युवाओं को धर्म में कितनी दिलचस्पी है?
फ्रांस में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
दर्शकों की भीड़ में मौजूद ७,५०,००० युवाओं के लिए यह शाम मौज-मस्ती करने की थी। वे झंडे लहराते, गाते और तालियाँ बजाते थे। आकाश में लेज़र रोशनी और आतिशबाज़ी हो रही थी और संगीत-वादक भीड़ का जोश बढ़ा रहे थे। माहौल एक “विशाल चलते-फिरते डिस्को क्लब” के जैसा था। आखिर में, स्वागत के शोर-शराबे के बीच वह आदमी मंच पर उतरा जिसका उन्हें इंतज़ार था।
क्या यह किसी रॉक म्यूज़िक बैंड के वर्ल्ड टूर की शुरूआत थी? जी नहीं। यह कैथोलिक वर्ल्ड यूथ डेज़ के दौरान पैरिस में हुई एक धार्मिक सभा थी और मंच पर आनेवाला वह आदमी और कोई नहीं बल्कि पोप जॉन पॉल III था।
कुछ लोगों को इस तरह के धार्मिक उत्सवों में युवाओं की दिलचस्पी अजीब-सी लगती है। लेकिन अब संचार माध्यम युवाओं के बीच धार्मिक पुनःजागृति की बात कर रहे हैं।
बाहरी रूप
ऊपर से देखने पर ऐसा लग सकता है कि धर्म फल-फूल रहा है। यूरोप के करीब ६८ प्रतिशत युवा कहते हैं कि उनका धर्म है और आयरलॆंड में तो यह संख्या ९० प्रतिशत से भी ज़्यादा है। एक समय था जब भूतपूर्व सोवियत गणराज्य, आर्मॆनिया में अनेक लोग धर्म को पुराने ज़माने का अवशेष समझते थे। लेकिन उन सुनसान पड़े गिरजों के बारे में जो आजकल खचाखच भरे हैं, एक पादरी ने कहा: “मैं यह देखकर हैरान हूँ कि युवा पीढ़ी को धर्म में कितनी दिलचस्पी है।”
अनेक देशों में संचार माध्यमों ने पंथों और करिश्माई गुटों के साथ युवाओं की संगति का बहुत प्रचार किया है। जैसे शुरू में ज़िक्र किया गया है वैसे धार्मिक उत्सव बहुत लोकप्रिय हैं। लेकिन जब हम ज़्यादा करीब से देखते हैं तो क्या देखते हैं?
करीब से देखना
ज़्यादा करीब से देखने पर पता चलता है कि १९६७ में ८१ प्रतिशत फ्रांसीसी युवाओं को परमेश्वर में विश्वास था लेकिन १९९७ में यह संख्या ५० प्रतिशत से भी कम थी। पूरे यूरोप को मिलाकर देखें तो केवल २८ प्रतिशत युवा एक व्यक्तित्ववान् परमेश्वर में विश्वास करते हैं। तो फिर यह आश्चर्य की बात नहीं कि यूरोप के केवल १२ प्रतिशत युवा अकसर प्रार्थना करते हैं। धर्म के प्रति युवाओं के दृष्टिकोण में यह कैसे दिखायी पड़ता है?
डॆनमार्क में ९० प्रतिशत युवा कहते हैं कि वे राष्ट्रीय चर्च के सदस्य हैं। केवल ३ प्रतिशत अपने आपको सक्रिय सदस्य मानते हैं। फ्रांस के एक कैथोलिक अखबार ला क्रवा द्वारा १९९७ में किये गये एक सर्वेक्षण ने दिखाया कि ७० प्रतिशत फ्रांसीसी युवा स्वीकार करते हैं कि धर्म का उनके जीवन पर कोई प्रभाव नहीं। उनमें से तीन-चौथाई युवा धर्म की शिक्षा से ज़्यादा महत्त्व व्यक्तिगत अनुभव को देते हैं। यही बात अधिकतर दूसरे यूरोपीय देशों के बारे में भी सही है।
युवा लोग गिरजों से मुँह क्यों मोड़ रहे हैं? बड़े धर्म अधिकतर युवाओं में विश्वास नहीं जगा पाते। उदाहरण के लिए, फ्रांस में अधिकतर युवा सोचते हैं कि धर्म संसार में एक विभाजक तत्त्व है। इसके अलावा, ऐसे भी बहुतेरे युवा हैं जो स्पेन की १५-वर्षीय कैथोलिक युवा हूडीत की तरह सोचते हैं। उसने कहा: “चर्च नैतिकता के बारे में जो कहता है उससे मैं सहमत नहीं हूँ।” उसी तरह, तायवान के २०-वर्षीय जोसफ को धर्म “बहुत पारंपरिक” लगता है। लेकिन यदि अधिकतर युवा अपने ही धर्म की शिक्षाओं से सहमत नहीं हैं तो फिर वे किसमें विश्वास करते हैं?
अपनी पसंद का धर्म
आजकल युवा लोग धार्मिक विश्वासों को ऐसे चुनते हैं मानो व्यंजन-सूची में से अपनी पसंद के भोजन चुन रहे हों। एक पत्रिका ने इसे धार्मिक “रिवाज़ अपनी पसंद का” कहा। एक कैथोलिक पत्रिका ने इसे “धर्मों की बाज़ार में सैर” कहा। वे विश्वास जो पुराने पड़ रहे थे आजकल लोकप्रिय हो गये हैं। इसलिए यूरोप में करीब ३३ प्रतिशत युवा किस्मत चमकानेवाले तावीज़ों में विश्वास करते हैं, ४० प्रतिशत मानते हैं कि ज्योतिषी भविष्य बता सकते हैं और २७ प्रतिशत का मानना है कि सितारे लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं। आजकल यूरोप के अनेक युवाओं को पुनर्जन्म जैसी बातों में विश्वास है।
इतने सारे धार्मिक विश्वास हैं कि युवा अपनी पसंद के विश्वास चुन सकते हैं। बहुत कम हैं जो मानते हैं कि केवल एक धर्म के पास सच्चाई है। क्योंकि युवा अपनी पसंद के विश्वास चुन रहे हैं, इसलिए उनके धार्मिक विश्वासों के बीच का फर्क धुँधला होता जा रहा है। अतः समाजविज्ञानी अब रूढ़िवादी धर्ममतों के “धीरे-धीरे लुप्त होने” या “सामान्य क्षरण” की बात कर रहे हैं। इस आध्यात्मिक माहौल में पारंपरिक धर्म कैसी प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं?
धर्म को युवाओं की तलाश
युवाओं को आकर्षित करना धर्मों के लिए एक चुनौती बन गया है। पैरिस में हुए कैथोलिक वर्ल्ड यूथ डेज़ उत्सव में हिस्सा ले रही भीड़ के बारे में एक फ्रांसीसी पादरी ने पूछा: “इतने सारे युवा कहाँ से आये हैं? मेरे गिरजों में तो कोई युवा नहीं। मुझे तो वे कभी नहीं दिखायी पड़ते।” युवाओं का ध्यान खींचने और खींचे रखने की कोशिश में कैथोलिक चर्च को अपना संदेश प्रस्तुत करने का ढंग और अपनी छवि बदलनी पड़ रही है।
“चर्च ने अपना स्टाइल बदला!” फ्रांसीसी अखबार ल फीगारॉ ने कहा। पैरिस में १२वें वर्ल्ड यूथ डेज़ उत्सव के दौरान कार्यक्रम चलाने के लिए चर्च ने ऐसी एजॆंसियों की मदद ली जो ज़्यादातर रॉक संगीत समारोहों का प्रबंध करती हैं। १०० से ज़्यादा देशों से आये युवाओं का मनोरंजन करने के लिए ३०० से ज़्यादा कार्यक्रम आयोजित किये गये और पादरियों के लिए खास डिज़ाइनरों के कपड़े तैयार किये गये।
आज के युवाओं से अनजान और बदलाव करने की ज़रूरत समझते हुए अनेक धर्म ‘हर-माल’ विश्वास बन रहे हैं। पैरिस में वर्ल्ड यूथ डेज़ उत्सव का प्रबंध करनेवाले पादरी, मीशॆल ड्यूबो ने इस नीति को दिखाते हुए कहा: “मैं तो यह चाहता हूँ कि सभी बपतिस्मा-प्राप्त जन मसीह के वफादार हों। लेकिन यदि वे वफादार नहीं हों तो भी गिरजे में उनके लिए जगह है।”
युवाओं को उत्तरों की तलाश
इस बात को विशिष्ट करते हुए कि युवा सचमुच उत्तरों की तलाश कर रहे हैं, एक अखबार ने पैरिस के धार्मिक उत्सव में युवाओं की उपस्थिति को “विश्वास का प्रदर्शन नहीं बल्कि विश्वास की पुकार” कहा। क्या कैथोलिक चर्च ने यह पुकार सुनी?
जब आप ज़्यादा करीब से देखते हैं या उस ऊपरी दिखावे के पीछे झाँकते हैं जिसे एक कैथोलिक अखबार बड़े धार्मिक उत्सवों की “मृग मरीचिका” कहता है, तो क्या देखते हैं? फ्रांसीसी अखबार ल मॉन्ड ने ऊपरी दिखावे के पीछे “सच्ची संतुष्टि की कमी” पर टिप्पणी की।
जबकि भोजन को सजाकर परोसने का अपना महत्त्व है, परंतु भोजन का पौष्टिक होना भी ज़रूरी है। जीवन के अर्थ के बारे में युवाओं के प्रश्न आध्यात्मिक रूप से पौष्टिक उत्तरों की माँग करते हैं। युवाओं को जो लुभावने परंतु खोखले उत्तर परोसे जाते हैं उनसे वे संतुष्ट नहीं होते।
क्या ऐसे खोखले धार्मिक उत्सवों का आज के युवाओं पर स्थायी प्रभाव हो रहा है? फ्रांसीसी समाजविज्ञानी डानयॆल अरव्यो-लेज़्हे ने कहा: “इसकी बहुत कम संभावना है कि ये भव्य उत्सव स्थायी सामाजिक प्रभाव डालेंगे।” तो फिर युवा अपने प्रश्नों के संतोषप्रद उत्तर कहाँ पा सकते हैं?
संतोषप्रद उत्तर
फ्रांसीसी पत्रिका ल प्वाँ ने १९९७ में युवाओं की समस्याओं के बारे में एक लेख प्रकाशित किया। अधिकतर युवा जीवन के अर्थ के बारे में प्रश्न करते हैं। इसके साथ-साथ युवाओं को अपराध और हिंसा का सामना भी करना पड़ता है। क्या इस पर जय पाना संभव है? पत्रिका लेख ने बताया: “३० साल की उम्र में डेविड को तब चिंता होने लगी जब शराब, नशीली दवाएँ और हिंसा उसकी सेहत पर बुरा असर डालने लगीं। यहोवा के साक्षी उसके घर आये और बताया कि वह शुद्ध हो सकता है। उसने बाइबल अध्ययन किया। अपने अंदर परिवर्तन लाया। उस पर जूए का जो उधार चढ़ा था वह उसने चुकता किया और उन सब का पैसा लौटाया जिन्हें पता भी नहीं था कि उसने जूए में उनके साथ बेईमानी की थी। अब वह न तो सिगरॆट पीता, न शराब पीता और न ही झगड़ा करता है।”
यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करनेवाले अन्य युवाओं के बारे में इस लेख ने आगे कहा: “उन्हें अपने सभी प्रश्नों के सभी उत्तर मिल गये हैं।” एक युवा साक्षी ने साफ कहा: “बाइबल दो हज़ार साल से सच बोलती आ रही है, तो मैं मार्गदर्शन के लिए किसी दूसरी जगह क्यों जाऊँ?”
परमेश्वर के वचन में युवाओं के लिए संदेश है। इसकी व्यावहारिक सलाहें उन्हें आज की समस्याओं से निपटने में मदद देती हैं और उन्हें यह विश्वास करने का ठोस आधार देती हैं कि भविष्य में शांति और भाईचारा होगा। निरंतर बदलते संसार में बाइबल जो आशा प्रदान करती है वह “हमारे प्राण के लिये ऐसा लंगर है जो स्थिर और दृढ़ है,” वह मज़बूती और सांत्वना देती है। (इब्रानियों ६:१९) लाखों युवाओं को यहोवा के साक्षियों के साथ व्यक्तिगत बाइबल अध्ययन करने के द्वारा अपने जीवन में सच्चा अर्थ मिल गया है। उन्होंने खुद देखा है कि कैसे बाइबल बदलाव लाती है जो सिर्फ ऊपरी नहीं होता। बाइबल के उत्तरों को स्वीकार करने के द्वारा युवा पाते हैं कि सच्चे विश्वास की उनकी तलाश सफल हुई है।
[पेज 25 पर तसवीर]
पैरिस में हुए धार्मिक उत्सव ने हज़ारों युवाओं को आकर्षित किया
[पेज 26 पर तसवीर]
पैरिस में वर्ल्ड यूथ डेज़—सच्ची धार्मिक पुनःजागृति?