तेल-ताड़—बहु-उपयोगी पेड़
सॉलोमन द्वीप-समूह में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
ग्वाडलकनैल—इस द्वीप का नाम लेते ही बहुत लोगों को दूसरे विश्व युद्ध की बर्बरता याद आ जाती है जब यह द्वीप रणभूमि बना हुआ था। लेकिन आज यहाँ कोई लौटकर आये तो उसे एकदम फर्क नज़ारा देखने को मिलेगा—लंबी-लंबी कतारें, सैनिकों की नहीं, बल्कि ऊँचे-ऊँचे तेल-ताड़ों की।
जिस मिट्टी पर ये हरे-भरे और ऊँचे-ऊँचे तेल-ताड़ खड़े हैं वहाँ कभी टनों-टन बम और दूसरी हानिकर युद्ध सामग्री पड़ी थी। लेकिन युद्ध के उन औज़ारों को हटा दिया गया है ताकि तेल-ताड़ के लिए जगह बने। इस पेड़ की खेती कैसे शुरू हुई? और हम क्यों कह सकते हैं कि यह सुंदर, ऊँचा पेड़ बहु-उपयोगी है?
समृद्ध इतिहास
आधुनिक समय में तेल-ताड़ से मिलते-जुलते पेड़ का पहला वर्णन वॆनिस के आलवीज़े काडामोस्टो ने १५वीं सदी के मध्य में किया था। उसने अफ्रीका के पश्चिमी तट की खोज-यात्रा की थी। फिर आज से तकरीबन ५०० साल पहले, अफ्रीकी दास अटलांटिक पार के देशों में अपने साथ इसका फल ले गये। इस तरह ताड़ का तेल आज दुनिया भर में दूर-दूर तक इस्तेमाल किये जानेवाले वनस्पति तेलों में से एक बन गया है। तेल-उत्पादन करनेवाले किसी दूसरे पेड़ की तुलना में तेल-ताड़ प्रति एकड़ ज़्यादा तेल का उत्पादन करता है। इसके साथ-साथ, तेल-ताड़ बारहमासी पेड़ है जो २५ से ३० साल तक फल और तेल देता है।
ताड़ के तेल के उत्पादन में, खासकर सुदूर पूर्व के कुछ देशों में उस खोज का बहुत महत्त्व है जो १९७० के दशक की समाप्ति में की गयी। पहले यह सोचा जाता था कि तेल-ताड़ का परागण मुख्यतः हवा के द्वारा होता है। इसलिए खराब फसल का ज़िम्मेदार खराब मौसम को ठहराया जाता था। लेकिन, हाल के शोध ने दिखाया है कि मुख्यतः कीड़े परागण करते हैं! सो, पेड़ों को परागित करनेवाले कीड़ों को पश्चिम अफ्रीका से सुदूर पूर्व ले जाना लाभकारी सिद्ध हुआ।
तेल-ताड़ के ललछौंट-संतरी फल से दो किस्म का तेल निकलता है। दोनों को अनेक प्रकार के उत्पादनों में इस्तेमाल किया जाता है। उनमें से कुछ उत्पादनों को शायद आप भी इस्तेमाल करते हों। इनके बारे में बात करने से पहले, आइए ताड़ के तेल की मिल में जाएँ और देखें कि तेल कैसे निकाला जाता है।
सुनहरा तेल निकालना
जब हम मिल पर पहुँचते हैं तो हमारा टूर गाइड हमारा अभिवादन करता है और हमें अंदर ले जाता है। हमारी चारों ओर भारी-भारी मशीनें चल रही हैं। गाइड बताता है कि तेल-ताड़ के फल को संसाधित करने में पहला कदम है फल को बड़ी-सी बेलनाकार वाष्प भट्टी में रखना। फल के हर गुच्छे में खजूर के आकार के करीब २०० छोटे-छोटे फल होते हैं, जो बहुत पास-पास सटे होते हैं। वाष्प भट्टी फल को कीटाणु-रहित कर देती है और गुच्छे के फल कुछ ढीले हो जाते हैं।
अगला कदम है स्ट्रिपर नाम की मशीन इस्तेमाल करके फल को गुच्छे से अलग करना। उसके बाद अलग किये गये फलों को एक बड़े-से ब्लॆंडर में डाला जाता है, जहाँ बाहर के मोटे गूदे को बीज से अलग किया जाता है। फिर इस रेशेदार बाहरी गूदे को एक बड़े-से एक्सट्रूडर में निचोड़ा या दबाया जाता है और इससे कच्चा ताड़ का तेल प्राप्त होता है। साफ और परिष्कृत किये जाने के बाद ताड़ का तेल इस्तेमाल के लिए तैयार है।
लेकिन दूसरे किस्म का तेल भी है। यह बीज से निकलता है। तेल-ताड़ के बीज को तोड़कर उसमें से गिरी को निकालना पड़ता है। उसके बाद, गिरी को दबाकर उसका बहुमूल्य तेल निकाला जाता है। इस तेल को ताड़-गिरी तेल कहा जाता है।
गिरी से बचा खुज्जा मवेशियों के लिए पौष्टिक चारा बनाने के काम आता है। उसी तरह, गुच्छों में से फल अलग करने के बाद बचे-खुचे हिस्से को खाद की तरह खेतों में डालने के लिए भेज दिया जाता है। फल के रेशे और छिलके को भी इस्तेमाल किया जाता है। वे मिल के बॉइलरों के लिए ईंधन का काम करते हैं। बहुत ही किफायती प्रक्रिया है यह!
आइस क्रीम से लेकर फेस क्रीम तक
दुनिया भर में इस्तेमाल होनेवाले वनस्पति तेलों में सोयाबीन के तेल के बाद दूसरे नंबर पर ताड़ का तेल है। द वर्ल्ड बुक एनसाइक्लोपीडिया कहती है: “१८वीं सदी के दौरान अंग्रेज़ लोग ताड़ के तेल को दवा और हैंड क्रीम के तौर पर इस्तेमाल करते थे।” लेकिन आज यह आइस क्रीम, मार्जरीन, घी और खाना पकाने के तेल में साथ ही साबुन और सौंदर्य प्रसाधनों में भी इस्तेमाल होता है।
ताड़-गिरी तेल भी मार्जरीन और चॉकलॆट और दूसरी मिठाइयों में इस्तेमाल होता है। लेकिन इन तेलों का इस्तेमाल इतना ही नहीं है। और ज़्यादा संसाधन करने के बाद, ताड़ के तेल और ताड़-गिरी के तेल के अवयवों से दवाइयाँ, साबुन, डिटर्जॆंट, मोमबत्ती और यहाँ तक कि बम बनाए जाते हैं!
सचमुच, तेल-ताड़ सॉलोमन द्वीप-समूह में बहुत लोकप्रिय है। अर्थव्यवस्था पर तेल-ताड़ का प्रभाव यह है कि देश का १३ प्रतिशत निर्यात इस पेड़ के कारण ही होता है।
जब हम नज़रें उठाकर तेल-ताड़ की ओर देखते हैं, तो यह सोचकर मुसकाते हैं कि इस चटक-संतरी फल से बनी आइस क्रीम खिलखिलाकर हँसते हुए बच्चे के मुँह से टपक रही होगी। और शायद उसकी माँ के श्रृंगार में ताड़ का तेल हो। जी हाँ, तेल-ताड़ बहुत ही उपयोगी पेड़ है और हम उसकी भरपूर उपज के लिए शुक्र मना सकते हैं।
[पेज 27 पर बक्स/तसवीर]
हाथ से एक दिन में दो टन
धड़ . . . धड़। धड़ . . . धड़! जब मज़दूर बागान में तेल-ताड़ की कटनी करते हैं तो फल के गुच्छों के गिरने की आवाज़ हवा में गूँजती है। पेड़ों पर फल इतनी ऊँचाई पर लगा होता है तो मज़दूर उस तक पहुँचते कैसे हैं?
उन पेड़ों से फल तोड़ने के लिए जिनकी ऊँचाई कभी-कभी चार-मंज़िला इमारत के जितनी होती है, मज़दूर तेज़ धारवाली हँसिया का इस्तेमाल करते हैं। वे हँसिया को ऐसी लग्गी के सिरे पर बाँधते हैं जिसे ऊँचा किया जा सकता है। आम कामकाज के दिन, हर मज़दूर फल के ८० से १०० गुच्छे तक काट लेता है और उन्हें लदाई के लिए सड़क किनारे ले जाता है। फल के हर गुच्छे का भार करीब २५ किलोग्राम होता है सो उन्हें बहुत भार ढोना पड़ता है! एक टन ताड़ का तेल निकालने के लिए साढ़े चार टन फल चाहिए होता है।