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छोटा द्वीप बना व्यस्त हवाई अड्डा

हांग कांग में सजग होइए! संवाददाता द्वारा

जब हवाई जहाज़ हांग कांग के काई टैक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरने को था तभी एक हैरान यात्री ने खिड़की से बाहर देखकर कहा, “हम छतों पर लगे टीवी एंटीना गिरा रहे होंगे!” धरती पर, पास के काउलून नगर में एक स्त्री अपने घर की छत पर कपड़े धोकर टाँग रही थी और जैसे ही जहाज़ तेज़ आवाज़ करता हुआ उसके सिर के ऊपर से उड़ा तो वह डर से सिमट गयी। यह उसके कानों के परदे पर एक और हमला था।

“पहाड़ अड़चन पैदा करते हैं,” विमान-चालक जॉन का कहना है। उसने कई बार इस तरह खतरनाक तरीके से जहाज़ को ज़मीन पर उतारा है। “अगर हम उत्तर-पश्‍चिम की ओर से उतरें तो हमें उड़ान-पट्टी से कुछ ही दूरी पर एक बहुत-ही खतरनाक मोड़ लेना पड़ेगा। पहाड़ों के कारण ही हवा के रुख और रफ्तार में बहुत बदलाव आता है जो कि खतरनाक होता है।”

घबराए हुए यात्रियों, विमान-चालकों और खासकर काउलून नगर के वासियों को उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार था जब काई टैक पर आखिरी बार कोई जहाज़ उतरता। और वह दिन आ गया, क्योंकि जुलाई १९९८ से हांग कांग ने एक नया हवाई अड्डा इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

द्वीप पर बना हवाई अड्डा

दशक १९८० में काई टैक हवाई अड्डा एकदम भर गया था और उसे बढ़ाने की गुंजाइश भी नहीं थी सो एक नये हवाई अड्डे के लिए जगह ढूँढ़ी जाने लगी। लेकिन हांग कांग में इतनी बड़ी सपाट जगह नहीं थी जहाँ हवाई अड्डा बनाया जा सके। इसके अलावा, लोग भी नहीं चाहते थे कि उनके पड़ोस में शोरगुल भरा हवाई अड्डा हो। इसका हल? एक छोटा द्वीप चॆक लप कॉक। यह एक बड़े लेकिन काफी हद तक अविकसित लान्ताउ द्वीप के उत्तर दिशा में है। सिविल इंजीनियरों को मानो इसी चुनौती का इंतज़ार था।

हवाई अड्डा बनाने के लिए उस छोटे द्वीप को और उसके पास के एक छोटे-से द्वीप को सपाट करना था और समुद्र को पाटकर करीब साढ़े नौ वर्ग किलोमीटर ज़मीन तैयार करनी थी। हवाई अड्डे को हांग कांग शहर से जोड़ने के लिए ३४ किलोमीटर लंबा रेलमार्ग और एक महामार्ग बनाया गया। ये मार्ग द्वीपों और समुद्र के ऊपर से होकर, काउलून नगर से गुज़रते हुए और विक्टोरिया बंदरगाह को पार करते हुए जाते हैं। इसके लिए ब्रिज, सुरंगें और पुल बनाने पड़े। इस सब को मिलाकर यह अब तक की सबसे बड़ी निर्माण परियोजनाओं में से एक है।

द्वीप लाँघने के लिए अनोखे ब्रिज

हज़ारों लोग ‘हांग कांग के नये क्षेत्र’ में उस जगह को देखने आते हैं जो दुनिया भर में मशहूर हो गयी है। उसका नाम है लान्ताउ लिंक जो लान्ताउ द्वीप को मुख्यभूमि से जोड़ता है। यह ब्रिज मोटे-मोटे केबलों के सहारे लटका हुआ एक ब्रिज है जो लान्ताउ द्वीप को छोटे-से मा वान द्वीप से जोड़ता है, मा वान के ऊपर एक पुल है और एक झूला-पुल है जिसकी लंबाई १,३७७ मीटर है, जो मा वान द्वीप को तीसरे द्वीप, चिंग यी से जोड़ते हैं। ये डबल-डॆक (एक-के-ऊपर-एक) ब्रिज दुनिया में इस किस्म के सबसे लंबे ब्रिजों में से हैं। सड़क यातायात ऊपरवाले पुल से गुज़रता है और नीचेवाले पुल पर एक रेलमार्ग और मोटर-गाड़ियों के लिए दो लेन की सड़क है। नीचेवाला पुल घिरा हुआ है।

जिन केबलों पर झूला-पुल टिका हुआ है वे दूर से बहुत पतले दिखते हैं। व्यक्‍ति सोच में पड़ जाता है कि इंजीनियरों ने ठीक से नापा था या यह पुल टूटकर पानी में गिर जाएगा। लेकिन पास से देखने पर पता चलता है कि वे तार कमज़ोर तो बिलकुल भी नहीं। १.१ मीटर की मोटाई रखनेवाले इन केबलों में १,६०,००० किलोमीटर लंबे तार हैं जिनसे पृथ्वी को चार बार लपेटा जा सकता है। केबलों का उतना मोटा होना ज़रूरी है क्योंकि उन्हें ९५ प्रीफैब्रिकेटॆड (बने-बनाए) डेक का भार उठाये रखना है जिनसे ब्रिज बना है और एक-एक डेक का भार ५०० टन है। जब केबल लग गये थे तो नाव के ज़रिये प्रीफैब्रिकेटॆड डेक वहाँ लाए गए और वहीं से सीधे ऊपर खींच लिए गए।

आस-पास रहनेवालों ने बड़ी दिलचस्पी से यह नज़ारा देखा जब बड़े-बड़े खंभों को खड़ा किया गया जिन पर ब्रिज को सहारा देनेवाले केबल बँधे थे। खंभे धीरे-धीरे खड़े हुए तो मानो आकाश को छू रहे थे और वहाँ कोई पाड़ या मचान नहीं थे जो आम तौर पर निर्माण स्थलों पर देखने में आते हैं। निर्माणकर्ताओं ने एक ऐसी प्रक्रिया इस्तेमाल की जिसे स्लिपफॉर्मिंग कहा जाता है। इस तरीके से उन साँचों को जिनमें कंकरीट डाला जाता है धीरे-धीरे ऊपर चढ़ाया जाता है जिससे कि हर चरण में उन्हें निकालने और फिर से लगाने की ज़रूरत नहीं रहती। इस नये तरीके का इस्तेमाल करके निर्माणकर्ताओं ने ब्रिज के लिए १९० मीटर ऊँचा एक खंभा सिर्फ तीन महीने में खड़ा कर दिया।

हांग कांग टाइफून (प्रचंड तूफान) क्षेत्र में है। तेज़ हवाएँ ब्रिज पर क्या असर करेंगी? १९४० में वॉशिंगटन, अमरीका का पहला टाकोमा नैरोज़ ब्रिज तहस-नहस हो गया था जब ६८-किलोमीटर-प्रति-घंटा की रफ्तार से आयी हवा ने उसे ऐसे मरोड़ दिया मानो वह बाँस का बना हो। तब से ब्रिज डिज़ाइन में बहुत सुधार हुआ है। इन नये ब्रिजों का मॉडल बनाकर उन्हें जाँचा गया है कि वे ३०० किलोमीटर-प्रति-घंटा की रफ्तार से आये हवा के झोंकों को झेल सकते हैं।

हवाई अड्डे से शहर तक २३ मिनट में!

नये हवाई अड्डे से हांग कांग द्वीप तक आप उससे कम समय में पहुँच सकते हैं जितना कि आपको काई टैक हवाई अड्डे से वहाँ तक पहुँचने में लगता है, जबकि नया हवाई अड्डा चार गुना ज़्यादा दूर है। ऐसा क्यों? ट्रेनें १३५ किलोमीटर-प्रति-घंटा की रफ्तार से हांग कांग के व्यवसाय केंद्र तक जाती हैं, जिसे उचित ही सॆंट्रल (केंद्र) कहा जाता है। पहले आपको लान्ताउ के उजाड़ पहाड़ों का बढ़िया नज़ारा मिलता है। फिर जब ट्रेन द्वीप लाँघती हुई मुख्यभूमि पहुँच जाती है तो वह क्वाई चॉन्ग में दुनिया के सबसे बड़े नौभार बंदरगाह के पास से तेज़ी से गुज़रती है। पाँच किलोमीटर आगे जाकर वह मॉन्ग कॉक पहुँचती है, जहाँ १,७०,००० लोग रहते हैं। फिर वह पर्यटक केंद्र, चिम शा चुई की ओर बढ़ती है और हार्बर के नीचे सुरंग से गुज़रते हुए सॆंट्रल स्टेशन पर पहुँच जाती है। हवाई अड्डे से सॆंट्रल तक की दूरी यह सिर्फ २३ मिनट में तय करती है!

भविष्य का हवाई अड्डा

दिसंबर १९९२ में चॆक लप कॉक ३०२ हॆक्टॆयर का चट्टानी द्वीप था। जून १९९५ तक वह नये हवाई अड्डे के लिए ३,०८४ एकड़ की समतल भूमि बन चुका था। हांग कांग का भूमि क्षेत्र इससे करीब १ प्रतिशत बड़ा है। जिस दौरान द्वीप को ४४,००० टन शक्‍तिशाली विस्फोटकों से समतल किया जा रहा था, एक बड़े जहाज़ी बेड़े ने समुद्रतल से रेत निकालकर उसे द्वीप पर इकट्ठा किया। जिन दिनों निर्माण काम तेज़ी से चल रहा था उस समय समुद्र को पाटकर एक दिन में पाँच एकड़ ज़मीन तैयार की जा रही थी। पूरे ३१ महीनों के दौरान औसतन दस टन निर्माण सामग्री प्रति सॆकॆंड लायी गयी। जैसे ही भूमि-निर्माण ठेकेदारों का काम पूरा हुआ, दूसरे लोग हवाई अड्डे के निर्माण काम में लग गये।

स्टीव ने इस परियोजना में काम किया। वह इसके बारे में कुछ बातें बताता है: “उड़ान-पट्टी ठीक से न बनी हो तो आज के जम्बो जॆट उसे नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसलिए ज़मीन पर डामर लगाने से पहले बड़े-बड़े रोलरों से रेत को कसकर बिठाया गया। जब तक रोलरों ने पहली उड़ान-पट्टी और हवाई जहाज़ खड़े करने की जगह तैयार की, तब तक अनुमान है कि वे १,९२,००० किलोमीटर चल चुके थे, जो पूरी दुनिया के पाँच चक्कर लगाने के बराबर है।

“हमारी कंपनी ने टर्मिनल का ठेका लिया था; छत के लिए हमने स्टील की कैंचियाँ बनायीं और उन्हें जगह पर बिठाया। इनमें से एक-एक का भार १५० टन तक होता है। हमने बड़ी-सी क्रेन का इस्तेमाल करके उन्हें बड़े-बड़े ट्रकों पर रखा जो उन्हें २ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से टर्मिनल तक ले गये।”

यह टर्मिनल कंकरीट से बनी बिल्डिंग नहीं है। इसके बजाय, इस बात पर ज़ोर दिया गया कि एक हलका और खुला माहौल बनाया जाए जो हवाई अड्डे पर काम करनेवालों और यात्रियों के लिए भी अच्छा हो। उसके अलावा, हवाई अड्डे को इस उद्देश्‍य से बनाया गया था कि देरी किये बिना यात्रियों को फटाफट रवाना किया जाए। चॆक-इन-काउंटर पर आने के बाद ३० मिनट के अंदर यात्री जहाज़ में होते हैं। यह निश्‍चित करने के लिए कि कहीं रुकावट न आए, एक बिना ड्राइवर की ट्रेन उपलब्ध है जो यात्रियों को टर्मिनल के एक सिरे से दूसरे सिरे तक ले जाती है। इसके साथ-साथ, २.८ किलोमीटर लंबा लिफ्ट-जैसा रास्ता है जिससे थके हुए यात्रियों को चलना नहीं पड़ता।

स्टीव आगे बताता है: “यह काई टैक से कितना फर्क है, जहाँ १९९५ के दौरान २.७ करोड़ यात्री आये-गये! इस नये हवाई अड्डे में एक साल के दौरान ३.५ करोड़ यात्री और ३० लाख टन सामान आ-जा सकता है। आगे चलकर यह ८.७ करोड़ यात्रियों और ९० लाख टन सामान को सँभाल लेगा!”

हांग कांग इस परियोजना में बहुत पैसा लगा रहा है—करीब २० अरब डॉलर या कह सकते हैं कि हांग कांग के ६३ लाख निवासियों में से हरेक के लिए करीब ३,३०० डॉलर। आशा की जाती है कि चॆक लप कॉक हवाई अड्डा हांग कांग की वर्तमान समृद्धि को बनाए रखने में मदद देगा। यह तो देखा जाना अभी बाकी है लेकिन एक बात की गारंटी दी जा सकती है: हांग कांग में जहाज़ से उतरना हमेशा एक यादगार बात रहेगी।

[पेज 12 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

चॆक लप कॉक हवाई अड्डा

चिंग मा ब्रिज

लान्ताउ लिंक

कैप शुई मुन ब्रिज

लान्ताउ द्वीप

हांग कांग द्वीप

काई टैक हवाई अड्डा

वॆस्ट काउलून महामार्ग

उत्तर लान्ताउ महामार्ग

हवाई अड्डे का रेलमार्ग

महामार्ग काउलून

[पेज 13 पर तसवीर]

चिंग मा ब्रिज बनाते हुए

[पेज 11 पर चित्र का श्रेय]

New Airport Projects Co-ordination Office

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