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  • कामयाब होने का दबाव
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
w89 11/1 पेज 3-4

कामयाब होने का दबाव

एक टी.वी. विज्ञापन नाइजीरियाई लोगों को किसी विशेष ट्रेडमार्क वाला दँतमंजन इस्तेमाल करने के ज़रिए “कामयाब होने, प्रभावशाली होने” के लिए आग्रह करता है। जबकि हम सब जानते हैं कि दँतमंजन किसी व्यक्‍ति का प्रभावशाली होने की कुंजी थोड़ी है, विज्ञापक दिखा रहे हैं कि वे जानते हैं कि लोग ऐसी चीज़ों से तादात्म्य स्थापित करना चाहते हैं, जिन पर “कामयाबी” का लेबुल है।

कामयाब होने और दूसरों द्वारा पहचाने जाने की इच्छा स्वाभाविक है। फिर भी, आदमी और औरतें मानवी सफलता पर इतना ज़ोर डालते हैं कि वे खुद पर “अपने पड़ोसियों के कदम से कदम मिलाने” का दबाव डालते हैं। क्या यह ख़तरनाक़ साबित हो सकता है? क्या आप पर इसका असर हो सकता है?

लोगों के सम्मुख दबाव

अमीर होने की निजी महत्त्वाकांक्षा दबाव डाल सकती है। अनेक लोग “[अपनी] जीविका का घमण्ड” कर सकना चाहते हैं, कि सामाजिक प्रतिष्ठा और प्रमुखता प्राप्त हों।​—१ यूहन्‍ना २:१६.

परिवार दबाव डाल सकता है। अनेक परिवारों में पति को परिवार की सामाजिक स्थिति बढ़ाने के उद्देश्‍य से अपनी कमाई और कार्यस्थल में अपनी स्थिति में उन्‍नति लाने के लिए सतत प्रयास करना पड़ता है। या पत्नी कामयाब कार्य-महिला बनने का प्रयास करेगी। बच्चों को पाठशाला में उच्च शैक्षिक प्रदर्शन की ओर धकेला जा सकता है। यह ख़ासकर विकासशील राष्ट्रों में एक समस्या है जहाँ कई मानते हैं कि किसी व्यक्‍ति की ज़िंदगी में अपना हिस्सा अच्छा बना देने की कुंजी उच्च शिक्षण है।

बिरादरी भी शायद किसी व्यक्‍ति पर उच्च शिक्षण, धन-दौलत, और प्रतिष्ठा तथा प्रभाव के पद की चेष्टा करने के लिए दबाव डालेगी। कामयाबी, जो सामान्यतया रुपये-पैसों में आँकी जाती है, शायद प्रामुख्य, प्रशंसा, और आदर उत्पन्‍न करेगी। नाइजीरियायी डेली टाइमस्‌ के संपादकीय लेख में कहा गया: “किसी के गुण चाहे कितने ही सच्चरित्र और प्रभावशाली क्यों न हों, अगर उसके पास कोई पैसा न हो, तो अधिकांश [लोग] ऐसे व्यक्‍ति का न आदर करते हैं और न उसे पहचानते हैं।”

इसका कैसा परिणाम हो सकता है?

ऐसी सांसारिक कामयाबियाँ कुछेकों को थोड़ा-बहुत आनन्द दे सकती हैं, लेकिन उस महँगे दाम पर भी ग़ौर करें जो यह लेकर ही रहती है। अख़बार स्तंभलेखक आचीके ओकाफ़ो ने लिखा: “अधिकांशतः पैसा और पैसों से जो कुछ ख़रीदा जा सकता है, उस की वजह से . . . हर दिन . . . बसे हुए परिवार . . . उजड़ रहे हैं। . . . वे पति-पत्नी भी जो इकट्ठा रह लेते हैं, अपनी माता-पिता संबंधी ज़िम्मेदारियों के विषय में बहुत कम बोलते हैं . . . इसलिए कि वे कल्याण की भौतिक आवश्‍यकताओं की खोज में बहुत ही व्यस्त हैं।” इस से नशीली दवाइयाँ और अपराध की ओर मुड़नेवाले या घर से भाग जानेवाले उपेक्षित बच्चों की समस्या जोड़ दें, और इसकी क़ीमत बहुत महँगी बन जाती है।

कामयाब होने के दबाव से कुछ महत्त्वाकांक्षी लोग बेईमानी और अनैतिकता में धकेले गए हैं। तरुणियों ने परीक्षाओं में अच्छे नतीजों और रोज़गारी के लिए अपने शरीर का भी सौदा किया है। जब कामयाबी ईमानदार ढंग से पायी जाती है, तब भी सफल व्यक्‍ति शायद कम सफल लोगों के रोष या कुढ़न और साथ-साथ धन-दौलत तथा प्रतिष्ठा द्वारा आकृष्ट “मित्रों” के पाखण्ड का सामना करेंगे। (सभोपदेशक ५:११) क्या यह सचमुच कामयाबी है?

बाइबल में सभोपदेशक का बुद्धिमान लेखक जवाब में ‘नहीं’ कहता है। अपनी बड़ी धन-दौलत, ताक़त और प्रतिष्ठा, और साथ-साथ इन से मिले आनन्द का सर्वेक्षण करने के बाद, उसने निष्कर्ष निकाला कि ये “सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना” हैं।​—सभोपदेशक २:३-११.

क्या इसका मतलब यह है कि जीवन में हर व्यवसाय व्यर्थ है? या क्या ऐसा कोई उचित संतुलन है जिसे लोग एक सफल कैरियर बनाने में अपना सकते हैं? उनका सबसे सार्थक लक्ष्य क्या साबित होगा, इस विषय अनुभव क्या दिखाता है?

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