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  • g20 अंक 3 पेज 8-9
  • दूसरों की खूबियों पर ध्यान दीजिए

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  • दूसरों की खूबियों पर ध्यान दीजिए
  • सजग होइए!—2020
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सजग होइए!—2020
g20 अंक 3 पेज 8-9
तसवीरें: 1. एक पति-पत्नी सड़क पर चल रहे हैं और जल्दी में हैं। एक नेत्रहीन औरत अचानक उनके सामने आ जाती है इसलिए वे चिढ़ गए हैं। 2. बाद में वही पति-पत्नी एक कार्यक्रम में उस नेत्रहीन औरत को साज़ बजाते हुए सुन रहे हैं और उसकी तारीफ कर रहे हैं।

दूसरों की खूबियों पर ध्यान दीजिए

समस्या की जड़

घमंड को भेदभाव में बदलते देर नहीं लगती। एक घमंडी इंसान खुद को दूसरों से बेहतर समझता है। ऐसी सोच किसी पर भी हावी हो सकती है। एक जानी-मानी किताब में लिखा है: “करीब-करीब हर समाज के लोगों का मानना है कि उनके तौर-तरीके, खान-पान, पहनावा, आदतें और उसूल दूसरे समाज के लोगों से बेहतर हैं।” हमें ध्यान रखना चाहिए कि हममें ऐसी सोच न पनपने लगे।

पवित्र शास्त्र की सलाह

“नम्रता से दूसरों को खुद से बेहतर समझो।”​—फिलिप्पियों 2:3.

इससे हम क्या सीखते हैं? अगर हम नम्र बने रहें, तो हम घमंड नहीं करेंगे। एक नम्र इंसान जानता है कि दूसरे किसी-न-किसी मायने में उससे बेहतर हैं। ऐसा कोई समाज नहीं जिसमें खूबियाँ ही खूबियाँ हों और कोई खामी न हो।

ज़रा स्टेफान नाम के व्यक्‍ति पर ध्यान दीजिए। उसे अपने देश की सरकार पर बहुत गर्व था और वह दूसरे देशों की सरकारों से नफरत करता था। लेकिन उसने अपनी सोच बदली। वह बताता है, “अगर हम दूसरों को खुद से बेहतर समझें, तो हम उनसे भेदभाव नहीं करेंगे। ऐसा नहीं है कि हम ही सबकुछ जानते हैं और दूसरे कुछ भी नहीं। सब में कोई-न-कोई खूबी होती है।”

आप क्या कर सकते हैं?

यह मत भूलिए कि आपमें भी खामियाँ हैं। जिन मामलों में आप कमज़ोर हैं, हो सकता है अगला व्यक्‍ति उनमें आपसे कई गुना बेहतर हो। यह मत सोचिए कि किसी समाज के हर व्यक्‍ति में एक-जैसी खामियाँ हैं।

किसी समाज के व्यक्‍ति के बारे में गलत राय कायम करने से पहले सोचिए:

हो सकता है कुछ मामलों में दूसरे आपसे बेहतर हों

  • ‘क्या वह सच में बुरा है या बस मुझसे अलग है?’

  • ‘क्या उसे भी मेरी कुछ बातें बुरी लगती होंगी?’

  • ‘ऐसे कौन-से काम हैं, जो वह मुझसे ज़्यादा अच्छी तरह करता है?’

अगर आप इन सवालों के बारे में सोचें, तो आप देख पाएँगे कि सामनेवाले में कई खूबियाँ हैं और उससे भेदभाव नहीं करेंगे।

बदली सोच, बदली ज़िंदगी: नेल्सन (अमरीका)

“मैं ऐसी जगह पला-बढ़ा जहाँ ज़्यादातर लोग एक ही जाति के थे। जब मैं 19 साल का हुआ, तो एक बड़े शहर चला गया और वहाँ एक फैक्टरी में नौकरी करने लगा। मैं जहाँ काम करता था और रहता था, वहाँ के लोग अलग-अलग जाति के थे।”

“वक्‍त के चलते काम की जगह पर मेरे कई दोस्त बन गए। मुझे एहसास हुआ कि एक इंसान के रंग, उसकी मातृ-भाषा और उसके देश से उसके स्वभाव को नहीं आँका जा सकता। आप सिर्फ उसे देखकर यह नहीं कह सकते कि उसकी सोच कैसी है या वह कितना मेहनती और भरोसेमंद है।”

“बाद में मैंने एक ऐसी लड़की से शादी की जो मेरे देश और जाति की नहीं थी। बीते कुछ सालों में हमने अलग-अलग तरह के खाने और संगीत का मज़ा लिया है। हालाँकि सबमें कोई-न-कोई खामी होती है, लेकिन मैं उनकी अच्छाइयों पर ध्यान देने की कोशिश करता हूँ। सोच बदलने से मेरी ज़िंदगी बदल गयी!”

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