वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • g 10/08 पेज 14
  • आपकी स्वाद की इंद्री

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • आपकी स्वाद की इंद्री
  • सजग होइए!–2008
  • मिलते-जुलते लेख
  • “परखकर देखो कि यहोवा कितना भला है”
    गीत गाकर यहोवा की “जयजयकार करें”
सजग होइए!–2008
g 10/08 पेज 14

क्या इसे रचा गया था?

आपकी स्वाद की इंद्री

◼ मनपसंद खाने का एक कौर मुँह में रखते ही, हम कह उठते हैं: ‘वाह, क्या स्वाद है!’ मगर क्या आप जानते हैं कि हमारी स्वाद की इंद्री कैसे काम करती है?

ज़रा सोचिए: आपकी जीभ, साथ ही आपके मुँह और गले के दूसरे भागों में त्वचा की कोशिकाओं के गुच्छे पाए जाते हैं, जिन्हें स्वाद कलिकाएँ कहा जाता है। इनमें से कई कलिकाएँ जीभ की सतह, यानी अंकुरकों (पैपिला) के अंदर पायी जाती हैं। एक स्वाद कलिका में सैकड़ों ग्राही कोशिकाएँ होती हैं और हर ग्राही कोशिका हमें चार स्वादों में से एक को पहचानने में मदद देती है। ये चार स्वाद हैं: खट्टा, नमकीन, मीठा और कड़वा।a मगर इन कलिकाओं से मसालेदार और तीखे स्वाद का पता नहीं चलता। क्योंकि इन स्वादों से पीड़ाग्राही कोशिकाएँ (यानी दर्द का एहसास करानेवाली ग्राही कोशिकाएँ) उत्तेजित होती हैं। चार स्वाद बतानेवाली ग्राही कोशिकाएँ, संवेदी तंत्रिका से जुड़ी होती हैं। जब खाने में पाए जानेवाले रसायन इस तंत्रिका को उत्तेजित करते हैं, तो यह तंत्रिका फौरन दिमाग के निचले हिस्से को सूचना भेजती है।

लेकिन स्वाद लेने में सिर्फ हमारा मुँह ही नहीं, बल्कि और भी दूसरे अंग मदद देते हैं। जैसे, हमारी नाक। हमारी नाक में 50 लाख गंध लेनेवाले ग्राही होते हैं। इन ग्राहियों की मदद से हम करीब 10,000 अलग-अलग गंधों का पता लगा पाते हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि हम जो ज़ायका लेते हैं वह करीब 75 प्रतिशत, सूंघने की वजह से होता है।

वैज्ञानिकों ने नाक की नकल करते हुए इलैक्ट्रोकैमिकल नाक की ईजाद की है। यह एक ऐसी मशीन है, जिसमें अलग-अलग रासायनिक गैसों को पहचानने के सेंसर लगाए गए हैं। मगर तंत्रिकाक्रिया-वैज्ञानिक, जॉन कॉएर रिसर्च/पेन स्टेट किताब में कहते हैं: “इंसान कुदरत की रचनाओं की नकल करके चाहे कितनी ही बढ़िया-से-बढ़िया मशीनें क्यों न तैयार कर ले, मगर वे मशीन कुदरती चीज़ों के आगे मामूली ही होंगी। क्योंकि कुदरत की रचनाएँ बहुत ही जटिल और लाजवाब होती हैं।”

इस बात को कोई नहीं झुठला सकता कि स्वाद की इंद्री की वजह से खाने का मज़ा बढ़ जाता है। मगर खोजकर्ता इस बात को लेकर अभी-भी चक्कर में पड़े हुए हैं कि आखिर क्यों एक इंसान को एक स्वाद पसंद आता है, तो दूसरे को दूसरा? इंटरनेट पर उपलब्ध पत्रिका, साइंस डेली कहती है: “विज्ञान ने भले ही यह पता लगा लिया हो कि इंसान का शरीर कैसे काम करता है, मगर हमारे स्वाद और सूंघने की इंद्रियों के बारे में अब भी ऐसी बहुत-सी बातें हैं, जो उनके लिए रहस्य बनी हुई हैं।”

आपको क्या लगता है? आपकी स्वाद की इंद्री इत्तफाक से आयी है? या फिर यह किसी बुद्धिमान सिरजनहार के हाथों की कारीगरी है? (g 7/08)

[फुटनोट]

a हाल के कुछ सालों में कई वैज्ञानिकों ने उमामी को स्वादों की सूची में शामिल किया है। उमामी का मतलब है, माँस का स्वाद और चटपटा स्वाद। ये स्वाद, प्रोटीन में पाए जानेवाले ग्लूटैमिक एसिड के लवणों से पैदा होते हैं। एक लवण है, अजीनो मोटो (मोनोसोडियम ग्लूटैमेट), जो खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

[पेज 14 पर रेखाचित्र/तसवीर]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

जीभ का एक हिस्सा

[रेखाचित्र]

अंकुरक

[चित्र का श्रेय]

© Dr. John D. Cunningham/Visuals Unlimited

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें