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अध्ययन ११

भाषण का सुसंगत विकसन

१-३. संगतता का एक भाषण में क्या महत्त्व है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है?

एक सुसंगत भाषण एक ऐसा भाषण होता है जिसे श्रोतागण आसानी से समझ सकते हैं। दूसरी ओर, यदि संगतता की कमी हो तो उनका ध्यान जल्द ही हट जाएगा। स्पष्टतः यह एक ऐसा विषय है जिस पर भाषण तैयार करते वक़्त गंभीर विचार करने की ज़रूरत है; अतः “संयोजकों द्वारा संगतता” आपके ध्यानपूर्ण विचार के योग्य होने के नाते भाषण सलाह परची में शामिल किया गया है।

२ संगतता का अर्थ है आंतरिक गठजोड़, भागों का एक ऐसा मज़बूत गठन कि वे एक तर्कसंगत, पूर्ण भाषण बने। कभी-कभी यह मात्र जिस तर्कसंगत क्रम में भागों को संगठित किया गया है उसी से काफ़ी हद तक निष्पन्‍न होता है। लेकिन अनेक भाषणों में ऐसे भाग होते हैं जिन्हें मात्र विषय की सरल व्यवस्था से ज़्यादा जोड़ने की ज़रूरत है। ऐसे मामलों में संगतता एक मुद्दे से दूसरे मुद्दे तक एक पुल की माँग करती है। नए विचारों का उनके पहले के विचारों से सम्बन्ध दिखाने के लिए शब्दों या वाक्यांशों का इस्तेमाल किया जाता है और इस प्रकार वे समय या विचार के बदलने की वजह से हुए अन्तरालों को भरते हैं। यह संयोजकों द्वारा संगतता है।

३ उदाहरण के लिए, आपके भाषण की प्रस्तावना, मुख्य भाग और समाप्ति, भाषण के अलग-अलग भाग हैं जो एक दूसरे से भिन्‍न हैं, लेकिन उन्हें परिवर्तकों से अच्छी तरह गठित होना चाहिए। इसके अलावा, मुख्य मुद्दों को एक भाषण में एक साथ जुड़ा हुआ होना चाहिए, ख़ासकर यदि उनके विचार एक दूसरे से सीधे सम्बन्धित नहीं हैं। या कभी-कभी वह मात्र वाक्य या अनुच्छेद होंगे जिन्हें संयोजकों की ज़रूरत हो।

४-७. परिवर्तक अभिव्यक्‍तियों के इस्तेमाल का क्या अर्थ है?

४ परिवर्ती अभिव्यक्‍तियों का इस्तेमाल। सम्बन्ध जोड़नेवाले शब्दों या वाक्यांशों के उचित इस्तेमाल से ही अकसर विचारों के बीच एक पुल बाँधा जा सकता है। इनमें से कुछ हैं: साथ ही, इसके अलावा, इसके अतिरिक्‍त, इसके सिवा(य), उसी प्रकार, समान रूप से, अतः, इन कारणों से, इसलिए, इसे ध्यान में रखते हुए, सो, सो फिर, उसके बाद, लेकिन, दूसरी ओर, इसके विपरीत, उसकी विषमता में, इससे पहले, अब तक, इत्यादि। ऐसे शब्द प्रभावकारी रीति से वाक्यों और अनुच्छेदों को जोड़ते हैं।

५ लेकिन, भाषण का यह गुण ऐसे सरल संयोजकों से अधिक की माँग करता है। जब मात्र एक शब्द या वाक्यांश पर्याप्त न हो तो एक परिवर्तक की ज़रूरत है जो श्रोतागण को उस अन्तर से पार करके दूसरी ओर ले जाएगा। यह एक पूरा वाक्य या यहाँ तक कि एक अधिक पूर्णतः व्यक्‍त परिवर्तक विचार का शामिल करना हो सकता है।

६ एक तरीक़ा जिससे ऐसे अन्तर भरे जा सकते हैं वह है पहले मुद्दे के अनुप्रयोग को दूसरे मुद्दे की प्रस्तावना का भाग बनाने की कोशिश करना। अकसर यह हमारे घर-घर की प्रस्तुतियों में किया जाता है।

७ इसके अलावा, न केवल क्रमिक मुद्दों को एक साथ जोड़ा जाना चाहिए, परन्तु कभी-कभी भाषण में दूर-दूर के मुद्दों को भी जोड़ा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, भाषण की समाप्ति को उसकी प्रस्तावना से जुड़ा हुआ होना चाहिए। शायद एक विचार या एक दृष्टांत जो भाषण की शुरूआत में प्रस्तुत किया गया था, उसे समाप्ति में इस प्रकार लागू किया जा सकता है कि यह प्रेरित करे या दृष्टांत या विचार का भाषण के उद्देश्‍य के साथ सम्बन्ध के बारे में अतिरिक्‍त स्पष्टीकरण प्रदान करे। इस प्रकार दृष्टांत या विचार के किसी पहलू को पुनःप्रस्तुत करना एक संयोजक के तौर पर कार्य करेगा और इस प्रकार संगतता में योग देगा।

८. संगतता के लिए परिवर्तकों के इस्तेमाल पर श्रोतागण कैसे प्रभाव डालते हैं?

८ आपके श्रोतागण के लिए पर्याप्त संगतता। कुछ हद तक आपका श्रोतागण यह निर्धारित करेगा कि कितने संयोजकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसका यह अर्थ नहीं कि कुछ श्रोतागणों को परावर्तकों की ज़रूरत नहीं है। इसके बजाय, कुछ श्रोतागणों को उनकी ज़्यादा ज़रूरत होती है क्योंकि वे एक दूसरे से सम्बन्धित किए जानेवाले विचारों से अपरिचित हैं। उदाहरण के लिए, यहोवा के साक्षी आसानी से वर्तमान दुष्ट रीति-व्यवस्था के अन्त के बारे में बात करनेवाले एक शास्त्रवचन को राज्य के बारे में बात करनेवाले एक शास्त्रवचन से जोड़ेंगे। लेकिन एक ऐसे व्यक्‍ति के लिए जो राज्य को एक मानसिक स्थिति, या अपने हृदय में कुछ बात मानता है, वह सम्बन्ध उतनी आसानी से नहीं समझ आएगा और सम्बन्ध को स्पष्ट करने के लिए कुछ परिवर्ती विचार को प्रस्तुत करना ज़रूरी होगा। हमारा दर-दर कार्य हमेशा ऐसे समंजनों की माँग करता है।

९-१३. तर्कसंगत विकसन क्या है, और किसी तर्क को बढ़ाने के लिए दो मूल तरीक़े कौन-से हैं?

९ इससे नज़दीकी सम्बन्ध रखनेवाला भाषण का एक पहलू है “तर्कसंगत, सुसंगत विकसन,” और यह भी सलाह परची में शामिल किया गया है। यह विश्‍वासोत्पादक भाषण की एक मूल ज़रूरत है।

१० तर्क क्या है? अपने उद्देश्‍य के लिए हम शायद कहेंगे कि तर्क सही विचार या ठोस विवेचन का विज्ञान है। यह समझ प्रदान करता है क्योंकि यह ऐसा ज़रिया है जिससे एक विषय को उसके सम्बन्धित भागों में पूरी तरह समझाया जाता है। तर्क बताता है कि वे क्यों एक साथ कार्य करते और एक साथ गठित हैं। विकसन सुसंगत है यदि उसका तर्क इस प्रकार धीरे-धीरे बढ़ता है कि सभी भाग क्रम में गठित हैं। कुछ संभावनाओं को बताते हुए, एक तर्कसंगत विकास शायद महत्त्व के क्रम में, कालानुक्रम से या समस्या से हल की ओर जानेवाला हो।

११ किसी तर्क के विकसन में दो मूल तरीक़े हैं जिनका पालन किया जा सकता है। (१) सत्य को सीधा श्रोतागण के सामने प्रस्तुत कीजिए, और उसका समर्थन करने के लिए तथ्य पेश कीजिए। (२) किसी ग़लत स्थिति पर आक्रमण कीजिए और जब वह ग़लत साबित हो जाएगी तो सच को स्वयं प्रकट होने दीजिए। विचाराधीन सच्चाइयों का सही अनुप्रयोग करना ही बाक़ी बचेगा।

१२ दो वक्‍ता कभी भी एक ही तरह तर्क नहीं करेंगे। एक ही विषय की भिन्‍न प्रस्तुतियों का एक उत्तम उदाहरण चार सुसमाचार पुस्तकों के लेखन में है। यीशु के चार शिष्यों ने उसकी सेवकाई के अलग-अलग वृत्तांत लिखे। हर एक अलग है, लेकिन सभी ने विवेचनीय, तर्कसंगत प्रस्तुतियाँ लिखीं। हर एक ने विषय को एक ख़ास उद्देश्‍य को पूरा करने के लिए विकसित किया और सभी सफल रहे।

१३ इस सम्बन्ध में सलाहकार को आपके उद्देश्‍य को पहचानना होगा और विचारों के क्रम को उस आधार पर आँकने की कोशिश करनी होगी कि उद्देश्‍य पूरा हुआ कि नहीं। अपने उद्देश्‍य को स्पष्ट करते हुए, ख़ास तौर पर जिस रीति से आप अपने विषय की प्रस्तावना देते हैं और समाप्ति में उसका अनुप्रयोग करते हैं, उससे आप सलाहकार की और अपने श्रोतागण की मदद कर सकते हैं।

१४, १५. बताइए कि क्यों विषय का तर्कसंगत क्रम में होना इतना महत्त्वपूर्ण है।

१४ तर्कबद्ध क्रम में विषय। पहले, अपने विषय को या अपनी रूपरेखा को व्यवस्थित करने में यह निश्‍चित कीजिए कि कोई कथन या विचार, उसके लिए कोई प्रस्तावनात्मक आधार डाले बिना न प्रस्तुत किया जाए। अपने आपसे इन सवालों को पूछते रहिए: अब आगे कहने की सबसे स्वाभाविक बात क्या है? इस हद तक आने के बाद, अब कौन-सा सबसे तर्कसंगत सवाल है जो पूछा जा सकता है? उस सवाल को निर्धारित करने के पश्‍चात्‌, मात्र उसका जवाब दीजिए। आपके श्रोतागण को हमेशा यह कहने में समर्थ होना चाहिए: “आपने जो पहले कहा है उससे मैं समझ सकता हूँ कि यह ऐसा ही है।” यदि कोई नींव डाली न गई हो तो वह मुद्दा तर्कसंगत क्रम से बाहर माना जाएगा। किसी बात की कमी है।

१५ अपने विषय को संगठित करने में आपको उन भागों पर विचार करना चाहिए जो एक दूसरे पर स्वाभाविक रूप से निर्भर करते हैं। आपको इन भागों के सम्बन्ध को समझने की कोशिश करनी चाहिए और फिर उन्हें उस तरह संगठित करना चाहिए। यह कुछ हद तक एक घर बनाने की तरह है। कोई भी निर्माता नींव डाले बिना दीवारें खड़ी करने की कोशिश नहीं करेगा। ना ही वह दीवारों पर पलस्तर करने के बाद नलसाज़ी के पाइप लगाएगा। ऐसा ही एक भाषण के निर्माण में भी होना चाहिए। हर भाग को एक ठोस और परिपूर्ण गठन के निर्माण में अपना योग देना चाहिए। हरेक भाग को क्रम में होना चाहिए और जिस भाग के बाद वह आता है उसमें इसे कुछ जोड़ना चाहिए और आनेवाले भागों के लिए इसे मार्ग तैयार करना चाहिए। अपने भाषण में जिस क्रम में आप तथ्यों को प्रस्तुत करते हैं उसके लिए आपके पास हमेशा कारण होना चाहिए।

१६-२०. एक व्यक्‍ति कैसे निश्‍चित हो सकता है कि उसके भाषण में मात्र प्रासंगिक विषय ही है?

१६ केवल प्रासंगिक विषय इस्तेमाल किया गया। हर मुद्दा जिसका आप इस्तेमाल करते हैं उसे भाषण के साथ अच्छी तरह बँधा हुआ होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो वह असंगत प्रतीत होगा, वह बैठेगा नहीं; वह प्रासंगिक विषय नहीं होगा, अर्थात्‌, चर्चा किए जा रहे विषय पर प्रभावकारी या उससे सम्बन्धित नहीं होगा।

१७ लेकिन आपका सलाहकार व्यक्‍तिगत राय के अनुसार किसी ऐसी बात को अप्रासंगिक नहीं कहेगा जो असंगत प्रतीत होती है परन्तु जिसे सफलतापूर्वक जोड़ा गया है। ऐसा हो सकता है कि आपने उस मुद्दे को किसी ख़ास उद्देश्‍य से इस्तेमाल करने का चुनाव किया है, और यदि वह भाषण के मूल-विषय के अनुरूप है, उसे भाषण का भाग बनाया गया है, और तर्कसंगत क्रम में प्रस्तुत किया गया है, तो आपका सलाहकार उसे स्वीकार करेगा।

१८ अपने भाषण को तैयार करने में अप्रासंगिक विषय को कैसे जल्द और आसानी से पहचाना जा सकता है? यहाँ एक विषयात्मक रूपरेखा प्रभावकारी रीति से कार्य करती है। यह आपकी जानकारी को वर्गीकृत करने में मदद देती है। परचों या ऐसे ही किसी चीज़ का इस्तेमाल करने की कोशिश कीजिए, जिसमें सभी सम्बन्धित जानकारी प्रत्येक परचे पर हो। अब, उन परचों को उनके उस स्वाभाविक क्रम में पुनःव्यवस्थित कीजिए जिसमें आप सोचते हैं कि वे साधारणतः प्रस्तुत किए जाएँगे। वह न केवल यह निर्धारित करने में मदद देगा कि विषय को किस रीति से संभाला जाना चाहिए परन्तु वह किसी भी ऐसी बात को पहचानने में मदद देगा जो मूल-विषय के सम्बन्ध में अप्रासंगिक है। उन मुद्दों को जो क्रम में नहीं बैठते, समंजित किया जाना चाहिए ताकि वे ठीक बैठें यदि वे तर्क के लिए ज़रूरी हैं। लेकिन यदि वे ज़रूरी नहीं तो उन्हें मूल-विषय के लिए अप्रासंगिक समझकर छोड़ दिया जाना चाहिए।

१९ इससे जल्द ही यह समझा जा सकता है कि आपके भाषण के मूल-विषय पर, जिसे श्रोतागण और उद्देश्‍य को मन में रखते हुए चुना गया है, किसी मुद्दे की प्रासंगिकता को निर्धारित करना निर्भर करता है। कुछ परिस्थितियों में एक मुद्दा आपके उद्देश्‍य को पूरा करने के लिए अनिवार्य होगा, जो आपके श्रोतागण की पृष्ठभूमि पर निर्भर करेगा, जबकि दूसरे श्रोतागण को या दूसरे मूल-विषय के सम्बन्ध में वह शायद अनावश्‍यक या पूर्णतः अप्रासंगिक हो।

२० इसे ध्यान में रखते हुए, आपकी नियुक्‍ति में विषय को किस हद तक पूरा किया जाना चाहिए? आपकी नियुक्‍ति में जितने मुद्दे शामिल किए जा सकते हैं उन सब को पूरा करने के लिए तर्कसंगत, सुसंगत विकसन को त्यागा नहीं जाना चाहिए। लेकिन, यह सर्वोत्तम होगा कि आप एक ऐसी सेटिंग चुनें जो आपको उसमें जितना व्यावहारिक है उतना शामिल करने की अनुमति दे, क्योंकि विद्यार्थी भाषण स्कूल प्रबन्ध का शिक्षाप्रद भाग है। लेकिन वे विचार जो आपके मूल-विषय के विकसन के लिए मुख्य मुद्दों के तौर पर अनिवार्य हैं उन्हें छोड़ा नहीं जा सकता।

२१. यह क्यों महत्त्वपूर्ण है कि कोई भी मुख्य विचार न छूटे?

२१ कोई मुख्य विचार छूटा नहीं। आप कैसे जानते हैं कि एक विचार मुख्य विचार है कि नहीं? यह अनिवार्य है यदि आप इसके बिना भाषण के उद्देश्‍य को पूरा नहीं कर सकते हैं। यह ख़ासकर तर्कसंगत, सुसंगत विकास के बारे में सच है। उदाहरण के लिए, आप कैसे काम चलाएँगे यदि एक ठेकेदार ने एक दो-मंज़िला मकान बनाया और उसमें सीढ़ियाँ नहीं बनाईं? वैसे ही, कुछ अनिवार्य मुद्दों के बिना एक भाषण विकसन में तर्कसंगत और सुसंगत नहीं होगा। किसी बात की कमी रहती है और श्रोतागण में से कुछ लोग उलझन में पड़ जाएँगे। लेकिन जब एक भाषण अपने विकसन में सुसंगत और तर्कसंगत है तो ऐसा नहीं होता है।

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