बाइबल का दृष्टिकोण
क्या मृतजनों के प्रति श्रद्धा रखनी चाहिए?
“अधिकतर लोगों में एक भावना ने गहरी जड़ पकड़ी हुई है जो उन्हें प्रेरित करती है कि मनुष्य के शव के साथ आदर से व्यवहार करें लेकिन उनमें मरे हुए जानवर के लिए यह भावना नहीं होती।”—एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका।
अधिकतर लोग एक-न-एक तरीके से अपने मृत प्रियजनों के प्रति श्रद्धा दिखाते हैं। अखबारों में निधन संदेश छापकर मृतजनों के प्रति श्रद्धा दिखायी जाती है और उनका गुणगान किया जाता है। कुछ देशों में बड़ी-बड़ी धार्मिक अथवा पारंपरिक क्रियाओं के साथ अंत्येष्टियाँ की जाती हैं। मृतजनों के लिए किये गये अनुष्ठान कई-कई दिनों, हफ्तों या महीनों तक चल सकते हैं। मशहूर लोग मरते हैं तो उनके नाम पर स्कूलों, हवाई अड्डों, सड़कों और नगरों के नाम रखे जाते हैं। शूरवीरों की यादगार में स्मारक बनाए जाते हैं और छुट्टियाँ रखी जाती हैं।
लेकिन परमेश्वर के वचन के अनुसार, मृतजनों को इसका कोई ज्ञान नहीं होता कि उनके प्रति कैसी श्रद्धा दिखायी जा रही है। (अय्यूब १४:१०, २१; भजन ४९:१७) मृतजन केवल उन्हें याद रखनेवालों के मन में जीवित रहते हैं। बाइबल कहती है: “जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते।” (सभोपदेशक ९:५) शास्त्र भविष्य में होनेवाले पुनरुत्थान की आशा देता है। (यूहन्ना ५:२८, २९; ११:२५) लेकिन जब तक वह समय नहीं आता, मृतजन अस्तित्त्व में नहीं हैं। वे सचमुच मिट्टी में मिल जाते हैं।—उत्पत्ति ३:१९; अय्यूब ३४:१५.
मृतजनों की दशा के बारे में बाइबल के स्पष्ट वर्णन को ध्यान में रखते हुए, क्या मृतजनों के प्रति श्रद्धा दिखाने से कोई लाभ है? क्या मसीहियों को प्रियजनों की अंत्येष्टि से संबंधित पारंपरिक रीति-रिवाज़ों का पालन करना चाहिए?
गलत धारणा पर आधारित रस्में
मृतजनों से संबंधित अनेक और शायद अधिकतर पारंपरिक रस्में गैर-बाइबलीय धार्मिक शिक्षाओं से आयी हैं। कुछ क्रियाएँ इसलिए की जाती हैं कि “मृतजन को पैशाचिक हमले से बचाया जा सके; कभी-कभी इन क्रियाओं का उद्देश्य रहा है जीवित जनों को मृत्यु के संपर्क या मृतजन की दुर्भावना से बचाना,” एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका कहती है। ऐसा कोई भी रिवाज़ जो इस गलत धारणा पर आधारित है कि मृतजन एक अदृश्य लोक में जीवित हैं, बाइबल की सच्चाइयों के बिलकुल विरुद्ध है।—सभोपदेशक ९:१०.
अनेक लोग अपने मृतजनों की पूजा करते हैं। इस किस्म की उपासना में मृत पूर्वजों को भेंट चढ़ाना और उनसे प्रार्थना करना शामिल है। ऐसे कुछ लोग जो इन अनुष्ठानों को मानते हैं वे इसे उपासना नहीं समझते बल्कि सोचते हैं कि ऐसा करके वे मृतजन के प्रति श्रद्धा या गहरा आदर दिखा रहे हैं। लेकिन, मृत पूर्वजों के प्रति इस किस्म की भक्ति में धार्मिक अंश जुड़ा है और यह बाइबल शिक्षाओं से टकराती है। यीशु मसीह ने कहा: “तू [यहोवा] अपने परमेश्वर को प्रणाम कर; और केवल उसी की उपासना कर।”—लूका ४:८.
संतुलित दृष्टिकोण
मृतजनों के प्रति श्रद्धा और आदर दिखाना हमेशा झूठी धार्मिक शिक्षाओं से नहीं जुड़ा होता। उदाहरण के लिए, बाइबल के एक वृत्तांत में बताया गया है कि कैसे वफादार राजा हिजकिय्याह को उसकी मृत्यु के बाद सम्मानित किया गया। परमेश्वर के लोगों ने “उसको दाऊद की सन्तान के कब्रिस्तान की चढ़ाई पर मिट्टी दी . . . और सब यहूदियों और यरूशलेम के निवासियों ने उसकी मृत्यु पर उसका आदरमान किया।” (२ इतिहास ३२:३३) दूसरा उदाहरण यीशु का है। बाइबल कहती है कि उसके चेलों ने “यीशु की लोथ को लिया और यहूदियों के गाड़ने की रीति के अनुसार उसे सुगन्ध द्रव्य के साथ कफन में लपेटा।”—यूहन्ना १९:४०.
शास्त्र में कई और उदाहरण हैं जब मृतजनों की लाश और उन्हें दफनाने से संबंधित खास तरीके अपनाये गये। ये रीतियाँ पूर्वज उपासना नहीं थीं, न ही ये इस गलत विश्वास पर आधारित थीं कि मृतजन जीवित लोगों के जीवन पर प्रभाव डालना जारी रखते हैं। इसके बजाय, शोकित लोगों ने अपने प्रियजनों के लिए गहरा आदर व्यक्त किया। बाइबल ऐसा आदर दिखाने के लिए मना नहीं करती क्योंकि यह मनुष्य की स्वाभाविक भावनाओं पर आधारित है। लेकिन बाइबल इसका समर्थन नहीं करती कि अंत्येष्टियों पर बहुत ज़्यादा या बेकाबू भावनाओं का प्रदर्शन किया जाए। दूसरी ओर, बाइबल मसीहियों को इसका प्रोत्साहन भी नहीं देती कि प्रियजन की मृत्यु होने पर भावशून्य और कठोर बन जाएँ।
इसलिए, जब यहोवा के साक्षी अपने प्रियजन की अंत्येष्टि में जाते हैं तो वे मृतजन के प्रति उचित आदर और सम्मान दिखाते हैं। (सभोपदेशक ७:२) फूलों, अंत्येष्टि क्रियाओं और दूसरी स्थानीय प्रथाओं के बारे में मसीही बड़े ध्यान से अपना चुनाव खुद करते हैं ताकि ऐसी रीतियों से बचकर रहें जो बाइबल शिक्षाओं से टकराती हैं। इसके लिए अच्छी सूझबूझ और संतुलन की ज़रूरत है। एनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलिजन एण्ड ऎथिक्स बताती है कि “एक रस्म का अर्थ और महत्त्व समय के साथ-साथ बदल जाता है, इसलिए समय के बीतने पर उसका जो अर्थ निकाला जाता है वह शायद उससे बहुत फर्क हो जो शुरूआत में था और उसके प्रचलित अर्थ से उसकी शुरूआत के बारे में शायद कुछ न पता चले।”a
क्या गुणगान करना गलत है?
संतुलित होने का सिद्धांत मृतजनों का गुणगान करने के मामले में भी लागू होता है। अंत्येष्टि क्रियाओं में यहोवा के साक्षी शोकित जनों को सांत्वना देने की कोशिश करते हैं। (२ कुरिन्थियों १:३-५) औपचारिक कार्यक्रम में एक या उससे ज़्यादा वक्ता हो सकते हैं। लेकिन उस अवसर पर मृतजन का गुणगान ही करते जाना उचित नहीं होगा। इसके बजाय, अंत्येष्टि के समय परमेश्वर के अद्भुत गुणों की प्रशंसा करने का अवसर मिलता है, जिनमें उसकी यह कृपा भी शामिल है कि उसने हमें पुनरुत्थान की आशा दी है।
लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि अंत्येष्टि भाषण में मृतजन के अच्छे गुणों को याद करना गलत है। (२ शमूएल १:१७-२७ से तुलना कीजिए।) जब व्यक्ति मृत्यु तक परमेश्वर के प्रति वफादार रहता है तो वह अनुकरण करने के लिए बढ़िया उदाहरण बन जाता है। (इब्रानियों ६:१२) परमेश्वर के सेवक खराई के जिस मार्ग पर चले हैं उस पर मनन करना अच्छा है। अंत्येष्टि भाषण के दौरान दूसरों के साथ इन सकारात्मक विचारों को बाँटना जीवितों को सांत्वना देता है और वे आदर के साथ मृतजन को याद करते हैं।
सच्चे मसीही मृतजनों की उपासना नहीं करते। वे उन प्रचलित रस्मों को नहीं मानते जो बाइबल सच्चाइयों के विरुद्ध हैं। दूसरी ओर, परमेश्वर के सेवक यह उग्र विचार भी नहीं रखते कि अंत्येष्टि की सभी प्रथाएँ अर्थहीन और अनावश्यक हैं क्योंकि मृतजन तो बस मिट्टी ही हैं। वे अपने मृतजनों का शोक मनाते हैं और उन्हें याद करते हैं। लेकिन उनका दुःख-दर्द इन बाइबल सच्चाइयों को जानने से कम हो जाता है कि मृतजन कष्ट नहीं उठाते और उनके लिए पुनरुत्थान की आशा है।
[फुटनोट]
a प्रहरीदुर्ग के अक्तूबर १५, १९९१ के अंग्रेज़ी अंक, पृष्ठ ३१ में यह निर्देश दिया गया है: “सच्चे मसीही को इस पर विचार करना चाहिए: क्या अमुक रीति का पालन करने से दूसरों को यह संदेश मिलेगा कि मैंने अशास्त्रीय विश्वास या प्रथाएँ अपना ली हैं? इसका उत्तर समय और स्थान से प्रभावित हो सकता है। एक प्रथा (या चिन्ह) का सदियों पहले शायद झूठे धर्म से संबंध रहा हो या आज किसी दूर देश में ऐसा हो। लेकिन छानबीन में समय बरबाद करने के बजाय अपने आपसे पूछिए: ‘जहाँ मैं रहता हूँ वहाँ आम धारणा क्या है?’—१ कुरिन्थियों १०:२५-२९ से तुलना कीजिए।”
[पेज 10 पर तसवीर]
स्वीडन के राजा, गुस्ताव द्वितीय को १६३२ में उसकी मृत्यु के पश्चात् सम्मानित करती उसकी शवयात्रा
[चित्र का श्रेय]
Bildersaal deutscher Geschichte पुस्तक से