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g97 6/8 पेज 4-7

मनोरंजन को क्या हो गया है?

प्राचीन रोमी, जो माना जाता है कि अपनी संस्कृति के शिखर पर थे, संगी मनुष्यों की पीड़ा को मनोरंजन कैसे समझ सकते थे? “इसे नए और अधिक शक्‍तिशाली उद्दीपकों की लालसा कहकर ही समझाया जा सकता है,” मूर्तिपूजावाद के साथ मसीहियत का संघर्ष (अंग्रेज़ी) में गेरहार्ट ऊलहॉर्न लिखता है। “हर संभव मनोरंजन से तृप्त होकर, लोगों ने . . . एक ऐसा रोमांच ढूँढ़ा जो उन्हें अब कहीं और नहीं मिला।”

अनेक लोग आज “नए और अधिक शक्‍तिशाली उद्दीपकों की” वैसी ही “लालसा” दिखाते हैं। माना, वे शायद असल का हत्याकांड या लंपटता देखने के लिए इकट्ठा न हों। लेकिन मनोरंजन की उनकी पसंद हिंसा और सॆक्स का वैसा ही आवेश प्रकट करती है। कुछ उदाहरणों पर विचार कीजिए।

फ़िल्में। हाल के सालों में फ़िल्म निर्माताओं ने “भ्रष्टता की ओर झुकाव” दिखाया है, फ़िल्म समीक्षक माइकल मॆडवॆड दावे से कहता है। “फ़िल्म उद्योग का संदेश” वह आगे कहता है, “यह प्रतीत होता है कि उत्कृष्टता या भलाई दिखाने के किसी प्रयास से अधिक गंभीर विचार, अधिक हार्दिक आदर के योग्य हैं क्रूरता और पागलपन के चित्रण।”

टॆलिविज़न के साथ प्रतिस्पर्धा ने फ़िल्म निर्माताओं को मजबूर किया है कि लोगों को सिनेमा घरों तक लुभाकर लाने के लिए कोई कसर न छोड़ें। “हमें ऐसी फ़िल्मों की ज़रूरत है जो तेज़ हैं, जिनमें धार है, जो टीवी पर दिखाए जानेवाले कार्यक्रमों से हटकर हैं,” एक चलचित्र स्टूडियो का अध्यक्ष कहता है। “ऐसा नहीं कि खूनख़राबा और [गंदी] बोली दिखाना हमारा ध्येय है, लेकिन आजकल एक फ़िल्म निकालने के लिए इसी की ज़रूरत है।” सचमुच, अनेक लोग आज फ़िल्म में एकदम खुली हिंसा देखकर भी स्तब्ध नहीं होते। “लोग इन दृश्‍यों के प्रति सुन्‍न होते जा रहे हैं,” फ़िल्म निर्देशक ऐलन जे. पकूला कहता है। “मरनेवालों की संख्या चौगुनी हो गयी है, विनाशक शक्‍ति का विस्फोट हो रहा है, और इसके प्रति वे कान बंद कर रहे हैं। उन्होंने बर्बर सनसनी के लिए अमिट भूख बढ़ा ली है।”

टॆलिविज़न। टीवी पर सॆक्स के निर्लज्ज चित्रण अब संसार के अनेक भागों में आम हो गए हैं, जिनमें ब्रज़िल, यूरोप और जापान सम्मिलित हैं। अमरीका में आम टीवी-दर्शक एक साल में लगभग १४,००० लैंगिक बातें देखता या सुनता है। “लैंगिक विषयों और उनके खुलेपन में बढ़ौतरी के रुकने का कोई आसार नहीं दिखता,” एक शोध दल रिपोर्ट करता है। “कौटुम्बिक व्यभिचार, परपीड़न-कामुकता, और पशुगमन जैसे विषय जो कभी वर्जित समझे जाते थे अब प्राइम-टाइम का मसाला बन गए हैं।”

पुस्तक वॉचिंग अमॆरिका के अनुसार, टीवी कार्यक्रमों में इस ढील का एक कारण है। यह कहती है: “सॆक्स बिकता है। . . . जैसे-जैसे नॆटवर्क और निर्माण कंपनियों को पता चला कि वे नाराज़ होनेवालों की तुलना में अधिक दर्शकों को गुदगुदी कर रहे थे, उन्होंने अधिकाधिक वर्जित विषयों को और भी खुलकर दिखाने के द्वारा धीरे-धीरे अपने कार्यक्रमों को और बिकाऊ बनाया है।”

वीडियो खेल। अब घिनौने परपीड़क खेलों का नया युग आ गया है और इसके सामने मासूम, पैक-मैन और डॉन्की काँग जैसे खेलों का ज़माना चला गया है। प्रोफ़ॆसर मार्शा किन्डर इन खेलों को “टीवी या फ़िल्म से भी बदतर” कहती है। इनका “संदेश है कि शक्‍ति पाने का एकमात्र रास्ता है हिंसा।”

लोगों के लिए चिंता के कारण, अमरीका में अब एक बड़े निर्माता ने अपने वीडियो खेलों पर रेटिंग सिस्टम लगाया है। MA-17 लेबल में—जो दिखाता है कि “mature” (वयस्क) खेल १७ से कम उम्रवालों के लिए उपयुक्‍त नहीं है—घोर हिंसा, लैंगिक विषय, और गंदी भाषा हो सकती है। लेकिन, कुछ लोगों को डर है कि “mature” रेटिंग खेल के आकर्षण को और बढ़ा देगी। “यदि मैं १५ का होता और MA-17 ठप्पा देखता,” इन खेलों का शौक़ीन एक युवा कहता है, “मैं किसी भी क़ीमत पर वह खेल हासिल करता।”

संगीत। एक पत्रिका जो लोकप्रिय संगीत के बोल की जाँच-परख करती है यह दावा करती है कि १९९५ के अंत में, टॉप ४० ऐल्बमों में से केवल १० में गंदी भाषा या ड्रग्स, हिंसा, अथवा सॆक्स का ज़िक्र नहीं था। “बच्चों को उपलब्ध संगीत स्तब्धकारी है, उसमें से काफ़ी कुछ तो पूरी तरह से नास्तिवादी है,” सेंट लूइज़ पोस्ट-डिस्पैच रिपोर्ट करती है। “वह [संगीत] जो कुछ किशोरों को आकर्षक लगता है क्रोध और आशाहीनता से भरा है और ये भावनाएँ जगाता है कि यह संसार और व्यक्‍तिगत रूप से वह सुननेवाला नाश हो जाएँगे।”

लगता है कि डॆथ मॆटल, “ग्रंज” रॉक, और “गैंगस्टा” रैप में हिंसा का बोलबाला है। और सैन फ्रैनसिस्को क्रॉनिकल की एक रिपोर्ट के अनुसार, “इस उद्योग से जुड़े अनेक लोग यह अनुमान लगा रहे हैं कि अति भयानक ग्रुप शिखर पर पहुँचने ही वाले हैं।” क्रोध और मृत्यु के स्तुतिगीत अब ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, और जापान में लोकप्रिय हो गए हैं। सच है, कुछ संगीत-समूहों ने थोड़ा सौम्य संदेश देने की कोशिश की है। लेकिन, क्रॉनिकल कहता है: “प्रमाण दिखाता है कि अहानिकर [संगीत] ज़्यादा नहीं बिकता।”

कंप्यूटर। ये मूल्यवान उपकरण हैं जिनके अनेक लाभकारी उपयोग हैं। लेकिन, कुछ लोगों ने कामुक विषय प्रस्तुत करने के लिए भी इनका प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए, मॆक्लीनस्‌ पत्रिका रिपोर्ट करती है कि इसमें “अजीब कामोत्तेजक बातों से लेकर वेश्‍यावृत्ति और बालगमन तक हर विषय पर चित्र और पाठ सम्मिलित हैं—ऐसी सामग्री जो अनेक वयस्कों को स्तब्ध कर दे, उनके बच्चों की तो बात ही छोड़िए।”

पठन सामग्री। अनेक लोकप्रिय पुस्तकें सॆक्स और हिंसा से भरी हैं। अमरीका और कनाडा में हाल की एक सनक को “शॉक फ़िक्शन” (धक्का-कथा) कहा गया है—ऐसी घिनौनी भयंकर कहानियाँ जिनका निशाना युवा हैं, आठ साल के बच्चे भी। न्यू यॉर्क टीचर में लिखते हुए, डायना वॆस्ट दावा करती है कि ये पुस्तकें “छोटे बच्चों को सुन्‍न कर रही हैं, मानसिक क्षमता का विकास उसके शुरू होने से पहले ही रोक रही हैं।”

हाँग काँग, जापान, और अमरीका में प्रकाशित अनेक कॉमिक पुस्तकें “तीव्र और क्रूर युद्ध विषय, नरभक्षण, सिर काटना, शैतानवाद, बलात्कार, और गंदी भाषा” प्रस्तुत करती हैं, टॆलिविज़न हिंसा पर राष्ट्रीय संघ (NCTV) द्वारा किया गया एक अध्ययन रिपोर्ट करता है। “इन पत्रिकाओं में हिंसा और गंदे लैंगिक विषय की अधिकता स्तब्धकारी है,” NCTV का अनुसंधान निर्देशक, डॉ. थॉमस राडॆकी कहता है। “यह दिखाता है कि हमने अपने आपको कितना सुन्‍न बनने दिया है।”

सावधानी की ज़रूरत

स्पष्टतया, आज के संसार में सॆक्स और हिंसा पसंद की जाती है, और यह मनोरंजन उद्योग से दिखायी पड़ता है। यह स्थिति उससे मिलती-जुलती है जिसका वर्णन मसीही प्रेरित पौलुस ने किया: “वे सुन्‍न होकर, लुचपन में लग गए हैं, कि सब प्रकार के गन्दे काम लालसा से किया करें।” (इफिसियों ४:१९) उचित कारण से अनेक लोग आज किसी बेहतर चीज़ की तलाश में हैं। क्या आप भी इसी तलाश में हैं? यदि हैं, तो आप यह जानकर ख़ुश होंगे कि आपको हितकर मनोरंजन मिल सकता है, जैसा कि अगला लेख दिखाएगा।

[पेज 5 पर बक्स/तसवीर]

टॆलिविज़न हानिकर हो सकता है

न्यू यॉर्क में हुए १९३९ विश्‍व मेले में टॆलिविज़न पहली बार अमरीकी जनता के सामने आया। वहाँ उपस्थित एक पत्रकार ने इस नए उपकरण के भविष्य के बारे में अपना संदेह व्यक्‍त किया। “टॆलिविज़न के साथ समस्या यह है,” उसने लिखा, “कि लोगों को बैठना और अपनी आँखों को उसके परदे पर गड़ाकर रखना पड़ता है; आम अमरीकी परिवार के पास इसके लिए समय नहीं है।”

वह कितना ग़लत था! सचमुच, यह कहा गया है कि जिस समय तक एक आम अमरीकी युवा स्कूल पूरा करता है, उसने जितना समय अपने अध्यापक के सामने बिताया है उससे ५० प्रतिशत अधिक समय टीवी के सामने बिताया होगा। “जो बच्चे बहुत टॆलिविज़न देखते हैं वे कम टीवी देखनेवाले साथियों की तुलना में ज़्यादा लड़ाके, ज़्यादा निराशावादी, ज़्यादा मोटे, कम कल्पनाशील, कम हमदर्दी रखनेवाले, और कम योग्य छात्र होते हैं,” डॉ. मैडलिन लॆवाइन अपनी पुस्तक हिंसा देखना (अंग्रेज़ी) में यह दावा करती है।

उसकी सलाह? “बच्चों को यह सिखाए जाने की ज़रूरत है कि घर के अन्य उपकरणों की तरह ही टॆलिविज़न का एक ख़ास काम है। हम बाल सूख जाने के बाद भी हेयर ड्रायर को चालू नहीं छोड़ते, या रोटी बन जाने के बाद भी गैस को जलता नहीं छोड़ते। हम इन उपकरणों के ख़ास काम को पहचानते हैं और जानते हैं कि उन्हें कब बंद करना है। हमारे बच्चों को भी टॆलिविज़न के बारे में इसी प्रकार सिखाए जाने की ज़रूरत है।”

[पेज 7 पर बक्स/तसवीर]

संसार-भर में मनोरंजन

सजग होइए! ने संसार के भिन्‍न भागों में अपने संवाददाताओं से कहा कि अपने क्षेत्र में मनोरंजन के रुख का वर्णन करें। उनकी कुछ टिप्पणियाँ यहाँ दी गयी हैं।

ब्रज़िल: “टीवी कार्यक्रम अधिकाधिक घटिया हो गए हैं। फिर भी, बच्चे प्रायः अपना मनोरंजन टीवी से करते हैं क्योंकि अनेक माता-पिता नौकरी पर जाते हैं। तंत्र-मंत्र के विषयों पर CD-ROM और घोर हिंसा दिखानेवाले वीडियो खेल लोकप्रिय हैं।”

चॆक गणराज्य: “साम्यवाद के पतन के बाद से, इस देश में ऐसे मनोरंजन की बौछार हुई है जो यहाँ पहले कभी नहीं देखा गया। इसमें पश्‍चिमी देशों के टीवी कार्यक्रम और अश्‍लील-सामग्री की दुकानें सम्मिलित हैं। युवजन डिस्को, बिलियर्ड क्लब और मयख़ानों में जाते हैं। लुभावने विज्ञापन और समकक्ष दबाव प्रायः उन पर बड़ा प्रभाव डालते हैं।”

जर्मनी: “दुःख की बात है कि अनेक माता-पिता इतने थके हुए होते हैं कि अपने बच्चों के लिए मनोरंजन का प्रबंध नहीं करते, सो युवा मौज-मस्ती करने के लिए प्रायः एक दूसरे का सहारा लेते हैं। कुछ अपने आपको कंप्यूटर खेलों में उलझा लेते हैं। दूसरे पूरी-रात नृत्य कार्यक्रमों में जाते हैं जिन्हें रेव्ज़ (जश्‍न) कहा जाता है, जहाँ नशीले पदार्थों की बहुतायत होती है।”

जापान: “कॉमिक पुस्तकें बच्चों और बड़ों का मनपसंद मनबहलाव हैं, लेकिन ये प्रायः हिंसा, अनैतिकता, और गंदी भाषा से भरी होती हैं। जूआ खेलना भी आम है। एक और चिंताजनक रुख यह है कि कुछ लड़कियाँ ऐसे जाने-माने टॆलिफ़ोन क्लबों में फ़ोन कर रही हैं जो अनैतिक पुरुषों की भूख मिटाते हैं। कुछ बस मज़े के लिए फ़ोन करती हैं, जबकि दूसरी हैं जो पैसे लेकर डेटिंग करने की हद तक जाती हैं, जो कुछ किस्सों में वेश्‍यावृत्ति की ओर ले जाता है।”

नाइजीरिया: “अनियंत्रित वीडियो थियेटर पूरे पश्‍चिम अफ्रीका में फैल रहे हैं। ये कामचलाऊ कोठरियाँ हर उम्र के लोगों के लिए खुली हैं, जिसमें बच्चे भी सम्मिलित हैं। अश्‍लील और डरावने वीडियो तो सामान्य रूप से दिखाए जाते हैं। इसके साथ-साथ, स्थानीय रूप से बनायी गयी फ़िल्में जो टीवी पर दिखायी जाती हैं, ज़्यादातर प्रेतात्मवाद पर होती हैं।”

दक्षिण अफ्रीका: “यहाँ रेव्ज़ ख़ूब चल रहे हैं, और प्रायः इनमें नशीले पदार्थ आसानी से उपलब्ध होते हैं।”

स्वीडन: “मयख़ाने और नाइटक्लब स्वीडन में सफल हैं, और प्रायः अपराधी और नशीले पदार्थ बेचनेवाले ऐसे स्थानों में इकट्ठा होते हैं। टॆलिविज़न और वीडियो मनोरंजन हिंसा, प्रेतात्मवाद, और अनैतिकता से भरा है।”

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