क्या परिश्रम से खुशी प्राप्त होती है?
“अन्ततः, मनुष्य के लिए कार्य ही तो सब कुछ होता है, है ना?” जापानी व्यापार की दुनिया के एक नामी रईस, बनपेई ओट्सुकी ने पूछा। वह बता रहे थे कि वह गरमी की छुट्टियाँ क्यों नहीं लेना चाहते थे। उनके ये शब्द जापानियों के आदर्श की विशेषता प्रदर्शित करते हैं, जिन्होंने युद्धोपरान्त की अव्यवस्था से देश का पुनर्निर्माण किया। जब से संयुक्त राज्य अमरीका के कोमोडोर पेरी ने जापान को उसके लंबे एकान्त से उबारा, उस वक्त से जापानी लोगों का वर्णन परिश्रमी लोगों के रूप में किया गया है। और वे परिश्रमी होने में गर्व महसूस करते हैं।
बहरहाल, अब जापान की आलोचना की जा रही है कि वे अति परिश्रम कर रहे हैं और तथाकथित औद्योगीकृत देशों में उन्हीं का सालाना कार्यकाल सबसे अधिक है। जापानी सरकार भी इस कार्य-व्यसनी छवि को मिटाने का प्रयास कर रही है। एक समाचार पत्र का मुख्य शीर्षक कहता है: “श्रम मन्त्रालय कहता है, ‘इतना परिश्रम करना बन्द करो।’” और १९८७ की गरमी की छुट्टियों की अवधि के लिए अपने अभियान की आदर्शोक्ति में तो मन्त्रालय ने यहाँ तक कह दिया, “छुट्टी लेना आपकी सक्षमता का प्रमाण है।” यदि अन्य रीति से कहा जाए तो, सरकार राष्ट्र से पूछ रही है, “इतना परिश्रम क्यों करना?”
निश्चय ही, जापान में सभी लोग कर्मनिष्ठ, परिश्रमी व्यक्ति नहीं हैं। हाल ही में जापान उत्पादकता केन्द्र ने जो ७,००० नए कर्मचारियों का सर्वेक्षण किया, उस से पता चला कि उन में से केवल ७ प्रतिशत लोगों ने नौकरी को व्यक्तिगत जीवन से ज़्यादा प्राथमिकता दी। यही मनोवृत्ति दूसरे देशों में भी देखी जा सकती है। जर्मनी में ॲलेन्सबाख़र इंस्टिटुट फ़्यूर डीमॉस्कोपी ने पाया कि १८ से २९ वर्ष के आयुवर्ग में केवल १९ प्रतिशत जर्मनों ने दावा किया कि वे अपने कार्यस्थल पर पारिश्रमिक को ध्यान दिए बिना, उत्तम रीति से कार्य करते हैं।
आरामपसन्द युवजन की तुलना में, जापान में रहनेवाले आप्रवासी कर्मचारी कहीं ज़्यादा परिश्रमी हैं। टोकयो में एक मालिक अपने एक अल्जीरीयन कर्मचारी के बारे में, जो शारीरिक श्रम करता है, उत्साहप्रद रूप से बात करता है। वह कहता है: “इस प्रकार के काम के लिए जापानी कभी आवेदन नहीं करेंगे, और यदि उन्होंने किया भी तो वे फ़ौरन ही छोड़ देते।” नहीं, परिश्रमी जापानी भी सहज रूप से परिश्रमी नहीं हैं। जब लोग परिश्रम करते हैं, तब अवश्य ही प्रबल अभिप्रेरणा होनी चाहिए।
परिश्रम करने के कारण
“धन, स्थायित्व, सम्पत्ति और दुनिया में सफ़ल होना”—परिश्रमी जर्मन इन्हीं चीज़ों की प्राप्ति में जुटे हुए हैं, जर्मन साप्ताहिक डेर श्पीगल रिपोर्ट करता है। जी हाँ, अनेक लोग भौतिक सम्पत्ति हासिल करने के लिए परिश्रम इसलिए करते हैं कि वे जीवन में कुछ हद तक स्थिरता का आनन्द उठा सकें। दूसरे लोग “दुनिया में सफ़ल होने” या दफ़्तर में तरक़्क़ी की सीढ़ियाँ चढ़ने के लक्ष्य से परिश्रम करते हैं। कई लोग जो ऐसे लक्ष्यों को पाने हेतु प्रतिस्पर्धात्मक शिक्षा पद्धति से प्रबल रूप से प्रेरित होते हैं, दुःखद रूप से वे आख़िरकार औद्यागिक समाज की पाँव-चक्की पर दौड़ते ही रह जाते हैं —अपने आप को थका देते हैं, पर किसी लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाते।
लेकिन, धन और प्रतिष्ठा ही वे कारण नहीं जिनकी वजह से लोग परिश्रम करते हैं। कुछ लोग कार्य के लिए ही कार्य करते हैं। उनके लिए कार्य ही सब कुछ है। अन्य अपने काम में आनन्द प्राप्त करते हैं। हारूओ स्वीकार करता है, “मैं अपनी प्रयोगशाला में जो काम कर रहा था, उस से मेरी इतनी जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि मेरे आध्यात्मिक लक्ष्यों के लिए कोई स्थान नहीं बचा।”
फिर ऐसे लोग भी हैं जो दूसरों की सेवा और कल्याण हेतु सार्थक कार्य में समर्पित हैं। वे जानें बचाने के लिए परिश्रम करते हैं। उदाहरण के लिए, आग बुझानेवाला अपने उपकरणों को अच्छी हालत में रखने हेतु प्रतिदिन परिश्रम करता है।
परन्तु परिश्रम करने के लिए क्या ये ठोस कारण हैं? क्या ये खुशी प्रदान करेंगे? वास्तव में, कैसा कार्य आपको सचमुच खुश कर सकता है?