परमेश्वर का उद्देश्य क्या है?
अनेक लोग एक सर्वशक्तिमान, प्रेममय परमेश्वर के अस्तित्त्व पर संदेह करते हैं। वे पूछते हैं: यदि परमेश्वर अस्तित्त्व में है, तो उसने युगों से इतने दुःखों और दुष्टता की अनुमति क्यों दी है? आज हम अपनी चारों ओर जो दयनीय दशा देखते हैं, उसकी अनुमति वह क्यों देता है? आज पृथ्वी के अनेक देशों में युद्ध, अपराध, अन्याय, गरीबी और दूसरे दुःख बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं, उन्हें दूर करने के लिए वह कुछ करता क्यों नहीं?
कुछ लोग कहते हैं कि परमेश्वर ने विश्वमंडल को बनाया, मनुष्यों को पृथ्वी ग्रह पर डाला और फिर उन्हें अपनी नैया आप ही खेने के लिए छोड़ दिया। इस विचार के अनुसार, मनुष्य अपने लोभ या कुप्रबंध के कारण अपने ऊपर जो दुःख-तकलीफें लाते हैं उसके लिए परमेश्वर दोषी नहीं है।
लेकिन दूसरे ऐसी धारणा को नहीं मानते। उदाहरण के लिए, भौतिकी का प्रोफॆसर कॉनयर्ज़ हॆरिंग, जो परमेश्वर में विश्वास करता है, यह कहता है: “मैं इस धारणा को नहीं मानता कि परमेश्वर ने बहुत समय पहले चाबी भरकर विश्वमंडल की शुरूआत कर दी और उसके बाद से पीछे बैठकर तमाशा देख रहा है और मानवजाति गुत्थी सुलझाने में लगी हुई है। मैं इस धारणा को इसलिए नहीं मानता क्योंकि मेरा वैज्ञानिक अनुभव मुझे यह मानने का कोई कारण नहीं देता कि विश्वमंडल का ऐसा कोई ‘चाबी से चलनेवाला’ मॉडल है जो आखिरकार एकदम सही है। हमारे वैज्ञानिक सिद्धांतों . . . में और अधिक सुधार करने की गुंजाइश हमेशा रहेगी, लेकिन मुझे यकीन है कि वे कभी पूरी तरह सही साबित नहीं होंगे। मेरे खयाल से एक जीवित शक्ति पर विश्वास करना ज़्यादा सही है जो इस सुधार को हमेशा संभव बनाती है।”
हाँ, परमेश्वर का एक उद्देश्य है
परमेश्वर का मूल उद्देश्य था कि पृथ्वी ग्रह धर्मी और परिपूर्ण मनुष्यों से भर जाए। भविष्यवक्ता यशायाह ने लिखा: “यहोवा जो आकाश का सृजनहार है, वही परमेश्वर है; उसी ने पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उस ने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है।”—यशायाह ४५:१८.
पृथ्वी को आबाद करने के लिए एक-एक करके हर मनुष्य की सृष्टि खुद करने के बजाय, परमेश्वर का उद्देश्य था कि मनुष्य बच्चे पैदा करें और पृथ्वी को भर दें। जब आदम और हव्वा ने परमेश्वर से विद्रोह किया तो इससे उसका मूल उद्देश्य विफल नहीं हुआ। लेकिन मनुष्यों और पृथ्वी के बारे में उसका उद्देश्य पूरा करने के लिए कुछ बातों में ज़रूरी बदलाव करना पड़ा।
शुरूआत के करीब ६,००० सालों के दौरान परमेश्वर ने मनुष्यजाति को स्वतंत्र रूप से चलने दिया है, सीधे-सीधे उसे कोई मार्गदर्शन नहीं दिया। हमारे मूल माता-पिता ने अपनी स्वतंत्र इच्छा से यही चुनाव किया था। (उत्पत्ति ३:१७-१९; व्यवस्थाविवरण ३२:४, ५) परमेश्वर के मार्गदर्शन के बिना चलने की स्वतंत्रता और उसके बाद परमेश्वर के बजाय मनुष्यों द्वारा शासन आगे चलकर यह दिखाता कि मनुष्य के पास सफलतापूर्वक अपना जीवन चलाने और अपने संगी मनुष्यों पर शासन करने की क्षमता नहीं है।
यहोवा को पहले से पता था कि यही अंजाम होगा। उसने बाइबल लेखकों को इसके बारे में लिखने के लिए प्रेरित किया। उदाहरण के लिए, भविष्यवक्ता यिर्मयाह ने लिखा: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।”—यिर्मयाह १०:२३.
जब मनुष्य अपने संगी मनुष्यों पर अधिकार चलाने की कोशिश करते हैं जैसा उन्होंने सदियों से किया है, तो उसके क्या अनर्थकारी परिणाम होते हैं उनके बारे में बुद्धिमान पुरुष सुलैमान ने टिप्पणी की। “जितने काम धरती पर किए जाते हैं उन सब को ध्यानपूर्वक देखने में यह सब कुछ मैं ने देखा, और यह भी देखा कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।”—सभोपदेशक ८:९.
लेकिन यह बिलकुल सच नहीं कि परमेश्वर “पीछे बैठकर तमाशा देख रहा है और मानवजाति गुत्थी सुलझाने में लगी हुई है।” सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास ठोस कारण है कि क्यों उसने इन हज़ारों साल का समय गुज़रने दिया है और अधिकांश मानवजाति के जीवन में सीधे-सीधे हस्तक्षेप नहीं किया है।
अच्छा उद्देश्य पूरा हुआ है
मानव इतिहास के पिछले ६,००० साल एक लंबा समय प्रतीत हो सकते हैं जब हम उनकी तुलना अपनी १०० से भी कम सालों की औसत आयु से करते हैं। लेकिन परमेश्वर की समय-सारणी और समय बीतने के बारे में उसके दृष्टिकोण से देखें तो ये हज़ारों साल छः दिन के बराबर हैं—एक हफ्ते से भी कम! प्रेरित पतरस ने समझाया: “हे प्रियो, यह एक बात तुम से छिपी न रहे, कि प्रभु के यहां एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर हैं।”—२ पतरस ३:८.
फिर पतरस परमेश्वर पर लगाये गये ऐसे किसी भी आरोप का खंडन करता है कि उसने लापरवाही या टाल-मटोल की है। वह कहता है: “प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।”—२ पतरस ३:९.
सो जब वे साल पूरे हो जाएँगे जिनकी परमेश्वर ने छूट दी है, तब सृष्टिकर्ता हमारे सुंदर ग्रह में हो रही गड़बड़ी को रोक देगा। वह मनुष्य को यह दिखाने का काफी समय दे चुका होगा कि मनुष्य में शासन करने की क्षमता नहीं और न ही उसमें युद्ध, हिंसा, गरीबी, बीमारी और दुःखों के दूसरे कारण दूर करने की क्षमता है। मनुष्य पर जो बीती है उससे वह बात साबित हो चुकी होगी जो परमेश्वर ने शुरूआत में मनुष्यों से कही थी—कि सफल होने के लिए उनका ईश्वरीय मार्गदर्शन पर चलना ज़रूरी है।—उत्पत्ति २:१५-१७.
बाइबल भविष्यवाणी की पूर्ति के अनुसार, आज हम इस भक्तिहीन रीति-व्यवस्था के “अन्तिम दिनों” के आखिरी भाग में जी रहे हैं। (२ तीमुथियुस ३:१-५, १३; मत्ती २४:३-१४) मनुष्य ने परमेश्वर से स्वतंत्र होकर खुद शासन किया है। परमेश्वर ने इसे साथ ही दुष्टता और दुःखों को अब तक बरदाश्त किया है लेकिन अब वह और बरदाश्त नहीं करेगा। (दानिय्येल २:४४) जल्द ही दुनिया में अब तक का सबसे बड़ा क्लेश आनेवाला है, जो “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई,” अर्थात् अरमगिदोन में समाप्त होगा। (प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६) परमेश्वर द्वारा निर्देशित इस युद्ध में परमेश्वर के हाथों की रचना यह पृथ्वी नाश नहीं होगी, बल्कि “पृथ्वी के बिगाड़नेवाले नाश किए जाएंगे।”—प्रकाशितवाक्य ११:१८.
परमेश्वर का हज़ार वर्षीय राज्य
जब अरमगिदोन खत्म हो चुका होगा तो पृथ्वी पर लाखों लोग जीवित बचे होंगे। (प्रकाशितवाक्य ७:९-१४) नीतिवचन २:२१, २२ की भविष्यवाणी पूरी हो चुकी होगी: “धर्मी लोग देश में बसे रहेंगे, और खरे लोग ही उस में बने रहेंगे। दुष्ट लोग देश में से नाश होंगे, और विश्वासघाती उस में से उखाड़े जाएंगे।”
परमेश्वर का उद्देश्य है कि धर्मी युद्ध अरमगिदोन के बाद हज़ार वर्ष का एक खास समय आए। (प्रकाशितवाक्य २०:१-३) यह परमेश्वर के स्वर्गीय राज्य के राजा के रूप में परमेश्वर के पुत्र, मसीह यीशु का सहस्राब्दिक राज्य होगा। (मत्ती ६:१०) पृथ्वी पर इस आनंदमय राज्य शासन के दौरान, अनगिनत करोड़ों लोग मृत्यु की नींद से जाग उठेंगे और अरमगिदोन से बचकर निकलनेवाले लाखों लोगों के साथ हो लेंगे। (प्रेरितों २४:१५) एकसाथ उन्हें परिपूर्णता तक पहुँचाया जाएगा और फिर—मसीह के हज़ार वर्षीय शासन के अंत में—पृथ्वी आखिरकार परिपूर्ण पुरुषों और स्त्रियों से भर गयी होगी। वे सभी आदम और हव्वा के वंशज होंगे। परमेश्वर का उद्देश्य शानदार तरीके से और सफलता के साथ पूरा हो चुका होगा।
जी हाँ, परमेश्वर का उद्देश्य है कि वह “उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं। और जो सिंहासन पर बैठा था, उस ने कहा, कि देख, मैं सब कुछ नया कर देता हूं।” (प्रकाशितवाक्य २१:४, ५) निश्चित ही वह उद्देश्य बहुत निकट भविष्य में पूरा होगा।—यशायाह १४:२४, २७.
[पेज 5 पर तसवीर]
परमेश्वर के नये संसार में लोग हमेशा सुख से जीएँगे