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तपेदिक मुझे लेख-श्रृंखला “तपेदिक—जानलेवा बीमारी की वापसी” (जनवरी ८, १९९८) पसंद आयी। मुझे १९८८ में टीबी हो गयी थी लेकिन अब ठीक हो गयी है। आपने सही कहा कि मरीज़ों को “बिना नाग़ा” दवा लेनी चाहिए।

वाई. एल., फ्रांस

मेरी सास धार्मिक प्रवृत्ति की नहीं हैं, लेकिन उन्होंने मेरी मेज़ पर यह लेख देखा और पढ़ा। उन्होंने पूछा कि क्या वह इसे घर ले जा सकती हैं। मैं उन्हें सजग होइए! की दो प्रतियाँ और दे सकी। हर पत्रिका को निकालने में आप जो मेहनत करते हैं उसके लिए शुक्रिया।

एल. एन., अमरीका

मुझे ११ साल पहले टीबी हो गयी थी। पत्रिका में दी गयी जानकारी एकदम सही है। इसे पढ़कर मुझे अपना अनुभव याद आ गया। जीवन की देन के लिए और अपने स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए सजग होइए! में नियमित रूप से हमें जो सलाह मिलती है उसके लिए मैं यहोवा का धन्यवाद करती हूँ।

जी. बी., इटली

मुझे यह बीमारी लग गयी और छः महीने तक दवा लेनी पड़ी। आपके लेख ने मुझे इस जानलेवा बीमारी के बारे में और भी बातें बतायीं। उससे भी बढ़कर यह बात है कि इसने मुझे अपने विश्‍वास को मज़बूत करने में मदद दी कि परमेश्‍वर का राज्य इस समस्या का विश्‍वव्यापी समाधान लाएगा।

पी. पी., इंडोनेशिया

जानने की उत्सुकता मैं आपको श्रृंखला “जानने की उत्सुकता—इसका आप पर कैसा असर होता है?” के लिए धन्यवाद देने के लिए लिख रही हूँ। (जनवरी ८, १९९८, अंग्रेज़ी) मुझे किताबें पढ़ना अच्छा लगता है, मगर मुझे अब एहसास हुआ है कि मैं सारी जानकारी पाने की इच्छा ने मुझे चिंता में डाल दिया था। इन लेखों ने मुझे संतुलित नज़रिया रखने में मेरी मदद की है।

एम. ई., इटली

मैं आपको इतनी विस्तृत जानकारी से भरे लेख लिखने पर बधाई देता हूँ। मैं आपका एहसानमंद रहूँगा अगर आप मुझे पहले लेख को हमारे शिक्षण और संचार टॆक्नॉलजी संघ के समाचार-पत्र में छापने की अनुमति दें। जिसे इन्फॉर्मेशन सुपरहाइवे कहा जाता है वह तो जानकारी से भरा पड़ा है और ऐसे ही लेखों के द्वारा हमें सही-सही जानकारी मिलती है और जानकारी के इस युग में हम सबसे कदम-से-कदम मिलाकर चल पाते हैं।

जी. डी. घाना

इस लेख को दोबारा छापने की अनुमति दे दी गयी थी।—सम्पादक।

परमेश्‍वर का भय? मैं आपको बताना चाहती हूँ कि “बाइबल का दृष्टिकोण: आप प्रेम के परमेश्‍वर का भय कैसे मान सकते है?” (फरवरी ८, १९९८) लेख पाकर मुझे बहुत खुशी हुई। कुछ समय से मैं इसी प्रश्‍न पर विचार कर रही थी। मुझे मालूम था कि परमेश्‍वर का भय मानने का अर्थ है उसे अप्रसन्‍न न करने का हितकर भय होना। फिर भी, मुझे ऐसा लगा कि मुझे इस विषय को और भी अच्छी तरह समझने की ज़रूरत है। फिर मैंने यह लेख पढ़ा। आखिर इस विषय पर बहुत संतोषप्रद जानकारी मिल ही गयी कि परमेश्‍वर का भय मानने का क्या अर्थ है!

एम. जे. टी., अमरीका

बच्चे घर छोड़ जाते हैं मैं लेख-श्रृंखला “जब बच्चे घर छोड़ जाते हैं” (फरवरी ८, १९९८) के लिए बहुत आभारी हूँ। अपने खुद के अनमोल बच्चों को आज़ादी देने में मुझे दर्द हुआ है और समय लगा है। लेकिन आपने सही कहा कि समय और सहानुभूति के साथ खाली बसेरे में रहना आसान हो जाता है। हम माता-पिता अपने वैवाहिक बंधन में नयी जान डाल सकते हैं।

ए. ई., कनाडा

ये लेख मेरी प्रार्थनाओं का जवाब बनकर आये। बच्चों के घर छोड़ने से कटुता और कलह हो सकती है। लेकिन इस लेख में दी गयी अच्छी सलाह से शांति और प्रेम की जीत हो सकती है।

पी. एन., फ्रांस

मुझे लगा कि ये लेख खासकर मेरे लिए लिखे गये थे। हाल ही में मैंने घर छोड़ा कि उस जगह सेवा करूँ जहाँ पूर्ण-समय सुसमाचारकों की ज़रूरत है। इन लेखों ने मुझे यह समझने में मदद दी कि मेरे माता-पिता को कैसा लगता है और उन्हें छोड़कर आने के कारण मुझमें जो दोष भावना उठ रही थी उसे भी दूर करने में मदद दी। इसके अलावा, मैं “सयाने बच्चों के लिए एक सुझाव—आज़ादी देने में माता-पिता की मदद कीजिए” बक्स में दी गयी सलाह पर चलूँगी। जबकि मैं घर से बहुत दूर हूँ फिर भी ऐसा करने से मैं अपने माता-पिता के करीब महसूस करूँगी। इस तरह के लेखों के लिए शुक्रिया जो हमेशा ठीक समय पर आते हैं।

जी. यू., इटली

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