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  • महिलाओं पर अत्याचार
  • “मदद जिसे नज़रअंदाज़ किया जाता है”
  • मिच तूफान से क्या फायदा हुआ
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सजग होइए!–1999
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विश्‍व-दर्शन

महिलाओं पर अत्याचार

ओ ग्लोबो अखबार कहता है, “ब्राज़ील में, महिलाओं पर होनेवाले सभी शारीरिक अत्याचार में ६३ प्रतिशत वारदातें घर पर होती हैं और इनमें से सिर्फ एक-तिहाई वारदातों की ही रिपोर्ट की जाती है।” अखबार ने यह भी लिखा: “घर पर होनेवाले अत्याचार की जितनी भी रिपोर्टें मिलती हैं, वे ज़्यादातर गरीब महिलाओं की ही होती हैं, क्योंकि अकसर गरीब महिलाएँ ही पुलिस को अत्याचार की रिपोर्ट देती हैं। रईस महिलाएँ, बमुश्‍किल ही अत्याचार की रिपोर्ट देती हैं।” दूसरे देशों में भी स्थिति ऐसी ही है। मिसाल के तौर पर, यू.एस. जस्टिस डिपार्टमेंट द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक, “अमरीका में आधी-से-ज़्यादा महिलाओं पर कभी-न-कभी शारीरिक अत्याचार हुआ है और लगभग ५ महिलाओं में से १ का बलात्कार हुआ है या उनके साथ बलात्कार का प्रयास किया गया है,” रोइटॆर्स न्यूज़ सर्विस कहता है। यू.एस. हैल्थ एण्ड ह्‍यूमन सर्विसस की सेक्रेटरी डाना शालाला कहती हैं, “इस सर्वे के हर आँकड़े में हमारी बेटी, हमारी माँ, और हमारी पड़ोसन शामिल है।”

“मदद जिसे नज़रअंदाज़ किया जाता है”

जर्मन पत्रिका सूइकोलोजी होइते कहती है कि अस्पताल में मरीज़ों को ठीक होने के लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण चीज़ की ज़रूरत है जिसे काफी समय से नज़रअंदाज़ किया गया है। और वह है मरीज़ के बगलवाले बिस्तरे पर एक और मरीज़ की मौजूदगी। एक स्टडी से पता चला कि बगलवाले बिस्तरे पर अगर एक और मरीज़ हो तो लोगों को जल्दी ठीक होने में मदद मिल सकती है। हालाँकि यह माना जाता है कि सभी मरीज़ अकेले रहना चाहते हैं, लेकिन इस स्टडी से पता चला कि लगभग ७ प्रतिशत मरीज़ ही अकेला रहना पसंद करते हैं। अपने साथवाले बिस्तर पर अगर कोई दूसरा मरीज़ हो तो ज़्यादातर मरीज़ों को अच्छा लगता है। मगर, साथवाले बिस्तरे का साथी किस तरह का है, इससे काफी फरक पड़ता है। लेख कहता है, सबसे अच्छा साथी वही होगा जिसके साथ “आसानी से घुल-मिलकर रहा जा सके और जिसमें धीरज हो।” अच्छे साथी में होनेवाले बाकी के ज़रूरी गुणों को उनके महत्त्व के अनुसार बताया गया: “समझदार, हँसी-मज़ाक करनेवाला, साफ-सुथरा, खुले दिमाग का, मददगार, लिहाज़ दिखानेवाला, सब काम ठीक से करनेवाला, दोस्ताना, ईमानदार, सही संतुलन रखनेवाला, ठंडे दिमाग से काम लेनेवाला, बुद्धिमान, दयालु, शांत, अक्लमंद, बात माननेवाला, और सचेत रहनेवाला।”

मिच तूफान से क्या फायदा हुआ

हालाँकि पिछले साल के मिच तूफान ने हज़ारों लोगों की जानें लीं और लगभग लाखों लोगों को किसी-न-किसी तरह से नुकसान पहुँचाया, उसने एक अच्छा काम भी किया। उसने निकारागुआ की राजधानी से उत्तर-पूर्व की ओर कुछ ९० किलोमीटर दूर, यानी लिओन व्यीहो में खुदाई करनेवालों की मदद की जो वहाँ कुछ अवशेषों को खोद निकालने की कोशिश कर रहे थे। मॆक्सिको सिटी के अखबार एक्सॆलस्यॉर ने रिपोर्ट दी कि मिच ने “नयी-नयी दीवारों, हड्डियों और पुराने ज़माने की चीज़ों” को उजागर किया। लिओन व्यीहो रूइन्स हिस्टॉरिकल साइट के अध्यक्ष, रीगोबर्टो नबार्रो ने बताया कि मिच ने ज़मीन की सतह को बहाकर एक ऐसे स्थान को बेपरद कर दिया जिसे ढूँढ़ निकालने में खुदाई करनेवालों ने लंबे अरसे से नाकाम कोशिशें की थीं। इसकी वज़ह से अब ढ़ाई मीटर ऊँची, ७० सेंटीमीटर चौड़ी और १०० मीटर लंबी दीवार साफ दिखने लगी थी। अखबार ने कहा कि नबार्रो के मुताबिक, “उस तूफान ने बस तीन दिन में ही वो कमाल कर दिखाया जिसे करने में खुदाई करनेवालों को बरसों लग जाते।”

बहुत ज़्यादा कसरत करने के खतरे

माना कि कसरत करना दिल और फेफड़ों के लिए अच्छा होता है, मगर बहुत ज़्यादा कसरत करने से हड्डियाँ कमज़ोर पड़ जाती हैं, जिससे आगे चलकर परेशानियाँ खड़ी होती हैं। लंदन के द गार्डियन के मुताबिक, यही बात एक कॉन्फरॆंस में रिपोर्ट की गयी थी। यह कॉन्फरॆंस मनुष्यों की हड्डियों पर कसरत से होनेवाले प्रभाव पर चर्चा करने के लिए रखी गयी थी। दौड़ लगानेवालों को और जिन पर “सबसे चुस्त-तंदुरुस्त रहने का जुनून सवार होता है” उन्हें इसका सबसे ज़्यादा खतरा है। जो युवतियाँ बहुत ज़्यादा एरोबिक्स करती हैं या डांस क्लासेस को जाती हैं, उन्हें माँस-पेशियों में कसाव के कारण ज़्यादा फ्रैक्चर होते हैं और उम्र बढ़ने पर उन्हें हड्डियों और माँसपेशियों की बीमारी (osteoporosis) होने का खतरा होता है। लेख में लिखा था, “खिलाड़ियों को आगाह किया गया कि अगर वे अपनी हड्डियों को मज़बूत करना चाहते हैं तो वे सिर्फ १८ या १९ की उम्र तक ही कर सकते हैं, क्योंकि इस उम्र के बाद उनकी हड्डियाँ कमज़ोर पड़ने लगती हैं। हड्डियों को मज़बूत करने के लिए स्क्वॉश और टॆनिस सबसे अच्छे खेल हैं।” यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंडन के बोन सेंटर के अध्यक्ष, माइकल होर्टन ने सलाह दी कि खिलाड़ियों को कसरत और सेहत के बीच सही संतुलन बिठाना चाहिए। उन्होंने चिताया: “सरकार हमेशा यही कहती रहती है कि जवानों को जमकर कसरत करनी चाहिए। इसका शायद कुछ समय के लिए फायदा ज़रूर होगा, लेकिन किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि जब ये जवान ५० की उम्र के हो जाएँगे तो इन पर क्या गुज़रेगी।”

जुकाम की दवा नहीं?

अस्सी लाख डॉलर खर्च करके दस साल रिसर्च करने के बाद ब्रिटॆन के जुकाम केंद्र ने आखिर में हार मान ली। कुछ २०० अलग-अलग वाइरस होते हैं जिनकी वज़ह से जुकाम हो सकता है। इसलिए जुकाम के लिए एक दवा ढूँढ़ निकालना मानो ऐसा है जैसे खसरा, चेचक, मम्पस्‌, व रूबेला जैसी बीमारियों को एक साथ ठीक करने की कोशिश करना,” प्रॉफेसर रॉनल्ड एकल्ज़ कहते हैं। वे यूनिवर्सिटी ऑफ वेल्स, कारडिफ के केंद्र के अध्यक्ष हैं। “मुझे ऐसा कोई इलाज नज़र नहीं आता जिससे कि हम जुकाम के सभी वाइरस को खत्म कर सकें। मेरी राय में इससे निपटने का बेहतरीन तरीका यही है कि हम इसके बारे में ज़्यादा चिंता न करें।”

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