आधुनिक उपासना में संगीत का स्थान
गायन परमेश्वर की ओर से एक देन है। गीत में अपने स्वर उठाना हमें और हमारे सृष्टिकर्ता को सुख दे सकता है। इसके द्वारा, हम अपने दोनों ही भाव, पीड़ा और आनन्द व्यक्त कर सकते हैं। उससे भी बढ़कर, गीत के आरंभक, यहोवा के प्रति हम अपने प्रेम, श्रद्धा, और स्तुति को स्वर दे सकते हैं।
बाइबल में संगीत के कुछ तीन सौ उल्लेखों में से अधिकतर यहोवा की उपासना से सम्बन्धित हैं। गायन का सम्बन्ध आनन्द से भी है—गानेवालों के आनन्द से ही नहीं बल्कि यहोवा के आनन्द से भी। भजनहार ने लिखा: “[वे] उसका भजन गाएं! क्योंकि यहोवा अपनी प्रजा से प्रसन्न रहता है।”—भजन १४९:३, ४.
लेकिन आधुनिक उपासना में गायन कितना महत्त्वपूर्ण है? यहोवा के लोग आज गीत में अपना स्वर उठाने के द्वारा उसे कैसे प्रसन्न कर सकते हैं? सच्ची उपासना में संगीत का क्या स्थान होना चाहिए? उपासना में संगीत के इतिहास की खोज करना इन प्रश्नों के उत्तर देने में मदद करेगा।
उपासना में संगीत का ऐतिहासिक स्थान
संगीत के बारे में बाइबल का पहला उल्लेख विशेष रूप से यहोवा की उपासना के सम्बन्ध में नहीं है। उत्पत्ति ४:२१ में, यूबाल को उसका श्रेय दिया गया है जो शायद पहले संगीत वाद्य का आविष्कार हो या किसी क़िस्म के संगीत पेशे की स्थापना हो। लेकिन, संगीत मनुष्यों की सृष्टि से पहले भी यहोवा की उपासना का एक हिस्सा था। कई बाइबल अनुवाद स्वर्गदूतों के गाने का वर्णन करते हैं। अय्यूब ३८:७ स्वर्गदूतों के बारे में कहता है कि वे आनन्द और “जयजयकार करते थे।” अतः, यह मानने का शास्त्रीय कारण है कि यहोवा की उपासना में गायन की प्रथा मनुष्य की सृष्टि से बहुत पहले से है।
कुछ इतिहासकारों ने तर्क किया है कि प्राचीन इब्रानी संगीत में केवल सुर होता था, उसको मिलानेवाली ताल नहीं। लेकिन, वीणा पर, वह वाद्य जिसका बाइबल में प्रमुख रूप से उल्लेख किया गया है, एक ही समय एक से अधिक स्वर छेड़े जा सकते थे। वीणा वादकों ने वह ताल नोट की होगी जो वाद्य के स्वरों को मिलाने से उत्पन्न की जा सकती थी। उनका संगीत आदिम नहीं, निश्चित ही बहुत उन्नत था। और इब्रानी शास्त्र के पद्य और गद्य काव्य को देखते हुए आँकें तो हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि इस्राएली संगीत उच्च कोटि का था। निश्चित ही, संगीत रचना के लिए उनकी उत्प्रेरणा पड़ोस की जातियों से कहीं महान थी।
प्राचीन मंदिर व्यवस्था में यह था कि मंदिर उपासना में वाद्यसंगीत-विन्यास और स्वरों के जटिल प्रबन्ध हों। (२ इतिहास २९:२७, २८) वहाँ “निर्देशक,” “गुरू,” ‘चेले,’ और “गवैयों के प्रधान” थे। (१ इतिहास १५:२१, NW; २५:७, ८; नहेमायाह १२:४६) उनके उन्नत संगीत कौशल पर टिप्पणी करते हुए, इतिहासकार कर्ट सैक्स ने लिखा: “यरूशलेम में मंदिर से जुड़े वादक-दल और वृन्दवाद्य एक उच्च स्तर की संगीत शिक्षा, कौशल और ज्ञान का संकेत देते हैं। . . . जबकि हम नहीं जानते कि वह प्राचीन संगीत कैसा सुनायी पड़ता था, फिर भी हमारे पास उसकी शक्ति, गरिमा, और उत्कृष्टता का पर्याप्त प्रमाण है।” (प्राचीन संसार में संगीत का उत्थान: पूरब और पश्चिम (अंग्रेज़ी), १९४३, पृष्ठ ४८, १०१-२) श्रेष्ठगीत इब्रानी रचनाओं की सृजनात्मकता और गुणवत्ता का एक उदाहरण है। यह गीत रूप में एक कहानी है, किसी गीति-नाट्य की पुस्तिका या पाठ के समान। इब्रानी पाठ में इस गीत को “श्रेष्ठगीत” कहा गया है, अर्थात् सर्वोत्तम गीत। प्राचीन इब्रानियों के लिए, गायन उपासना का एक अभिन्न अंग था। और इसके द्वारा वे यहोवा की स्तुति में सकारात्मक भावुक अभिव्यक्ति कर सकते थे।
प्रथम-शताब्दी मसीहियों द्वारा गायन
संगीत आरंभिक मसीहियों के बीच उपासना का एक नियमित भाग बना रहा। उनके पास उत्प्रेरित भजन तो थे ही, परन्तु प्रतीत होता है कि उसके साथ-साथ उन्होंने उपासना के लिए नयी धुनें बनायीं और बोल लिखे, और आधुनिक समय में मसीही गीत लिखने के लिए पूर्वोदाहरण रखा। (इफिसियों ५:१९) वॉल्डो सॆल्डॆन प्रैट की पुस्तक संगीत का इतिहास (अंग्रेज़ी) समझाती है: “आरंभिक मसीहियों के लिए जन और निजी उपासना में गायन एक प्रथा थी। यहूदी धर्मान्तरितों के लिए यह आराधनालय प्रथाओं को जारी रखने के जैसा था . . . इब्रानी भजनों के साथ-साथ . . . , नए विश्वास ने निरन्तर नए भजन बनाने के प्रयास किए, प्रत्यक्षतः शुरू-शुरू में चारण-गीत के रूप में।”a
गायन के महत्त्व को विशिष्ट करते हुए, जब यीशु ने प्रभु के संध्या भोज की स्थापना की, तब उसने और प्रेरितों ने संभवतः हालेल गाए। (मत्ती २६:२६-३०) ये यहोवा के स्तुति-गीत थे जो भजन संहिता में अभिलिखित हैं और फसह पर्व के सम्बन्ध में गाए जाते थे।—भजन ११३-११८.
झूठी उपासना का प्रभाव
तथाकथित अंधकार युग तक, धार्मिक संगीत शोकमय जप बनकर रह गया था। लगभग सा.यु. २०० में, क्लॆमॆन्ट ऑफ़ ऎलॆक्ज़ैन्ड्रिया ने कहा: “हमें एक वाद्य की ज़रूरत है: आराधना के शान्तिमय स्वर [की], वीणा या ढोल या बाँसुरी या तुरही [की] नहीं।” प्रतिबन्ध लगाए गए, गिरजा संगीत को कंठसंगीत तक सीमित किया गया। यह शैली जप या समस्वर-संगीत के नाम से जानी गयी। “कॉनस्टॆन्टीनोपल का निर्माण हुए चालीस साल भी नहीं हुए थे जब लाओडीसिया की परिषद् (३६७ ईसवी) ने उपासना पद्धति में वाद्यों और कलीसियाओं की सहभागिता वर्जित कर दी। रूढ़िवादी संगीत मात्र कंठसंगीत रहा है,” पुस्तक हमारी सांगीतिक विरासत (अंग्रेज़ी) कहती है। (तिरछे टाइप हमारे।) आरंभिक मसीहियत में इन प्रतिबन्धों का कोई आधार नहीं था।
अन्धकार युग में, बाइबल आम जनता के लिए एक बंद किताब थी। जिन मसीहियों ने बाइबल हासिल करने या पढ़ने की ज़ुर्रत की उन्हें सताया गया और यहाँ तक कि मार डाला गया। तो फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि परमेश्वर के स्तुति-गीत गाने की प्रथा उस अन्धकार युग में अधिकांशतः लुप्त हो गयी। आख़िरकार, यदि आम जनता को शास्त्र उपलब्ध नहीं था, तो वे कैसे जानते कि पूरी बाइबल का दसवाँ भाग गीत है? कौन उन्हें बताता कि परमेश्वर ने अपने उपासकों को आज्ञा दी है कि “यहोवा के लिये नया गीत गाओ, भक्तों की सभा में उसकी स्तुति गाओ”?—भजन १४९:१.
संगीत को उपासना में उसके सही स्थान पर वापस रखना
यहोवा के संगठन ने संगीत और गायन को उपासना में उनके उचित स्थान पर वापस रखने के लिए काफ़ी कुछ किया है। उदाहरण के लिए, ज़ायन्स वॉच टावर (अंग्रेज़ी) के फरवरी १, १८९६ अंक में केवल गीत थे। उसका शीर्षक था “सिय्योन के भोर के आनन्दमय गीत।”
वर्ष १९३८ में कलीसिया सभाओं में गायन को काफ़ी हद तक बंद कर दिया गया था। लेकिन, प्रेरितिक उदाहरण और निर्देशन पर चलने की बुद्धिमता जल्द ही प्रबल हुई। वर्ष १९४४ के ज़िला अधिवेशन में, एफ. डब्ल्यू. फ्रैंज़ ने यह भाषण दिया, “राज्य सेवा का गीत।” उसने दिखाया कि यहोवा के स्तुति-गीत मनुष्य की सृष्टि के बहुत पहले से परमेश्वर के स्वर्गीय प्राणियों द्वारा गाए जाते थे और कहा: “परमेश्वर के पार्थिव सेवकों द्वारा ऊँचे स्वर में गीत गाना उचित है और परमेश्वर को प्रसन्न करता है।” उपासना में गायन के तर्क को स्पष्ट करने के बाद, उसने साप्ताहिक सेवा सभाओं में प्रयोग के लिए राज्य सेवा गीत पुस्तक (अंग्रेज़ी) के रिलीज़ की घोषणा की।b फिर दिसम्बर १९४४ की इनफ़ॉर्मॆंट (अभी हमारी राज्य सेवकाई कहलाती है) ने घोषणा की कि दूसरी सभाओं में भी आरंभिक और समाप्ति गीत होंगे। गायन एक बार फिर यहोवा की उपासना का एक भाग बन गया।
‘अपने मन में यहोवा के साम्हने गाना’
हार्दिक गायन का महत्त्व पूर्वी यूरोप में और अफ्रीका में हमारे भाइयों द्वारा दिखाया गया है जिन्होंने सालों तक संकट और सताहट सही है। लोटार वैगनर ने कालकोठरी में सात साल बिताए। उसने कैसे सहा? “कई सप्ताह तक मैं ने राज्य गीतों के अपने भंडार को पूरा करने में ध्यान लगाया। जब मुझे बोल ठीक से मालूम नहीं होते तब मैं एक या दो कड़ी बना देता। . . . हमारे राज्य गीतों में प्रोत्साहक और उन्नतिदायक विचारों की क्या ही विपुलता है!”—यहोवा के साक्षियों की १९७४ वार्षिकी (अंग्रेज़ी), पृष्ठ २२६-८.
अपनी विश्वासी स्थिति के कारण कालकोठरी में पाँच सालों के दौरान, हैरल्ड किंग ने यहोवा के स्तुति-गीत लिखने और गाने से सांत्वना पायी। उसकी कई रचनाएँ अब यहोवा के साक्षियों द्वारा अपनी उपासना में प्रयोग की जाती हैं। गायन से जुड़ा आनन्द सहनशक्ति देता है। लेकिन परमेश्वर के स्तुति-गीत गाने के महत्त्व के बारे में विश्वस्त होने के लिए यह ज़रूरी नहीं होना चाहिए कि हमें सताहट सहनी पड़े।
यहोवा के सभी लोग गीत में आनन्द ले सकते हैं। जबकि हो सकता है कि मौखिक रूप से अपने भाव व्यक्त करने में हमें कुछ संकोच हो, फिर भी यहोवा के प्रति हमारी भावनाएँ खुलकर प्रकट की जा सकती हैं जब हम उन्हें गीत में व्यक्त करते हैं। प्रेरित पौलुस ने सूचित किया कि हम स्तुति-गीत गाने में कैसे आनन्द प्राप्त कर सकते हैं जब उसने मसीहियों को प्रबोधन दिया कि “आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करो, और अपने अपने मन में प्रभु [“यहोवा,” NW] के साम्हने गाते और कीर्त्तन करते रहो।” (इफिसियों ५:१९) जब हमारा हृदय आध्यात्मिक बातों से भरा होता है, तब हम गीत में उसे सशक्त रूप से व्यक्त करते हैं। सो उन्नत गायन की कुंजी है सही हार्दिक मनोवृत्ति।
यहोवा के साथ एक अच्छा सम्बन्ध रखना एक आनन्दमय आत्मा को बढ़ाता है, हमें यहोवा की स्तुति में बोलने, गाने, और जयजयकार करने के लिए प्रेरित करता है। (भजन १४६:२, ५) हम हृदय से उन बातों के बारे में गाते हैं जिनका हम आनन्द लेते हैं। और यदि हम गीत को या गीत की भावनाओं को पसन्द करते हैं, तो अति संभव है कि हम उसे सच्ची भावना के साथ गाएँगे।
एक व्यक्ति को भावना के साथ गाने के लिए ज़ोर से गाने की ज़रूरत नहीं। ज़ोर से गाना ज़रूरी नहीं कि अच्छी तरह गाने का तुल्य हो; न ही उसे अच्छा गायन कह सकते हैं जिसमें कोई सुर न सुनाई पड़े। स्वाभाविक गूँजवाली कुछ आवाज़ें अलग सुनाई पड़ सकती हैं जबकि गायन शायद मद्धिम हो। एक समूह में अच्छी तरह गाने की चुनौती का एक हिस्सा यह है कि सुर में सुर मिलाना सीखें। चाहे आप समस्वर में या एकस्वर में गा रहे हों, अपने पास के लोगों के स्वर से मिलाकर गाने से सुखद और सुस्वर गीत सुनायी पड़ता है। मसीही मर्यादा और एक सुननेवाला कान व्यक्ति को जोश के साथ गाने और फिर भी अपने स्वर से दूसरों के स्वर न दबाने के बीच संतुलन करने में मदद देते हैं। लेकिन, जो कौशल के साथ गाते हैं या जिनकी बहुत ही अच्छी आवाज़ है उन्हें खुलकर गाने से कभी निरुत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। एक मधुर आवाज़ यहोवा के स्तुति-गीत गा रही एक कलीसिया को बड़ा समर्थन दे सकती है।
हमारी सभाओं में गायन गीत के समस्वर हिस्सों को गाने के लिए भी एक उपयुक्त अवसर प्रदान करता है। जो बिना स्वर लिपि के गा सकते हैं या जो गीत-पुस्तक में स्वर लिपि पढ़ सकते हैं और उनको स्वर दे सकते हैं उन्हें प्रोत्साहन दिया जाता है कि गायन के साथ मिलकर गाएँ और संगीत की सुन्दरता में चार चाँद लगाएँ।c
कुछ लोग शायद कहें, ‘मैं ठीक सुर में नहीं गा सकता’ या ‘मेरी आवाज़ एकदम बेकार है; ऊँचा खींचने पर फट जाती है।’ इसलिए, गाते समय वे झिझकते हैं, राज्यगृह में भी। सच्चाई यह है कि यहोवा की स्तुति में उठी कोई आवाज़ उसके दृष्टिकोण से “बेकार” नहीं है। जैसे व्यक्ति का वाक् स्वर अभ्यास के साथ और ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल में दिए गए सहायक सुझावों का पालन करने के द्वारा सुधर सकता है, वैसे ही व्यक्ति का गायन भी सुधर सकता है। कुछ लोगों ने काम करते समय गुनगुनाने के द्वारा अपनी आवाज़ सुधारी है। गुनगुनाना स्वर का सुर ठीक करने में मदद देता है। और उपयुक्त समयों पर जब हम अकेले होते हैं या वहाँ काम कर रहे होते हैं जहाँ हम दूसरों को बाधा नहीं पहुँचाएँगे, राज्य गीत गाना आवाज़ के लिए एक उत्तम अभ्यास है और एक व्यक्ति को आनन्दमय, सहज मानसिक स्थिति में डालने का एक साधन है।
हम समूहनों में भी कुछ राज्य गीत गाने का प्रोत्साहन दे सकते हैं। ऐसा गायन, जिसके साथ एक वाद्य, जैसे गिटार या पियानो या संस्था की पियानो रिकॉर्डिंग बज रही हो, हमारे समूहनों को आध्यात्मिक लय देता है। यह उन गीतों को सीखने और कलीसिया सभाओं में उन्हें अच्छी तरह गाने के लिए भी सहायक होता है।
सभाओं में जोश के साथ गाने में कलीसियाओं को मदद देने के लिए, संस्था ने गीतों की संगीत रिकॉर्डिंग प्रदान की है। जब वह बजायी जाती है, तब उसे जो ध्वनि व्यवस्था को संभाल रहा है आवाज़ का ध्यान रखना चाहिए। यदि संगीत धीमा है तो कलीसिया खुलकर गाने में संकोच कर सकती है। जब ध्वनि व्यवस्था को संभालने वाला भाई कलीसिया के साथ-साथ गाता है, वह यह निश्चित करने में समर्थ होगा कि संगीत सहायक अग्रता कर रहा है या नहीं।
यहोवा के लिए गीत गाइए
गायन हमें अपने सृष्टिकर्ता को अपनी भावनाएँ बताने का अवसर देता है। (भजन १४९:१, ३) यह कोई भावात्मक आवेग नहीं, परन्तु हमारी स्तुति की एक नियंत्रित, उचित, और आनन्दपूर्ण अभिव्यक्ति है। कलीसिया गायन में हृदय से भाग लेना हमें होनेवाले कार्यक्रम के लिए सही मानसिक और हार्दिक स्थिति में ला सकता है और हमें यहोवा की उपासना में और अधिक भाग लेने के लिए प्रेरित कर सकता है। हालाँकि गायन का भावात्मक प्रभाव होता है, बोल भी हमें सिखाने का काम दे सकते हैं। इस प्रकार एकस्वर और समस्वर में अपनी भावनाएँ व्यक्त करने के द्वारा, हम दीनता और नम्रता से अपने हृदय को तैयार कर रहे होते हैं कि हम एकत्रित लोगों के रूप में एकसाथ सीख सकें।—भजन १०:१७ से तुलना कीजिए।
गायन हमेशा यहोवा की उपासना का एक हिस्सा रहेगा। इसलिए हमारे पास भजनहार की भावनाओं में सर्वदा भागी होने की प्रत्याशा है: “मैं जीवन भर यहोवा की स्तुति करता रहूंगा; जब तक मैं बना रहूंगा, तब तक मैं अपने परमेश्वर का भजन गाता रहूंगा।”—भजन १४६:२.
[फुटनोट]
a चारण-गीत एक संगीत रचना होती है जो बंधन के बिना अनेक भागों में विभाजित होती है। प्रायः चारण-गीतों में साहसी घटनाओं या पात्रों की प्रशंसा की जाती थी।
b पहला कुरिन्थियों १४:१५ यह संकेत देता प्रतीत होता है कि गायन प्रथम-शताब्दी मसीही उपासना का एक सामान्य पहलू था।
c हमारी वर्तमान गीत-पुस्तक, यहोवा के स्तुतिगीत गाइए (अंग्रेज़ी) के कुछ गीतों में उनके लाभ के लिए जो समस्वर भाग गाना पसन्द करते हैं, चार-भाग समस्वर शैली है। लेकिन, अनेक गीतों को पियानो के साथ गाने के लिए व्यवस्थित किया गया है और एक ऐसी सांगीतिक शैली दी गयी है जो धुनों के अंतरराष्ट्रीय उद्गमों को बनाए रखने का प्रयास करती है। सुनिश्चित चार-भाग संगीत-शैली के बिना लिखे गए गीतों के लिए समस्वर लिपि बनाने से सभाओं में हमारे गायन को एक सुखद प्रोत्साहन मिल सकता है।
[पेज 27 पर बक्स]
बेहतर गायन के लिए कुछ सुझाव
१. गीत-पुस्तक को हाथ में ऊपर उठाकर गाइए। यह व्यक्ति को ज़्यादा स्वाभाविक रूप से साँस लेने में मदद देता है।
२. हर मुखड़े की शुरूआत में गहरी साँस लीजिए।
३. जितना बड़ा मुँह व्यक्ति आराम से खोलता है शुरू में उससे थोड़ा और बड़ा खोलना स्वाभाविक रूप से आवाज़ को तेज़ करेगा और गूँज को बढ़ाएगा।
४. सबसे बढ़कर, गाए जा रहे गीत की भावनाओं पर ध्यान लगाइए।