विश्व-दर्शन
बच्चों को कितने पानी की ज़रूरत होती है?
जर्मनी के डॉर्टमन्ड शहर में रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर चाइल्ड न्यूट्रिशन ने एक जाँच की, जिसकी रिपोर्ट कंज़्यूमर मैगज़ीन टेस्ट में छपी थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक एक से चार साल की उम्र के बच्चों को अकसर बहुत कम मात्रा में पीने को दिया जाता है। इसलिए, खासकर इस उम्र के बच्चों के शरीर में पानी की कमी पैदा हो जाती है। खाने के साथ उन्हें जो पीने के लिए दिया जाता है, उसके अलावा दिन भर में उन्हें किसी भी रूप में लगभग एक लिटर पानी और दिया जाना चाहिए। मगर औसतन, बच्चे एक लिटर से कम ही पीते हैं, जिसमें ज़्यादातर इन मासूमों की कोई गलती नहीं होती। जाँच करनेवालों को यह पता चला कि पीने के लिए कुछ माँगने पर, पाँच में से एक बच्चे के माँ-बाप उसे मना कर देते हैं। बच्चों को पिलाने के लिए सबसे बेहतरीन चीज़ क्या है? टेस्ट पत्रिका कहती है, साफ पानी पिलाना ही सबसे अच्छा है।
मिलनसार रहो, ज़्यादा जीओ
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक नयी जाँच के मुताबिक लोगों से मिलने-मिलानेवाले बुज़ुर्गों की उम्र लंबी होती है। नियमित रूप से चर्च और रेस्तराँ जानेवाले, कोई मैच या फिल्में देखनेवाले बुज़ुर्ग, उन बुज़ुर्गों से ढाई साल ज़्यादा जीते हैं जो लोगों से नहीं मिलते-जुलते और घर में ही रहना पसंद करते हैं। जाँच करनेवाले हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के थॉमस ग्लास ने कहा कि काफी समय से यह माना जाता था कि ये सारे काम करने में जो मेहनत लगती है उसी से बुज़ुर्गों को फायदा होता है। लेकिन उसने आगे कहा कि इस जाँच से जो पता लगा है वह “सबसे बड़ा सबूत है कि ज़िंदगी के आखिरी दौर में अगर किसी-न-किसी अच्छे काम में लगे रहें तो कोई भी बुज़ुर्ग लंबी ज़िंदगी जी सकता है।” ग्लास ने कहा कि अगर बुज़ुर्ग काम करता रहे, जो चाहे किसी भी किस्म का क्यों न हो, तो उसकी उम्र बढ़ती ही है।
सुकून पाने का पसंदीदा तरीका
हाल की एक जाँच में, 30 अलग-अलग देशों में 1,000 लोगों से पूछा गया कि तनाव को कम करने के लिए वे क्या करना पसंद करते हैं। रॉइटर्स समाचार एजेन्सी रिपोर्ट करती है, दुनिया भर में जितने लोगों का इंटरव्यू लिया गया उनमें से 56 प्रतिशत ने कहा, संगीत सुनना। उत्तर अमरीका में 64 प्रतिशत, और एशियाई देशों में 46 प्रतिशत लोगों की भी पहली पसंद है संगीत। टीवी देखना दूसरे नंबर पर है। और तनाव दूर करने का तीसरा पसंदीदा तरीका है स्नान लेना या नहाना। रोपर स्टार्च वर्ल्डवाइड संस्था की जाँच के डाइरॆक्टर, टॉम मिलर के मुताबिक “संगीत—रेडियो, टीवी, सीडी प्लेयरों, इंटरनॆट और दूसरे कई माध्यमों के ज़रिए बड़ी आसानी से सुना जा सकता है और यह खास महँगा भी नहीं है। इसलिए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि दुनिया के आधे से भी ज़्यादा लोग तनाव दूर करने के लिए संगीत सुनते हैं।”
गरीबी—सारी दुनिया की समस्या
वर्ल्ड बैंक के प्रेसिडेंट, जेम्स् डी. वॉलफनसोन ने सारी दुनिया में फैली गरीबी पर चिंता ज़ाहिर की। मेक्सिको शहर के लॉ होर्नाडा अखबार के मुताबिक, वॉलफिनसोन ने कहा कि दुनिया के छः अरब लोगों में से दो अरब लोग अब भी बहुत ही गरीब हैं। उसने आगे कहा कि दुनिया के आधे लोग दिन भर में दो डॉलर से कम में गुज़ारा करते हैं; और एक अरब लोग दिन में एक डॉलर से भी कम में गुज़ारा करते हैं। वॉलफिनसोन, दुनिया भर में गरीबी पर कुछ हद तक काबू पाने में वर्ल्ड बैंक की कामयाबी पर फख्र करता है। फिर भी उसने जो आँकड़े दिए उनसे पता चलता है कि गरीबी की यह समस्या चारों तरफ फैली हुई है और इस पर पूरी तरह काबू पाने के लिए बहुत कुछ करना बाकी है। उसने कहा: “हमें यह मानना होगा कि गरीबी सारी दुनिया की समस्या है।”
समय की कमी
जर्मनी का अखबार गीसन ऑल्जीमाइना रिपोर्ट करता है कि यूरोप में ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग वक्त की कमी महसूस कर रहे हैं। वे चाहे बाहर काम कर रहे हों, चाहे घर में या फिर फुरसत की घड़ियों का मज़ा ले रहे हों उन्हें हमेशा यही शिकायत रहती है। बैमबर्ग यूनिवर्सिटी का सोशियोलॉजिस्ट मैनफ्रेत गार्हामा कहता है, “चालीस साल पहले के मुकाबले, आज लोगों के खाने और सोने का समय कम हो गया है और वे नौकरी पर भी हड़बड़ी में रहते हैं।” जिन यूरोपीय देशों में जाँच की गयी उसमें उसने पाया कि रोज़मर्रा ज़िंदगी की रफ्तार बहुत तेज़ हो गयी है। समय की बचत करनेवाली मशीनों का इस्तेमाल करने और नौकरी के घंटे कम करने के बावजूद भी इंसानों को “आराम की ज़िंदगी” या “बहुत सारा समय” नहीं मिला है। इसके बजाय, पहले के मुकाबले खाने का समय औसतन 20 मिनट और नींद करने का समय 40 मिनट घट गया है।
तनाव कम करना
क्या आप तनाव में हैं? एल यूनिवर्साल की रिपोर्ट के मुताबिक, मेक्सिको की सामाजिक सुरक्षा संस्था ने तनाव को कम करने के लिए कुछ सुझाव दिए। जैसे, आपका शरीर जितनी माँग करता है उतनी नींद लीजिए, यानी दिन में छः से दस घंटे। सुबह के नाश्ते में भरपेट पौष्टिक खाना खाइए, दोपहर को उससे कम और शाम को हल्का-फुल्का। इसके अलावा, ज़्यादातर विशेषज्ञों का सुझाव है कि खाने की जिन चीज़ों में वसा ज़्यादा होता है वे कम खाएँ और नमक कम मात्रा में लें और 40 की उम्र के बाद दूध और चीनी लेना कम कर दें। मनन करने के लिए वक्त निकालें। कुदरत के नज़ारों को देखकर भी तनाव कम किया जा सकता है।
अक्लमंद पंछी!
प्रकृति के बारे में एक फ्रांसीसी पत्रिका, टॆर सोवाज़ रिपोर्ट करती है: “कलकत्ता की चिड़ियों को मलेरिया नहीं होता।” विशेषज्ञों ने देखा है कि मलेरिया के फैलने के कारण, चिड़ियाएँ उड़कर दूर-दूर जंगलों में जाती हैं। उन्हें उस पेड़ की पत्तियों की तलाश रहती है जिसमें बड़ी मात्रा में क्विनिन पाया जाता है। ये पंछी न सिर्फ इन पत्तियों से अपना घोंसला बनाते हैं बल्कि इन्हें खाते भी हैं जिससे इन्हें मलेरिया नहीं होता। यह पत्रिका कहती है: “चिड़ियों को शहर तो पसंद है मगर मलेरिया नहीं, इसलिए लगता है कि उन्होंने अपने बचाव के लिए एक रास्ता ढूँढ़ निकाला है।”
“परमेश्वर किसकी तरफ है?”
खेलों के बारे में लिखनेवाला सैम स्मिथ कहता है, “मैं किसी के धार्मिक विश्वासों का अपमान नहीं करना चाहता, मगर क्या ऐसा नहीं लगता कि खेलों में सबके सामने भक्ति का दिखावा करना कुछ ज़्यादा ही हो रहा है? फुटबॉल में [गोल] करने के बाद खिलाड़ी प्रार्थना क्यों करने लगते हैं?” स्मिथ कहता है, ये खिलाड़ी जो घुटनों के बल गिरकर प्रार्थना करते हैं, इन्हीं खिलाड़ियों को लॉकर रूम में “पत्रकारों को गालियाँ देते हुए” या अपनी टीम को जीताने के लिए दूसरी टीम के “खिलाड़ियों को चोट पहुँचाते” हुए देखा जा सकता है। वह कहता है कि यह सोचना कि परमेश्वर एक टीम को दूसरी टीम से ज़्यादा पसंद करता है “परमेश्वर में हमारे विश्वास का अपमान लगता है।” इसलिए उसने अपने लेख के आखिर में कहा: “अच्छा होगा अगर हम खेल को खेल ही रहने दें।”
छोटे बच्चे और टेलिविज़न
टोरोन्टो स्टार अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, अमरीकी बालचिकित्सा अकादमी सलाह देती है कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को टीवी नहीं देखना चाहिए। रिपोर्ट दिखाती है कि बच्चों के मानसिक विकास के लिए उनका लोगों के संपर्क में आना बहुत ज़रूरी है। टीवी देखने से “उनके व्यवहार और सोचने-समझने की शक्ति पर बुरा असर होगा” और वे लोगों के साथ “घुल-मिल नहीं पाएँगे।” लेकिन सभी विशेषज्ञ इस बात से सहमत नहीं हैं। मिसाल के तौर पर, कनाडा की बालचिकित्सा अकादमी कहती है कि अगर माता-पिता बच्चे को दिन भर में 30 मिनट तक टीवी पर कोई अच्छा कार्यक्रम दिखाएँ तो उसे “बहुत कुछ सिखा सकते हैं।” लेकिन, एक बात पर दोनों संस्थाएँ सहमत हैं कि छोटे बच्चों के कमरे में टीवी या कंप्यूटर नहीं होना चाहिए और बच्चे को बहलाने का काम टीवी के सहारे नहीं छोड़ देना चाहिए। टीवी देखते रहने से बच्चों की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है, इसलिए यह सलाह दी जाती है कि “बच्चों में बाहर खेलने, किताबें पढ़ने या पहेलियाँ बूझने या घर में कोई गेम खेलने की आदत डालिए।”