हमारे पाठकों से
पुल मिच तूफान के आने से हॉन्डुरस के लगभग ८० प्रतिशत पुल नष्ट हो गए थे। इसके कुछ समय बाद हमें दिसंबर ८, १९९८ का अंक मिला जिसमें यह लेख था, “पुल—कैसी होती ज़िंदगी उनके बिना?” मुझे और मेरे पति को अपने काम के लिए काफी सफर करना पड़ता है। इसलिए हमें यह समझने में देर नहीं लगी कि पुल हमारे लिए कितने ज़रूरी हैं। इस रोचक लेख को समय पर हम तक पहुँचाने के लिए हम आपको शुक्रिया अदा करते हैं। हम उसी तरह महसूस करते हैं जैसे इस लेख के अंतिम अनुच्छेद में लिखा है, अगर पुल न होते तो क्या होता?
सी. एच., हॉन्डुरस
जानवरों के साथ क्रूरता मैं यह खत यह बताने के लिए लिख रही हूँ कि आपका लेख “बाइबल का दृष्टिकोण: जानवरों के साथ क्रूरता—क्या यह गलत है?” लाजवाब था। (दिसंबर ८, १९९८) मेरे ख्याल से आपने यह बताकर बहुत ही अच्छा किया कि परमेश्वर को यह बिलकुल भी पसंद नहीं कि जानवरों के साथ क्रूरता की जाए। और परमेश्वर यह नहीं चाहता कि खासकर मसीही ऐसा करें।
जे. एल. सी., अमरीका
युवा जिनके माँ-बाप नहीं हैं “युवा लोग पूछते हैं . . . मेरे मम्मी-डैडी मुझसे क्यों बिछड़ गए?” लेख के लिए मैं तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ। (दिसंबर ८, १९९८) मैं अब ३९ की हूँ। जब मैं ११ की थी, तब मेरी माँ गुज़र गयीं और पिताजी घर छोड़कर चले गए। आज तक मैं लोगों को यह नहीं समझा पाई हूँ कि माँ-बाप के बिना मेरे भाइयों और मुझ पर क्या-क्या नहीं गुज़रीं। लेकिन मुझे लगता है कि आपके इस लेख से अब दूसरे हमें समझते हैं। आपका धन्यवाद।
के. वाइ., जापान
जब मैं बस ९ महीने की थी, तब मेरे पिताजी गुज़र गए और मैं १२ साल की भी नहीं हुई थी कि मेरी माँ भी चल बसीं। आपके लेख से मुझे बहुत तसल्ली मिली। उसमें लिखा था कि यतीम बच्चे सच में कैसा महसूस करते हैं। यह जानकर मुझे बहुत खुशी होती है कि हमारे सभी अज़ीज़ मरे हुए लोगों को यहोवा परमेश्वर फिर से ज़िंदा करेगा!
एम. एस. एस., ब्राज़ील
मैं ४० साल का हूँ और मैंने इस लेख को बार-बार पढ़ा। जब मैं बस दो साल का था, तब मेरे माँ-बाप दोनों चल बसे और मैं इस दुनिया में बिलकुल अकेला रह गया। इस लेख को पढ़ते वक्त मेरी आँखें नम थीं। आज भी, जब कभी मैं किसी माँ-बाप की तस्वीर देखता हूँ तो मेरी आँखों में आँसू आ जाते हैं। इस किस्म के लेख छापने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
जे. सी. वी., फ्रांस
मेरे माँ-बाप अभी ज़िंदा हैं, लेकिन मुझे मैनिक-डिप्रेशन (द्विध्रुवी) की बीमारी है। इसलिए मैं ऐसे सभी लेखों को पढ़ती हूँ जिनमें इस तरह के मुश्किल हालात से निपटने के तरीके दिए जाते हैं। मैं आपसे यह कहना चाहती हूँ कि “युवा लोग पूछते हैं . . . ” लेख में दी जानेवाली असली ज़िंदगी के अनुभव और उसमें बाइबल से दी जानेवाली सलाह मुझे बहुत पसंद आती है।
एस. एच., कनाडा
हाथ धोना मैं ११ साल का हूँ और आपको “अपने हाथ धोइए और अच्छी तरह पोंछकर सुखाइए!” लेख के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ। (दिसंबर ८, १९९८) इस लेख को पढ़ने के बाद से, मैं खाने से पहले और टॉएलॆट जाने के बाद हमेशा अपने हाथ धोता हूँ। हमारे शहर में संक्रमण बहुत जल्दी हो जाता है, इसीलिए यह लेख हमारे लिए बहुत ही काम का है।
एम. एफ., इटली
छोटी-छोटी बातों से खुशी “विश्व-दर्शन” में दिया गया विषय, “बच्चों को छोटी-छोटी बातों से ही खुशी मिलती है” के लिए धन्यवाद। (नवंबर २२, १९९८, अंग्रेज़ी) मैं अपने बच्चों से दूर रहती हूँ और मैं उन्हें हर तीन महीने में केवल एक बार ही देख सकती हूँ। मुझे समझ नहीं आता था कि जब हम एक साथ होंगे, तब हम क्या करेंगे। मैं नहीं चाहती थी कि वे बोर हो जाएँ, सो मैं पहले से ही काफी योजना बनाती। उनसे मिलने के लिए जाने से ठीक एक दिन पहले यह लेख आया और मैंने इसे पढ़ा। यह बिलकुल सही समय पर आया था!
एम. वाइ., जापान
साँप “साँप—कुछ आम गलतफहमियाँ” लेख के लिए आपका बहुत, बहुत धन्यवाद। (नवंबर ८, १९९८) साँपों के बारे में लोगों को काफी गलतफहमियाँ हैं। और जो सात बातें आपने इस लेख में बतायीं, उनसे सचमुच इस दिलचस्प प्राणी के बारे में फैली अज्ञानता मिट गयी।
आर. के., अमरीका