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सजग होइए!–2005
g05 10/8 पेज 28-29

विश्‍व-दर्शन

“शरारती” बच्चे सुधर सकते हैं

द सिडनी मॉर्निंग हेरॆल्ड अखबार कहता है कि “प्राइमरी स्कूल जानेवाले कई शरारती बच्चे उम्र के साथ-साथ सुधर जाते हैं। वे बड़े होकर समझदार नौजवान बन सकते हैं।” परिवारों पर अध्ययन करनेवाले ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट ने 11 या 12 साल के ऐसे 178 बच्चों के विकास का अध्ययन किया जिनमें यहाँ बताए लक्षणों में से तीन या ज़्यादा लक्षण मौजूद थे। जैसे, “मारपीट करना, बात न मानना, संयम की कमी होना, किसी काम में ज़्यादा देर तक ध्यान न दे पाना, एक जगह शांत या चुप न बैठना, और तुनक मिज़ाज या चिड़चिड़ा होना।” छः साल बाद, उनमें से 100 बच्चों का बर्ताव “बिलकुल वैसा था जैसा अच्छे बच्चों का होता है।” किस बात ने उन्हें सुधरने में मदद दी? रिपोर्ट कहती है: “अगर बच्चे दूसरे बागी बच्चों की सोहबत में न रहें, [और] अगर उनके माँ-बाप उन पर निगरानी रखें तो वे आगे चलकर खुश-मिज़ाज किशोर बनेंगे।” (g05 8/8)

तंबाकू से पूरे शरीर को नुकसान

न्यू साइंटिस्ट पत्रिका रिपोर्ट करती है: “धूम्रपान करनेवाले सिर्फ अपने फेफड़ों और धमनियों को ही खतरे में नहीं डालते: इससे उनके शरीर के सभी अंगों को नुकसान पहुँचता है।” अमरीका के एक सर्जन जनरल, रिचर्ड एच. कार्मोना ने अपनी एक रिपोर्ट में ऐसी दर्जनों बीमारियों की सूची दी जो तंबाकू का सेवन करने से होती हैं। जैसे, निमोनिया, लूकीमीया, मोतियाबिंद, मसूड़ों का रोग, और गुर्दे, गर्भाशय, पेट और पैंक्रियाज़ (अग्न्याशाय) का कैंसर। कार्मोना का कहना है: “सिगरेट पीना, सेहत के लिए अच्छा नहीं, यह तो हम सालों से जानते हैं। मगर यह रिपोर्ट दिखाती है कि हम धूम्रपान के बारे में जितना जानते थे, यह उससे कई गुना ज़्यादा नुकसान पहुँचाता है। सिगरेट के धुएँ से निकलनेवाले ज़हरीले पदार्थ शरीर के उन सभी अंगों में जाते हैं जहाँ-जहाँ खून जाता है।” जो लोग सोचते हैं कि ऐसी सिगरेट पीने से वे नुकसान से बच सकते हैं जिनमें टार और निकोटीन की मात्रा कम होती है, तो कार्मोना का कहना है: “ऐसी कोई सिगरेट नहीं है जो शरीर को नुकसान न पहुँचाए।” उन्होंने यह भी कहा कि धूम्रपान न करनेवालों के मुकाबले धूम्रपान करनेवालों की 13 से 14 साल पहले मौत हो जाती है। द न्यू यॉर्क टाइम्स्‌ अखबार की रिपोर्ट में कार्मोना कहते हैं कि “धूम्रपान से शरीर का लगभग हर अंग किसी रोग का शिकार होता है और हर उम्र के लोगों में ऐसा होता है।” (g05 9/22)

हथियारों को पीटकर खेल-कूद की चीज़ें बनाना

ब्राज़ील में एक अभियान चलाया गया जिसका मकसद था ब्राज़ीलवासियों के पास मौजूद हथियारों को कम करना। जिन लोगों ने खुद अपने हथियार दे दिए, उन्हें हर एक हथियार के लिए 30 डॉलर से लेकर 100 डॉलर (या, 1,350 रुपए से 4,500 रुपए) तक मुआवज़ा दिया गया। फोल्या ऑनलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2004 के जुलाई से दिसंबर तक इस देश में 2,00,000 से भी ज़्यादा हथियार इकट्ठे किए गए। साओ पोलो राज्य में इकट्ठा किए गए हथियारों को तोड़ा गया, पिघलाया गया और फिर उनसे बच्चों के लिए खेलने की चीज़ें बनाकर शहर के पार्क में लगाया गया। अब इस पार्क में एक सी-सॉ, झूले और एक स्लाइड है जो इन्हीं हथियारों को पिघलाकर बनाए गए हैं। न्यायमंत्री मारस्यू टुमास बासटॉस ने कहा: “हथियार कम करने के इस अभियान का एक खास मकसद है, लोगों के दिलों में शांति का बीज बोना।” (g05 9/22)

शादी में घोटाला

जोहैनसबर्ग शहर का अखबार, सोवेटन रिपोर्ट करता है कि दक्षिण अफ्रीका में 3,000 से ज़्यादा स्त्रियों की “शादी” धोखे से करा दी गयी है। एक घोटाले में स्त्रियों ने नौकरी का कॉन्ट्रैक्ट समझकर कागज़ात पर दस्तखत किया, मगर दरअसल वह शादी का सर्टिफिकेट था। इस सर्टिफिकेट से विदेशी “दूल्हे” को हमेशा के लिए देश में रहने की इजाज़त मिल जाती है। “दुलहन” को इस चालबाज़ी का पता तब चलता है जब वह अपने खोए पहचान पत्र के बदले नया बनाने के लिए अर्ज़ी भरती है और पाती है कि कागज़ात में उसका उपनाम कुछ और ही दिया हुआ है। या फिर, जब वह अपनी असली शादी के दिन रजिस्टर करवाने जाती है और वहाँ उसे पता चलता है कि कागज़ात के मुताबिक वह पहले से शादीशुदा है! धोखे से की गयी “शादी” को खारिज करना बड़ा पेचीदा काम हो सकता है। फिर भी, करीब 2,000 स्त्रियाँ इस तरह की शादियों को रद्द करने में कामयाब हुई हैं। इस घोटाले से लड़ने के लिए एक नया कानून जारी किया गया है। इसके मुताबिक विदेशी पति या पत्नी, शादी के पाँच साल बाद ही देश में हमेशा के लिए रहने की अर्ज़ी भर सकते हैं। (g05 5/22)

मन बहलाव के लिए पढ़ने से अच्छे अंक मिलते हैं

मेक्सिको सिटी का मीलेनयो अखबार रिपोर्ट करता है कि बच्चे “घंटों बैठकर पढ़ाई करने, माता-पिता के सिखाने, क्लास के नोट्‌स या फिर कंप्यूटर का इस्तेमाल करने” से ज़्यादा, मन बहलाव के लिए पढ़ने से अच्छे अंक पाते हैं। हाई स्कूल दाखिले की लाखों परीक्षाओं से पता चलता है कि जो विद्यार्थी अपने स्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ मन बहलाव के लिए भी पढ़ते हैं, उनके स्कूल में सफलता पाने की गुंजाइश ज़्यादा रहती है। यह ज़रूरी नहीं कि जो किताबें विद्यार्थी पढ़ने के लिए चुनते हैं वे सिर्फ स्कूल के विषयों के बारे में ही हों। वे बस मज़े के लिए ऐसी किताबें भी पढ़ सकते हैं, जैसे जीवन-कहानियों की, कविताओं या विज्ञान की किताबें। दूसरी तरफ, रिपोर्ट बताती है कि जो विद्यार्थी किताबें पढ़ने के बजाय घंटों टी.वी. देखते हैं, उन्हें स्कूल में कम अंक मिलने की गुंजाइश है। (g05 8/8)

भूटान ने लगायी तंबाकू की बिक्री पर पाबंदी

भारत और चीन देश के बीच हिमालय में बसे, भूटान के राज्य ने तंबाकू से बनी सभी चीज़ों पर पाबंदी लगा दी है। यह पाबंदी विदेशी राजदूतों, सैलानियों या जो गैरसरकारी संगठनों के लिए काम करते हैं, उन पर लागू नहीं होती। माना जाता है कि भूटान दुनिया का ऐसा पहला देश है जिसने यह कदम उठाया है। सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान करना भी मना है। बी.बी.सी. न्यूज़ का कहना है कि “सरकार की कोशिश यही है कि भूटान धूम्रपान की जकड़ से आज़ाद हो, इसलिए यह पाबंदी उन कोशिशों में से एक है।” (g05 8/22)

नींद समस्याओं को सुलझाने में हमारी मदद करती है

लंदन का अखबार, द टाइम्स कहता है कि “कई लोगों ने पाया है कि जो समस्या सोने से पहले नहीं सुलझती, वह सुबह बिलकुल मामूली-सी लगती है, मानो हमारा दिमाग रात-भर उसे सुलझाने की कोशिश करता रहा हो।” जर्मनी के वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने इस बात के सच होने के सबूत ढूँढ़ निकाले हैं और उन सबूतों को नेचर नाम की पत्रिका में प्रकाशित किया है। उन्होंने 66 लोगों को गणित का एक सवाल हल करने के दो तरीके सिखाए मगर सही जवाब पाने का तीसरा आसान-सा तरीका नहीं सिखाया। फिर उनमें से कुछ लोगों को सोने दिया गया जबकि दूसरों को रात-भर या दिन-भर जगाए रखा। इस अध्ययन के बारे में लंदन के द डेली टेलिग्राफ ने कहा: “नींद ने तो कमाल कर दिया!” जो सोकर उठे थे उनके मामले में “यह गुंजाइश दुगुनी थी कि वे तीसरा फार्मूला ढूँढ़ निकाल पाएँ जबकि जो नहीं सोए थे वे जवाब ढूँढ़ने में नाकाम रहे।” ऐसा अच्छा नतीजा निकलने की वजह यह नहीं थी कि जो सो गए थे वे अब ताज़ा महसूस कर रहे थे। यह बात साबित करने के लिए वैज्ञानिकों ने दूसरा परीक्षण किया। उन्होंने दोनों समूहों को रात की पूरी नींद के बाद सुबह एक सवाल हल करने के लिए दिया या रात को सवाल दिया जब वे दिन-भर जागते रहे थे। इस बार दोनों समूहों में कोई फर्क नहीं था। द टाइम्स कहता है कि इससे यह साबित हो जाता है कि “हमारे दिमाग के आराम करने से फर्क नहीं पड़ता बल्कि जब हम सोते हैं तो हमारे दिमाग को फिर से व्यवस्थित होने और सँभलने का मौका मिलता है और इसी का यह अच्छा नतीजा है।” आखिर में शोधकर्ता डॉ. उलरिख वैगनर कहते हैं: “इस तरह, सोते वक्‍त भी सीखने का काम एक अलग अंदाज़ में जारी रहता है।” (g05 9/8)

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