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  • हमदर्दी रखिए
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सजग होइए!—2020
g20 अंक 3 पेज 6-7
एक सिख और एक गोरा आदमी हवाई जहाज़ में एक-साथ बैठे हैं। वे आपस में बात कर रहे हैं और खुश नज़र आ रहे हैं।

हमदर्दी रखिए

समस्या की जड़

अगर हम सिर्फ यह देखें कि दूसरों के तौर-तरीके हमसे कितने अलग हैं, तो हो सकता है कि हमें उनमें सिर्फ खामियाँ ही नज़र आएँ या हम खुद को उनसे बेहतर समझने लगें। इस तरह सोचने से हमारे अंदर नफरत की भावना घर कर लेगी और हम लोगों से हमदर्दी नहीं रख पाएँगे।

पवित्र शास्त्र की सलाह

“खुशी मनानेवालों के साथ खुशी मनाओ, रोनेवालों के साथ रोओ।”​—रोमियों 12:15.

इससे हम क्या सीखते हैं? हमें लोगों से हमदर्दी रखनी चाहिए। हमें उनकी भावनाएँ समझनी चाहिए और फिर वैसा ही महसूस करना चाहिए।

हमदर्दी क्यों रखें?

जब हम लोगों की भावनाओं को समझेंगे, तब हमें एहसास होगा कि दूसरे हमसे इतने भी अलग नहीं हैं। हम समझ पाएँगे कि वे भी हमारी तरह ही महसूस करते हैं और जैसे हम पेश आते हैं, वैसे ही वे भी पेश आते हैं। अगर हम उन्हें समझने की कोशिश करें, तो हम देख पाएँगे कि वे हमारे जैसे ही हैं, फिर चाहे वे किसी भी जाति, भाषा या रंग के क्यों न हों। ऐसा करने से हम उनके बारे में बुरा नहीं सोचेंगे।

अगर हमें लोगों से हमदर्दी हो, तो हम उन्हें नीची नज़र से नहीं देखेंगे। अफ्रीका की रहनेवाली ऐन-मेरी बताती है कि एक समय पर वह ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती थी जिन्हें नीची जात का माना जाता था। वह कहती है, “जब मैंने देखा कि वे लोग कितनी तकलीफें झेल रहे हैं, तो मैंने सोचा कि अगर मैं उनके परिवार में पैदा हुई होती, तो मुझे कैसा लगता। तब मुझे एहसास हुआ कि मैं किसी भी मायने में उनसे बढ़कर नहीं हूँ। यह तो बस इत्तफाक की बात थी कि मैं इस परिवार में पैदा हुई और वे उस परिवार में। मैंने ऐसा कोई बड़ा तीर नहीं मारा था कि मैं घमंड करूँ।” अगर हम यह समझने की कोशिश करें कि दूसरों पर क्या बीतती है, तो हम उनके बारे में गलत राय नहीं कायम करेंगे, बल्कि उनसे हमदर्दी रखेंगे।

आप क्या कर सकते हैं?

सोचिए कि आपमें और उस समाज के लोगों में क्या बात एक-जैसी है। जैसे सोचिए, उन्हें कैसा लगता होगा जब वे . . .

अगर हम लोगों की भावनाएँ समझने की कोशिश करें, तो हम देख पाएँगे कि वे हमारे जैसे ही हैं

  • अपने परिवार के साथ बैठकर खाना खाते हैं

  • दिन-भर काम करके घर लौटते हैं

  • अपने दोस्तों के साथ वक्‍त बिताते हैं

  • अपने मन-पसंद गाने सुनते हैं

फिर सोचिए कि अगर आप उनकी जगह होते, तो आपको कैसा लगता। जैसे, आप सोच सकते हैं:

  • ‘अगर कोई मेरी बेइज़्ज़ती करता, तो मैं क्या करता?’

  • ‘अगर कोई मुझे बगैर जाने, मेरे बारे में गलत राय कायम करता, तो मुझे कैसा लगता?’

  • ‘अगर मैं उस समाज का होता, तो मैं क्या चाहता, लोग मेरे साथ कैसा व्यवहार करें?’

वही सिख और गोरा आदमी एक-दूसरे को अपने-अपने परिवार की, ऑफिस की और उन्हें जो खेल-कूद पसंद है, उसकी तसवीरें दिखा रहे हैं।

बदली सोच, बदली ज़िंदगी: रॉबर्ट (सिंगापुर)

“पहले मैं सोचता था कि बधिर लोग अजीब-से होते हैं, उनमें समझ नहीं होती और वे किसी भी बात का बहुत जल्दी बुरा मान जाते हैं। इस वजह से मैं उनसे दूर ही रहता था। लेकिन मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि मैं उनसे भेदभाव कर रहा हूँ, क्योंकि मैं ये बातें सिर्फ अपने मन में सोच रहा था। मैंने कभी बधिर लोगों के साथ बुरा व्यवहार नहीं किया था।”

“अब मैं बधिर लोगों को समझता हूँ, इसलिए उनसे भेदभाव नहीं करता। पहले मुझे लगता था कि बधिर लोग समझदार नहीं होते, क्योंकि जब मैं उनसे बात करता था, तो उनके चेहरे पर कोई भाव नज़र नहीं आते थे। फिर मैंने सोचा, अगर कोई मुझसे बात कर रहा होता और मुझे उनकी बात सुनायी नहीं देती, तो मेरी भी तो शक्ल वैसी ही हो जाती। अगर मैंने कान में मशीन भी लगायी होती, तब भी मेरे लिए उनकी बात समझना मुश्‍किल होता।”

“जब मैंने खुद को उनकी जगह रखकर सोचा, तो मैं अपने दिल से भेदभाव निकाल पाया।”

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