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क्या हम अपना मौसम बदल रहे हैं? मैं १७ बरस की हूँ और अपने डिप्लोमा की तैयारी कर रही हूँ। मुझे भूगोल की भी परीक्षा देनी थी और इसकी तैयारी करने में मुझे आपके लेखों ने बड़ी मदद दी, जिनका विषय था “क्या हम अपना मौसम बदल रहे हैं?” (जून ८, १९९८) परीक्षा के बाद, मेरी सहपाठियों ने मुझसे पूछा कि मुझे मौसम के बारे में यह सब जानकारी कहाँ से मिली। उनमें से आधे से ज़्यादा विद्यार्थियों ने इसकी प्रतियाँ माँगी।

ए. जी., स्विट्‌ज़रलैंड

सजग होइए! के इस अंक में ग्रीन हाऊस एफॆक्टस्‌ के बारे में जाँच-परखकर लिखी गयी जानकारी से मुझे ताज्जुब भी हुआ और खुशी भी। मैं पर्यावरण में बहुत गहरी दिलचस्पी रखता हूँ और एक ईसाई भी हूँ। समाचार माध्यमों में यहोवा के साक्षियों की अकसर निंदा की जाती है। लेकिन आपकी पत्रिका में जो बातें दी गयी हैं, वह सोचने वाली बातें हैं। लोगों की पर्यावरण में दिलचस्पी और धर्म में विश्‍वास कम होता जा रहा है। आखिरकार, ऐसे धार्मिक लोग भी हैं जो परमेश्‍वर की सृष्टि में रुची रखते हैं!

एम. सी., फ्रांस

मैं १४ बरस की हूँ और आपको इन लेखों के लिए शुक्रिया कहना चाहती हूँ। मैंने पहले कभी मौसम पर इतना ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब मैंने पहली बार गंभीरता से इस बारे में सोचा कि हम अपनी पृथ्वी की क्या गत कर रहे हैं। इन लेखों से लोगों की आँखें ज़रूर खुल जाएँगी क्योंकि ऐसा कौन है जो अपने पर्यावरण को बर्बाद करना चाहेगा? परमेश्‍वर ने हमें जो तोहफा दिया है, उसे हमें बस यूँ ही फेंक नहीं देना चाहिए।

एस. क्यू., जर्मनी

धार्मिक समझी जानेवाली पत्रिका में मौसम के बारे में कुछ पढ़कर अच्छा लगा। इससे बस यही पता चलता है कि सजग होइए! को लोगों की कितनी परवाह है। यह हमारी धार्मिक ज़रूरतों की ही नहीं, बल्कि हमारे पर्यावरण की भी परवाह करती है। हालाँकि हम मौसम को ज़्यादा महत्त्व नहीं देते, मगर मौसम का हमारे जीवन पर सचमुच असर पड़ता है।

एम. एफ. एम., जर्मनी

आदर्श मैंने जून ८, १९९८, सजग होइए! का लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . मुझे अपना आदर्श किसे बनाना चाहिए?” पढ़ा। इसे पढ़कर मैं सोचने लगी कि इस तरह के लेखों ने मेरी ज़िंदगी को कितना बेहतर बनाया है। मेरे परिवार के टूटने के बाद, लाज़मी है कि मैं अपने दोस्तों की तरफ खिंच गयी जो मेरी ही उम्र के थे। लेकिन फिर मैं उन लोगों के बारे में काफी सोचने लगी जिन्होंने मेरी ज़िंदगी पर सबसे ज़्यादा और अच्छा प्रभाव डाला था। और वे थीं मसीही बहनें जो मुझसे उम्र में काफी बड़ी थीं। अब मैं ऐसा रिश्‍ता बनाने की कोशिश करती हूँ जैसा रिश्‍ता पौलुस और तीमुथियुस या रूत और नाओमी के बीच था। मेरी सबसे पक्की सहेली हैं ५० साल की एक बहन जिसने मुझे खुशी, प्यार, रहम, दया और उदारता के बारे में सिखाया है। हम एकसाथ काम करना चाहते हैं, सो हम एकसाथ रहने लगे हैं, और पूर्ण-समय की सेवकाई जल्द ही शुरू करनेवाले हैं। सही रास्ता दिखाने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।

सी. एफ., अमरीका

फाइब्रोमाइऎलजिया   “फाइब्रोमाइऎलजिया—इसको समझना और सहना” (जुलाई ८, १९९८) लेख के लिए आपका बहुत, बहुत शुक्रिया। पिछले छः साल से मुझे यह बीमारी है। लेख में इस बीमारी के बारे में सारी जानकारी दी गयी है और सब सही-सही है। और बक्स में दिए गए शास्त्रवचनों ने भी मेरा हौसला काफी बढ़ाया।

एन. एम., अमरीका

काफी लोगों ने इस लेख के बारे में हमें लिखा है। आनेवाले अंकों में हम और भी टिप्पणियाँ छापने की कोशिश करेंगे।—संपादक।

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