दास-प्रथा के घिनौने अतीत में झाँकना
अफ्रीकी देश सॆनॆगल के तट से थोड़ी दूर, डकार नगर के पास ईल ड गॉरे द्वीप है। ३१२ साल तक, १८४८ तक यह द्वीप फल-फूल रहे दास व्यापार का केंद्र था। फ्रांसीसी बंदरगाह नैनट्स के पुरालेख दिखाते हैं कि मात्र १७६३ से १७७५ के बीच गॉरे में १,०३,००० से ज़्यादा लोगों को दास बनाकर नैनट्स बंदरगाह से रवाना किया गया।
आज हर दिन औसतन २०० लोग मॆज़ॉन् डेज़ॆसक्लाव, दास घर संग्रहालय देखने जाते हैं। टूर गाइड ज़्होज़ॆफ न्डयाई ने ऐसी कुछ भयंकर बातों का वर्णन किया जो उन असहाय लोगों ने सही थीं: “हमारे पूर्वजों को दूर देश भेज दिया गया, उनके परिवार तितर-बितर कर दिये गये, मवेशियों की तरह उनकी चमड़ी दागी गयी।” पूरे-पूरे परिवार बेड़ियों में पहुँचते थे। “माँ को शायद अमरीका भेजा जाता, पिता को ब्राज़ील, बच्चों को ऐंटिलीज़,” गाइड ने बताया।
“तौले जाने के बाद,” न्डयाई ने समझाया, “पुरुषों को उनकी उम्र और जाति के हिसाब से आँका जाता था, किसी-किसी जाति के लोगों को हट्टा-कट्टा या खूब बच्चे पैदा करनेवाला समझा जाता था और उन्हें ज़्यादा पसंद किया जाता था। उदाहरण के लिए, योरुबा जाति को ‘भैंसे’ की तरह माना जाता था।”
कम वज़नवाले बँधुवों की नीलामी करने से पहले उन्हें मोटा किया जाता था। दास व्यापारी हर रात अपनी काम-वासना संतुष्ट करने के लिए जवान औरतों को चुन लेते थे। बगावत करनेवाले दासों को गले के बजाय छाती बाँधकर फाँसी दी जाती थी ताकि वे देर तक तड़पें।
पोप जॉन पॉल द्वितीय ने १९९२ में गॉरे का दौरा किया। द न्यू यॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट किया कि “उसने दास व्यापार के लिए क्षमा माँगी, उन सब की तरफ से क्षमा माँगी जिन्होंने इसमें हिस्सा लिया था। इसमें कैथोलिक मिशनरी भी शामिल थे जिन्होंने अफ्रीकियों की बँधुवाई को सामान्य बात मान लिया था।”
लेकिन, जो कुछ हुआ उसे हर कोई मानने को तैयार नहीं। आज से ढाई साल पहले, नैनट्स अभिलेख मिलने से पहले, एक फ्रांसीसी जेसुइट ने दावा किया कि गॉरे में सिर्फ २०० से ५०० दास सालाना बेचे जाते थे। श्री. न्डयाई ने कहा कि अब तक “संसार ने कभी न समझा और न स्वीकार किया है कि यह आखिर कितना घोर अत्याचार था।”
[पेज 23 पर चित्रों का श्रेय]
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Yann Arthus-Bertrand/Corbis
DESPOTISM—A Pictorial History of Tyranny की प्रतिकृति