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सजग होइए!—2020
g20 अंक 3 पेज 10-11
अलग-अलग जाति की चार औरतें पार्क में बातें कर रही हैं और हँस रही हैं और उनके बच्चे एक-साथ खेल रहे हैं।

दोस्ती का दायरा बढ़ाइए

समस्या की जड़

कुछ लोग किसी एक समाज के लोगों से ज़्यादा मेल-जोल नहीं रखते, क्योंकि वे उन्हें पसंद नहीं करते। ऐसा करने से उनके अंदर भेदभाव और भी जड़ पकड़ लेता है। अगर हम सिर्फ ऐसे लोगों से दोस्ती करें जो हमारे जैसे हैं, तो हमें लग सकता है कि हमारे काम करने या सोचने का तरीका ही सही है।

पवित्र शास्त्र की सलाह

“अपने दिलों को बड़ा करो।”​—2 कुरिंथियों 6:13.

इससे हम क्या सीखते हैं? यहाँ दिल का मतलब हमारे जज़्बात या हमारी पसंद-नापसंद हो सकता है। अगर हम सिर्फ ऐसे लोगों से दोस्ती करें जिनकी पसंद-नापसंद हमारे जैसी हो, तो हम कुएँ के मेंढक बनकर रह जाएँगे। इस वजह से हमें अपनी दोस्ती का दायरा बढ़ाना चाहिए। हमें उन लोगों से भी दोस्ती करनी चाहिए जिनकी भाषा या संस्कृति हमसे अलग है।

दोस्ती का दायरा क्यों बढ़ाएँ?

जब हम लोगों से अपनी जान-पहचान बढ़ाते हैं, तब हम समझ पाते हैं कि क्यों उनके तौर-तरीके हमसे अलग हैं। धीरे-धीरे हम दोस्त बन जाते हैं, फिर ये छोटी-मोटी बातें हमारी दोस्ती के आड़े नहीं आतीं। जब उनके साथ कुछ अच्छा होता है, तो हमें खुशी होती है। जब वे उदास होते हैं, तो हम भी उदास हो जाते हैं।

नैज़री नाम की औरत बताती है कि उसे पहले ऐसे लोग पसंद नहीं थे, जो उसके देश में आकर बस गए थे। लेकिन फिर उसने अपनी सोच बदली। वह कहती है, “मैंने उनके साथ वक्‍त बिताया और उनके साथ काम किया। हालाँकि मैंने उनके बारे में तरह-तरह की बातें सुनी थीं, पर वे वैसे बिलकुल नहीं थे। जब हम अलग-अलग समाज के लोगों से दोस्ती करते हैं, तो हम देख पाते हैं कि हर एक व्यक्‍ति अनोखा होता है। जब हम उन्हें जानने लगते हैं, तो हमारी दोस्ती और भी गहरी हो जाती है।”

ज़रा सँभलकर

दोस्ती का दायरा बढ़ाना अच्छा है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम किसी से भी दोस्ती कर लें। कुछ लोगों की बुरी आदतें होती हैं। अगर हम उनसे मेल-जोल रखें, तो हमें भी वे आदतें लग सकती हैं। ऐसे लोगों से दूर रहने का मतलब यह नहीं कि हम उनसे भेदभाव कर रहे हैं या उनसे नफरत करते हैं। हम बस उनकी बुरी आदतें अपनाना नहीं चाहते, इसलिए भलाई इसी में होगी कि हम उनसे दोस्ती न करें।​—नीतिवचन 13:20.

आप क्या कर सकते हैं?

उन लोगों से बात कीजिए जो दूसरे देश से आए हैं, दूसरी जाति के हैं या दूसरी भाषा बोलते हैं।

  • उनसे कहिए कि वे अपने बारे में आपको कुछ बताएँ।

  • उन्हें अपने यहाँ खाने पर बुलाइए।

  • उनसे उनके किस्से-कहानियाँ सुनिए और जानिए कि उन्हें क्या बातें पसंद हैं।

अगर हम यह समझने की कोशिश करें कि उनके हालात ने उन्हें ऐसा बना दिया है, तो हम उनसे दूरियाँ बनाने के बजाय दोस्ती का हाथ बढ़ाएँगे।

बदली सोच, बदली ज़िंदगी: कंदासामी और सुक्कमाह (कनाडा)

“हम दक्षिण अफ्रीका में पले-बढ़े थे। उन दिनों वहाँ रंग के आधार पर भेदभाव किया जाता था। इस वजह से श्‍वेत-अश्‍वेत लोगों को अलग-अलग जगह रहना पड़ता था। गोरे लोग हमें नीची नज़र से देखते थे, इसलिए हम उनसे नफरत करते थे। हमें इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि हम उनसे भेदभाव कर रहे हैं, उलटा हमें लगता था कि वे हमसे भेदभाव कर रहे हैं।”

“अपनी इस गलत सोच को बदलने के लिए हमने सोचा कि क्यों न हम अलग-अलग संस्कृति के लोगों से दोस्ती करें। जब हमने कुछ गोरे लोगों से जान-पहचान बढ़ायी, तो हमें एहसास हुआ कि हमारे बीच ज़्यादा फर्क नहीं है। हम सबकी ज़िंदगी लगभग एक-जैसी ही होती है और हम सब एक-जैसी ही मुश्‍किलों का सामना करते हैं।”

“हमने काफी समय तक एक पति-पत्नी को अपने घर में ठहराया जो गोरे थे। कुछ ही समय में हम अच्छे दोस्त बन गए और इस तरह हमारे मन में गोरों के लिए नफरत की जो आग थी, वह हमेशा के लिए बुझ गयी।”

दुश्‍मन बने भाई

जॉनी और गिडियन यहोवा के साक्षियों के राज-घर के बाहर बच्चों से हाथ मिला रहे हैं।

गिडियन गोरा है और जॉनी काला। एक समय पर उनके विचार भी एक-दूसरे से बिलकुल अलग थे। लेकिन आज वे दोनों अच्छे दोस्त हैं। यह कैसे हुआ?

जॉनी और गिडियन: पहले थे दुश्‍मन, अब हैं भाई  नाम का वीडियो देखें। इसके लिए jw.org पर जाएँ और खोजें बक्स में इसका शीर्षक टाइप करें।

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