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सजग होइए!–1998
g98 9/8 पेज 8-10

विज्ञापनों की शक्‍ति

बहुत साल पहले, टीवी कमर्शल ब्रेक के समय ये शब्द कहे जाते थे, “और अब हमारे प्रायोजक की तरफ से दो शब्द।” प्रायोजक वो कंपनियाँ होती हैं जो अपने उत्पादों का विज्ञापन करवाने के लिए पैसे देती हैं। जबकि “हमारे प्रायोजक की तरफ से दो शब्द” अनगिनत हो गये हैं, प्रायोजक अब भी समाचार और मनोरंजन माध्यमों—टीवी, पत्रिकाओं, अखबारों और रेडियो—का आर्थिक खर्च उठाते हैं। इसके फलस्वरूप, प्रायोजक इस पर अधिकार जताने की कोशिश करते हैं कि इन माध्यमों से क्या प्रसारित होता है और क्या नहीं।

उदाहरण के लिए: जर्मन लक्ज़री कार बनानेवाली एक कंपनी ने १९९३ में ३० पत्रिकाओं को यह आदेश लिख भेजा कि उनकी कार दिखानेवाले विज्ञापनों को “केवल उचित संपादकीय वातावरण में” पेश किया जाना चाहिए। पत्र में बताया गया कि पत्रिका के उन अंकों में जिनमें उनकी कार का विज्ञापन दिया जाता है ऐसी कोई बात नहीं होनी चाहिए जो उनकी कार, जर्मन उत्पादों या स्वयं जर्मनी की आलोचना करे। जी हाँ, जो कंपनी पत्रिका विज्ञापनों पर १५ मिलियन डॉलर खर्च करती है वह “उचित संपादकीय वातावरण” की अपेक्षा करे तो कोई आश्‍चर्य नहीं।

इसमें भी आश्‍चर्य नहीं कि जो पत्रिकाएँ दुल्हन की नयी पोशाकों का विज्ञापन देती हैं वे दुल्हन की पुरानी पोशाकों के विज्ञापन स्वीकार नहीं करतीं या जो अखबार भू-संपत्ति दलालों की सूची देते हैं वे यह नहीं बताते कि दलाल के बिना मकान कैसे खरीदा जाए। उसी तरह, हमें चकित नहीं होना चाहिए कि सिगरॆटों या लॉटरी का विज्ञापन देनेवाले संचार-माध्यम धूम्रपान या जूएबाज़ी की आलोचना नहीं करते।

उपभोक्‍ता संस्कृति

विज्ञापनों की शक्‍ति केवल उत्पाद बेचने तक सीमित नहीं। ये जनता के लिए ऐसी जीवन-शैली, ऐसी विश्‍वव्यापी संस्कृति को बढ़ावा देते हैं जो भौतिक वस्तुओं पर केंद्रित है।

क्या इसमें कोई बुराई है? यह इस पर निर्भर है कि आप किससे पूछते हैं। विज्ञापनदाता तर्क करते हैं कि लोग चीज़ें खरीदना और जमा करना पसंद करते हैं; इसमें विज्ञापन उनकी मदद करता है। इसके अलावा, वे कहते हैं कि विज्ञापन नौकरियाँ देते हैं, खेलकूद और कला का प्रायोजन करते हैं, सस्ते में समाचार सुलभ बनाते हैं, स्पर्धा बढ़ाते हैं, उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाते हैं, दाम कम रखते हैं और लोगों को समर्थ करते हैं कि देख-परखकर चीज़ें खरीदें।

दूसरे दावा करते हैं कि विज्ञापन लोगों में बेचैनी और असंतुष्टि उत्पन्‍न करते हैं, उनमें अंतहीन इच्छाएँ जगाते और बढ़ाते हैं। शोधकर्ता ऐलन ड्युरिंग लिखता है: “हमारे युग की तरह विज्ञापन भी चंचल, सुखवादी, छवि-भरे और फैशन-परस्त हैं; वे व्यक्‍ति का गुणगान करते हैं, उपभोग को आदर्श रूप में पेश करते हैं कि यह व्यक्‍तिगत संतुष्टि का मार्ग है, और दावा करते हैं कि टॆक्नॉलजी में हुई प्रगति हमारे भविष्य को सँवारेगी।”

आप पर इसका प्रभाव

क्या व्यापारिक विज्ञापन हमारे व्यक्‍तित्व और हमारी अभिलाषाओं पर प्रभाव डालते हैं? शायद हाँ। लेकिन विज्ञापनों का प्रभाव ज़्यादा है या कम, यह दूसरे प्रभावों पर निर्भर है।

यदि हम बाइबल सिद्धांतों और मूल्यों के अनुसार चलते हैं तो हम इस बात को पहचानेंगे कि भौतिक वस्तुएँ जमा करने में कोई बुराई नहीं। आखिरकार, परमेश्‍वर ने भी तो इब्राहीम, अय्यूब, सुलैमान और दूसरों को बहुत धन की आशिष दी।

दूसरी ओर, यदि हम शास्त्रीय सिद्धांतों को लागू करते हैं तो हम उन लोगों की तरह असंतुष्ट होने से बचे रहेंगे जो भौतिक वस्तुओं का अंतहीन पीछा करके संतुष्टि और सुख ढूँढ़ते हैं। बाइबल का संदेश यह नहीं कि “जब तक है दम खरीदारी करेंगे हम।” इसके बजाय बाइबल हमसे कहती है:

परमेश्‍वर पर भरोसा रखें। “इस संसार के धनवानों को आज्ञा दे, कि वे अभिमानी न हों और चंचल धन पर आशा न रखें, परन्तु परमेश्‍वर पर जो हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत से देता है।”—१ तीमुथियुस ६:१७.

संतुष्ट रहें। “न हम जगत में कुछ लाए हैं और न कुछ ले जा सकते हैं। और यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष करना चाहिए।”—१ तीमुथियुस ६:७, ८.

शालीन रहें। “स्त्रियां भी संकोच और संयम के साथ सुहावने वस्त्रों से अपने आप को संवारे; न कि बाल गूंथने, और सोने, और मोतियों, और बहुमोल कपड़ों से, पर भले कामों से। क्योंकि परमेश्‍वर की भक्‍ति ग्रहण करनेवाली स्त्रियों को यही उचित भी है।”—१ तीमुथियुस २:९, १०.

जानें कि ईश्‍वरीय बुद्धि धन से बढ़कर है। “क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे, क्योंकि बुद्धि की प्राप्ति चान्दी की प्राप्ति से बड़ी और उसका लाभ चोखे सोने के लाभ से भी उत्तम है। वह मूंगे से अधिक अनमोल है, और जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उन में से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी। उसके दहिने हाथ में दीर्घायु, और उसके बाएँ हाथ में धन और महिमा हैं। उसके मार्ग मनभाऊ हैं, और उसके सब मार्ग कुशल के हैं। जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं।”—नीतिवचन ३:१३-१८.

उदारता दिखाएँ। “लेने से देना धन्य है।”—प्रेरितों २०:३५.

व्यक्‍ति तर्क कर सकता है कि यह लेख-श्रृंखला अपने आपमें एक किस्म का विज्ञापन है, ऐसा विज्ञापन जो इस विचार का “प्रचार” करता है कि आध्यात्मिक मूल्यों को भौतिक मूल्यों से आगे रखा जाना चाहिए। निश्‍चित ही आप इस निष्कर्ष से सहमत होंगे।

[पेज 9 पर बक्स]

परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करना

लोगों तक विश्‍वासोत्पादक संदेश पहुँचाने का एक बहुत बढ़िया तरीका क्या है? पुस्तक विज्ञापन: सिद्धांत और व्यवहार (अंग्रेज़ी) कहती है: “आदर्श संसार में हर निर्माता अपने उत्पाद या सेवा के बारे में हर उपभोक्‍ता से आमने-सामने बात कर सकेगा।” सच्चे मसीही इस रीति से मुफ्त में करीब २,००० साल से परमेश्‍वर के राज्य के बारे में प्रचार कर रहे हैं। (मत्ती २४:१४; प्रेरितों २०:२०) लोगों तक पहुँचने के इस तरीके को ज़्यादा व्यावसायिक कंपनियाँ क्यों नहीं अपनातीं? पुस्तक समझाती है: “यह बहुत महँगा पड़ता है। जब कंपनी के लोग घर-घर जाकर बेचते हैं तो एक घर जाने का खर्च १५० डॉलर से ज़्यादा पड़ सकता है।” लेकिन मसीही लोग मुफ्त में परमेश्‍वर के राज्य का “प्रचार” करते हैं। यह उनकी उपासना का भाग है।

[पेज 8 पर तसवीर]

बाइबल का संदेश यह नहीं “जब तक है दम खरीदारी करेंगे हम”

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