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सजग होइए!–1998
g98 9/8 पेज 4-7

राज़ी करने का हुनर

व्यापारिक विज्ञापनों का क्या लक्ष्य है? व्यापार-संघ कहते हैं कि उनके विज्ञापन समाज सेवा करते हैं क्योंकि ये अपने उत्पादों के बारे में जनता को जानकारी देते हैं। अंतर्राष्ट्रीय विज्ञापन संघ कहता है: “सही जानकारी पाने के लिए लोगों को विज्ञापनों की ज़रूरत है। जानकारी व्यक्‍ति को देख-परखकर चुनाव करने में मदद देती है। विज्ञापन—मोटे तौर पर—उत्पादक और जनता के बीच जानकारी की महत्त्वपूर्ण कड़ी है।”

यह तो हम सब जानते हैं कि विज्ञापन सिर्फ जानकारी नहीं देते—उनका उद्देश्‍य है बेचना। वे तटस्थ या निष्पक्ष नहीं होते। सफल विज्ञापन कुशलता से लोगों के मन को रिझा लेते हैं और उन्हें वही प्रोडक्ट को खरीदने के लिए उकसाते हैं।

इसके अलावा, विज्ञापन सिर्फ उत्पाद नहीं बेचते; वे कंपनी का नाम बेचते हैं। यदि आप साबुन के बड़े निर्माता हैं तो आप लोगों को कोई भी ऐसा-वैसा साबुन खरीदने के लिए उकसाने में अरबों रूपए नहीं खर्च करेंगे। आप चाहेंगे कि वे आपका साबुन खरीदें। आप ऐसे विज्ञापन चाहते हैं जो किसी भी तरह जनता को विश्‍वास दिला दें कि आपकी कंपनी का साबुन दूसरे किसी भी साबुन से कहीं अच्छा है।

निशाना

असरदार होने के लिए विज्ञापन को आम तौर पर बड़े ध्यान से एक खास वर्ग के लोगों के लिए बनाया जाता है, चाहे वे बच्चे हों, गृहिणियाँ हों, व्यावसायिक लोग हों या किसी दूसरे वर्ग के हों। संदेश को इस प्रकार तैयार किया जाता है कि उस वर्ग की नब्ज़ पकड़ ले। फिर विज्ञापन को उन संचार माध्यमों से प्रसारित किया जाता है जो सबसे प्रभावकारी रीति से इस वर्ग तक पहुँचते हों।

विज्ञापन बनाने से पहले इस पर बहुत शोध किया जाता है कि कौन-सा वर्ग विज्ञापन किये जा रहे उत्पाद को खरीदेगा और इस्तेमाल करेगा। विज्ञापनदाताओं को यह जानने की ज़रूरत है कि वे लोग कौन हैं, वे क्या सोचते हैं और कैसा व्यवहार करते हैं, वे क्या चाहते हैं और कैसे सपने देखते हैं। एक पेशेवर विज्ञापनदाता ने लिखा: “हम यह जानने में जी-जान लगा देते हैं कि हम असल में विज्ञापन किसके लिए लिख रहे हैं। वे कौन हैं, वे कहाँ रहते हैं, वे क्या खरीदते और क्यों खरीदते हैं। यह सब जानना रिझानेवाले विज्ञापन लिखने के लिए हमारे हाथ में सही हथियार दे देता है। जो लोग हमारा निशाना हैं उन्हें यकीन दिलाकर राज़ी किया जा सकता है; वे हमारे अक्खड़पन या स्वार्थ के आगे नहीं झुकेंगे, न ही हवा में फेंके गये तीर जैसे विज्ञापनों का उन पर कोई असर होगा।”

राज़ी करने के लिए ज़रूरी बातें

विज्ञापन बनाते समय शब्दों का अच्छा चयन बहुत ज़रूरी है। अतिप्रशंसा या झूठी बड़ाई करना आम बात है। नाश्‍ते के दलिया को “ग्रेट” कहा जाता है, और ग्रीटिंग कार्ड बनानेवाली एक कंपनी दावा करती है कि लोग उसके कार्ड तब खरीदते हैं जब वे “सबसे बढ़िया कार्ड भेजना चाहते हैं।” जबकि, क्या अतिप्रशंसा है और क्या जानबूझकर दिया गया धोखा, इसमें भेद करना हमेशा आसान नहीं होता लेकिन विज्ञापनदाताओं को सावधान रहने की ज़रूरत है कि ऐसे दावे न करें जिन्हें गलत साबित किया जा सकता है। कुछ सरकारों ने कानून बनाये हैं जो ऐसी बेईमानी की मनाही करते हैं। और यदि लगे कि प्रतिद्वंद्वियों के धोखा देनेवाले विज्ञापनों से उनके हित को खतरा है तो व्यापारिक कंपनियाँ दूसरे पर झट-से मुकदमा ठोंक देती हैं।

जब उत्पाद लगभग एकसमान होते हैं तो विज्ञापनदाता बड़े-बड़े दावे नहीं कर पाते, सो उनका संदेश अकसर बहुत कम या कुछ भी नहीं होता। अनेक कंपनियाँ अपने उत्पादों की पहचान लुभावने नारों के द्वारा करवाती हैं। कुछ उदाहरण: “सोचना क्या, बस खरीद लीजिए” (खेल के जूतों का एक ब्रैंड), “चैंपियनों का नाश्‍ता” (नाश्‍ते का दलिया), “आपका पैसा है, बढ़िया से बढ़िया माँगिए” (एक तरह की कार), और “आप सही हाथों में हैं” (एक बीमा कंपनी)।

चाहे पत्रिका में हों या टीवी पर, चित्र संदेश बहुत सशक्‍त होते हैं। वे उत्पाद के बारे में शब्दों से कहीं ज़्यादा कह जाते हैं। जिस तरह एक उत्पाद को प्रस्तुत किया गया है वह एक धारणा व्यक्‍त कर सकता है जैसे, ‘यदि आप यह घड़ी खरीदते हैं तो लोग आपका आदर करेंगे’ या ‘इस ब्रैंड की जीन्स पहनें तो लड़कियाँ आप पर फिदा हो जाएँगी’ या ‘इस कार को देखकर आपके पड़ोसी जलकर राख हो जाएँगे।’ एक बहुत प्रसिद्ध और सफल विज्ञापन अभियान में, एक सिगरॆट कंपनी क्रिकेट खिलाड़ियों को अपने उत्पाद के साथ दिखाती है। घुड़सवारों को हट्टा-कट्टा, गठीला, रोबीला दिखाया गया है। मूक संदेश: हमारी सिगरॆट पीजिए और इन शूरवीरों के जैसे बन जाइए।

शब्दों के जाल और काल्पनिक चित्रों के साथ-साथ टीवी और रेडियो पर विज्ञापनों में संगीत का बड़ा हाथ होता है। यह भावनाओं को छूता है, विज्ञापन की कशिश बढ़ाता है, उसे यादगार बनाता है, और जनता के सामने प्रोडक्ट की अहमियत बढ़ाता है।

वर्ल्ड वॉच पत्रिका कहती है: “बहुत ही कुशलता से रचे गये विज्ञापन मास्टरपीस होते हैं—उनमें बढ़िया कल्पना, तेज़ रफ्तार और प्रभावशाली भाषा होती है जो हमारी गहरी से गहरी आशंकाओं और कामनाओं को छू लेती है। औद्योगिक देशों में प्राइम-टाइम टीवी विज्ञापन एक मिनट में इतना कुछ कह जाते हैं जो पहले सोच से परे था।”

दिल और दिमाग को छूना

जिन लोगों के लिए विज्ञापन है उनकी खास इच्छाओं और मान्यताओं को छूने के लिए उसे बहुत ध्यान से बनाया जाता है। कुछ विज्ञापन मौज-मस्ती करने की ज़रूरत, सुरक्षा की ललक, या दूसरों द्वारा स्वीकार किये जाने की लालसा पर ज़ोर देते हैं। कुछ विज्ञापन दूसरों पर धाक जमाने, साफ रहने, या दूसरों से बिलकुल अलग दिखने की इच्छा को बढ़ावा देते हैं। और कुछ विज्ञापन हमारी आशंकाओं को उभारने के द्वारा अपने उत्पादों का प्रचार करते हैं। उदाहरण के लिए, एक माउथवॉश कंपनी ने साँस की बदबू के कारण होनेवाली मुसीबतों के बारे में चिताया: “जिगरी दोस्त भी मुँह फेर लेगा” और “सहेलियों के हाथ पीले हो जाएँगे, आप हाथ मलती रह जाएँगी।”

कभी-कभी एक विज्ञापन को देखकर बताना आसान होता है कि वह किस किस्म का है। कुछ विज्ञापन मुख्यतः हमारे मन के चेतन, तर्कपूर्ण, युक्‍तिपूर्ण पहलू को छूने के लिए बनाये जाते हैं। वे उत्पाद के बारे में साफ-साफ जानकारी पेश करते हैं। उदाहरण के लिए एक सेल बोर्ड जो आपको बताता है कि बढ़िया साड़ियाँ अभी कम दामों पर मिल रही हैं। दूसरा तरीका है राज़ी कर लेनेवाली दलीलें पेश करना। इस तरह के विज्ञापन में तर्क किया जाता है कि कम दाम पर मिलनेवाली मछली से न सिर्फ आपका पैसा बचेगा बल्कि भोजन पौष्टिक, स्वादिष्ट और सबसे बढ़िया बात ताज़ा बना रहेगा साथ-साथ आप और आपका परिवार तंदरुस्त बना रहेगा।

दूसरे विज्ञापन हमारी भावानाओं को छूने के मकसद से बनाये जाते हैं। ऐसे विज्ञापन उत्पाद के साथ दिलकश नज़ारा दिखाकर उसके लिए ललक बढ़ाते हैं। सौंदर्य प्रसाधन, सिगरॆट और शराब के निर्माता इस तरीके का बहुत इस्तेमाल करते हैं। कुछ विज्ञापन बार-बार दिखाए जाते हैं। यह तरीका इस आस पर टिका है कि यदि लोग एक संदेश को बार-बार सुनेंगे तो वे उस पर विश्‍वास करेंगे और उत्पाद को खरीदेंगे, चाहे उन्हें अपने आपमें विज्ञापन से नफरत ही क्यों न हो! इसीलिए हम अकसर देखते हैं कि विज्ञापन में एक ही उत्पाद का बार-बार प्रचार किया जाता है। डॉक्टर की सिफारिश के बिना बिकनेवाली दवाओं के निर्माता आम तौर पर यह तरीका अपनाते हैं।

अधिकार जतानेवाले विज्ञापन भी हमारी भावनाओं को छूते हैं। ये विज्ञापन हमें कुछ करने का स्पष्ट आदेश देते हैं: “जल्दी करो, स्टॉक सीमित है!” “अभी खरीदो!” माना जाता है कि अधिकार जतानेवाले विज्ञापन उन उत्पादों के लिए सबसे कारगर होते हैं जिन्हें लोग पहले से जानते और पसंद करते हैं। बहुत से विज्ञापन एक और वर्ग में आते हैं। ये नकल, या प्रमाण विज्ञापन होते हैं। इन विज्ञापनों में मशहूर या मनपसंद लोग उत्पाद को इस्तेमाल करते या उसकी सिफारिश करते हुए दिखाये जाते हैं और विज्ञापनदाता चाहता है कि हम उसे खरीदें। यह तरीका इस विचार पर आधारित है कि हम उनकी तरह बनना चाहते हैं जिन्हें हम पसंद करते हैं।

बाँधने की शक्‍ति

क्या आपने कभी गौर किया है कि आप किसी हरदम रहनेवाली गंध या आवाज़ के इतने आदी हो जाते हैं कि उस पर आपका ध्यान ही नहीं जाता? यही विज्ञापनों के साथ भी होता है।

बिज़नॆस वीक पत्रिका के अनुसार, आम अमरीकी हर दिन करीब ३,००० विज्ञापन देखता या सुनता है। लोगों की प्रतिक्रिया क्या होती है? वे शाब्दिक या मानसिक रूप से आँख-कान बंद कर लेते हैं। ध्यान दें भी तो अधिकतर लोग विज्ञापनों पर थोड़ा ही ध्यान देते हैं।

लोगों की उदासीनता से निपटने के लिए विज्ञापन को ऐसा होना चाहिए कि हमारा ध्यान खींच ले। टीवी विज्ञापन ज़बरदस्त नज़ारों का इस्तेमाल करते हैं। वे मनोरंजक, नाटकीय, मज़ाकिया, चक्कर में डालनेवाले, या भावात्मक होने की कोशिश करते हैं। वे मशहूर हस्तियों और प्यारे कार्टूनों को पेश करते हैं। अनेक विज्ञापन हमारा ध्यान खींचे रखने के लिए भावनाओं का इस्तेमाल करते हैं, शायद बिल्लियों, पिल्लों या बच्चों पर ध्यान खींचकर हमें बाँधने की कोशिश करें।

एक बार जब विज्ञापनदाता हमारा ध्यान खींच लेता है तो उसे हमारी दिलचस्पी तब तक बनाए रखने की ज़रूरत है जब तक कि हम उस उत्पाद से परिचित न हो जाएँ। सफल विज्ञापन सिर्फ मनोरंजन नहीं करते; वे हमें उत्पाद खरीदने के लिए राज़ी करने की कोशिश करते हैं।

संक्षिप्त में, विज्ञापन की दुनिया में इसी तरह काम होता है। अब हम विज्ञापनों की शक्‍ति पर ध्यान देंगे।

[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

एक अमरीकी हर दिन लगभग ३,००० विज्ञापन देखता है

[पेज 5 पर बक्स]

ज़ैपर, ज़िपर और ग्रेज़र

टीवी का रिमोट कंट्रोल विज्ञापनों से बचने का एक औज़ार है। अनेक लोग म्यूट बटन दबाकर विज्ञापन को ज़ैप कर देते हैं या उसकी आवाज़ बंद कर देते हैं। कुछ लोग वीडियो टेप पर कार्यक्रमों को रिकॉर्ड कर लेते हैं और उन्हें दोबारा चलाते समय फास्ट फॉर्वर्ड बटन दबाकर विज्ञापनों को ज़िप कर देते हैं या आगे बढ़ा देते हैं। कई लोग जो ग्रेज़ करते हैं, जिसका अर्थ है कि जब विज्ञापन आते हैं तो वे चैनल बदल देते हैं। कुशल ग्रेज़र जानते हैं कि कमर्शल ब्रेक कितनी देर का होगा और विज्ञापन खत्म होने के बाद वे वापस उसी कार्यक्रम पर आ जाते हैं।

विज्ञापनदाता अपने विज्ञापनों को ज़ैप-प्रूफ बनाने की कोशिश करते हैं। वे ऐसे विज्ञापन बनाने की कोशिश करते हैं जिनमें लोगों में कशिश पैदा करने की शक्‍ति हो—जो तुरंत दर्शक का ध्यान खींच लें और वह देखता रहे। भड़कीले विज्ञापन बनाने में खतरा यह है कि लोगों को शायद विज्ञापन तो याद रह जाए लेकिन जिस उत्पाद का विज्ञापन किया जा रहा है वह याद न रहे।

[पेज 6 पर बक्स]

अवचेतन विज्ञापन

दशक १९५० के अंत में, जेम्स विकारी ने दावा किया कि उसने न्यू जर्सी, अमरीका के एक सिनेमा घर में एक अध्ययन संचालित किया था जिसमें संदेश “ड्रिंक कोका-कोला” और “ईट पॉपकॉर्न” फिल्म के दौरान स्क्रीन पर फ्लैश किये गये थे। ये संदेश एक सॆकॆंड से भी कम समय के लिए फ्लैश किये जाते थे, इतने कम समय के लिए कि मन पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाते थे। फिर भी, विकारी ने कहा कि इससे कोका-कोला और पॉपकॉर्न की बिक्री में तेज़ी आयी। इस दावे से यह विश्‍वास फैल गया कि विज्ञापनदाता “अदृश्‍य” संदेश दिखाने के द्वारा लोगों को चीज़ें खरीदने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। कहा जाता है कि अमरीका के सबसे बड़े विज्ञापनदाताओं के साथ ४.५ मिलियन डॉलर के सौदों पर हस्ताक्षर करने के बाद, मिस्टर विकारी फरार हो गया। ये विज्ञापनदाता एक घोटाले के शिकार बन गये।

बाद में किये गये अध्ययन ने विकारी के दावों को झूठा साबित किया। एक अनुभवी विज्ञापन प्रबंधक ने कहा: “अवचेतन विज्ञापन कारगर नहीं होते। यदि होते तो हम उनका इस्तेमाल करते।”

[पेज 7 पर तसवीर]

विज्ञापन हमारा ध्यान खींचने के लिए बनाए जाते हैं

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