बाइबल का दृष्टिकोण
जीवन-साथी कैसे चुनें
एक कुँवारी लड़की से पूछा गया, “क्या आपने कभी शादी करने की बात सोची है?” उसने तुरंत जवाब देते हुए कहा, “सोचना? मैं तो मारे चिंता के मर रही हूँ!”
इस लड़की का इस तरह साफ-साफ कहना थोड़े-से शब्दों में बहुत कुछ बोल जाता है। इसके इन चंद शब्दों से पता चलता है कि किस हद तक लोग प्यार-मुहब्बत और किसी का साथ चाहते हैं। कई लोगों के लिए एक जीवन-साथी की तलाश करना ज़िंदगी का एक सबसे बड़ा मकसद है। इसलिए, पूरी दुनिया में ऐसे केंद्र दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहे हैं जो लोगों को जीवन-साथी पाने में मदद करते हैं। मगर इसके बावजूद, दुनिया के कई देशों में जितनी शादियाँ कामयाब हो रही हैं उनसे कहीं ज़्यादा शादियाँ नाकाम हो रही हैं।
पश्चिमी देशों में अपना जीवन-साथी खुद चुनने का रिवाज़ आम है। दूसरी तरफ एशिया और अफ्रीका के कुछ देशों में, लड़का-लड़की खुद नहीं बल्कि कोई और उनकी शादी पक्की करता है। दोनों ही मामलों में, साथी चुनने की बात को गंभीरता से लेना चाहिए। क्योंकि उनके इस फैसले से ही आगे चलकर उनकी ज़िंदगी में या तो खुशियों की बहार आएगी या फिर उनकी ज़िंदगी गम का सागर बन जाएगी। अगर पति-पत्नी में प्यार हो तो उनकी ज़िंदगी में चार चाँद लग जाएँगे और इससे उन्हें संतुष्टि भी मिलती है। इसके विपरीत, अगर आपस में रगड़े-झगड़े होते रहें तो इससे बस दर्द और तनाव ही पैदा होता है।—नीतिवचन २१:१९; २६:२१.
दूसरे लोगों की तरह, सच्चे मसीही भी यही चाहते हैं कि उन्हें अपनी शादी से खुशियाँ ही खुशियाँ और संतुष्टि मिले। और वे परमेश्वर को भी खुश करना और सम्मान देना चाहते हैं। (कुलुस्सियों ३:२३) परमेश्वर ने ही विवाह की शुरुआत की, इसलिए वही सबसे अच्छी तरह जानता है कि हमारी असल ज़रूरतें क्या हैं और हमारे लिए सबसे अच्छा क्या होगा। (उत्पत्ति २:२२-२४; यशायाह ४८:१७-१९) इसके अलावा, इंसान को बनाने के बाद से उसने हज़ारों-लाखों शादियाँ देखीं हैं जिनमें से कुछ सफल हुईं और कुछ असफल रहीं। वह जानता है कि किस बात से हमारी शादीशुदा ज़िंदगी सफल हो सकती है और किस बात से नहीं। (भजन ३२:८) अपने वचन, बाइबल के ज़रिए, उसने साफ-साफ सिद्धांत दिए हैं जिनकी मदद से कोई भी मसीही सोच-समझकर सही फैसला कर सकता है। ये सिद्धांत क्या हैं?
बाहरी रूप आँखों का धोखा हो सकता है
जिन देशों में अपने जीवन-साथी को खुद चुनने की छूट होती है, वहाँ लड़के-लड़की की मुलाकात शायद दोस्तों या परिवार के सदस्यों के ज़रिए होती हो। अकसर, बाहरी रूप-रंग को ही देखकर व्यक्ति को प्यार हो जाता है और उसका दिल धड़कने लगता है। हालाँकि किसी के बाहरी रूप को देखकर उस पर फिदा हो जाना स्वाभाविक है और इस खिंचाव को रोका भी नहीं जा सकता है, मगर जब जीवन-साथी को चुनने की बात आती है तो बाइबल हमें सलाह देती है कि सिर्फ बाहरी रूप को ही देखना काफी नहीं है।
नीतिवचन ३१:३० कहता है, “शोभा तो झूठी और सुन्दरता व्यर्थ है, परन्तु जो स्त्री यहोवा का भय मानती है, उसकी प्रशंसा की जाएगी।” प्रेरित पतरस “नम्र और शान्त मन वाले अविनाशी आभूषणों से सुसज्जित” होने की बात करता है, “जिसका परमेश्वर की दृष्टि में बड़ा मूल्य है।” (१ पतरस ३:४, NHT) जी हाँ, होनेवाले जीवन-साथी के आध्यात्मिक गुण, यानी परमेश्वर के प्रति उसकी भक्ति और प्रेम, साथ ही उसका मसीही व्यक्तित्व, उसकी बाहरी सुन्दरता से कहीं ज़्यादा ज़रूरी हैं। समय निकालकर अच्छी तरह सोच-समझकर किसी ऐसे साथी का चुनाव करना बहुत ज़रूरी है जिसके आध्यात्मिक लक्ष्य आपकी तरह ही हों और जो परमेश्वर की आत्मा के फलों को भी विकसित करने की पुरजोर कोशिश करता हो। ऐसे गुण विवाह को सफल और खुशहाल बनाने में बहुत मददगार साबित होंगे।—नीतिवचन १९:२; गलतियों ५:२२, २३.
‘विवाह केवल प्रभु में करें’
जिससे आप शादी करना चाहते हैं उसके और आपके लक्ष्य और विश्वास एक-जैसा होना बहुत ज़रूरी है। विवाह में कामयाब होना एक बहुत बड़ी चुनौती है क्योंकि इसमें दोनों को ही अपने व्यवहार और रवैये में काफी फेरबदल करने की ज़रूरत पड़ती है। इसलिए, आप दोनों के विचार और लक्ष्य जितना ज़्यादा एक-जैसे होंगे उतना ही ज़्यादा फेरबदल करना आसान होगा।
इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि क्यों प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को सलाह दी कि वे ‘अविश्वासियों के साथ असमान जूए में न जुतें।’ (२ कुरिन्थियों ६:१४) पौलुस जानता था कि अगर कोई अलग धार्मिक विश्वास और बाइबल के सिद्धांतों की समझ न रखनेवाले व्यक्ति से शादी करता है तो आगे चलकर काफी झगड़े और बहसा-बहसी हो सकती है। इसीलिए ‘विवाह केवल प्रभु में करने’ की सलाह वाजिब है। (१ कुरिन्थियों ७:३९) इस सलाह से परमेश्वर का विचार झलकता है। जो लोग बुद्धिमानी से इसे मानते हैं वे आगे चलकर बहुत बड़ी-बड़ी उलझनों और गंभीर समस्याओं से बच जाते हैं।—नीतिवचन २:१, ९.
जब शादी कोई और तय करता है
ऐसे इलाकों के बारे में क्या जहाँ दूसरे लोग शादियाँ तय करते हैं और वहाँ का रिवाज़ ही वैसा है? मसलन, दक्षिण भारत के बारे में यह अंदाज़ा लगाया गया है कि वहाँ लगभग ८० प्रतिशत शादियाँ माँ-बाप तय करते हैं। मसीही माँ-बाप इस परंपरा को मानना चाहें या न चाहें, यह उनका निजी फैसला है। मगर, इस तरह से हुई शादियाँ भी सफल होती हैं अगर उस बंधन में आध्यात्मिक बातों को ज़्यादा अहमियत दी जाती है।
जिन लोगों को इस तरह तय करके शादी करने का रिवाज़ ठीक लगता है, वे लड़का/लड़की चुनने का ज़िम्मा अनुभवी और प्रौढ़ लोगों के हाथों सौंप देते हैं। अफ्रीका का एक मसीही प्राचीन कहता है, “कुछ माँ-बाप सोचते हैं कि उनके बेटे या बेटी की उम्र अभी कच्ची है और उन्होंने अभी दुनिया भी नहीं देखी हैं, इसलिए वे अपने जीवन-साथी के बारे में यह सही फैसला नहीं कर सकते कि वे आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत हैं या नहीं।” भारत का एक सफरी ओवरसियर कहता है, “युवा लोगों ने ज़िंदगी नहीं देखी है और इसलिए वे शायद जज़बातों में बहकर फैसला कर बैठें।” माता-पिता को लगता है कि सिर्फ वे ही अपने बच्चों के स्वभाव और गुणों के बारे में अच्छी तरह जानते हैं, इसलिए सिर्फ वे ही अपने बच्चों के लिए बुद्धिमानी से जीवन-साथी चुन सकते हैं। अगर ऐसे माता-पिता अपने बेटे या बेटी से उनका विचार भी पूछ लें तो यह अक्लमंदी की बात होगी।
मगर, जब माँ-बाप बाइबल के सिद्धांतों को नज़रअंदाज़ करते हैं और आगे जाकर अगर शादीशुदा ज़िंदगी में समस्याएँ उठने लगती हैं तो उन्हें फिर बाद में इसका अंजाम भुगतना पड़ता है। क्योंकि ऐसे विवाहों में शादी से पहले, लड़का और लड़की एक दूसरे को अच्छी तरह से जान नहीं पाते हैं, तो लाज़िमी है कि समस्याएँ उठेंगी। और भारत का एक मसीही पिता इस बारे में कहता है कि जब ऐसी समस्याएँ उठती हैं तो उस समय बच्चे “बड़ी आसानी से माँ-बाप के कँधों पर इसका दोष मढ़ देते हैं।”
जब मसीही माता-पिता विवाह तय कर रहे होते हैं तब उन्हें विवाह करने के मकसद पर विचार करना चाहिए। अगर सिर्फ भौतिक चीज़ें पाने के लालच को या ऊँचा पद पाने के लालच को ही मन में रखकर विवाह-साथी का चुनाव किया जाता है तो समस्याएँ खड़ी होंगी। (१ तीमुथियुस ६:९) इसीलिए, जो लोग दूसरों के लिए विवाह तय करते हैं उन्हें अपने आप से ये सवाल करने चाहिए, ‘क्या लड़का या लड़की इस मकसद के चुना जा रहा है कि आगे जाकर दोनों ही खुश रहे और उनकी आध्यात्मिक सेहत भी बनी रहे? या क्या विवाह, परिवार की साख या धन-दौलत बढ़ाने या किसी और तरह का आर्थिक फायदा पाने के लिए किया जा रहा है?’—नीतिवचन २०:२१.
इन बातों में बाइबल की सलाह एकदम साफ है और लाभदायक भी। जीवन-साथी का चुनाव करते वक्त, चाहे खुद चुने या माँ-बाप द्वारा चुना जाए, होनेवाले साथी के गुण और आध्यात्मिकता देखना सबसे ज़रूरी है। जब ऐसा होता है तब विवाह-बंधन की शुरुआत करनेवाला, यहोवा परमेश्वर का सम्मान होता है और विवाह करनेवाले भी मज़बूत आध्यात्मिक बुनियाद पर अपनी शादीशुदा ज़िंदगी की अच्छी शुरुआत कर सकते हैं। (मत्ती ७:२४, २५) इससे शादीशुदा ज़िंदगी सफल और खुशियों-भरी होगी।