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युद्ध एक खौफनाक हकीकत

लंदन, इंग्लैंड के इम्पेरियल वार म्यूज़ियम में आनेवाले लोगों को, वहाँ की काउंटर डिजिटल घड़ी यानी गिनती करनेवाली डिजिटल घड़ी बड़ी अनोखी लगती है। इस घड़ी को समय बताने के लिए नहीं, बल्कि, लोगों को इस सदी की एक खास बात की गंभीरता समझाने के लिए बनाया गया है, और वह खास बात है युद्ध। जैसे-जैसे इस घड़ी का काँटा आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे हर ३.३१ सेकेंड में इसके काउंटर में एक संख्या और बढ़ जाती है। हर संख्या एक स्त्री, पुरुष या बच्चे को चित्रित करती है जो २०वीं सदी के दौरान युद्ध में मारा जाता है।

इस काउंटर घड़ी ने जून १९८९ में गिनती शुरू की थी और यह अपनी गिनती ३१ दिसंबर, १९९९ की रात को ठीक बारह बजे खत्म करेगी। तब तक काउंटर में कुल संख्या बढ़कर दस करोड़ हो जाएगी। यह असल में, पिछले १०० साल में युद्ध में मारे गए लोगों की कुल संख्या का न्यूनतम संख्या है।

ज़रा सोचिए—दस करोड़ लोग! यह संख्या तो इंग्लैंड की आबादी की दुगुनी से भी ज़्यादा है। मगर, यह आँकड़ा तो युद्ध के शिकार हुए लोगों के दुःख-दर्द और दहशत के बारे में कुछ भी नहीं बताता। ना ही यह मारे गए लोगों के परिवार के सदस्यों—अनगिनत माँ-बाप, बहन-भाइयों, विधवाओं और अनाथों—के दुःख के बारे में कुछ बताता है। यह आँकड़ा तो बस यह बताता है: मानवजाति के पूरे इतिहास में हमारी सदी ही सबसे विनाशकारी सदी रही है; इस सदी में जो क्रूरताएँ हुईं, वैसी पहले की किसी भी सदी में नहीं हुई।

इस २०वीं सदी के इतिहास में यह भी देखा गया है कि इंसान मार-काट करने की कला में कितना माहिर हो गया है। पूरे इतिहास में नए-नए हथियार के ईजाद होने में कोई खास तेज़ी नहीं थी, मगर इस २०वीं सदी में इतने सारे नए-नए हथियार ईजाद हुए कि मानो इनकी बाढ़ लग गयी हो। १९१४ में जब पहला विश्‍वयुद्ध शुरू हुआ, तब यूरोप की सेना में भाला लिए हुए घुड़सवार सैनिक थे। मगर आज, सैटेलाइट सेंसर्स और कंप्यूटराइज़्ड गाइडैन्स सिस्टम की मदद से, अचूक निशाना लगाकर मिसाइलें भेजी जा सकती हैं और दुनिया के किसी भी कोने में जान-माल को नुकसान पहुँचाया जा सकता है। और सन्‌ १९१४ से आज तक, काफी नए-नए और बेहतर हथियार बनाए गए हैं जैसे बंदूकें, टैंक, पनडुब्बियाँ, और लड़ाकू जहाज़। इतना ही नहीं, युद्ध छिड़ने पर कई देश अपने दुश्‍मन देश की ज़मीन और फसल बरबाद करने और लोगों को बीमार करने के लिए कीटाणुओं या परजीवियों को छोड़ देते हैं। और तो और, उन्होंने “अणु बम” भी बनाया है।

विडंबना की बात है, आज इंसान जंग लड़ने में इतना माहिर हो गया है कि अब जंग लड़ना एक ऐसा खतरनाक खेल बन गया है जिसे खेलने की हिम्मत इंसान नहीं जुटा पाता है। जिस तरह फ्रैंकॆनस्टाइन की कल्प-कथा में एक राक्षस अपने बनानेवाले को ही नाश कर देता है, उसी तरह आज जिन लोगों ने युद्ध को इतना ताकतवर और खतरनाक बनाया है, उन्हीं की जान लेने पर युद्ध उतारू हो गया है। क्या इस राक्षस-समान युद्ध को काबू में या खत्म किया जा सकता है? इस सवाल का जवाब अगले लेखों में दिया गया है।

[पेज 3 पर चित्रों का श्रेय]

U.S. National Archives photo

U.S. Coast Guard photo

By Courtesy of the Imperial War Museum

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