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  • यीशु—“स्वर्ग से सच्ची रोटी”

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  • यीशु—“स्वर्ग से सच्ची रोटी”
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
w91 1/1 पेज 8-9

यीशु का जीवन और सेवकाई

यीशु—“स्वर्ग से सच्ची रोटी”

दिन सचमुच ही घटनापूर्ण रहा था। यीशु ने चमत्कारिक रूप से हज़ारों को खिलाया था और फिर वह लोगों की उसे राजा बनाने की कोशिश से बच निकले थे। उस रात वह गलील के तूफ़ानी सागर पर से पैदल चले थे; उन्होंने पतरस को बचाया था, जो तूफ़ानी सागर पर चलते चलते डूबने लगा था; और अपने शिष्यों को नाव के साथ डूबने से बचाने के लिए लहरों को शान्त किया था।

अगले दिन गलील सागर के पूर्वोत्तर में यीशु ने जिन लोगों को चमत्कारिक रूप से खिलाया था, वे उन्हें कफरनहूम के पास पाते हैं। उन्हें डाँटते हुए, यीशु कहते हैं कि वे उसे इस वजह से ढूँढ़ने आए थे कि वे एक और मुफ़्त का भोजन खाना चाहते थे। वह उन्हें नाशमान भोजन के लिए नहीं, बल्कि उस भोजन के लिए परिश्रम करने को प्रोत्साहित करते हैं, जो अनन्त जीवन तक ठहरता है। इसलिए लोग पूछते हैं: “परमेश्‍वर के कार्य्य करने के लिए हम क्या करें?”

यीशु सिर्फ़ एक ही काम का ज़िक्र करते हैं, जो सबसे महत्त्वपूर्ण है। वह समझाते हैं, “परमेश्‍वर का कार्य्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उसने भेजा है, विश्‍वास करो।”

परन्तु, उन सारे चमत्कारों के बावजूद भी, जो यीशु ने किए हैं, लोग उन पर विश्‍वास नहीं करते। पिछले दिन ही, उन्होंने ५,००० आदमियों के साथ साथ औरतों और बच्चों को भी खिलाया था, और फिर भी अब, वे अविश्‍वास से पूछते हैं: “फिर तू कौनसा चिह्न दिखाता है कि हम उसे देखकर तेरी प्रतीति करें, तू कौन सा काम दिखाता है? हमारे बापदादों ने जंगल में मन्‍ना खाया; जैसा लिखा है; कि उस ने उन्हें खाने के लिए स्वर्ग से रोटी दी।”

उनके एक चिह्न के लिए निवेदन के जवाब में, यीशु यह कहकर उन चमत्कारिक प्रबन्ध के स्रोत को स्पष्ट करते हैं: “मूसा ने तुम्हें वह रोटी स्वर्ग से न दी, परन्तु मेरा पिता तुम्हें सच्ची रोटी स्वर्ग से देता है। क्योंकि परमेश्‍वर की रोटी वही है, जो स्वर्ग से उतरकर जगत को जीवन देती है।”

“हे प्रभु,” लोग कहते हैं, “यह रोटी हमें सर्वदा दिया कर।”

“जीवन की रोटी मैं हूँ,” यीशु समझाते हैं, “जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्‍वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा। परन्तु मैं ने तुम से कहा, कि तुम ने मुझे देख भी लिया है, तौभी विश्‍वास नहीं करते। जो कुछ पिता मुझे देता है, वह सब मेरे पास आएगा, और जो कोई मेरे पास आएगा, उसे मैं कभी न निकालूँगा। क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, बरन अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूँ। और मेरे भेजनेवाले की इच्छा यह है कि जो कुछ उस ने मुझे दिया है, उस में से मैं कुछ ने खोऊँ, परन्तु उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊँ। क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है, कि जो कोई पुत्र को देखे, और उस पर विश्‍वास करे, वह अनन्त जीवन पाए।”

यह सुनकर यहूदी यीशु पर कुड़कुड़ाने लगे, इसलिए कि उन्होंने कहा था, “जो रोटी स्वर्ग से उतरी, वह मैं हूँ।” वे उन्हें सिर्फ़ मानवीय माता-पिता के एक पुत्र के तौर से मानते हैं, उस से ज़्यादा कुछ नहीं और इसलिए नासरत के लोगों के ही जैसे आपत्ति करते हैं: “क्या यह यूसुफ का पुत्र यीशु नहीं, जिस के माता-पिता को हम जानते हैं? तो वह क्योंकर कहता है कि मैं स्वर्ग से उतरा हूँ?”

यीशु जवाब देते हैं, “आपस में मत कुड़कुड़ाओ। कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; और मैं उस को अंतिम दिन फिर जिला उठाऊँगा। भविष्यद्वक्‍तओं के लेखों में यह लिखा है, कि वे सब परमेश्‍वर की ओर से सिखाए हुए होंगे। जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है। यह नहीं, कि किसी ने पिता को देखा परन्तु जो परमेश्‍वर की ओर से है, केवल उसी ने पिता को देखा है। मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि जो कोई विश्‍वास करता है, अनन्त जीवन उसी का है।”

बात को जारी रखते हुए, यीशु एक बार फिर कहते हैं: “जीवन की रोटी मैं हूँ। तुम्हारे बापदादों ने जंगल में मन्‍ना खाया और मर गए। यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उस में से खाए और न मरे। जीवित रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा।” जी हाँ, यीशु पर, जिसे परमेश्‍वर ने भेजा है, विश्‍वास करने के द्वारा लोगों को अनन्त जीवन मिल सकता है। कोई मन्‍ना या ऐसी ही कोई और रोटी यह नहीं दे सकती!

प्रत्यक्ष रूप से स्वर्ग से रोटी के विषय पर विचार-विमर्श उस समय के कुछ ही देर बाद शुरु हुआ जब लोगों ने यीशु को कफरनहूम के पास पाया। लेकिन यह जारी रहा, और इसकी पराकाष्ठा कुछ देर बाद हुई जब यीशु कफरनहूम के एक आराधनालय में सिखा रहे थे। यूहन्‍ना ६:२६-५१, ५९, न्यू.व.; भजन संहिता ७८:२४; यशायाह ५४:१३; मत्ती १३:५५-५७.

◆ स्वर्ग से रोटी के विषय पर यीशु के विचार-विमर्श से पहले कौनसी घटनाएँ हुईं?

◆ यीशु ने अभी अभी क्या किया है, इसका विचार करके, एक चिह्न के लिए निवेदन इतना अनुपयुक्‍त क्यों है?

◆ यहूदी यीशु के दावे पर क्यों कुड़कुड़ाते हैं कि वह स्वर्ग से सच्ची रोटी हैं?

◆ स्वर्ग से रोटी के विषय पर विचार-विमर्श कहाँ हुआ?

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