-से-कम उसे कुछ दूर करना चाहते हैं। नास्तिक विकासवादी अनंत जीवन की अभिलाषा को क्रमविकास की चाल या धोखा कहकर नकार देते हैं, क्योंकि यह उनके इस विचार से टक्कर खाती है कि मनुष्य मात्र उच्च-जाति पशु हैं। दूसरी ओर, बाइबल का कथन कि मृत्यु एक शत्रु है, जीने की हमारी स्वाभाविक लालसा से मेल खाता है।—१ कुरिन्थियों १५:२६.
तो फिर, क्या हमारा शरीर इसका कोई सुराग देता है कि हम सर्वदा जीवित रहने के लिए बनाये गये थे? उत्तर है, हाँ! मानव मस्तिष्क में ही हमें इसका अत्यधिक प्रमाण मिल जाता है कि हमें उससे कहीं अधिक समय तक जीने के लिए बनाया गया था जितना हम जीते हैं।
सर्वदा जीवित रहने के लिए बनाये गये
मस्तिष्क का वज़न करीब १.४ किलोग्राम होता है और इसमें १० अरब से १०० अरब तक तंत्रिका-कोशिकाएँ होती हैं, और कहा जाता है कि उनमें से कोई दो तंत्रिका-कोशिकाएँ एकदम एकसमान नहीं होतीं। हर तंत्रिका-कोशिका २,००,००० तक अन्य तंत्रिका-कोशिकाओं से संचार कर सकती है, जिससे मस्तिष्क में सर्किटों या मार्गों की संख्या अतिविशाल हो जाती है। और मानो इतना ही काफी नहीं था, अपने आपमें “हर तंत्रिका-कोशिका एक जटिल कंप्यूटर है,” साइंटिफिक अमॆरिकन कहती है।
मस्तिष्क में अनेक रासायनिक प्रतिक्रियाएँ होती हैं जो तंत्रिका-कोशिकाओं की क्रियाओं को प्रभावित करती हैं। और मस्तिष्क की जटिलता का स्तर सबसे शक्तिशाली कंप्यूटर से भी कहीं ऊँचा है। टोनी बूज़ैन और टॆरंट्स डिक्सन लिखते हैं, “प्रत्येक सिर में एक विस्मयकारी पावरहाउस, एक सघन, कार्यकुशल अंग है। जितना अधिक हम उसके बारे में सीखते हैं उसकी क्षमता उतनी अधिक असीम प्रतीत होती है।” प्रोफॆसर प्यॉटर आनोखिन को उद्धृत करते हुए वे आगे कहते हैं: “अब तक कोई ऐसा मनुष्य नहीं है जो अपने मस्तिष्क की पूरी क्षमता का प्रयोग कर सकता हो। इसी कारण हम मानव मस्तिष्क की सीमाओं के बारे में कोई निराशात्मक अनुमान स्वीकार नहीं करते। वह असीम है।”
ये आश्चर्यजनक तथ्य विकासवाद का मुँहतोड़ जवाब हैं। क्रमविकास साधारण गुफावासियों के लिए या आज के बहुत पढ़े-लिखे लोगों के लिए भी एक ऐसे अंग की “रचना” क्यों करता जिसमें लाखों-करोड़ों साल कार्य करने की क्षमता हो? सचमुच, केवल अनंत जीवन तर्कसंगत है! लेकिन हमारे शरीर के बारे में क्या?
पुस्तक रिपेयर एण्ड रिन्यूअल—जर्नी थ्रू द माइंड एण्ड बॉडी कहती है: “जिस तरह क्षतिग्रस्त हड्डियाँ, ऊतक और अंग अपनी मरम्मत करते हैं वह सचमुच एक चमत्कार है। और यदि हम रुककर उसके बारे में सोचें, तो हम त्वचा और बालों और नाखूनों—साथ ही शरीर के दूसरे हिस्सों—के गुपचुप पुनःनिर्माण को बहुत आश्चर्यजनक पाएँगे: यह दिन में २४ घंटे निरंतर चलता रहता है। जीव-रासायनिक अर्थ में, यह हमें अपने जीवन-काल में कई बार अक्षरशः पुनःनिर्मित कर देता है।”
परमेश्वर के नियत समय पर उसके लिए यह कोई बड़ी बात नहीं होगी कि आत्म-नवीकरण की इस चमत्कारी प्रक्रिया को सदा तक चलने दे। फिर आखिर में, ‘मृत्यु को नाश किया जाएगा।’ (१ कुरिन्थियों १५:२६) लेकिन सचमुच सुखी होने के लिए अनंत जीवन ही काफी नहीं। हमें शांति की—परमेश्वर के साथ और अपने संगी मनुष्यों के साथ शांति की—ज़रूरत है। ऐसी शांति तभी आ सकती है जब लोग सचमुच एक दूसरे से प्रेम करें।
प्रेम पर आधारित नया संसार
“परमेश्वर प्रेम है,” १ यूहन्ना ४:८ कहता है। प्रेम—खासकर यहोवा परमेश्वर का प्रेम—इतना शक्तिशाली है कि यही इसका मूल कारण है कि क्यों हम सर्वदा जीवित रहने की आशा कर सकते हैं। “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा,” यूहन्ना ३:१६ कहता है, “कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”
अनंत जीवन! कितनी अद्भुत प्रत्याशा! परंतु क्योंकि हमने विरासत में पाप पाया है, हमें जीवन का कोई अधिकार नहीं। “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है,” बाइबल कहती है। (रोमियों ६:२३) लेकिन खुशी की बात है कि प्रेम ने परमेश्वर के पुत्र, यीशु मसीह को प्रेरित किया कि हमारे हित में अपनी जान दे। प्रेरित यूहन्ना ने यीशु के विषय में लिखा: “उस ने हमारे लिये अपने प्राण दे दिए।” (१ यूहन्ना ३:१६) जी हाँ, उसने अपना परिपूर्ण मानव जीवन “बहुतों की छुड़ौती के लिये” दे दिया ताकि हमारे अर्थात् उस पर विश्वास रखनेवालों के पाप क्षमा किये जाएँ और हम अनंत जीवन का आनंद ले सकें। (मत्ती २०:२८) बाइबल समझाती है: “परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है, कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं।”—१ यूहन्ना ४:९.
तो फिर परमेश्वर और उसके पुत्र ने हमें जो प्रेम दिखाया है उसके प्रति हमारी प्रतिक्रिया कैसी होनी चाहिए? बाइबल आगे कहती है: “हे प्रियो, जब परमेश्वर ने हम से ऐसा प्रेम किया, तो हम को भी आपस में प्रेम रखना चाहिए।” (१ यूहन्ना ४:११) हमें प्रेम करना सीखना चाहिए, क्योंकि यह गुण परमेश्वर के नये संसार की आधारशिला होगा। यहोवा परमेश्वर ने अपने वचन, बाइबल में इस पर ज़ोर दिया है। और आज अनेक लोग प्रेम के महत्त्व को समझ गये हैं।
पुस्तक प्रेम और प्रकृति में इसका स्थान (अंग्रेज़ी) ने कहा कि प्रेम के बिना “बच्चे अकसर मर जाते हैं।” लेकिन उम्र के साथ-साथ प्रेम की वह ज़रूरत खत्म नहीं हो जाती। एक प्रमुख मानव-विज्ञानी ने कहा कि प्रेम “सभी मानव आवश्यकताओं का केंद्र है जैसे हमारा सूर्य हमारे सौर मंडल का केंद्र है . . . जिस बच्चे से प्रेम नहीं किया गया वह जीव-रासायनिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से उस [बच्चे] से बहुत भिन्न होता है जिससे प्रेम किया गया है। दोनों के विकास में भी भिन्नता होती है।”
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि तब पृथ्वी पर जीवन कैसा होगा जब सभी एक दूसरे से सचमुच प्रेम करेंगे? फिर कभी इस कारण कोई दूसरे के प्रति पूर्वधारणा नहीं रखेगा कि वह भिन्न राष्ट्र का है, दूसरी जाति का सदस्य है, या उसकी त्वचा का रंग मेरे अपने रंग से भिन्न है! परमेश्वर के नियुक्त राजा, यीशु मसीह के प्रशासन में पृथ्वी शांति और प्रेम से भर जाएगी, जो इस ईश्वरप्रेरित बाइबल भजन की पूर्ति में होगा:
“हे परमेश्वर, राजा को अपना नियम बता, . . . वह प्रजा के दीन लोगों का न्याय करेगा, और दरिद्र लोगों को बचाएगा; और अन्धेर करनेवालों को चूर करेगा। . . . उसके दिनों में धर्मी फूले फलेंगे, और जब तक चन्द्रमा बना रहेगा, तब तक शान्ति बहुत रहेगी। वह समुद्र से समुद्र तक और महानद से पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करेगा। क्योंकि वह दोहाई देनेवाले दरिद्र को, और दुःखी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा। वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, और दरिद्रों के प्राणों को बचाएगा।”—भजन ७२:१, ४, ७, ८, १२, १३.
परमेश्वर के नये संसार में दुष्ट नहीं होंगे, जैसे बाइबल के एक और भजन में प्रतिज्ञा की गयी है: “कुकर्मी लोग काट डाले जाएंगे; और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वही पृथ्वी के अधिकारी होंगे। थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; और तू उसके स्थान को भली भांति देखने पर भी उसको न पाएगा। परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।”—भजन ३७:९-११.
उस समय, सभी आज्ञाकारी मनुष्यों का, उनका भी जो पुनरुत्थान के द्वारा मृतकों में से जिलाये गये होंगे, तन-मन चंगा किया गया होगा। अंत में सभी जीवित जन पूर्ण रूप से परमेश्वर के स्वरूप को प्रतिबिंबित करेंगे। इतने अरसे के बाद, जो सही है वह काम करने का बड़ा संघर्ष खत्म हो जाएगा। जीवन के लिए हमारी ललक और मृत्यु की वर्तमान क्रूर वास्तविकता के बीच असंगति भी खत्म हो जाएगी! जी हाँ, यह हमारे प्रेममय परमेश्वर की दृढ़ प्रतिज्ञा है: “मृत्यु न रहेगी।”—प्रकाशितवाक्य २१:४; प्रेरितों २४:१५.
इसलिए, ऐसा हो कि जो सही है वह काम करने की लड़ाई को आप कभी न छोड़ें। ईश्वरीय सलाह पर अमल कीजिए: “विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़; और उस अनन्त जीवन को धर ले।” परमेश्वर के नये संसार में उस जीवन को बाइबल “सत्य जीवन” कहती है।—१ तीमुथियुस ६:१२, १९.
ऐसा हो कि आप बाइबल में व्यक्त इस सत्य को समझ जाएँ: “यहोवा ही परमेश्वर है! उसी ने हम को बनाया, न कि हम [ने] अपने को।” इस सत्य को समझना यहोवा के नये संसार में जीवन के योग्य ठहरने के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम है। वह प्रेम और धार्मिकता का संसार होगा।—भजन १००:३, फुटनोट; २ पतरस ३:१३.
[पेज 11 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
परमेश्वर के नये संसार में जीवन को बाइबल “सत्य जीवन” कहती है। —१ तीमुथियुस ६:१९
[पेज 9 पर तसवीर]
मनुष्य परमेश्वर के नियमों की सुरक्षा-दीवार तोड़कर बाहर निकल गये हैं, जिसके विनाशकारी परिणाम हुए हैं
[पेज 10 पर तसवीर]
परमेश्वर के शासन के अधीन, मानवजाति शांति के नये संसार का आनंद लेगी