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अध्याय 16

उपासना के लिए इकट्ठा होने का इंतज़ाम

अध्याय किस बारे में है

सभाओं का इंतज़ाम कैसे शुरू हुआ और ये क्यों अहमियत रखती हैं

1. (क) जब चेले इकट्ठा हुए तो उन्हें कैसे हिम्मत मिली? (ख) उन्हें क्यों इसकी ज़रूरत थी?

यीशु की मौत के बाद, चेले एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने के लिए एक कमरे में इकट्ठा थे। उन्होंने दरवाज़ा बंद कर रखा था क्योंकि उन्हें दुश्‍मनों का डर था। मगर अचानक उस बंद कमरे में यीशु आ गया जिसे ज़िंदा किया गया था। जब यीशु ने उनसे कहा, “परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति पाओ” तो सोचिए, उनका डर कैसे दूर हो गया होगा! (यूहन्‍ना 20:19-22 पढ़िए।) बाद में एक बार फिर जब चेले एक कमरे में इकट्ठा हुए तो यहोवा ने उन पर पवित्र शक्‍ति उँडेली। इससे उन्हें बहुत हिम्मत मिली क्योंकि आगे चलकर उन्हें प्रचार काम करना था!​—प्रेषि. 2:1-7.

2. (क) यहोवा किस तरह हमें ताकत देता है? (ख) हमें क्यों इसकी ज़रूरत है? (ग) पारिवारिक उपासना का इंतज़ाम क्यों इतना अहम है? (फुटनोट और यह बक्स देखें: “पारिवारिक उपासना।”)

2 पहली सदी के उन भाइयों की तरह, आज हम भी कुछ मुश्‍किलों का सामना करते हैं। (1 पत. 5:9) कभी-कभी हममें से कुछ लोग इंसानों से डर जाते हैं। इसलिए हम यहोवा की ताकत से ही प्रचार काम जारी रख पाते हैं। (इफि. 6:10) यहोवा हमें यह ताकत खास तौर से सभाओं के ज़रिए देता है। आज हर हफ्ते हमारी दो सभाएँ होती हैं जिनसे हम बहुत कुछ सीखते हैं। एक है जन सभा और प्रहरीदुर्ग  अध्ययन और दूसरी सभा है ‘मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा’ जो हफ्ते के बीच में होती है।a इसके अलावा, हम चार सालाना सभाओं का भी आनंद लेते हैं​—क्षेत्रीय अधिवेशन, दो सर्किट सम्मेलन और मसीह की मौत का स्मारक। हमें इन सारी सभाओं में क्यों हाज़िर होना चाहिए? हमारे दिनों में सभाओं का इंतज़ाम कैसे शुरू हुआ? हम सभाओं के बारे में जो नज़रिया रखते हैं उससे हमारे बारे में क्या पता चलता है?

साथ इकट्ठा होना क्यों ज़रूरी है?

3, 4. यहोवा अपने लोगों से क्या चाहता है? मिसालें बताइए।

3 यहोवा ने बहुत पहले ही अपने लोगों से कहा था कि वे उसकी उपासना करने के लिए इकट्ठा हों। मिसाल के लिए, ईसा पूर्व 1513 में यहोवा ने इसराएल राष्ट्र को जो कानून दिया था उसमें माँग की गयी थी कि हर हफ्ते सब्त मनाया जाए। सब्त के दिन हर परिवार को उसकी उपासना करनी थी और उसके कानून के बारे में सीखना था। (व्यव. 5:12; 6:4-9) जब इसराएलियों ने यह आज्ञा मानी तो परिवारों की एकता मज़बूत हुई और यहोवा के साथ पूरे राष्ट्र का रिश्‍ता मज़बूत रहा। जब इसराएलियों ने कानून को नहीं माना और वे साथ मिलकर यहोवा की उपासना करने में लापरवाह हो गए तो वे उसकी मंज़ूरी खो बैठे।​—लैव्य. 10:11; 26:31-35; 2 इति. 36:20, 21.

4 अब आइए यीशु की मिसाल पर ध्यान दें। हर हफ्ते सब्त के दिन सभा-घर जाना यीशु की आदत थी। (लूका 4:16) यीशु की मौत और उसके ज़िंदा होने के बाद उसके चेले लगातार इकट्ठा होते रहे, इसके बावजूद कि अब उन पर सब्त का नियम लागू नहीं था। (प्रेषि. 1:6, 12-14; 2:1-4; रोमि. 14:5; कुलु. 2:13, 14) पहली सदी की उन सभाओं में मसीही, परमेश्‍वर की शिक्षा पाते थे और एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते थे। यही नहीं, वे प्रार्थनाओं, चर्चाओं और गीतों से परमेश्‍वर को तारीफ के बलिदान भी चढ़ाते थे।​—कुलु. 3:16; इब्रा. 13:15.

यीशु के चेले एक कमरे में इकट्ठा हैं और यीशु दोबारा ज़िंदा होने के बाद उनके सामने प्रकट हो रहा है

यीशु के चेले एक-दूसरे को मज़बूत करने और हिम्मत देने के लिए इकट्ठा हुए

5. हम सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में क्यों जाते हैं? (यह बक्स भी देखें: “परमेश्‍वर के लोगों को एक करनेवाली सालाना सभाएँ।”)

5 आज हम भी जब सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में जाते हैं तो हम परमेश्‍वर के राज का साथ दे रहे होते हैं। सभाओं में जाने से हमें पवित्र शक्‍ति की ताकत मिलती है और हम चर्चाओं और जवाबों से एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते हैं। इससे भी ज़रूरी बात यह है कि अपनी प्रार्थनाओं, जवाबों और गीतों से हम यहोवा की उपासना करते हैं। आज जिस तरीके से हमारी सभाएँ होती हैं, वह इसराएलियों और पहली सदी के मसीहियों की सभाओं से अलग है। फिर भी हमारी सभाएँ उन सभाओं जितनी अहमियत रखती हैं। हमारे दिनों में सभाओं का इंतज़ाम कैसे शुरू हुआ?

“प्यार और भले काम करने” का बढ़ावा देनेवाली सभाएँ

6, 7. (क) हमारी सभाओं का मकसद क्या है? (ख) हर समूह अपनी सभाएँ कैसे चलाता था?

6 जब भाई चार्ल्स टेज़ रसल ने परमेश्‍वर के वचन में सच्चाई ढूँढ़ना शुरू किया तो उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें ऐसे लोगों के साथ इकट्ठा होने की ज़रूरत है जो उनकी तरह सच्चाई ढूँढ़ रहे हैं। सन्‌ 1879 में भाई रसल ने लिखा, “मैंने पिट्‌सबर्ग में कुछ लोगों के साथ मिलकर बाइबल क्लास का प्रबंध किया है ताकि हर रविवार को हम शास्त्र में खोज कर सकें।” प्रहरीदुर्ग  पढ़नेवालों को बढ़ावा दिया गया कि वे भी साथ इकट्ठा हों। सन्‌ 1881 तक पेन्सिलवेनिया राज्य के पिट्‌सबर्ग शहर में हर रविवार और बुधवार को सभाएँ होने लगीं। नवंबर 1895 की प्रहरीदुर्ग  में बताया गया कि उन सभाओं का मकसद था, “मसीही प्रेम और भाईचारा” बढ़ाना और हाज़िर लोगों को एक-दूसरे की हिम्मत बँधाने का मौका देना।​—इब्रानियों 10:24, 25 पढ़िए।

7 कई सालों तक बाइबल विद्यार्थियों का हर समूह अपने तरीके से सभाएँ चलाता था और तय करता था कि सभाएँ कितनी बार होंगी। मिसाल के लिए, 1911 में अमरीका के एक समूह का खत प्रकाशित किया गया जिसमें समूह ने बताया, “हम हर सप्ताह कम-से-कम पाँच बार सभाएँ रखते हैं।” उनकी सभाएँ सोमवार, बुधवार, शुक्रवार को और रविवार को दो बार होती थीं। सन्‌ 1914 में अफ्रीका के एक समूह का खत प्रकाशित किया गया जिसमें समूह ने बताया, “हम महीने में दो बार सभाएँ रखते हैं। हर बार सभाएँ शुक्रवार को आरंभ होती और रविवार को समाप्त होती हैं।” समय के गुज़रते सभाएँ चलाने के तरीके में काफी बदलाव हुआ। आइए हर सभा के इतिहास पर एक नज़र डालें।

8. शुरू के दिनों में कैसे विषयों पर जन भाषण दिए जाते थे?

8 जन सभा: भाई रसल ने जब प्रहरीदुर्ग  प्रकाशित करना शुरू किया तो उसके एक साल बाद, 1880 में वे यीशु की मिसाल पर चलते हुए प्रचार के एक दौरे पर निकल पड़े। (लूका 4:43) उस दौरान वे जगह-जगह भाषण देने लगे और इस तरह उस सभा की शुरूआत हुई जो आज जन सभा कहलाती है। प्रहरीदुर्ग  में उनके इस दौरे की घोषणा की गयी और बताया गया कि उन्हें “सभाओं में ‘परमेश्‍वर के राज से संबंधित बातों’ पर भाषण देने में बहुत खुशी होगी।” फिर जब कई देशों में मंडलियाँ बनायी गयीं तो 1911 में हर मंडली को बढ़ावा दिया गया कि वे काबिल वक्‍ताओं को आस-पास के इलाकों में भेजें ताकि वे न्याय के दिन और फिरौती जैसे विषयों पर छ: भाषण दें। हर भाषण के आखिर में अगले हफ्ते के भाषण का विषय और वक्‍ता का नाम बताया जाता था।

9. (क) जन सभा में क्या-क्या बदलाव किए गए? (ख) इस सभा को कामयाब बनाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

9 सन्‌ 1945 में एक प्रहरीदुर्ग  में घोषणा की गयी कि पूरी दुनिया में जन सभाएँ रखने का एक अभियान होगा जिसमें बाइबल के ऐसे आठ विषयों पर भाषण दिए जाएँगे जो उस समय की “बड़ी-बड़ी समस्याओं” के बारे में होंगे। कई सालों तक जन सभा के वक्‍ता न सिर्फ विश्‍वासयोग्य दास के बताए विषयों पर भाषण देते थे बल्कि ऐसे भाषण भी देते थे जो उन्होंने खुद तैयार किए थे। मगर 1981 में सभी वक्‍ताओं को निर्देश दिया गया कि वे सिर्फ उन आउटलाइनों के मुताबिक भाषण दें जो मंडलियों को भेजी गयी थीं।b सन्‌ 1990 तक जन भाषणों की कुछ आउटलाइनों में हाज़िर लोगों से सवाल पूछे जाते थे या प्रदर्शन होते थे। मगर उसी साल हिदायतों में फेरबदल हुई और तब से जन भाषण सिर्फ भाषण के तौर पर दिए जाने लगे। जनवरी 2008 में एक और बदलाव आया। जन भाषण का समय 45 मिनट से घटाकर 30 मिनट कर दिया गया। हालाँकि जन सभा में कई बदलाव किए गए, फिर भी अच्छी तरह तैयार किए गए जन भाषणों से हमेशा परमेश्‍वर के वचन पर लोगों का विश्‍वास बढ़ा है और उन्होंने परमेश्‍वर के राज के बारे में सीखा है। (1 तीमु. 4:13, 16) क्या आप वापसी भेंट में मिलनेवालों को और दूसरे लोगों को जोश के साथ बुलाते हैं कि वे भी आकर बाइबल के अहम विषयों पर भाषण सुनें?

10-12. (क) प्रहरीदुर्ग  अध्ययन चलाने के तरीके में कौन-से बदलाव हुए हैं? (ख) आप खुद से क्या सवाल पूछना चाहेंगे?

10 प्रहरीदुर्ग  अध्ययन: वॉच टावर सोसाइटी कुछ भाइयों को भाषण देने और प्रचार में अगुवाई करने के लिए मंडलियों में भेजती थी। उन भाइयों को पिलग्रिम कहा जाता था। सन्‌ 1922 में उन भाइयों ने सुझाव दिया कि प्रहरीदुर्ग  का अध्ययन करने के लिए नियमित तौर पर एक सभा रखी जाए। इस सुझाव को स्वीकार किया गया और शुरू-शुरू में हफ्ते के बीच में या रविवार को प्रहरीदुर्ग  अध्ययन रखा जाता था।

1931 में घाना में बाइबल विद्यार्थियों की एक सभा

1931 में घाना में प्रहरीदुर्ग  अध्ययन

11 पंद्रह जून, 1932 की प्रहरीदुर्ग  में और भी हिदायतें दी गयीं कि यह सभा कैसे चलायी जानी चाहिए। उस पत्रिका के एक लेख में बताया गया कि यह अध्ययन उसी तरह चलाया जाना चाहिए जिस तरह बेथेल घर में चलाया जाता है। यह अध्ययन एक भाई को चलाना चाहिए। सभा की जगह पर तीन भाई सामने की तरफ बैठ सकते हैं और वे बारी-बारी से पैराग्राफ पढ़ सकते हैं। उन दिनों लेख में पैराग्राफों के लिए सवाल नहीं दिए जाते थे, इसलिए अध्ययन चलानेवाले भाई को बताया गया कि वह हाज़िर लोगों से कहे कि वे लेख पर कुछ सवाल पूछें। उसके बाद वह हाज़िर लोगों से उन सवालों के जवाब पूछता था। अध्ययन चलानेवाले भाई को निर्देश दिया गया कि अगर किसी बात को समझाने की और भी ज़रूरत हो तो वह “संक्षिप्त में” समझाए।

12 शुरू में यह हर मंडली पर छोड़ा गया था कि वे किस अंक का अध्ययन करेंगे। मंडली के ज़्यादातर लोग जो अंक चुनते थे उसी का अध्ययन किया जाता था। मगर 15 अप्रैल, 1933 की प्रहरीदुर्ग  में सुझाव दिया गया कि हर महीने के लिए जो अंक दिया जाता है उसी का सभी मंडलियों को अध्ययन करना चाहिए। सन्‌ 1937 में बताया गया कि यह अध्ययन रविवार को किया जाना चाहिए। एक अक्टूबर, 1942 की प्रहरीदुर्ग  में सुधार के लिए और भी हिदायतें दी गयीं और तब से यह सभा उसी तरीके से हो रही है जैसे आज होती है। सबसे पहले तो पत्रिका में घोषणा की गयी कि अध्ययन लेख के हर पन्‍ने के नीचे सवाल दिए जाएँगे और अध्ययन के दौरान वे सवाल पूछे जाने चाहिए। लेख में यह भी बताया गया कि यह सभा एक घंटे की होनी चाहिए। जवाब देनेवालों को बढ़ावा दिया गया कि वे पैराग्राफ के कुछ हिस्से पढ़ने के बजाय “अपने शब्दों में” जवाब दें। आज भी प्रहरीदुर्ग  अध्ययन वह खास सभा है जिसके ज़रिए विश्‍वासयोग्य दास सही समय पर खाना देता है। (मत्ती 24:45) हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं हर हफ्ते प्रहरीदुर्ग  अध्ययन के लिए तैयारी करता हूँ? अगर जवाब देना मेरे लिए मुमकिन है तो क्या मैं देता हूँ?’

13, 14. (क) मंडली के बाइबल अध्ययन का इंतज़ाम कैसे शुरू हुआ? (ख) इस सभा के बारे में क्या बात आपको अच्छी लगती है?

13 मंडली का बाइबल अध्ययन: हज़ार वर्षीय राज का उदय  (अँग्रेज़ी) किताब के कई खंडों के रिलीज़ होने के बाद, 1895 के आस-पास भाई एच. एन. रान ने सुझाव दिया कि इन किताबों से बाइबल अध्ययन करने के लिए “उदय मंडल” बनाए जाएँ। भाई रान अमरीकी राज्य मेरीलैंड के शहर बाल्टिमोर के एक बाइबल विद्यार्थी थे। शुरू में मंडल की सभाएँ यह देखने के लिए रखी गयी कि ये कैसे चलेंगी। अकसर घरों पर ये सभाएँ रखी जाती थीं। मगर सितंबर 1895 के आते-आते अमरीका के कई शहरों में उदय मंडल बनाए गए और इसमें अच्छी कामयाबी मिली। इसलिए उस महीने की प्रहरीदुर्ग  में सुझाव दिया गया कि सच्चाई के सभी विद्यार्थियों को ये सभाएँ रखनी चाहिए। यह हिदायत दी गयी कि यह सभा ऐसा व्यक्‍ति चलाए जिसे अच्छी तरह पढ़ना आता हो। उसे अध्याय का एक वाक्य पढ़कर रुकना होता था ताकि हाज़िर लोग अपनी राय बता सकें। एक पैराग्राफ का हर वाक्य पढ़ने और उस पर चर्चा करने के बाद, उसे दी गयी आयतें खोलकर पढ़नी होती थीं। एक अध्याय के खत्म होने पर हाज़िर लोगों में से हर किसी को चर्चा की गयी सारी जानकारी का एक निचोड़ देना होता था।

14 इस सभा का नाम कई बार बदला गया था। बाद में इसका नाम ‘बाइबल अध्ययन का बिरीयाई मंडल’ पड़ा। यह नाम पहली सदी के बिरीयाई लोगों को ध्यान में रखकर दिया गया था जो गहराई से शास्त्र की जाँच करते थे। (प्रेषि. 17:11) कुछ समय बाद इसका नाम कलीसिया पुस्तक अध्ययन रखा गया। आज यह सभा ‘मंडली का बाइबल अध्ययन’ कहलाती है। यह सभा अलग-अलग घरों में नहीं बल्कि राज-घर में रखी जाती है और इसके लिए पूरी मंडली इकट्ठा होती है। बीते सालों के दौरान इस सभा में कई किताबों, ब्रोशर, यहाँ तक कि प्रहरीदुर्ग  के कुछ लेखों का भी अध्ययन किया गया। शुरू से ही इस सभा में आनेवालों को बढ़ावा दिया गया कि वे जवाब देकर इसमें हिस्सा लें। इस सभा की वजह से हम बाइबल को काफी गहराई से जान पाए हैं। क्या आप हर हफ्ते इस सभा की तैयारी करते हैं और इसमें हिस्सा लेने के लिए अपना भरसक करते हैं?

माता-पिता और उनकी दो छोटी लड़कियाँ मिलकर पारिवारिक उपासना का आनंद ले रहे हैं

क्या आप पहले से तय करके हर हफ्ते पारिवारिक उपासना करते हैं?

पारिवारिक उपासना

आखिरी दिनों के शुरू होने के कुछ साल बाद से ही यहोवा का संगठन इस बात पर ध्यान देने लगा कि सभाओं के अलावा हर परिवार में बाइबल अध्ययन करने का एक इंतज़ाम होना चाहिए। (2 तीमु. 3:1) मिसाल के लिए, 1932 में प्रकाशित अँग्रेज़ी पुस्तिका घर और खुशी  में साफ हिदायत दी गयी: “प्रत्येक परिवार तुरंत घर पर बाइबल का अध्ययन करना आरंभ करे।” फिर 15 मई, 1956 की प्रहरीदुर्ग  ने सभी मसीही परिवारों को बढ़ावा दिया कि वे “घर पर नियमित रूप से बाइबल अध्ययन करें ताकि पूरे परिवार को लाभ हो।” उसमें यह सवाल भी पूछा गया: “क्या आपका परिवार प्रहरीदुर्ग अध्ययन से कुछ दिन पहले शाम को साथ मिलकर उसका अध्ययन करता है?”

2009 में संगठन ने पारिवारिक अध्ययन पर ज़ोर देने के लिए हफ्ते की सभाओं में कुछ फेरबदल किया। तब से मंडली का बाइबल अध्ययन उसी शाम रखा जाने लगा जब परमेश्‍वर की सेवा स्कूल और सेवा सभा होती है। जनवरी 2011 की हमारी राज-सेवा  में बताया गया: “यह फेरबदल करने की एक वजह थी कि परिवार हर हफ्ते पारिवारिक उपासना के लिए एक शाम अलग रखें ताकि वे परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत कर सकें।” उसमें परिवारों से कहा गया: “बिना किसी जल्दबाज़ी के बाइबल पर चर्चा करें और परिवार की ज़रूरतों के हिसाब से अध्ययन करें।”c

पारिवारिक उपासना क्यों इतनी अहमियत रखती है कि हमें इसे करने में कभी नहीं चूकना चाहिए? क्योंकि इससे न सिर्फ परिवार बल्कि पूरी मंडली परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत बनाए रख पाती है। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। मंडली की तुलना ईंटों से बने एक मकान से की जा सकती है। (इब्रानियों 3:4-6 पढ़िए।)d मकान की मज़बूती दो अहम बातों पर निर्भर होती है, बुनियाद और हरेक ईंट पर। अगर बुनियाद सही न हो तो मकान गिर जाएगा। लेकिन अगर बुनियाद पक्की हो मगर ईंटें सही न हों तब भी मकान गिर जाएगा। मसीही मंडली सबसे पक्की बुनियाद यानी मसीह की शिक्षाओं पर बनी है। (1 कुरिंथियों 3:10-15 पढ़िए।)e मंडली का हर सदस्य और हर परिवार एक-एक ईंट जैसा है। पारिवारिक उपासना में हरेक सदस्य और हरेक परिवार को अपना विश्‍वास मज़बूत करने का खास मौका मिलता है ताकि वह आग जैसी परीक्षाओं में भी टिक सके। जब हरेक सदस्य और हरेक परिवार मज़बूत होगा तो मंडली मज़बूत होगी। क्या आप पहले से तय करके हर हफ्ते पारिवारिक उपासना करते हैं?

c जनवरी 2011 की हमारी राज-सेवा  में कुछ सुझाव दिए गए हैं कि आप पारिवारिक उपासना में क्या-क्या कर सकते हैं।

d पौलुस ने यह बात उन लोगों से कही थी जिन्हें ‘स्वर्ग का बुलावा’ मिला था। (इब्रा. 3:1) मगर उसकी सलाह सभी मसीहियों पर लागू होती है।

e इन आयतों के बारे में ज़्यादा जानने के लिए 15 जुलाई, 1999 की प्रहरीदुर्ग  के पेज 12-14, पैराग्राफ 15-20 देखें। क्यों न आप यह जानकारी पढ़ें और मनन करें कि यह पारिवारिक उपासना के इंतज़ाम पर कैसे लागू होती है।

15. परमेश्‍वर की सेवा स्कूल किस मकसद से तैयार किया गया था?

15 परमेश्‍वर की सेवा स्कूल: भाई कैरी बार्बर, जो न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन के विश्‍व मुख्यालय में सेवा करते थे, ने कहा: “16 फरवरी, 1942 की सोमवार रात को ब्रुकलिन बेथेल परिवार के सभी भाइयों से कहा गया कि वे एक स्कूल में अपना नाम लिखवाएँ जो बाद में परमेश्‍वर की सेवा स्कूल कहलाया।” भाई बार्बर ने, जो कई साल बाद शासी निकाय के सदस्य बने, बताया कि यह स्कूल “हमारे युग में यहोवा के उन श्रेष्ठ कामों में से एक है जो उसने अपने लोगों के लिए किए हैं।” यह स्कूल भाइयों की प्रचार करने और सिखाने की कला निखारने में काफी कामयाब रहा। इसलिए 1943 से उस स्कूल की अँग्रेज़ी पुस्तिका, परमेश्‍वर की सेवा स्कूल पाठ्यक्रम  दुनिया की सभी मंडलियों को दी जाने लगी। एक जून, 1943 की प्रहरीदुर्ग  ने कहा कि परमेश्‍वर की सेवा स्कूल इस तरह तैयार किया गया है कि परमेश्‍वर के लोग “खुद को प्रशिक्षित कर सकें ताकि वे और भी अच्छे साक्षी बनकर राज की घोषणा करें।”​—2 तीमु. 2:15.

16, 17. क्या परमेश्‍वर की सेवा स्कूल में सिर्फ बोलने की कला सिखायी जाती थी? समझाइए।

16 शुरू में कई भाइयों को बड़ी सभा के सामने भाषण देने में बहुत घबराहट महसूस होती थी। भाई क्लेटन वुडवर्थ जूनियर ने, जिनके पिता को 1918 में भाई रदरफर्ड और दूसरे भाइयों के साथ झूठे इलज़ाम में जेल हो गयी थी, बताया कि 1943 में जब उन्होंने पहली बार स्कूल में दाखिला लिया तो उन्हें कैसा लगा। भाई वुडवर्थ ने कहा, “भाषण देना मुझे बहुत मुश्‍किल लगता था। मेरी ज़बान अटक जाती थी, मुँह बिलकुल सूख जाता था, कभी आवाज़ तेज़ हो जाती तो कभी आवाज़ निकलती ही नहीं थी।” मगर समय के गुज़रते भाई की काबिलीयत बढ़ने लगी और उन्हें लोगों के सामने भाषण देने के कई मौके मिले। इस स्कूल ने भाई को न सिर्फ बोलने की कला निखारना सिखाया बल्कि यह भी सिखाया कि नम्रता का गुण बढ़ाना और यहोवा पर निर्भर रहना ज़रूरी है। भाई ने कहा, “मैंने इस बात को समझा कि वक्‍ता कौन है यह अहमियत नहीं रखता बल्कि यह बात अहमियत रखती है कि वह अपने भाषण की अच्छी तैयारी करे और यहोवा पर पूरा भरोसा रखे। तब लोगों को उसका भाषण सुनना अच्छा लगेगा और वे कुछ सीख पाएँगे।”

17 सन्‌ 1959 में बहनों को भी स्कूल में अपना नाम लिखवाने का बुलावा दिया गया। बहन ऐडना बॉयेर को याद है कि एक सम्मेलन में उसने इस बारे में घोषणा सुनी थी। बहन ने कहा, “मुझे याद है कि वह घोषणा सुनकर बहनों में उमंग की लहर दौड़ उठी। अब उनके लिए भी मौके के नए दरवाज़े खुल गए थे।” बीते सालों के दौरान, बहुत-से भाई-बहनों ने परमेश्‍वर की सेवा स्कूल में अपना नाम लिखवाया और वे यहोवा से सिखलाए गए। आज हम हफ्ते के बीच होनेवाली सभा में ऐसा प्रशिक्षण पाते हैं।​—यशायाह 54:13 पढ़िए।

18, 19. (क) आज हमें किस सभा में प्रचार के बारे में कारगर सुझाव और हिदायतें दी जाती हैं? (ख) हम सभाओं में गीत क्यों गाते हैं? (यह बक्स देखें: “सच्चाई के गीत।”)

18 सेवा सभा: इस सभा का इतिहास भी बहुत पुराना है। सन्‌ 1919 से ही ऐसी सभाएँ रखी जाने लगीं जिनका मकसद था प्रचार काम की अच्छी व्यवस्था करना। उन दिनों मंडली के सभी लोग सेवा सभा में नहीं जाते थे। सिर्फ वे लोग जाते थे जो प्रचार में किताबें-पत्रिकाएँ बाँटते थे। सन्‌ 1923 के कई महीनों तक सेवा सभा महीने में एक बार रखी गयी और मंडली के सभी लोगों को उसमें हाज़िर होने का बढ़ावा दिया गया। सन्‌ 1928 के आते-आते सभी मंडलियों को बढ़ावा दिया गया कि वे हर हफ्ते सेवा सभा रखें। फिर 1935 की एक प्रहरीदुर्ग  में सभी मंडलियों से कहा गया कि वे निदेशक  (अँग्रेज़ी) नाम के परचे में प्रकाशित जानकारी के मुताबिक सेवा सभा चलाएँ। (यह परचा बाद में सूचक  और कई सालों बाद हमारी राज-सेवा  कहलाया।) फिर जल्द ही सभी मंडलियाँ नियमित तौर पर यह सभा रखने लगीं।

19 आज हमें हफ्ते के बीच होनेवाली सभा में प्रचार काम के बारे में कारगर सुझाव और हिदायतें दी जाती हैं। (मत्ती 10:5-13) अगर आपको भी सभा-पुस्तिका दी जाती है तो क्या आप उसका अध्ययन करते हैं और उसमें दिए सुझावों को प्रचार में लागू करते हैं?

साल की सबसे खास सभा

पहली सदी की एक मसीही मंडली मसीह की मौत का स्मारक मना रही है

शुरू के मसीहियों की तरह हम भी हर साल स्मारक मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं (पैराग्राफ 20 देखें)

20-22. (क) हम यीशु की मौत का स्मारक क्यों मनाते हैं? (ख) आपको हर साल स्मारक में जाने से क्या फायदा होता है?

20 यीशु ने अपने चेलों से कहा था कि उसके आने तक वे उसकी मौत का स्मारक मनाते रहें। फसह के त्योहार की तरह, स्मारक भी साल में एक बार मनाया जाना चाहिए। (1 कुरिं. 11:23-26) हर साल इस सभा में लाखों लोग हाज़िर होते हैं। इस सभा से अभिषिक्‍त मसीहियों को याद दिलाया जाता है कि उन्हें परमेश्‍वर के राज में मसीह के संगी वारिस होने का सम्मान मिला है। (रोमि. 8:17) और ‘दूसरी भेड़ों’ को यह सभा राजा मसीह का गहरा आदर करने और उसके वफादार रहने का बढ़ावा देती है।​—यूह. 10:16.

21 भाई रसल और उनके साथियों ने इस बात को समझा कि प्रभु का संध्या भोज मनाना कितना ज़रूरी है। वे यह भी जानते थे कि इसे साल में एक बार ही मनाना चाहिए। अप्रैल 1880 की प्रहरीदुर्ग  ने कहा, “यहाँ पिट्‌सबर्ग में रहनेवाले हममें से अधिकतर लोगों की वर्षों से यह रीत रही है कि . . . हम फसह [स्मारक] को स्मरण करें और हमारे प्रभु के शरीर और लहू के प्रतीकों को खाएँ।” कुछ समय बाद स्मारक के दिन के साथ अधिवेशन रखे जाने लगे। सन्‌ 1889 में पहली बार ऐसे अधिवेशन की हाज़िरी का रिकॉर्ड रखा गया। उस साल 225 लोग हाज़िर हुए थे और 22 लोगों का बपतिस्मा हुआ था।

22 आज स्मारक के साथ कोई अधिवेशन नहीं रखा जाता। हम चाहे जहाँ भी रहते हों, हम स्मारक के लिए सभी लोगों को बुलाते हैं, फिर चाहे यह सभा राज-घर में रखी जाए या किराए पर लिए किसी हॉल में। सन्‌ 2013 में 1 करोड़ 90 लाख से ज़्यादा लोग मसीह की मौत का स्मारक मनाने आए थे। हमें यह कितना बड़ा सम्मान मिला है कि हम न सिर्फ स्मारक के पवित्र मौके पर हाज़िर होते हैं बल्कि दूसरों को भी इसके लिए बुलाते हैं! क्या आप हर साल स्मारक के लिए ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को पूरे जोश के साथ बुलाते हैं?

सभाओं के बारे में हमारा नज़रिया

23. सभाओं के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

23 यहोवा के वफादार सेवक इकट्ठा होने की हिदायत मानना एक बोझ नहीं समझते। (इब्रा. 10:24, 25; 1 यूह. 5:3) मिसाल के लिए, राजा दाविद को उपासना के लिए यहोवा के भवन में जाना बहुत अच्छा लगता था, खासकर यहोवा के दूसरे उपासकों के साथ मिलकर। (भज. 27:4; 35:18) यीशु की मिसाल भी याद कीजिए। छोटी उम्र से ही उसके अंदर अपने पिता के भवन में रहने की गहरी इच्छा थी।​—लूका 2:41-49.

हम भाई-बहनों के साथ इसलिए इकट्ठा होते हैं क्योंकि हम परमेश्‍वर के राज को असली मानते हैं

24. हम सभाओं में क्यों जाते हैं?

24 हम सभाओं में इसलिए जाते हैं क्योंकि हम यहोवा से प्यार करते हैं और अपने भाई-बहनों का हौसला बढ़ाना चाहते हैं। साथ ही, हम सीखना चाहते हैं कि परमेश्‍वर के राज की प्रजा के नाते हमें कैसे जीना चाहिए क्योंकि यह प्रशिक्षण हमें खास तौर से सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में ही दिया जाता है। सभाओं में हमें यह हुनर भी सिखाया जाता है कि हम कैसे लोगों को राजा मसीह के चेले बनाकर उन्हें प्रशिक्षित कर सकते हैं। हमें इस काम में लगे रहने की ताकत भी मिलती है। यह परमेश्‍वर के राज के सबसे अहम कामों में से एक है जो आज किए जा रहे हैं। (मत्ती 28:19, 20 पढ़िए।) हम भाई-बहनों के साथ इसलिए इकट्ठा होते हैं क्योंकि हम परमेश्‍वर के राज को असली मानते हैं। आइए हम अपनी सभाओं को हमेशा अनमोल समझें!

a हफ्ते की सभाओं के अलावा, हर परिवार और हर मसीही को बढ़ावा दिया जाता है कि वह निजी अध्ययन या पारिवारिक उपासना के लिए समय अलग रखे।

b सन्‌ 2013 तक जन भाषणों के लिए 180 से ज़्यादा आउटलाइन उपलब्ध थीं।

परमेश्‍वर का राज आपके लिए कितना असली है?

  • हम क्यों सभाओं के लिए इकट्ठा होते हैं?

  • आपको खासकर कौन-सी सभा अच्छी लगती है और क्यों?

  • सभाओं के बारे में आपका नज़रिया क्या दिखाता है? समझाइए।

सम्मेलन में आए लोगों की भीड़ हाथ ऊपर उठाकर नयी दुनिया अनुवाद​—मसीही यूनानी शास्त्र दिखा रही है

परमेश्‍वर के लोगों को एक करनेवाली सालाना सभाएँ

यहोवा ने सभी इसराएली आदमियों को आज्ञा दी थी कि वे साल में तीन बार यरूशलेम में इकट्ठा हुआ करें। (निर्ग. 23:14-17; लैव्य. 23:34-36) यीशु का पिता यूसुफ ऐसे मौकों पर अपने पूरे परिवार को भी यरूशलेम ले जाता था। शायद दूसरे इसराएली आदमी भी ऐसा करते थे। उसी तरह, आज परमेश्‍वर के लोग साल में तीन बार सम्मेलनों और अधिवेशनों में इकट्ठा होते हैं। आखिरी दिनों के दौरान परमेश्‍वर के संगठन के इतिहास में कुछ अधिवेशन बहुत खास रहे हैं। गौर कीजिए कि वे अधिवेशन क्यों यादगार रहे हैं।

  • 1919: अमरीकी राज्य ओहायो का सीडर पॉइंट

    पहले विश्‍व युद्ध के बाद यह पहला बड़ा अधिवेशन था।

    प्रचार काम को दोबारा शुरू करने का बढ़ावा दिया गया।

    घोषणा की गयी कि स्वर्ण युग  (आज सजग होइए! ) पत्रिका प्रकाशित होगी।

  • 1922: ओहायो का सीडर पॉइंट

    “राज,” इस शीर्षक पर दिए गए भाषण में प्रचार काम पर और भी ज़ोर दिया गया। इस भाषण में सबके अंदर जोश भरने के लिए कहा गया, “राजा और उसके राज की घोषणा करो, घोषणा करो, घोषणा करो”!

  • 1931: ओहायो का कोलंबस

    हमने ‘यहोवा के साक्षी’ नाम अपनाया।

  • 1935: वॉशिंगटन, डी.सी.

    पहली बार हमें समझ दी गयी कि प्रकाशितवाक्य 7:9 में बतायी “बड़ी भीड़” धरती पर हमेशा जीएगी।

  • 1942: नया संसार ईश्‍वरशासित सम्मेलन, जो पूरी दुनिया में 85 शहरों में हुआ

    “शांति​—क्या यह सदा रह सकती है?” इस शीर्षक पर दिए भाषण में प्रकाशितवाक्य अध्याय 17 की भविष्यवाणी का मतलब समझाया गया और बताया गया कि दूसरा विश्‍व युद्ध खत्म होने के बाद, और भी कई लोगों को इकट्ठा किया जाएगा ताकि वे परमेश्‍वर के राज की प्रजा बन सकें।

  • 1950: ईश्‍वरशासित प्रगति सम्मेलन

    अँग्रेज़ी में नयी दुनिया अनुवाद​—मसीही यूनानी शास्त्र  निकाला गया।

  • 1958: ईश्‍वरीय इच्छा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन

    यह सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन था जो एक ही शहर, न्यू यॉर्क में रखा गया था। उसमें 2,50,000 लोग हाज़िर हुए जो 123 देशों से आए थे।

  • 1961: संयुक्‍त उपासक सम्मेलन

    अँग्रेज़ी में पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद  की पूरी बाइबल रिलीज़ की गयी।

  • 1992: “ज्योति-वाहक” अधिवेशन

    पहली बार भूतपूर्व सोवियत संघ, रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन रखा गया।

  • 1993: “ईश्‍वरीय शिक्षा” अधिवेशन, युक्रेन का कीव

    इसमें 7,402 लोगों का बपतिस्मा हुआ। किसी और अधिवेशन में इतने सारे लोगों का बपतिस्मा नहीं हुआ था।

  • 2011: “परमेश्‍वर का राज आए!” अधिवेशन

    दानियेल अध्याय 2 में बतायी मूरत की भविष्यवाणी के बारे में हमें नयी समझ मिली कि मूरत के पैर, जिनका कुछ हिस्सा लोहे का और कुछ मिट्टी का था, ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍व शक्‍ति को दर्शाते हैं। इसी विश्‍व शक्‍ति के समय में परमेश्‍वर का राज पूरी मूरत को चूर-चूर कर देगा।

  • 2014: “पहले परमेश्‍वर के राज की खोज में लगे रहो!” अधिवेशन

    स्वर्ग में मसीह के राज के 100 साल पूरे होने के अवसर पर ये अधिवेशन रखे गए।

यीशु और उसके चेले मिलकर परमेश्‍वर की तारीफ में गीत गा रहे हैं

“सच्चाई के गीत”

यहोवा के लोगों को उसके बारे में  और उसकी तारीफ में  गीत गाने में बड़ी खुशी होती है। मिसाल के लिए, जब यहोवा ने लाल सागर के पास इसराएलियों को मिस्रियों से बचाया तो उन्होंने यहोवा का धन्यवाद और उसकी तारीफ करने के लिए एक दिल छू लेनेवाला गीत गाया। (निर्ग. 15:1-21) बाद में गीत गाना, मंदिर में यहोवा की उपासना का एक अहम हिस्सा बन गया। (1 इति. 23:4, 5; 25:7) पहली सदी में यीशु और उसके चेले भी यहोवा की तारीफ में गीत गाकर उसके लिए अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करते थे।​—मत्ती 26:30; इफि. 5:19.

उसी तरह, जब से भाई रसल और उनके साथियों ने सच्चाई की तलाश करना शुरू किया तब से हमने यहोवा की उपासना में कई गीत गाए हैं। पंद्रह फरवरी, 1896 की प्रहरीदुर्ग  में गीत गाने की अहमियत समझायी गयी: “सच्चाई के गीत गाना परमेश्‍वर के लोगों के हृदय और मस्तिष्क में सच्चाई को बिठाने का एक अच्छा तरीका है।”

1879, दुल्हन के गीत किताब की जिल्द

1879

1890, हज़ार वर्षीय राज के उदय की कविताएँ और भजन किताब की जिल्द

1890

1896, भोर के सिय्योन के हर्षगीत किताब का एक पन्‍ना, जिस पर गीत प्रकाशमान ज्योति के धुन और बोल हैं

1896

1900, सिय्योन के हर्षगीत किताब की जिल्द

1900

1905, हज़ार वर्षीय राज के उदय के भजन किताब की जिल्द

1905

1925, राज के भजन किताब की जिल्द

1925

1928, यहोवा की स्तुति में गीत किताब की जिल्द

1928

1944, राज सेवा गीत-पुस्तक की जिल्द

1944

1950, यहोवा के लिए स्तुतिगीत किताब का कवर

1950

1966, “अपने हृदय में संगीत के साथ गीत गाओ” किताब की जिल्द

1966

1984, यहोवा के भजन गाओ किताब की जिल्द

1984

यहोवा के लिए गीत गाओ किताब की जिल्द

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