विश्व दर्शन
नवजात शिशु और दर्द
लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में रिसर्च करनेवालों ने यह पाया है कि नवजात शिशुओं को बड़ों से ज़्यादा और वो भी काफी लंबे समय तक दर्द महसूस होता है। लंदन का द संडे टॆलिग्राफ कहता है, “बस पिछले १० सालों से ही यह माना जा रहा है कि छोटे-छोटे बच्चों और नवजात शिशुओं को दर्द होता है।” यह पता चलने से पहले, समय से पहले जन्म लेनेवाले शिशुओं को दर्द-निवारक दवाओं के बिना ही दर्दनाक ट्रिटमेंट दी जाती थी और ऑपरेशन किया जाता था। अब डाक्टर मानते हैं कि ऐसे ट्रीटमेंट से दर्द के प्रति बच्चों के शरीर की प्रतिक्रिया बढ़ जाती है और उन पर इसका काफी समय तक यहाँ तक कि उनके बड़े होने तक असर रहता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बड़े बच्चों और बड़े लोगों के शरीर में दर्द को ‘हलका’ करनेवाली जो प्रक्रिया होती है, यह समय से पहले जन्म होनेवाले शिशुओं के शरीर में ठीक से काम नहीं करती। अखबार रिपोर्ट करता है कि शिशुओं को सिर्फ चोट लगी हुई जगह में ही नहीं बल्कि उसके आस-पास की जगहों में भी दर्द महसूस होता है और त्वचा पर हुए एक छोटे-से घाव के सूख जाने के काफी समय बाद भी वहाँ छूने से दर्द होता है।
फुटबॉल और मार-पीट
पिछले साल के वर्ल्ड कप फुटबॉल मैच में भाग लेनेवाली टीमों के बीच बहुत भारी मुकाबला था और किसी भी टीम की जीत के लिए मनायी गयी खुशियों का अंत अकसर मार-पीट में हुआ। मॆक्सिको में खेल रही उस देश की टीम के दीवानों पर काबू पाने के लिए १,५०० से भी ज़्यादा पुलिस बुलायी गयी। वहाँ का अखबार एल यूनीवर्सल रिपोर्ट करता है कि पुलिस ने २०० से ज़्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया। इस हंगामे के दौरान फेंका गया एक पटाखा एक जवान के चेहरे पर फटा जिससे उसकी खोपड़ी का कुछ हिस्सा नष्ट हो गया। अर्जेंटीना, बॆलजियम और ब्राज़ील में भी खुशियों के रंग में भंग पड़ा, जिसकी वज़ह से कई लोग ज़ख्मी हुए और कुछ लोग गिरफ्तार भी किए गए। मॆक्सिको सिटी का अखबार एक्सॆलसियोर रिपोर्ट करता है कि फ्रांस में वर्ल्ड कप फुटबॉल मैच को लेकर करीब-करीब १,००० लोगों को हिरासत में ले लिया गया और १,५८६ लोगों को देश में फिर कभी कदम न रखने का आदेश दिया गया।
घर में खुशियों की बहार —लेकिन काम-ही-काम!
जर्मनी का नॉसाउइशे नोइए प्रेसे कहता है कि “बच्चा पैदा होने के साथ काम का बोझ और भी बढ़ जाता है। कई युवा माँ-बाप इस बोझ का ठीक से अंदाज़ा नहीं लगा पाते। और इस वज़ह से अकसर मियाँ-बीवी में तूतू-मैंमैं होती है।” नॆदरलैंडस् के ग्रोनिंगॆन यूनिवर्सिटी में की गयी एक जाँच से पता चला कि युवा माताएँ अकसर खुश नहीं रहतीं क्योंकि बच्चे के जन्म से उनके जीवन में अचानक ही बड़े-बड़े बदलाव आ जाते हैं। औसतन, माताओं को बच्चे की देखभाल करने के लिए हर हफ्ते और भी ४० घंटे चाहिए। इनमें से ६ घंटे अतिरिक्त साफ-सफाई करने, कपड़े धोने व इस्त्री करने और खाना बनाने में लग जाते हैं और बाकी के ३४ घंटे पूरी तरह से बच्चे की ओर ध्यान देने में बीतते हैं। जबकि पूरी तरह से बच्चे की ओर ध्यान देने में जो १७ घंटे पिता बिताता है, बस वही उसका अतिरिक्त काम है। रिपोर्ट के मुताबिक, विवाह में तनाव “इस बात से नहीं होता है कि बच्चे की नैपी कौन बदलेगा, या रात को उसे बोतल से दूध पिलाने के लिए कौन उठेगा। इसके बजाय, तनाव घरेलु कामकाज को आपस में बाँटने का है।”
आपकी सेहत, आपके हाथ
कैनडा का द मेडिकल पोस्ट कहता है, “जब व्यक्ति छींकते वक्त अपने मुँह के पास हाथ लाता है या अपनी नाक साफ करता है, तो उसे टॆलिफोन को या दरवाज़े के हैंडल को छूने से पहले अपना हाथ धो लेना चाहिए।” द पोस्ट ने ‘यू.एस. एस्सोसिएशन फॉर प्रॉफॆशनल्स इन इन्फॆक्शन कंट्रोल एण्ड एपिडेमिओलोजी’ की बात को दोहराया, जिसमें लिखा है कि “८० प्रतिशत आम इंफॆक्शन हाथों से और छूने से फैलता है, हवा से नहीं।” टोरॉन्टो यूनिवर्सिटी की डॉ. ऑड्री कॉर्लिन्सकी सलाह देती है कि बार-बार हाथ धोइए और हाथों में साबुन लगाकर “१० से १५ सेकॆण्ड तक” रगड़कर धोइए। “ध्यान दें कि उँगलियों के बीच में और नाखूनों के नीचे भी धोएँ।” वह कहती है कि इसके बाद आपको गर्म पानी में अपने हाथ धोने चाहिए और इस्तेमाल करके फेंक देनेवाले पेपर टॉवल से नल को बंद करना चाहिए। इसके लिए आप क्या कर सकते हैं कि आपके बच्चे सही तरीके से और काफी समय तक हाथ धोएँ? डॉ. कॉर्लिन्सकी सुझाव देती है कि उन्हें कहिए कि वे ए-टू-ज़ेड (A-Z) तक बोलते हुए साबुन लगाकर हाथ धोएँ।
टीवी और दुर्घटनाएँ
ऐसे बच्चे जो टीवी देखने में काफी समय बिताते हैं, वे टीवी में दिखाए जानेवाले खतरनाक स्टंटों की नकल उतारने की शायद कोशिश करें। स्पेन के एक रिसर्च करनेवाले, डॉ. होसे ऊम्बेरोस फरनैनडॆज़ द्वारा की गयी स्टडी के मुताबिक, बच्चा जितने घंटे टीवी देखने में बिताता है, ज़ख्मी होने की उसकी गुंजाइश उतनी ही ज़्यादा बढ़ जाती है। फरनैनडॆज़ सुझाता है कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि टीवी में असलियत को छुपाकर उसे गलत तरीके से पेश किया जाता है। बच्चों को टीवी के असर से बचाने के लिए माता-पिता क्या कर सकते हैं? ग्रीक अखबार तो वीमा के मुताबिक, माँ-बाप को बच्चों के साथ मिलकर यह तय करना चाहिए कि बच्चे कौन-से कार्यक्रम देखेंगे और उन्हें टीवी की हर बात को हकीकत मानने के बजाय थोड़ा “सोच-समझकर, सही निर्णय करने में” बच्चों की मदद करनी चाहिए।
नन्ने-मुन्ने और कैफीन
अगर बच्चे कॉफी या चाय नहीं भी पीते हों, तो भी वे कार्बोनेटड और चॉकलेट ड्रिंक के ज़रिए काफी मात्रा में कैफीन शरीर के अंदर ले लेते हैं। इसकी वज़ह से जब वे इन्हें पीना बंद करते हैं तो उन्हें शारीरिक तकलीफों को झेलना पड़ता है, द न्यू यॉर्क टाइम्स रिपोर्ट करता है। मिनॆसोटा मेडिकल स्कूल यूनिवर्सिटी के डॉ. गैल ए. बर्नस्टाइन के साथ काम करनेवाले मनोवैज्ञानिकों के एक दल ने स्कूल जानेवाले ३० बच्चों की स्टडी की। वे देखना चाहते थे कि बच्चों की ध्यान लगाए रहने की क्षमता पर कैफीन का कितना असर होता है। बच्चों द्वारा ली जानेवाली कैफीन की मात्रा को बढ़ाकर उन्हें उतना कैफीन दिया गया जितना कैफीनवाले सॉफ्टड्रिंक्स के तीन कैन में होता है। एक हफ्ते बाद बच्चों को एक दिन के लिए कैफीन नहीं दिया गया। और देखा गया कि बच्चों ने पहले जो कैफीन लिया था, उसका असर इतना था कि उस दिन और उसके बाद पूरे एक हफ्ते तक बच्चों का किसी काम में बिलकुल भी ध्यान नहीं लगा। उन्होंने कहा, “इसे रोकने का सबसे अच्छा तरीका है बच्चों को ऐसे ड्रिंक्स न दें जिनमें बहुत ज़्यादा कैफीन हो।”
शिशु और शहद के बारे में चेतावनी
साइन्स न्यूज़ रिपोर्ट करती है कि शहद में विटामिन, खनिज व एन्टी-ऑक्सिडॆंट होते हैं। असल में, शहद का रंग जितना ज़्यादा गाढ़ा होगा, उसमें उतने ही ज़्यादा एन्टी-ऑक्सिडॆंट होंगे। लेकिन, यूसी बर्कले वॆलनॆस लेट्टर सावधानी के ये दो शब्द कहता है: “एक साल के कम उम्र के बच्चों को शहद कभी मत दीजिए।” शहद के लगभग १० प्रतिशत भाग में निष्क्रिय क्लॉसट्रिडिअम बोटूलिनम फफूंदी होती है जिससे शिशुओं का पेट खराब (infant botulism) होता है। लनॆस लेट्टर कहता है, “यह गंभीर रूप भी ले सकता है। यदि इसका इलाज नहीं कराया जाए तो इससे कोई छोटी-मोटी बीमारी हो सकती है या भारी लकवा मार सकता है और एकाएक मौत भी हो सकती है।” मगर बड़े बच्चों को शहद से कोई नुकसान नहीं होता।
छरहरे बने रहने के लिए सिगरॆट पीना
कैनडा का अखबार द ग्लोब एण्ड मेल रिपोर्ट करता है कि “छरहरे बने रहने का जुनून” किशोरियों को सिगरॆट पीने के लिए मजबूर कर रहा है। कैनडा की ८३२ और ब्रिटॆन की १,९३६ लड़कियों का एक सर्वे लिया गया। उन लड़कियों की उम्र १० से १७ के बीच थी। इस सर्वे में कईयों ने कहा कि वे “खाना खाने के बदले सिगरॆट पीती हैं” क्योंकि यह उनकी भूख को मार देती है। कई किशोरियों ने कहा कि उनका मानना है कि “अगर वे सिगरॆट पीना छोड़ देंगी तो वे और ज़्यादा खाने लगेंगी और उनका वज़न और भी बढ़ जाएगा।” ग्लोब ने कहा कि “रिपोर्टें दिखाती हैं कि अब किशोरों में सिगरॆट पीने के मामले में जो बढ़ोतरी हुई है उनमें ज़्यादातर किशोरियाँ ही हैं। इन रिपोर्टों से पता चलता है कि स्त्रियों में होनेवाले फेफड़ों का कैंसर क्यों इतनी तेज़ी से बढ़ रहा है।”
नौकरी को खतरा यानी सेहत को खतरा
भविष्य में आपकी नौकरी चली जाने की चिंता आपकी सेहत को खराब कर सकती है, साइन्स न्यूज़ रिपोर्ट करती है। ब्रिटेन की सरकार में काम करनेवाले १०,००० लोगों की सेहत के बारे में लंबे समय तक एक सर्वे लिया गया। उनमें से ६०० से भी ज़्यादा आदमी-औरतों ने चार साल के दौरान यह अफवाहें सुनी थीं कि जिस डिपार्टमॆंट में वे काम करते हैं, वह अब किसी प्राइवॆट कंपनी के हाथ दे दिया जाएगा जिसकी वज़ह से उनकी नौकरी जा सकती है। इन चार सालों के दरमियान कुल मिलाकर देखा गया कि जिन लोगों को नौकरी जाने की चिंता थी, उनकी सेहत काफी खराब हुई, पर उनकी नहीं जिन्हें नौकरी जाने की चिंता नहीं थी। जिन लोगों को नौकरी छूटने की चिंता थी, उनके खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा काफी बढ़ गयी और उनमें दिल की बीमारी के मामले ४० से ६० फिसदी बढ़ गए। साइन्स न्यूज़ कहती है: “इन लोगों में इसकी भी गुंजाइश ज़्यादा थी कि वे कसरत करना बंद कर देंगे, उनका वज़न बढ़ जाएगा, वे ९ से ज़्यादा घंटे सोएँगे और अपने साथी से तलाक ले लेंगे या अलग हो जाएँगे।”
सबसे पुराना नक्शा जिसमें दूरियाँ नंबरों में लिखी हैं
एझहान्स फ्रांस-प्रॆस रिपोर्ट करता है कि चीन के पुरातत्वविज्ञानियों को २,३०० साल पुरानी ताँबे की एक प्लेट मिली जिसपर नक्काशी की हुई है। यह प्लेट वास्तव में एक नक्शा है, जिसमें दूरियाँ नंबरों में लिखी हैं। इस नक्शे में उत्तरी चीन का एक छोटा-सा भाग दिखाया गया है जो अब होपेह कहलाता है, और इस में लगभग १:५०० का स्केल इस्तेमाल किया गया है। इसमें सा.यु.पू. चौथी सदी के राजा वांग ट्स्वो के शाही कब्रिस्तान का रेखाचित्र भी है। चीन के फॉरबिड्डन सिटी के लिए रिसर्च करनेवाले दू नाइसोंग ने कहा: “यह चीन में पाया जानेवाला न केवल सबसे पुराना नक्शा है बल्कि यह पूरी दुनिया में पाए गए नंबरवाले नक्शों में भी सबसे पुराना नक्शा है।”
१९९९ में ६ अरब
फ्राँस का दैनिक लॆ मोन्ड रिपोर्ट करता है कि इस साल दुनिया की आबादी छः अरब पार कर जाएगी। लेकिन आबादी की रफ्तार धीमी पड़ रही है। ६० के दशक में एक साल में आबादी जितनी रफ्तार से बढ़ती थी, अब वह उससे ३० फिसदी कम है। इस कमी की कुछ-कुछ वज़ह है गर्भ निरोधक उपायों का ज़्यादा इस्तेमाल करना और लड़कियों को ज़्यादा पढ़ाना-लिखाना। इस रिपोर्ट के मुताबिक, १५ से २४ की उम्र के युवाओं की संख्या अब एक अरब है, जबकि ६० से ऊपर के लोगों की संख्या ५७.८ करोड़ से ज़्यादा है।