क्या आप नयी कल्पनाओं की ओर खुले-मनस्क हैं?
कुछ लोग कोई भी नयी कल्पना की ओर अपना मन बंद कर देते हैं। वे शायद उसे इसलिए अस्वीकार करते हैं कि यह उनके दृष्टिकोण से अलग है। मसलन, डेनमार्क में किसी औरत ने येम्मेट नामक साप्ताहिक पत्रिका को यह लिखकर कहा: “हमारे दरवाज़ों पर यहोवा के गवाह बार-बार आते रहते हैं। उनकी वजह से मुझे बहुत ही ग़ुस्सा आता है, पर यह समझ नहीं पाती कि मैं उन्हें किस तरह हटवाऊँ। . . . क्या उनका यूँ तंग करना क़ानून द्वारा निषिद्ध नहीं किया जा सकता?”
मध्य-१९वीं सदी के जापानी लोगों के मन में, उनके दरवाज़ों पर पश्चिम की खटखटाहट भी उनके द्वारा “तंग” किया जाना ही था। अनेकों की नज़रों में, उन घुसपैठियों से संबंधित हर चीज़ या तो बेकार थी, या फिर हानिकारक थी। जैसे कि एक पूर्वी कहावत में कहा गया है: “शक अँधेरे में पिशाच उत्पन्न करता है।” अनेक जापानी लोगों की मनःस्थिति उनके कमाडोर पेरी को चित्रित करनेवाले रेखा-चित्रों से भली-भाँति स्पष्ट थी। बचे हुए लगभग ५० चित्रों में से, सिर्फ़ २ या ३ ही उसे एक साधारण यू.एस. नौसेना-अध्यक्ष के रूप में चित्रित करते हैं। बाक़ी के चित्र उसे एक लंबे नाक-वाले बेताल या एक गोरे पिशाच के रूप में चित्रित करते हैं, जैसा कि यहाँ सचित्रित किया गया है।
बहरहाल, उनके देश के खुलने से, खुले-मनस्क जापानी लोग समझ गए कि विदेशी बर्बर न थे। यूनाइटेड स्टेट्स को भेजे प्रथम जापानी शिष्टमण्डल के कुछ लोगों के मामले में, जब उन्होंने पश्चिमी संस्कृति को प्रत्यक्ष देखा, तब कुछ इस प्रकार हुआ मानो उनकी आँखों के सामने से परदा गिर गया हो। उच्च अधिकारी शिकायत करते रहे कि अमरीकी लोग एक जापानी दृष्टिकोण से कितने बदतमीज़ थे। लेकिन तरुण पीढ़ी ने नयी संस्कृति का एक अधिक सन्तुलित अनुमान किया।
एक उच्च अधिकारी के १९-वर्षीय परिचारक ने बाद में लिखा: “इस शिष्टमण्डल के ७० प्रतिनिधियों में से अधिकांश प्रतिनिधि [अमरीकियों] से कुढ़ते या द्वेष करते थे। बहरहाल, असली परिस्थितियों को प्रत्यक्ष देखने के बाद, हमारे बीच कुछ व्यक्तियों ने समझ लिया कि उनकी ग़लती हुई थी और उन्हें ऐसी भावनाएँ मन में रखने का पश्चाताप हुआ। विदेशियों को कुत्तों या घोड़ों के समान नीच समझना और उनका अपमान करना, हमारे लिए उनसे यही कुख़्याति हासिल करेगी कि हम क्षमारहित और अधर्मी हैं।” क्या आप इस हद तक खुले-मनस्क हैं कि आप उतनी ही निष्पक्ष अभिवृत्ति से, जितना कि उस तरुण परिचारक की थी, नयी कल्पनाओं की जाँच करेंगे?
बिरीया वासियों का आदर्श
सामान्य युग की पहली सदी में, अनेक यहूदियों ने मन में मसीही उपदेशों की ओर एक निर्मूल पूर्वाग्रह रखा। कुछ बातों में, यह बाहरी दुनिया के ख़िलाफ़ विविक्तिवादी जापानियों के पूर्वाग्रह के सदृश था। “हर जगह [मसीहियत] के विरोध में लोग बातें कहते हैं,” प्राचीन रोम के यहूदियों ने दावा किया। (प्रेरितों के काम २८:२२) थिस्सलुनीके के शहर के कुछेक मसीहियों के संबंध में, पूर्वाग्रही यहूदियों ने चिल्लाकर कहा: “ये लोग जिन्होंने जगत को उलटा पुलटा कर दिया है, यहाँ भी आए हैं।”—प्रेरितों के काम १७:६.
फिर भी, ऐसे लोग भी थे जो अपने पूर्वाग्रहों के परे देखने के लिए तैयार थे। मसलन, प्रेरित पौलुस और उसके साथी सीलास द्वारा प्रचार किए गए सुसमाचार की ओर बिरीया के निवासियों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? बिरीया वासियों के बारे में, बाइबल लेखक लूका ने कहा: “ये लोग तो थिस्सलुनीके के यहूदियों से ज़्यादा खुले-मनस्क थे और उन्होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ढूँढ़ते रहे कि ये बातें योंहीं हैं, कि नहीं।” (प्रेरितों के काम १७:११, न्यू.व.) क्या आप बिरीया वासियों के जैसे “खुले-मनस्क” हैं?
मासाजी के मिसाल पर ग़ौर करें। किसी वक्त, मसीहियत की ओर वह तीव्र वैर-भाव रखता था। वह उन विविक्तिवादियों के समान था जिन्होंने जापान का खुला होने का विरोध किया। जब उसकी पत्नी, साचिको ने बाइबल अध्ययन करना शुरू किया, उसने हिंसक रूप से उसका विरोध किया। उसने अपने परिवार की हत्या करने और फिर खुदखुशी करने का भी विचार किया। उसकी हिंसा की वजह से, उसके परिवार को उत्तर जापान में साचिको के बड़े भाई के घर निकल भागना पड़ा।
आख़िरकार, मासाजी ने अपना मन थोड़ा-बहुत खुला करके अपनी पत्नी के धर्म की जाँच करने का निश्चय लिया। कुछ बाइबल साहित्य पढ़ने के बाद, उसने कुछ परिवर्तन करने की ज़रूरत महसूस की। जैसे जैसे वह धर्मशास्त्र पढ़ता गया, वैसे वैसे उसकी हिंसक अभिवृत्ति परमेश्वर के आत्मा के फल प्रतिबिंबित करनेवाली अभिवृत्ति में बदल गयी। (गलतियों ५:२२, २३) मासाजी यहोवा के गवाहों की सभाओं में उपस्थित होने से हिचकिचाया इसलिए कि वह डरता था कि शायद गवाह उनके विरुद्ध की गयी उसकी हिंसा का बदला चुकाएँगे। लेकिन जब वह आख़िर किंग्डम हॉल गया, उसका स्वागत इतने स्नेह से हुआ कि वह रो पड़ा।
जी हाँ, पूर्वाग्रह को अभिभूत करना और नयी कल्पनाओं की जाँच करना हमारे मानसिक क्षितिज को बढ़ा सकता है और हमारे लिए अन्य रीति से भी फ़ायदेमंद साबित हो सकता है। फिर भी, क्या इसका मतलब यह है कि हर नयी कल्पना की ओर हमें अपना मन खुला रखना चाहिए?
चयनात्मक रहें!
जापान की विविक्ति के अंत के साथ, उस देश में नयी कल्पनाएँ बहने लगीं। कुछेकों से जापानी लोगों का फ़ायदा हुआ, लेकिन कुछ अन्यों के बग़ैर उनका ज़्यादा फ़ायदा होता। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान का पराजय स्वीकार करने पर यू.एस. जनरल डग्लस मकार्थर ने कहा: “कमाडोर पेरी के इरादों के ख़िलाफ़, जापान ने पश्चिम के ज्ञान को अत्याचार और ग़ुलामी का एक साधन बना दिया।” अपने पश्चिमी परामर्शदाताओं की नक़ल करते हुए, जापान एक ऐसे रास्ते पर प्रारंभ हुआ जिसके कारण उसे कई युद्ध लड़ने पड़े। इनकी पराकाष्ठा दूसरा विश्व युद्ध था, जिसके अंत में जापानी क्षेत्र पर दो अणु बम गिरा दिए गए।
हम इस से क्या सीख सकते हैं? यही, कि हमें नयी कल्पनाओं को स्वीकार करने में चयनात्मक होना चाहिए। “प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ढूँढ़ते रहने के द्वारा, कि ये बातें [जो पौलुस ने सिखायी थीं,] योंहीं हैं, कि नहीं,” हम बिरीया वासियों के आदर्श का अनुकरण करके भली-भाँति करेंगे। (प्रेरितों के काम १७:११) जिस यूनानी शब्द का अनुवाद यहाँ “ढूँढ़ते रहना,” किया गया है, उसका अर्थ है “ध्यानपूर्वक और यथार्थ खोज करना, जैसे कि क़ानूनी कार्रवाही में।” (ए. टी. रॉबर्टसन् द्वारा लिखी, वर्ड पिक्चर्स इन द न्यू टेस्टामेन्ट) सोचे-समझे बिना हर एक नयी कल्पना स्वीकार करने के बजाय, हमें ध्यानपूर्वक और यथार्थ छान-बीन करनी चाहिए, उसी तरह जैसे एक न्यायाधीश किसी मुक़दमें की सुनवाई में करेगा।
अगर हम चयनात्मक हैं, तो हम हर क्षणिक झक से या नयी कल्पनाओं से, जो सचमुच हानिकारक हैं, प्रभावित न होंगे। उदाहरणार्थ, १९६० के दशक की नयी नैतिकता कुछेकों को एक चित्ताकर्षक नयी कल्पना लगी। लेकिन सुविचारित जाँच से यह पता लगता कि यह वही हानिकारक पुरानी अनैतिकता थी जिसका अब एक नया नाम था। और, १९२० के दशक में आर्थिक रूप से संत्रस्त जर्मनी में, इस बात का कोई शक नहीं कि कई लोगों ने नाट्ज़ीवाद को एक उत्तेजक नयी कल्पना समझा, लेकिन उस से कैसी घोर-व्यथा उत्पन्न हुई!
उचित ढंग से, परमेश्वर ने एक ऐसा निकष दिया है जिसे नयी कल्पनाओं को परखने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यह उसका प्रेरित वचन, बाइबल है। पारिवारिक जीवन और मानव रिश्तों में उसका मार्गदर्शन लागू करने से हमें समाजशास्त्रियों, मनोवैज्ञानिकों, तथा इन क्षेत्रों में सुविज्ञता का दावा करनेवाले अन्यों से सुनी नयी कल्पनाओं की जाँच करने की मदद होगी। (इफिसियों ५:२१–६:४; कुलुस्सियों ३:५-१४) परमेश्वर और पड़ोसी के साथ हमारे रिश्ते से संबंधित बाइबल की सलाह, हमें धर्म के विषय अब फैली जानेवाली अनेक नवीन कल्पनाओं की जाँच करने का साधन देती है। (मरकुस १२:२८-३१) बाइबल का यथार्थ ज्ञान हमें यह तय करने के लिए लैस करेगा कि क्या यह नयी कल्पना किसी वास्तविक मूल्य की है या नहीं। तब हम ‘सब बातों को परख सकेंगे और जो अच्छी हैं उसे पकड़े रह सकेंगे।’—१ थिस्सलुनीकियों ५:२१.
यहोवा के गवाह अपने पड़ोसियों को बाइबल के बारे में सीखने को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें भेंट करते हैं, ताकि वे नयी कल्पनाओं को सही-सही आँक सकें। गवाह ऐसे बाइबल विचार भी बताते हैं जो अनेकों के लिए नए हैं। उन में हम जिस समय में जी रहे हैं और मनुष्यजाति के लिए भविष्य में दरअसल क्या रखा है, इन के बारे में की सच्चाई है। (मत्ती २४:३-४४; २ तीमुथियुस ३:१-५; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) तो जब गवाह आप के घर भेंट करते हैं, तब विविक्तिवादी अभिवृत्ति ग्रहण न करें। उलटा, क्यों न आप दरवाज़ा खोलें और सुनें कि उन्हें क्या कहना है? अपना मन ऐसी कल्पनाओं की ओर बंद न करें जिनसे आपका अनन्त फ़ायदा हो सकता है।
[पेज 31 पर चित्र का श्रेय]
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