पाठकों से प्रश्न
◼ क्या किसी मसीही का लॉटरी टिकट मात्र मनोरंजन के तौर से ख़रीदना उचित होगा, यदि उस से प्राप्त धन किसी धर्मार्थ संस्थान को दिया जाए?
बाइबल बेशक उचित मनोरंजन नापसंद नहीं करती, क्योंकि यहोवा “आनन्दित परमेश्वर” हैं। (१ तीमुथियुस १:११) उनके लोग संगीत, सलज्ज नाच, संयमी खाना-पीना और संतुलित क्रीड़ा तथा खेल का आनन्द उठा सकते हैं। (भजन संहिता १५०:४; सभोपदेशक २:२४) परन्तु, जूआ स्पष्ठ रीति से परमेश्वर की बुद्धिमान सलाह के विरुद्ध है, और यही बात लॉटरी में भाग लेने के बारे में भी सच है।
लॉटरी दरअसल क्या होती है? उस में इनाम जीतने का अवसर प्राप्त करने के लिए टिकट ख़रीदना पड़ता है। चिट्ठी डालकर अथवा किसी दूसरे क्रम-रहित रीति से नम्बर चुनने के द्वारा जीतने वाला कौन है, यह तय किया जाता है।a बहुधा एक ही बहुत बड़ा इनाम होता है, जिसकी रक़्म शायद लाखों डॉलर, रुपये, या पौंड हो सकती है। इतने बड़े इनाम का आकर्षन इतना प्रबल है कि लॉटरियाँ “जूए का सर्वाधिक फैला हुआ रूप” बन गयी हैं। (द वर्ल्ड बुक एन्साइक्लोपीडिया) लाखों करोड़ों लोग लॉटरियों के ज़रिए जूआ खेलते हैं।
कुछ लोगों ने तर्क किया है कि लॉटरी में शामिल होना ग़लत या बुरा नहीं, क्योंकि टिकट का दाम (संयोग) शायद छोटा है, चूँकि भाग लेनेवाले स्वेच्छा से भाग लेते हैं, और चूँकि उस से प्राप्त कुछ धन शायद किसी धर्मार्थ हेतु, जैसे ग़रीबों की सहायता के लिए उपयोग किया जाता है। यह तर्क कितना उचित है?
जब कि कुछ लोग दावा करते हैं कि लॉटरी टिकट ख़रीदना साधारण, सस्ता मनोरंजन है, इस में लोभ के स्थान को नकारा नहीं किया जा सकता है। लोग बहुत पैसा जीतने की आशा से लॉटरी के टिकट ख़रीदते हैं। यह लोभ के विरुद्ध परमेश्वर की सलाह के निश्चय ही प्रतिकूल है, जो कि एक इतना गंभीर दोष हो सकता है कि वह एक व्यक्ति को ‘परमेश्वर के राज्य का वारिस’ होने से रोक सकता है। इसलिए, यदि एक मसीही ने जूआ खेलकर निरंतर लोभ प्रदर्शित किया, तो उसे कलीसिया में से बाहर किया जा सकता था। (१ कुरिन्थियों ५:११; ६:१०) बाइबल कहती है: “विरासत पहले लोभ से पायी जाती है, परन्तु अन्त में उस पर आशीष नहीं होती।” (नीतिवचन २०:२१; न्यू.व.) यदि एक मसीही व्यक्ति को लॉटरी के द्वारा ‘क़िस्मत आज़माने’ के प्रति कोई आवेग महसूस हुआ, तो उसे गंभीरतापूर्वक उस लोभ के बारे में विचार करना चाहिए जिस पर लॉटरियाँ आधारित हैं। इफिसियों ५:३ में कहा गया है कि ‘हमारे मध्य लोभ की चर्चा तक न होनी चाहिए,’ तो फिर, एक मसीह का उसके दबाव के अधीन होना तो दूर की बात है।
लॉटरी खेलनेवालों का सबसे बड़ा भाग सामान्य रीति से ग़रीब समाजों में पाया जाता है। सो यदि टिकट का दाम कम भी हो, फिर भी पैसे को दूसरे काम पर लगाया जा रहा है, जिसे दरअसल परिवार की असली आवश्यकताओं के लिए उपयोग किया जाना चाहिए था—अधिक भोजन, पर्याप्त वस्त्र, अधिक अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएँ। एक व्यक्ति जो मसीही होने का दावा करता है परन्तु जो परिवार की ऐसी आवश्यकताओं की उपेक्षा करता है, वह “अविश्वासी से भी बुरा बन गया है।”—१ तीमुथियुस ५:८.
अगर लॉटरी टिकट का दाम किसी की निजी अथवा पारिवारिक पूंजी को महत्त्वपूर्ण रीति से हानि नहीं भी पहुँचाए, फिर भी, इसका अर्थ यह नहीं कि दूसरों को हानि नहीं पहुँचती। ऐसा क्यों? क्योंकि लॉटरी टिकट ख़रीदने वाला लगभग हर एक व्यक्ति जीतना चाहेगा। उसके इनाम का पैसा कहाँ से आएगा? यदि उसके टिकट का दाम दस रुपये था और इनाम दस लाख रुपये का है, तो इसका अर्थ यह होता है कि वह एक लाख अन्य व्यक्तियों से टिकट का पैसा लेता है। क्या यह दूसरों के बहुमूल्य वस्तुओं का लालच नहीं करने के बारे में परमेश्वर की आज्ञा के अनुरूप है? (व्यवस्थाविवरण ५:२१) वास्तव में, उसके इनाम में कई अधिक व्यक्तियों से लिया गया पैसा शामिल होगा, क्योंकि एक लाख से कई अधिक टिकटों को बेचना आवश्यक होगा। टिकट के पैसों के एक बड़े अंश का उपयोग प्रबन्ध के ख़र्च के लिए होगा और साथ साथ कुछ पैसा उस धर्मार्थ संस्थान को दिया जाएगा जिसे बड़े उत्साह के साथ लॉटरी का बहाना घोषित किया जाता है। सो यदि एक व्यक्ति के लिए अपने टिकट का दस रुपये देना संभव हो भी, तो बड़ी संख्या में अन्य व्यक्तियों का क्या? इसके अलावा, उसकी जीत की शायद आम घोषणा की जाएगी, जिस से दूसरे, अगर यह उनके लिए आर्थिक रीति से संभव नहीं भी हो, तो भी लॉटरी खेलना आरंभ करने अथवा अधिक टिकट ख़रीदने के लिए उकसाए जाएँगे।
और इस बात को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता, कि काम किए बिना पैसा जीतने का सपना लॉटरी के साथ जुड़ा हुआ है। हाँ, लॉटरी आलस्य को बढ़ावा देती है अथवा उस गुण को उत्तेजित करती है। परन्तु, बाइबल परमेश्वर के लोगों को प्रोत्साहित करती है कि वे कम ख़र्च, परिश्रमी और मेहनती बने। ‘कुछ न करने के बदले कुछ पाने’ की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के बजाय, यह सलाह देती है: “यदि कोई काम करना न चाहे, तो वह खाने भी न पाए।”—२ थिस्सलुनीकियों ३:१०; नीतिवचन १३:४; २०:४; २१:२५; १ थिस्सलुनीकियों ४:९-१२.
यह बात कि शायद अन्य लोग अपनी स्वेच्छा से लॉटरी में भाग लेते हैं और कि उसे क़ानूनी अनुमति प्राप्त है, एक मसीही व्यक्ति के लिए उस में भाग लेना उचित कारण नहीं होता। कुछेक सरकार जूए के अन्य प्रकारों को और वेश्यवृत्ति तथा बहुविवाह-प्रथा को भी क़ानूनी अनुमति देती हैं। हालाँकि शायद ऐसी बातों को क़ानूनी अनुमति प्राप्त है और कई लोग स्वेच्छा से उन में शामिल हैं, इसका यह अर्थ नहीं कि ऐसे कार्य परमेश्वर की दृष्टि में उचित हैं। उलटा, मसीही दाऊद के दृष्टिकोण को प्रतिबिम्बित करने का प्रयत्न करेंगे: “हे यहोवा, अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपने पथ मुझे बता दे। मुझे अपने सत्य पर चला और शिक्षा दे, क्योंकि तू मेरा उद्धार करनेवाला परमेश्वर है।”—भजन संहिता २५:४, ५.
यदि कोई मसीही सचमुच ग़रीबों, विकलांगों अथवा वृद्धों की मदद करना चाहता है, तो निस्संदेह वह सीधे रूप से ऐसा कर सकता है, अथवा ऐसी किसी रीति से, जिसमें जूआ खेलना शामिल नहीं हो।
[फुटनोट]
a हालाँकि विस्तृत रूप से इसे लॉटरी के नाम से जाना जाता है, इस क़िस्म के जूए को पूल (समूह-निधि), स्वीपस्टेक्स (घुड़दौड़ की बाज़ी में लगी राशी), रॅफल (एक ऐसी लॉटरी जिस में इनाम पैसा या अन्य कोई चीज़ हो), अथवा किसी स्थानीय नाम से भी शायद जाना जा सकता है।