एक नयी दुनिया बहुत नज़दीक है!
यह दुनिया मृत्युपीड़ा से गुज़र रही है! क्या यह वास्तव में सच हो सकता है? ख़ैर, विश्व परिस्थितियों पर ध्यानपूर्वक ग़ौर करें।
दुनिया में इतने सारे परमाणु शस्त्र हैं कि ये पृथ्वी की संपूर्ण जनसंख्या को अनेक बार नष्ट कर सकते हैं। अनेक देशों में गृह-युद्ध का प्रकोप जारी है, जैसे कि अँगोला और मोज़ाम्बीक में। दक्षिण अफ्रीका, श्री लंका, और अन्य देशों में जातीय संघर्ष चल रहे हैं। आतंकवाद और अकाल से भी मानव जानों को भयंकर हानि पहुँच रही है।
एड्स की महामारी का क्या? दक्षिण अफ्रीका के सन्डे टाइमस् के अक्तूबर २५, १९८७, अंक ने उसका नाम “नयी काली मौत” रखा और कहा: “अब अफ्रीकी एड्स की पूरी बीभत्सता प्रकट है: कुछ देशों में १९९४ तक हर दस लोगों में से छः लोगों की मरने की संभावना है।”
ऐसी परिस्थितियों की वजह से भय प्रचलित है। जैसे नोबेल पुरस्कार विजेता हॅरल्ड सी. यूरे ने कुछ साल पहले कहा: “हम भय खाएँगे, भय में सोएँगे, भय से जीएँगे और भय से मरेंगे।” सार्थक रूप से, पृथ्वी पर किसी भी समय जीनेवाला सबसे महान् भविष्यद्वक्ता, यीशु मसीह ने पूर्वबतलाया कि इस दुनिया के आख़री दिनों में, “भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते देखते लोगों के जी में जी न” रहता।—लूका २१:२६.
लेकिन अनेक भयभीत नहीं। उसके बजाय, वे आनन्द मनाते हैं। क्यों? इसलिए कि वे जानते हैं कि हालाँकि यह विश्व व्यवस्था (पृथ्वी ग्रह नहीं) अपने अन्त के निकट है, एक नयी दुनिया बहुत ही नज़दीक है। उनको इतना यक़ीन क्यों है? इतनी सारी बाइबल भविष्यद्वाणियों के पूरा होने की वजह से।
उदाहरणार्थ, जब यीशु मसीह से पूछा गया कि उसकी उपस्थिति और संसार के अन्त का चिह्न क्या होता, उसने कहा: “जाति पर जाति और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा।” १९१४ में, पहला विश्व युद्ध विस्फोटित हुआ। इसके कारण उस समय तक युद्ध से हुई सबसे ज़्यादा जीवन हानि हुई। कितने लड़ाकू मारे गए? करोड़ों नागरिकों के अलावा, लगभग ९०,००,००० लड़ाकू मर गए! लेकिन दूसरा विश्व युद्ध उस से कहीं ज़्यादा विध्वंसकारी था, जिस में लगभग ५,५०,००,००० जानें गयीं! यीशु ने दिखलाया कि इस सब के साथ अकाल, भूईंडोल, मरियाँ, और अधर्म होता।—मत्ती २४:७-१३; लूका २१:१०, ११.
मसीही प्रेरित पौलुस ने भी यथार्थता से वर्तमान विश्व परिस्थितियाँ पूर्वबतलायीं। उसने लिखा: “अन्तिम दिनों में कठिन समय, जिनसे निपटना मुश्किल होगा, आएँगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, ईश-निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले, कृतघ्न, बेवफ़ा, स्वाभाविक स्नेह रहित, मेल के ख़िलाफ़, मिथ्यापवादी, असंयमी, उग्र, भले के बैरी, विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी और परमेश्वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहनेवाले होंगे। वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे; ऐसों से परे रहना।” (२ तीमुथियुस ३:१-५, न्यू.व.) पौलुस वर्तमान विश्व परिस्थितियाँ इतनी यथार्थता से इसलिए पूर्वबतला सका कि परमेश्वर ने उसे वे शब्द लिखने के लिए प्रेरित किया।
अन्त के समय से संबंधित खुद उसके शब्दों के विषय में, यीशु ने कहा: “जब तुम ये बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्वर का राज्य निकट है।” (लूका २१:३१) सैंकड़ों लोग यीशु की आदर्श प्रार्थना का प्रयोग करके परमेश्वर का राज्य आने की बिनती करते हैं। (मत्ती ६:९, १०) लेकिन जब उन से पूछा जाए, “यह राज्य वास्तव में क्या करेगा?” उनके पास कोई जवाब नहीं होता। उनके विपरीत, बाइबल अध्ययन करनेवाले सैंकडों लोगों ने सीखा है कि राज्य इस पुरानी दुनिया का अन्त लाएगा और मनुष्यजाति को अनगिनत आशीर्वाद लानेवाली एक नयी दुनिया को अडिग रूप से स्थापित करेगा। लेकिन कैसे? कब?