कैसे बनाये रखें एक स्वस्थ मानसिक दृष्टिकोण
हमारा शारीरिक स्वास्थ्य काफी हद तक हमारे खान-पान पर निर्भर है। यदि एक व्यक्ति हमेशा तली-बघारी चीज़ें खाता है तो आगे चलकर उसकी सेहत को नुकसान होगा। यही बात हमारे मानसिक स्वास्थ्य के बारे में भी सच है।
उदाहरण के लिए, जिन बातों से हम अपने दिमाग को भरते हैं उन्हें एक किस्म का मानसिक भोजन कहा जा सकता है। मानसिक भोजन? जी हाँ, जैसे भौतिक भोजन का असर हमारे शरीर पर पड़ता है वैसे ही पत्र-पत्रिकाओं, टीवी कार्यक्रमों, वीडियो टेप, वीडियो गेम्स, इंटरनॆट और गीतों के माध्यम से हम जो जानकारी लेते हैं उसका असर हमारे सोच-विचार और व्यक्तित्व पर पड़ सकता है। वह कैसे?
टीवी का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव होता है, इसके बारे में भूतपूर्व विज्ञापन प्रशासक जॆरी मैनडर ने लिखा: “टीवी का सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि यह हमारे दिमाग में तसवीरें बनाता है।” लेकिन ये मानसिक तसवीरें हमारा मनोरंजन करने के अलावा और भी बहुत कुछ करती हैं। द फैमिली थॆरॆपी नॆटवर्कर पत्रिका कहती है: “मीडिया में प्रस्तुत भाषा, तसवीरें, आवाज़ें, विचार, पात्र, स्थितियाँ, मान्यताएँ, सौंदर्य की परिभाषा हमारे विचारों, भावनाओं और कल्पनाओं का विषय बन जाती हैं।”
जी हाँ, चाहे हमें इसका एहसास हो या न हो, टीवी पर हम जो देखते हैं उसका और दूसरे किस्म के मनोरंजन का असर धीरे-धीरे हमारे विचारों और भावनाओं पर पड़ सकता है। और इसी में खतरा है। मैनडर कहता है कि “हमारे दिमाग में जैसी तसवीरें होती हैं हम धीरे-धीरे वैसे ही बनते जाते हैं।”
दिमाग के लिए ज़हर
बहुत से लोग अपने शारीरिक भोजन के बारे में तो सावधान रहते हैं लेकिन मीडिया में जो मानसिक भोजन परोसा जाता है उसे वे बिना सोचे-समझे चट कर जाते हैं। उदाहरण के लिए, क्या आपने किसी को यह कहते सुना है: “टीवी पर देखने लायक कुछ है ही नहीं!” कुछ लोग ऐसे पागलों की तरह बार-बार चैनल बदलते हैं कि काश कहीं कुछ देखने लायक मिल जाए। टीवी बंद करने का विचार तो उनके मन में आता ही नहीं!
एक तो यह हमारा बहुत समय लेता है, दूसरी बात कि कई कार्यक्रमों में ऐसे विषय प्रस्तुत किये जाते हैं जिनसे मसीही दूर रहना चाहेंगे। “अश्लीलता के अलावा,” कला लेखक गैरी कोल्टूकयान कहता है, “आज परदे पर विवादास्पद और लैंगिक विषय पहले से ज़्यादा नज़र आने लगे हैं।” असल में, अमरीका में एक हालिया अध्ययन से पता चला कि प्राइम-टाइम में जब ज़्यादा लोग टीवी देखते हैं, उस समय लैंगिक किस्म के दृश्य एक घंटे में औसतन २७ बार दिखाये जाते हैं।
व्यक्ति सोच में पड़ सकता है कि इसका लोगों के सोच-विचार पर कैसा असर पड़ता होगा। जापान में एक लोकप्रिय टीवी नाटक ने इतने सारे लोगों को लुभाया कि वहाँ के मीडिया ने कहा कि उससे “व्यभिचार में उछाल” आया। इसके अलावा, पुस्तक वॉचिंग अमॆरिका के लेखक कहते हैं: “आज ज़्यादातर किस्म के लैंगिक व्यवहार को . . . जायज़ और रहन-सहन का अपना निजी मामला समझा जाता है।”
लेकिन, ऐसे टीवी कार्यक्रम जिनमें लैंगिक विषयों पर ज़ोर दिया जाता है वे तो समस्या का बस एक हिस्सा हैं। हिंसा का बहुत ज़्यादा और खुला प्रदर्शन करना भी आम बात है। बच्चों के नाज़ुक और मासूम दिमागों पर हिंसा-प्रधान टीवी कार्यक्रमों और फिल्मों का नुकसानदेह असर पड़ता है जो खास चिंता का विषय है। “जब छोटे बच्चे टीवी पर देखते हैं कि किसी को गोली लगी, छुरे से हमला हुआ, बलात्कार हुआ, क्रूरता हुई, अपमान हुआ, खून किया गया,” तो एक रिटायर्ड आर्मी अफसर और हत्या-मनोविज्ञान का विशेषज्ञ, डेविड ग्रोसमन कहता है कि “वे समझते हैं कि ऐसा सचमुच हुआ है।” इसी समस्या पर टिप्पणी करते हुए, द जरनल ऑफ दी अमॆरिकन मॆडिकल ऎसोसिएशन ने कहा: “३-४ साल की उम्र तक बहुत से बच्चे टीवी कार्यक्रमों में सचमुच और झूठमूठ की बातों के बीच फर्क नहीं कर पाते और यदि बड़े उन्हें बताएँ तो भी उनकी समझ में नहीं आता।” दूसरे शब्दों में, चाहे माता-पिता बच्चे को बताएँ कि ‘वे लोग सचमुच में नहीं मरे; वे तो मरने का बस ढोंग कर रहे थे,’ तो भी बच्चे के दिमाग को फर्क पता नहीं चलता। छोटे बच्चे के लिए टीवी पर दिखायी जानेवाली हिंसा एकदम सचमुच की होती है।
“मीडिया में हिंसा” के प्रभाव का सार देते हुए, टाइम पत्रिका ने कहा: “शोधकर्ताओं ने अब इस पर बहस करना छोड़ दिया है कि टीवी पर और फिल्मों में दिखाए जानेवाले खूनखराबे का बच्चों पर असर होता है या नहीं।” अब तो सवाल यह है कि इसका कैसा असर होता है? “मनोरंजन के नाम पर दशकों से हिंसा देख-देखकर जनता की सोच और मान्यताएँ बदल गयी हैं,” फिल्म समीक्षक माइकल मॆडवॆड कहता है। वह आगे कहता है: “जब समाज इतना सुन्न हो जाता है कि उसे झटका नहीं लगता, तो यह समाज के विकास के लिए अच्छा नहीं।” इसलिए हैरानी की बात नहीं कि एक लेखक ने यह कहा, चार साल के बच्चे को हिंसक फिल्म दिखाना उसके “दिमाग के लिए ज़हर होता है।”
लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि टीवी के सभी कार्यक्रम खराब होते हैं। यही बात पत्र-पत्रिकाओं, वीडियो, कंप्यूटर गेम्स और दूसरे किस्म के मनोरंजन के बारे में भी सही है। यह साफ है कि अधिकतर मनोरंजन उनके लिए उचित नहीं जो एक स्वस्थ मानसिक दृष्टिकोण बनाये रखना चाहते हैं।
मनोरंजन का चयन बुद्धिमानी से कीजिए
आँखों के ज़रिये हमारे दिमाग तक पहुँची तसवीरें हमारे विचारों और कामों पर गहरा प्रभाव डालती हैं। उदाहरण के लिए, यदि हम हरदम अपने दिमाग को अनैतिक मनोरंजन से भरते रहें, तो बाइबल की आज्ञा मानते हुए ‘व्यभिचार से बचे रहने’ का हमारा संकल्प कमज़ोर पड़ सकता है। (१ कुरिन्थियों ६:१८) उसी तरह, यदि हमें ऐसा मनोरंजन पसंद है जिसमें “अनर्थकारी पुरुषों” को प्रस्तुत किया जाता है तो शायद खुद हमारे लिए भी ‘सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखना’ मुश्किल हो जाए। (भजन १४१:४; रोमियों १२:१८) यदि हम नहीं चाहते कि ऐसा हो तो हमें उन बातों से अपनी नज़रें फेर लेनी चाहिए जो ‘ओछी’ हैं।—भजन १०१:३; नीतिवचन ४:२५, २७.
माना, जन्मजात अपरिपूर्णता के कारण हम सभी सही काम करने के लिए संघर्ष करते हैं। प्रेरित पौलुस ने ईमानदारी से स्वीकार किया: “मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूं। परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है।” (रोमियों ७:२२, २३) क्या इसका यह अर्थ है कि पौलुस अपनी शारीरिक कमज़ोरियों के आगे हार मान गया? हरगिज़ नहीं! उसने कहा: “मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं; ऐसा न हो कि . . . मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूं।”—१ कुरिन्थियों ९:२७.
उसी तरह, हम अपनी अपरिपूर्णता को बहाना बनाकर पाप नहीं करना चाहेंगे। बाइबल लेखक यहूदा ने कहा: “हे प्रियो, . . . मैं ने तुम्हें यह समझाना आवश्यक जाना कि उस विश्वास के लिये पूरा यत्न करो जो पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया था।” (यहूदा ३, ४) जी हाँ, हमें “पूरा यत्न” करके ऐसे मनोरंजन से दूर रहने की ज़रूरत है जो हमें बुरे काम करने के लिए उकसाता है।a
ईश्वरीय मार्गदर्शन ढूँढ़िए
इस दुनिया में एक स्वस्थ मानसिक दृष्टिकोण विकसित करना हमेशा आसान नहीं होता। लेकिन बाइबल हमें आश्वासन देती है कि मानसिक और नैतिक रूप से शुद्ध रहना संभव है। कैसे? भजन ११९:११ में हम पढ़ते हैं: “मैं ने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुद्ध पाप न करूं।”
परमेश्वर के वचन को अपने हृदय में रखने का अर्थ है कि हम उसे अनमोल या बहुत मूल्यवान समझें। यह साफ है कि यदि हमें यही नहीं पता कि बाइबल क्या कहती है तो उसका आदर करना मुश्किल होगा। परमेश्वर के वचन से यथार्थ ज्ञान लेने के द्वारा हम परमेश्वर के विचारों को ग्रहण करते हैं। (यशायाह ५५:८, ९; यूहन्ना १७:३) यह हमें आध्यात्मिक रूप से समृद्ध करता है और हमारी सोच ऊँची करता है।
क्या यह जानने का कोई विश्वसनीय तरीका है कि कौन-सी बातें आध्यात्मिक और मानसिक रूप से स्वास्थ्यकर हैं? जी हाँ, है! प्रेरित पौलुस ने सलाह दी: “जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरनीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सद्गुण और प्रशंसा की बातें हैं उन्हीं पर ध्यान लगाया करो।”—फिलिप्पियों ४:८.
लेकिन पूरा लाभ उठाने के लिए, परमेश्वर का ज्ञान लेना ही काफी नहीं। भविष्यवक्ता यशायाह के ज़रिए परमेश्वर ने कहा: “मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं।” (तिरछे टाइप हमारे।) (यशायाह ४८:१७) जी हाँ, हमें न सिर्फ ईश्वरीय मार्गदर्शन पाने की ज़रूरत है बल्कि उस ज्ञान पर चलने की भी ज़रूरत है।
नैतिक और आध्यात्मिक रूप से लाभ उठाने का एक और तरीका है कि “प्रार्थना के सुननेवाले” यहोवा को पुकारें। (भजन ६५:२; ६६:१९) यदि हम सच्चे दिल और नम्रता से अपने सृष्टिकर्ता से प्रार्थना करें तो वह हमारी बिनती सुनेगा। और यदि हम ‘उसकी खोज में लगे रहें, तब वह हम को मिलेगा।’—२ इतिहास १५:२.
तो फिर क्या इस हिंसक और अनैतिक संसार में अपना मानसिक स्वास्थ्य बनाये रखना संभव है? जी हाँ, संभव है! इस संसार के मनोरंजन से अपने मन सुन्न न पड़ने दें, परमेश्वर के वचन का अध्ययन करके अपनी सोचने की क्षमता बढ़ाएँ और ईश्वरीय मार्गदर्शन ढूँढ़ें, इससे हम एक स्वस्थ मानसिक दृष्टिकोण बनाये रख सकते हैं!
[फुटनोट]
a हितकर मनोरंजन का चयन करने के विषय पर ज़्यादा जानकारी के लिए जून ८, १९९७ की सजग होइए! में पृष्ठ ८-१० देखिए।
[पेज 9 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“बहुत से बच्चे टीवी कार्यक्रमों में सचमुच और झूठमूठ की बातों के बीच फर्क नहीं कर पाते”
[पेज 11 पर तसवीर]
“मनोरंजन के नाम पर दशकों से हिंसा देख-देखकर जनता की सोच और मान्यताएँ बदल गयी हैं”
[पेज 11 पर बक्स]
दिल की बीमारी का जोखिम घटाना
दिल की बीमारी का जोखिम घटाने के लिए न्युट्रिशन ऐक्शन हॆल्थलॆटर निम्नलिखित सुझाव देता है।
• धूम्रपान छोड़ दें। आज ही छोड़ने से चाहे आपका वज़न बढ़ जाए, तो भी एक साल के अंदर दिल की बीमारी का जोखिम घट सकता है।
• वज़न घटाएँ। यदि आप मोटे हैं तो दो-ढाई किलो वज़न घटाने से भी फायदा हो सकता है।
• व्यायाम करें। नियमित व्यायाम करना (हफ्ते में कम-से-कम तीन बार) हानिकर कोलॆस्ट्रॉल (LDL) को घटाता है, रक्तचाप को बढ़ने नहीं देता और मोटापा नहीं चढ़ने देता।
• सैचुरेटॆड वसा का सेवन कम करें। यदि आपका LDL ज़्यादा है तो मांस का वह हिस्सा खाइए जिसमें ज़्यादा वसा न हो और २-प्रतिशत मलाई-युक्त दूध के बजाय १-प्रतिशत मलाई-युक्त दूध या मलाई-रहित दूध लीजिए।
• ज़्यादा शराब न पीएँ। इसके संकेत मिले हैं कि जो लोग सीमित मात्रा में रॆड वाइन (लाल दाखमधु) पीते हैं उनके लिए दिल की बीमारी का जोखिम घट सकता है।
• फल, सब्ज़ियाँ और ऐसी दूसरी चीज़ें ज़्यादा खाएँ जिनमें घुलनशील रेशे की मात्रा अधिक हो।
[पेज 8 पर तसवीर]
टीवी हिंसा बच्चे के दिमाग के लिए ज़हर की तरह है
[पेज 9 पर तसवीर]
कभी-कभी बच्चे टीवी पर दिखायी गयी हिंसा की नकल करते हैं
[पेज 10 पर तसवीर]
माता-पिता बच्चों के पढ़ने के लिए तरह-तरह की अच्छी किताबें लाकर उनकी मदद कर सकते हैं