युवा लोग पूछते हैं . . .
मेरी चाहतें पूरी क्यों नहीं की जातीं?
“कुछ चीज़ें मुझे बहुत अच्छी लगती हैं, काश वे मुझे मिल जातीं; लेकिन मेरे मम्मी-पापा की इतनी औकात नहीं कि उन्हें खरीद सकें।” —माइक।
क्या ऐसी चीज़ें हैं जो सचमुच आपको बहुत पसंद हैं लेकिन मिलती नहीं? शायद आपका दिल उस नये टेप रिकॉर्डर पर आ गया है या उन जूतों पर जो दूसरे सभी बच्चे पहन रहे हैं या फिर आप उस नये डिज़ाइन की जीन्स खरीदना चाहते हैं। आपके कुछ दोस्तों के पास ऐसी चीज़ें हैं और वे बड़ी शान से उन्हें दिखाते हैं। ऐसे में यदि आपसे कहा जाए कि आपके माता-पिता आपको ये चीज़ें नहीं दिला सकते, तो आप शायद मायूस हो जाएँ।
ऐसी चीज़ों को पाने की इच्छा रखना आम बात है लेकिन बहुत युवाओं में यह इच्छा सनक की हद तक पहुँच जाती है। लगता है कि इसमें काफी दोष मीडिया का है। टीवी, पत्रिकाओं और रेडियो पर लुभावने विज्ञापन यह संदेश देते हैं कि जब तक आप अमुक कपड़े नहीं पहनेंगे या अमुक ब्रांड के उत्पादन नहीं इस्तेमाल करेंगे आप सफल नहीं हो सकते। अमरीका को ही लें तो वहाँ के किशोर साल में १०० अरब से ज़्यादा डॉलर खर्च करते हैं!
फिर साथियों की तरफ से भी दबाव आता है। “जवानों की निष्ठुर और नासमझ दुनिया में,” मार्कॆटिंग टूल्स पत्रिका का एक लेख कहता है, “यदि आपके संगी-साथी आपको गँवार समझते हैं तो यह सिर्फ उनके स्तर तक न पहुँच पाने या उनके द्वारा ठुकराये जाने की बात नहीं: यह दिखाता है कि आप असफल हैं।” “मॉडर्न” होने का राज़? कई दायरों में इसका राज़ है आपके पास सबसे बढ़िया और एकदम नयी चीज़ें होना। और यदि ऐसी चीज़ें खरीदने की आपकी औकात नहीं, तो? “सचमुच बहुत मुश्किल होती है,” एक मसीही युवा स्वीकार करता है। “आप किसी अनजान डिज़ाइनर के कपड़े पहनकर स्कूल जाएँ तो हर कोई आपको चिढ़ाता है।” एक और युवती स्वीकार करती है, “कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं अकेली पड़ गयी हूँ।”
ऐसे दबाव उन युवाओं पर भी आ सकते हैं जो विकासशील देशों में रहते हैं, जहाँ लोग दो जून की रोटी कमाने के लिए घंटों मेहनत करते हैं। यदि आपके परिवार की भी यही हालत है तो स्वाभाविक है कि आप बेहतर जीवन जीना चाहते हैं। अमीर देशों के टीवी कार्यक्रम और फिल्में देखकर शायद आप भी उनमें दिखाए गए महँगे कपड़ों, घरों और कारों का सपना देखने लगे हों। और क्योंकि आपको लगता है कि ये चीज़ें आपको कभी नहीं मिल पाएँगी तो शायद आपका मन खट्टा हो जाए यहाँ तक कि आप हताश हो जाएँ।
चाहे आप गरीब देश में रहते हों या अमीर देश में, यदि आपको कुछ चीज़ें नहीं मिल पातीं तो गुस्सा या निराश मत होइए क्योंकि इससे आपको ही नुकसान होगा। इसके कारण आपकी अपने माता-पिता के साथ हरदम हाय-हाय किच-किच भी हो सकती है। सवाल यह है, आप स्थिति का सामना कैसे करें?
भौतिक चीज़ों के बारे में संतुलित दृष्टिकोण
पहली बात, यह समझने की कोशिश कीजिए कि यहोवा परमेश्वर की यह इच्छा नहीं कि उसके लोग गरीबी में रहें या उन्हें वे चीज़ें न मिलें जिनकी उन्हें बहुत ज़रूरत है। आखिरकार, परमेश्वर ने आदम और हव्वा को कूड़े के ढेर में नहीं, बल्कि एक सुंदर बगीचे में रखा था जिसमें तरह-तरह के मनोहर पेड़ थे। (उत्पत्ति २:९) बाद में परमेश्वर के कुछ सेवकों, जैसे इब्राहीम, अय्यूब और सुलैमान के पास बहुत भौतिक संपत्ति थी। (उत्पत्ति १३:२; अय्यूब १:३) सुलैमान के पास तो इतना सोना था कि उसके राज्य में चाँदी को “मूल्यवान नहीं समझा जाता था”!—१ राजा १०:२१, २३, NHT.
लेकिन मोटे तौर पर देखें तो परमेश्वर के अधिकतर लोग अमीर नहीं थे। स्वयं यीशु मसीह गरीब था; उसके पास तो “सिर धरने की भी जगह” नहीं थी। (मत्ती ८:२०) लेकिन, आपने कभी नहीं पढ़ा होगा कि यीशु ने शिकायत की कि वह अपनी पसंद की चीज़ें नहीं खरीद पाता है। इसके बजाय उसने सिखाया: “तुम चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएंगे, या क्या पीएंगे, या क्या पहिनेंगे? क्योंकि . . . तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएं चाहिए। इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।”—मत्ती ६:३१-३३.
इसका यह अर्थ नहीं कि यदि किसी को डिज़ाइनर कपड़ों या इलॆक्ट्रॉनिक उपकरणों की चाहत हो तो परमेश्वर उसे पूरी करने के लिए मजबूर है। परमेश्वर हमारी ज़रूरतों को पूरा करता है—ज़रूरी नहीं कि हमारी चाहतों को पूरा करे। इसीलिए बाइबल हमसे आग्रह करती है कि यदि हमारे पास “खाने और पहिनने” को हो तो उसी में संतुष्ट रहें। (१ तीमुथियुस ६:८) लेकिन यह तो मानना पड़ेगा कि संतुष्ट रहना आसान नहीं है। माइक नाम का युवा कहता है, “आप हरदम अपनी ज़रूरतों और चाहतों के बीच जूझते रहते हैं।” हमारी अपनी स्वार्थी प्रवृत्तियों के अलावा, हमें परमेश्वर के महाविरोधी, शैतान अर्थात् इब्लीस के प्रभाव से भी लड़ना पड़ता है। (१ यूहन्ना ५:१९) और लोगों को यह महसूस कराना कि वे किसी चीज़ से वंचित हैं शैतान की पुरानी चाल है। इसी तरह हव्वा को यह सोचने के लिए बहकाया गया कि वह कुछ खो रही है—जबकि वह परिपूर्ण परादीस में रह रही थी!—उत्पत्ति ३:२-६.
आप असंतोष की खाई में गिरने से कैसे बच सकते हैं? सुनने में शायद लगे कि रटी-रटाई बात दोहरायी जा रही है लेकिन सचमुच अपनी आशिषों को गिनने के अनेक कारण हैं। जो चीज़ें आपके पास नहीं हैं उनके बारे में सोच-सोचकर अपना जी मत जलाइए। अच्छी बातों के बारे में सोचिए और जो कुछ आपके पास है उसमें खुश रहिए। (फिलिप्पियों ४:८ से तुलना कीजिए।) माइक यूँ कहता है: “बहुत-सी चीज़ें हैं जो मैं सचमुच पाना चाहता हूँ लेकिन मैं उनके बारे में सोचता नहीं रहता।”
चतुर विज्ञापनों से सतर्क रहना भी अच्छा है जो आपकी भावनाओं से खेलते हैं।a (नीतिवचन १४:१५) इस निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले कि जूतों का वह नया जोड़ा या वह सीडी प्लेयर न मिला तो आप “मर” जाएँगे, ठंडे दिमाग से उसके बारे में सोचिए। अपने आपसे पूछिए: ‘क्या सचमुच मुझे इसकी ज़रूरत है? क्या इसका कोई व्यावहारिक लाभ है? क्या जो मेरे पास पहले से है वह काफी नहीं?’ उन विज्ञापनों से खासकर सावधान रहिए जो बताते हैं कि इस चीज़ को खरीदकर आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। पहला यूहन्ना २:१६ में दिये गये प्रेरित यूहन्ना के शब्द विचार के योग्य हैं: “जो कुछ संसार में है, अर्थात् शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है।”
जब सचमुच आपको किसी चीज़ की ज़रूरत है
यदि आपको सचमुच किसी चीज़ की ज़रूरत है, तो? उसके बारे में अपने माता-पिता के साथ बात करने से पहले उस पर विचार कीजिए। यह बताने के लिए तैयार रहिए कि आपको वह चीज़ क्यों चाहिए, आप उसे कैसे इस्तेमाल करने की सोच रहे हैं और आपको क्यों लगता है कि वह आपके फायदे की चीज़ है। हो सकता है कि आपके माता-पिता घर के खर्च में से जैसे-तैसे उसके लिए पैसे निकाल लें। लेकिन यदि वे फिलहाल नहीं निकाल पाते, तो? आपके पास धीरज धरने के अलावा शायद और कोई चारा न हो। (सभोपदेशक ७:८) यह “कठिन समय” है और बहुत-से माता-पिता अपने बच्चों की सभी माँगें पूरी नहीं कर पाते। (२ तीमुथियुस ३:१) यदि आप अपने माता-पिता के आगे ज़रूरत से ज़्यादा माँगें न रखें तो असल में आप उनके कठिन काम को थोड़ा आसान बना सकते हैं।
आप पहल करके कदम उठा सकते हैं। उदाहरण के लिए, क्या आपको जेबखर्च मिलता है? तो फिर अपने पैसे को किफायत से खर्च करना सीखिए ताकि आप हर महीने कुछ पैसे बचा सकें। नज़दीक के बैंक में आप शायद बचत खाता खुलवा सकते हैं। (लूका १९:२३ से तुलना कीजिए।) एबिगेल नाम की युवती ने यही किया। वह कहती है: “मैं अपने पैसों को दो हिस्सों में बाँटती हूँ—एक अपने बैंक खाते में डालने के लिए और दूसरा खर्च करने के लिए।” यदि आप बड़े हैं तो कभी-कभार छोटा-मोटा काम-धंधा करने की कोशिश कर सकते हैं या हो सके तो अंशकालिक नौकरी कर सकते हैं।b बात जो भी हो, यदि आपके माता-पिता को दिखता है कि आप सचमुच एक चीज़ खरीदना चाहते हैं और उसके लिए पैसे जुटाने में लगे हुए हैं तो वे भी शायद उसके लिए कुछ पैसे देने को तैयार हो जाएँ, यदि उनके लिए ऐसा करना संभव है।
आप जिस तरह खरीदारी करते हैं उसमें कुछ बदलाव करने से भी आपको फायदा हो सकता है। उदाहरण के लिए, यदि एक चीज़ की कीमत बहुत ज़्यादा है तो मोल-भाव करके कीमत कम करवाने की कोशिश कीजिए। यदि ऐसा नहीं हो पाता तो इंतज़ार कीजिए और देखिए कि कब उस चीज़ की सेल लगेगी। दूसरी दुकानों में जाकर देखिए कि क्या वही चीज़ कम दाम पर मिल रही है। किसी चीज़ की क्वॉलिटी कैसी है यह परखना सीखिए; कभी-कभी छोटी-मोटी कंपनियों की चीज़ें बड़ी अच्छी निकलती हैं।c
संतोष रखना सीखिए
नीतिवचन २७:२० चिताता है: “जैसे अधोलोक और विनाशलोक, वैसे ही मनुष्य की आंखें भी तृप्त नहीं होतीं।” जी हाँ, जैसे काल का गाल कभी नहीं भरता, वैसे ही कुछ लोगों का जी कभी नहीं भरता—चाहे उनके पास पहले से कितना ही क्यों न हो। इस तरह के स्वार्थी सोच-विचार से बचिए। आगे चलकर, लालच से और कुछ नहीं बस निराशा और दुःख ही मिलता है। जॉनाथन नाम का युवा कहता है: “अगर चीज़ें इकट्ठी करने से ही आपको खुशी मिलती है तो आप कभी खुश नहीं होंगे। क्योंकि हमेशा कोई-न-कोई नयी चीज़ होगी जिसे आप पाना चाहेंगे। जो आपके पास है उसमें खुश रहना सीखिए।”
यदि आप संतुष्ट हैं तो आप साथियों की ओर से आये दबाव का सामना कर सकते हैं। युवा विंसॆंट कहता है: “मैं किसी को जानी-मानी कंपनी के जूते पहने देखूँ तो इसका यह मतलब नहीं कि मुझे भी जाकर अपने लिए एक जोड़ा जूते खरीदने की ज़रूरत है।” हाँ, जब आप अपनी पसंद की चीज़ नहीं खरीद पाते तो कभी-कभार दिल दुखता ही है। लेकिन यह कभी मत भूलिए कि यहोवा को आपकी ज़रूरतें मालूम हैं। (मत्ती ६:३२) और निकट भविष्य में वह “प्रत्येक प्राणी की इच्छा को सन्तुष्ट” करेगा।—भजन १४५:१६, NHT.
[फुटनोट]
a लेख श्रृंखला “विज्ञापन—आप कैसे प्रभावित होते हैं?” देखिए, जो सजग होइए! के सितंबर ८, १९९८ अंक में छपी थी।
b हमारे सितंबर ८, १९९८ अंक में लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . कुछ पैसे कमाने के लिए मैं क्या करूँ?” देखिए।
c दूसरे सहायक सुझावों के लिए, जनवरी २२, १९९५ के हमारे अंग्रेज़ी अंक में लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . मैं अपने कपड़ों की अलमारी कैसे सजाऊँ?” देखिए।
[पेज 19 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“आप किसी अनजान डिज़ाइनर के कपड़े पहनकर स्कूल जाएँ तो हर कोई आपको चिढ़ाता है”
[पेज 20 पर तसवीर]
पसंद की हर चीज़ न मिले तो भी आप खुश रह सकते हैं