कौन परमेश्वर का दोस्त बन सकता है?
आप परमेश्वर के दोस्त बन सकते हैं। क़रीब ४,००० साल पहले, एक आदमी इब्राहीम ने यहोवा परमेश्वर पर विश्वास किया। यह उसके लिए धार्मिकता गिना गया, और वह कुलपिता “यहोवा का मित्र” कहलाया गया। (याकूब २:२३, न्यू.व.) तो अगर आपको यहोवा पर विश्वास है, तो आप भी परमेश्वर के दोस्त बन सकते हैं।
यह सम्भव है कि दोस्तों को मेहमानों के तौर से खाने के लिए बुलाया जाएगा। दरअसल, सुप्रसिद्ध २३वाँ भजन के एक भाग में परमेश्वर को एक दयामय मेज़बान के तौर से चित्रित किया गया है। इस में कहा गया है: “[यहोवा] तू मेरे सतानेवालों के सामने मेरे लिए मेज़ बिछाता है। . . . मेरा कटोरा उमण्ड रहा है।”—भजन २३:५.
एक और अवसर पर, उसी भजनकार—प्राचीन इस्राएल के राजा दाऊद—ने पूछा: “हे यहोवा, तेरे तम्बू में कौन रहेगा? तेरे पवित्र पर्वत पर कौन बसने पाएगा?” (भजन १५:१, न्यू.व.) प्रतीकात्मक रूप से, इसका मतलब यह है कि हमारे पास स्वीकार्य प्रार्थना और उपासना से यहोवा तक पहुँचने का रास्ता है। यह क्या ही विस्मयकारी विशेषाधिकार है! किस तरह अपूर्ण मानव परमेश्वर के दोस्त और मेहमान होने के योग्य बन सकते हैं?
१५वाँ भजन इस सवाल का जवाब देता है। परमेश्वर के दोस्त और मेहमान बनने के इच्छुक लोगों के लिए यह दस विशेष आवश्यक गुणों का उल्लेख करता है। आइए, हम आयत २ से शुरु करके, इन आवश्यक गुणों पर एक-एक करके विचार करें।
“वह जो खराई से चलता और धर्म के काम करता है”
इब्राहीम की सन्तान अत्याधिक मात्रा में इसलिए फली-फूली कि इब्राहीम यहोवा के सामने चलने में नैतिक रूप से सिद्ध था। (उत्पत्ति १७:१, २) कभी-कभी “चलना” जीवन में एक निश्चित दिशा में जारी रहने का अर्थ रखता है। (भजन १:१; ३ यूहन्ना ३, ४) परमेश्वर के दोस्तों और मेहमानों के लिए किसी धर्म का सदस्य होना, उसके अलंकृत इमारतों में आनन्द लेना, और औपचारिक प्रथाओं में भाग लेना ही काफ़ी नहीं। “हे प्रभु, हे प्रभु” कहनेवाले या जो घोषित करते हैं कि वे परमेश्वर को जानते हैं, इन में से सभी परमेश्वर के राज्य के आशीर्वाद का आनन्द नहीं लेंगे। (मत्ती ७:२१-२३; तीतुस १:१६) यहोवा के दोस्त उनके सामने ‘खराई से चलते हैं’ और उनके मानदण्डों के अनुसार ‘धर्म के काम करते हैं।’—मीका ६:८.
यह हर प्रकार की बेईमानी, यौन-संबंधी अनैतिकता, और भ्रष्टाचार को वर्जित करता है। खुद परमेश्वर हमें इसका कारण बताते हैं, यह कहते हुए: “पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ।” (१ पतरस १:१६) क्या आपका धर्म परमेश्वर के उच्च मानदण्डों से लगा रहता है, उन लोगों को भी जाति से बहिष्कृत करके, जो उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप बनना अस्वीकार कर देते हैं? क्या आप अपने लिए और अपने परिवार के लिए धार्मिक आचरण का आग्रह करते हैं? अगर करते हैं, तो आप परमेश्वर के मेहमान और दोस्त बनने के लिए अगले आवश्यक गुण को पूरा कर रहे होंगे।
“और हृदय में सच बोलता है”
अगर हमें परमेश्वर की दोस्ती चाहिए, तो हम झूठ नहीं बोल सकते और ना ही हम दोहरे मन से चिकनी-चुपड़ी बातों का सहारा ले सकते हैं। (भजन १२:२) हमें ‘अपने हृदय में सच बोलना चाहिए,’ न कि इसे सिर्फ़ अपने होंठों तक ही सीमित रखना चाहिए। जी हाँ, हमें भीतरी रूप से ईमानदार होना चाहिए और “कपटरहित विश्वास” का सबूत देना चाहिए। (१ तीमुथियुस १:५) कुछ लोग झूठ बोलते हैं या अपनी लाज रखने के लिए अर्धसत्य बोलते हैं। अन्य पाठशाला की परीक्षाओं में बेईमानी करते हैं या कर अदा करने के संबंध में अपनी आय का अयथार्थ रूप प्रस्तुत करते हैं। ऐसे कार्यों से सच्ची बातों के लिए प्रेम की कमी प्रकट होती है। लेकिन सत्यवादिता और ईमानदार कार्य परमेश्वर के दोस्तों के हृदय ही से आते हैं। (मत्ती १५:१८-२०) वे कपटी या धूर्त नहीं हैं।—नीतिवचन ३:३२; ६:१६-१९.
प्रेरित पौलुस ने लिखा: “एक दूसरे से झूठ मत बोलो। पुराने व्यक्तित्व को उसके कामों समेत उतार डालो, और नए व्यक्तित्व को पहन लो।” (कुलुस्सियों ३:९, १०, न्यू.व.) जी हाँ, जो लोग सचमुच ही अपने हृदय में सच बोलते हैं, वे “नया व्यक्तित्व” पहन लेते हैं। क्या आप अपने हृदय में सच बोलते हुए, अपने साथ और दूसरों के साथ पूर्णतया ईमानदार हैं? अगर आप हैं, तो आप दूसरों के बारे में क्या कहते हैं, यह इस बात से प्रभावित होना चाहिए।
“जो अपनी जीभ से निन्दा नहीं करता”
परमेश्वर के मेहमानों के लिए इस आवश्यक गुण को पूरा करने के लिए, हमें कभी दूसरों के बारे में विद्वेषपूर्ण रूप से बोलना नहीं चाहिए। (भजन १५:३) इब्रानी क्रियापद “मिथ्यापवाद करना,” उस शब्द से व्युत्पन्न है, जिसका अनुवाद “पैर” किया गया है, और जिसका अर्थ है, “पैदल चलना” तथा इस प्रकार “यहाँ वहाँ फिरना।” इस्राएलियों को आदेश दिया गया था: “लुतरा बनके अपने लोगों में न फिरा करना, और एक दूसरे के लोहू बहाने की युक्तियाँ न बाँधना। मैं यहोवा हूँ।” (लैव्यव्यवस्था १९:१६; १ तीमुथियुस ५:१३) अगर हम किसी के बारे में मिथ्यापवाद करेंगे, और इस प्रकार उसे अपने अच्छे नाम से वंचित करेंगे, तो हम परमेश्वर के दोस्त नहीं बन सकते।
दाऊद ने घोषित किया: “जो छिपकर अपने पड़ोसी की चुगली खाए, उसको मैं चुप कराता हूँ।” (भजन १०१:५, न्यू.व.) अगर हम मिथ्यापवादियों की सुनना बिल्कुल अस्वीकार करेंगे, तो हम भी उन्हें चुप करा सकते हैं। और एक अच्छा नियम यह है कि किसी व्यक्ति के पीठ पीछे ऐसी कोई बात न कहें, जो हम उसके मुँह पर कहने के लिए इच्छुक न हों। अगर हमें अपनी जीभ पर ऐसा क़ाबू है, तो यह एक उत्तम बात है। फिर भी, हमारे व्यवहार पर भी क़ाबू रखना कितना महत्त्वपूर्ण है!
“और न अपने मित्र की बुराई करता है”
यहाँ यीशु के शब्द उल्लेखनीय हैं: “इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।” (मत्ती ७:१२) परमेश्वर के अनुमोदन का आनन्द उठाने के लिए, हमें बुरे काम करने से परहेज़ करना चाहिए। भजनकार ने कहा: “हे यहोवा के प्रेमियों, बुराई से घृणा करो; वह अपने भक्तों के प्राणों की रक्षा करता, और उन्हें दुष्टों के हाथ से बचाता है।” (भजन ९७:१०) तो अगर हम परमेश्वर की दोस्ती और मदद चाहते हैं, हमें उनके मानदण्डों को स्वीकार करना चाहिए।
बुराई से दूर रहने में व्यवसाय की लेन-देन में या अन्य रीतियों में किसी को नुक़सान नहीं पहुँचाना भी शामिल है। कथनी और करनी में, हमें अपने साथी को हानि पहुँचाने के लिए कुछ भी नहीं करना चाहिए, परन्तु हमें उसके लिए अच्छे काम करने चाहिए। यह जीवन के हर पहलु को प्रभावित कर सकता है। उदाहरणार्थ, गाड़ी चलाते समय, हम शायद शिष्टता दिखाकर पैदल चलनेवालों को पहले जाने का हक़ देंगे। हम बूढ़ों की मदद कर सकते हैं, निराश लोगों को प्रोत्साहित कर सकते हैं, दुःखियों को सान्त्वना दे सकते हैं। इस संबंध में, यहोवा मुख्य मिसाल क़ायम करते हैं। जैसे कि यीशु ने कहा, परमेश्वर “भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है।” (मत्ती ५:४३-४८) दूसरों की ख़ातिर अच्छा करने के समान उस बात को पूरा करना है, जिस बात का उल्लेख भजनकार आगे करता है।
“और न अपने पड़ोसी की निन्दा सुनता है”
हम सब ग़लतियाँ करते हैं, और हम कितने आभारी होते हैं जब हमारे दोस्त जानबूझकर इन छोटी छोटी ग़लतियों को नज़रंदाज़ करते हैं! अगर हमारे किसी घनिष्ठ मित्र ने दूसरों को हमारी छोटी परन्तु लज्जित करनेवाली कमज़ोरियों के बारे में बता दिया, तो हमें परेशानी होगी। कुछ लोग ऐसा इसलिए करते हैं कि वे अपनी कमियों से ध्यान हटा सकें या अपने आप को दूसरों से बेहतर प्रकट कराएँ। लेकिन ऐसे कार्य उन लोगों को शोभा नहीं देते जो परमेश्वर के दोस्त बनना चाहते हैं।
“जो दूसरे के अपराध को ढाँप देता, वह प्रेम का खोजी ठहरता है, परन्तु जो बात की चर्चा बार बार करता है, वह परम मित्रों में भी फूट करा देता है,” नीतिवचन १७:९ में कहा गया है। निश्चय ही, हमें गम्भीर अपराध को ढाँप देने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। (लैव्यव्यवस्था ५:१; नीतिवचन २८:१३) लेकिन अगर हमें परमेश्वर के दोस्त बनना है, तो हम ईमानदार परिचितों के बारे में निन्दात्मक कहानियाँ नहीं ‘सुनेंगे,’ या उन्हें सच नहीं मानेंगे। (१ तीमुथियुस ५:१९) परमेश्वर के सेवकों के बारे में झूठी कहानियाँ फैलाने के बजाय, जिस से वह भार जो उन्हें अधर्मी मनुष्यों की दुष्ट निन्दाओं की वजह से उठाना पड़ता है ज़्यादा बन जाता है, यहोवा के दोस्त उनके बारे में अच्छी बातें करते हैं। परमेश्वर के दोस्त और मेहमान अपनी संगति में भी सावधानी बरसते हैं, इसलिए कि दाऊद आयत ४ में कहता है:
“उसकी दृष्टि में निकम्मा मनुष्य तुच्छ है”
स्वार्थी लाभ की खोज में, कुछ लोग अमीर या लब्धप्रतिष्ठ लोगों से, अगर वे भ्रष्ट हों तब भी, मेल-जोल रखते हैं। (यहूदा १६ से तुलना करें।) लेकिन अगर हम दुष्ट लोगों से मेल-जोल रखेंगे, तो हम यहोवा के दोस्त नहीं बन सकते। हमें बुराई से इतनी घृणा करनी चाहिए कि हम उन लोगों से मेल-जोल रखना चाहेंगे ही नहीं जो उसका अभ्यास करते हैं। (रोमियों १२:९) इस्राएल का राजा, यहोराम इतना बुरा था कि भविष्यवक्ता एलीशा ने उस से कहा: “सेनाओं के यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्थित रहा करता हूँ, उसके जीवन की शपथ यदि मैं यहूदा के राजा यहोशापात का आदर मान न करता, तो मैं न तो तेरी ओर मुँह करता और न तुझ पर दृष्टि करता।” (२ राजा ३:१४) परमेश्वर के दोस्त बनने के लिए, हमें पौलुस की चेतावनी पर ध्यान देना होगा: “बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।”—१ कुरिन्थियों १५:३३.
अगर हम यहोवा की दोस्ती को बहुमूल्य समझते हैं, तो हम अपराधियों से मेल-जोल रखना अस्वीकार करेंगे। हम उनसे सिर्फ़ आवश्यक लेन-देन ही रखेंगे। हमारे दोस्त परमेश्वर के साथ उनके अच्छे संबंध के आधार पर चुने जाएँगे, न कि दुनिया में उनकी प्रतिष्ठा के आधार पर। हम अपने दोस्त अक्लमन्दी से चुनेंगे अगर हम में परमेश्वर के लिए एक श्रद्धालु भय है। इस संबंध में, उस सातवें आवश्यक गुण पर ग़ौर करें, जो यहोवा के मेहमानों को पूरा करना है।
“पर वह यहोवा के डरवैयों का आदर करता है”
परमेश्वर के दोस्त और मेहमान बनने के लिए, हमें उनसे डरना चाहिए। नीतिवचन १:७ कहता है: “यहोवा का भय मानना बुद्धि का मूल है।” “यहोवा का भय” क्या है? यह परमेश्वर के प्रति श्रद्धामय ख़ौफ़ और उन्हें नाराज़ करने का एक हितकर भय है। इसके परिणामस्वरूप सच्ची जानकारी, प्राणरक्षक अनुशासन और स्वर्गीय बुद्धि मिलती है, जो कि एक पक्का मार्गदर्शक है।
यहोवा का भय माननेवाले उनके धार्मिक मानदण्डों से लगे रहते हैं, चाहे इसका परिणाम उपहास ही क्यों न हो। उदाहरणार्थ, जब परमेश्वर का भय माननेवाले अध्यवसाय से काम करते हैं, नौकरी में ईमानदार रहते हैं, या दूसरों को आध्यात्मिक रूप से मदद करने की कोशिश करते हैं, तब कई लोग ताना मारते हैं। एक धर्मभिरु व्यक्ति ऐसे ईमानदार लोगों का विचार कैसे करता है? ‘वह यहोवा के डरवैयों का आदर करता है,’ और उन्हें अत्याधिक सम्मान देता है, चाहे इसका अर्थ यह हो कि उसे उनके साथ निन्दा सहनी पड़ेगी। क्या परमेश्वर का भय माननेवालों के लिए आपको ऐसा आदर है? ईश्वरीय अनुमोदन के लिए एक और आवश्यकता का उल्लेख करते हुए, भजनकार आगे कहता है:
“वह शपथ खाकर बदलता नहीं चाहे हानि उठाना पड़े”
यहाँ दिया गया सिद्धान्त हमारे वादों को पूरा करने के बारे में है, जैसे परमेश्वर करते हैं। (१ राजा ८:५६; २ कुरिन्थियों १:२०) अगर हम बाद में पाए, कि हम ने जिस बात का वादा किया था, वह बहुत ही कठिन है, तब भी हमें अपना मन बदलना नहीं चाहिए और अपने वादे को त्यागना नहीं चाहिए। यहाँ यूनानी सेप्टुआजिन्ट, सिरिएक पेशिट्टा, और लॅटिन वल्गेट मूलपाठ कहते हैं, “अपने पड़ोसी को शपथ दी है।” अगर हम कुछ करने की शपथ खाएँ या एक विशेष मन्नत माँगे, तो हमें उसे पूरा करना ही चाहिए। (सभोपदेशक ५:४) अवश्य, अगर हम जान जाएँ कि हम ने जिस बात का वादा किया था, वह धर्मशास्त्रों के ख़िलाफ़ है, तो हमें उसे पूरा नहीं करना चाहिए।
यहोशू ने गिबोन वासियों के साथ की गयी वाचा नहीं तोड़ी, इसके बावजूद भी कि उसे बाद में पता चला कि उन्होंने धोखे से उस से यह वाचा करवायी थी। (यहोशू ९:१६-१९) तो हमें ऐसे पुरुष, स्त्री और नौजवान होना चाहिए जो अपना वादा निभाते हैं। हम दूसरों से वादा करके फिर उन्हें गढ़े में न छोड़ दें, जब अधिक आकर्षक मौक़े हमारे सामने खुल जाते हैं। यीशु ने कहा: “तुम्हारी बात हाँ की हाँ, या नहीं की नहीं हो।” (मत्ती ५:३७) यहोवा के समर्पित लोगों को ख़ास तौर से इस बात के विषय में कृतसंकल्प होना चाहिए, कि वे गवाहों के रूप में अनन्त काल तक उनकी सेवा करने के वास्ते अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करेंगे। वादा निभाने के अलावा, हमें आर्थिक मामलों में भी दूसरों का लिहाज़ रखना चाहिए, जैसा कि दाऊद १५वें भजन के आयत ५ में दिखाता है।
“वह अपना रुपया ब्याज पर नहीं देता”
जो पैसा व्यापार के लिए उधार दिया जाता है, वह सही रूप से ब्याज सहित चुकाया जा सकता है। लेकिन यहाँ दाऊद का मतलब निस्सहाय लोगों को ‘रुपया देना’ था। मूसा के नियम में स्पष्ट किया गया: “यदि तू मेरी प्रजा में से किसी दीन को जो तेरे पास रहता हो रुपए का ऋण दे, तो उस से महाजन की नाईं ब्याज न लेना।” (निर्गमन २२:२५; लैव्यव्यवस्था २५:३५, ३६) जब नहेमायाह ने ग़रीबों को सूदखोरों के शिकार के रूप में कष्ट उठाते देखा, तब उसने ऐसे स्वार्थसाधन को बन्द कर दिया।—नहेमायाह ५:१-१३.
“ब्याज” शब्द के लिए दाऊद ने एक ऐसे इब्रानी शब्द का उपयोग किया जो एक और शब्द से व्युत्पन्न होता है, जो कि “काटना” सूचित करता है। यह सूचित करता है कि लोभी सूदखोर ग़रीबों को और उनके पास जो थोड़ा कुछ था, वह भी निगल जा रहे थे। स्पष्टतः, बिना कोई प्रत्यर्पण की अपेक्षा रखते हुए, ग़रीबों की मदद करना ही ज़्यादा बेहतर है। यीशु ने यह कहकर, इस बात पर ज़ोर दिया: “जब तू दिन का या रात का भोज करे, . . . तो कंगालों, टुण्डों, लंगड़ों और अँधों को बुला। तब तू धन्य होगा, क्योंकि उन के पास तुझे बदला देने को कुछ नहीं, परन्तु तुझे धर्मियों के जी उठने पर इस का प्रतिफल मिलेगा।” (लूका १४:१२-१४) परमेश्वर का दोस्त और मेहमान बनने का इच्छुक व्यक्ति अपने पड़ोसी की ग़रीबी का कभी फ़ायदा नहीं उठाता और भजनकार आगे जिस बात का उल्लेख करता है, उसके अनुसार करता।
“और निर्दोष की हानि करने के लिए उसने घूस नहीं लिया है”
घूसखोरी में भ्रष्ट कर देनेवाला प्रभाव है। इस्राएलियों को आदेश दिया गया: “तुम . . . न तो घूस लेना, क्योंकि घूस बुद्धिमान की आँखें अँधी कर देती है, और धर्मियों की बातें पलट देती है।” (व्यवस्थाविवरण १६:१९) किसी “निर्दोष” को हानि पहुँचाने के लिए घूस लेना ख़ास तौर से बुरी बात है, और यह शायद अदालत में दी गवाही को बदलने का रूप ले सकती है। निर्दोष यीशु का विश्वासघात करने के लिए घूस लेने के कारण यहूदा इस्करियोती कितना घृणित था!—मत्ती २६:१४-१६.
इस संबंध में शायद हम अपने आप को दोषमुक्त समझेंगे। पर क्या हम कभी पैसा देकर किसी लज्जाजनक स्थिति में से छुटकारा ख़रीदने के लिए प्रलोभित नहीं हुए हैं? भविष्यवक्ता शमूएल ने कभी “चुप रहने का पैसा,” या घूस नहीं लिया। (१ शमूएल १२:३, ४, न्यू.व.) हम सभी का आचरण इस तरह होना चाहिए, अगर हमें परमेश्वर के दोस्त और मेहमान बनना है।
“जो कोई ऐसी चाल चलता है वह कभी न डगमगाएगा”
एक ईमानदार व्यक्ति के उसके दस-गुना वर्णन के बाद, १५वाँ भजन इन शब्दों के साथ समाप्त होता है। संभवतः ये शब्द हमें अपने धर्म का विश्लेषण करने के लिए प्रेरित करेंगे। अगर यह सच्चा धर्म है, तो यह हमें (१) खराई से चलने और धर्म के काम करने, (२) हृदय में भी सच बोलने, (३) दूसरों के बारे में मिथ्यापवाद करने से बचे रहने, और (४) कोई भी बुरा काम न करने के लिए सीखाएगा। परमेश्वर को स्वीकार्य धर्म (५) हमें अपने सीधे परिचितों की निन्दा सुनने से रोकेगा और (६) हमें घृणित लोगों से मेल-जोल रखने से बचाएगा। सच्चा धर्म हमें (७) यहोवा के डरवैयों का आदर करने, (८) हम ने जो वादा किया है, अगर यह उचित है तो उसे निभाने, (९) ब्याज लिए बग़ैर ग़रीबों को देने, और (१०) किसी निर्दोष के ख़िलाफ़ घूस नहीं लेने के लिए प्रेरित करेगा।
दाऊद यह तो नहीं कहता कि जो इन बातों को पढ़ते, सुनते, कहते, या उन पर विश्वास भी करते हैं, वे ‘कभी न डगमगाएँगे।’ यह सिर्फ़ उसी व्यक्ति का अनुभव रहेगा ‘जो ऐसी चाल चलता है।’ उसका समर्थन करने के लिए कर्म के बिना विश्वास मरा हुआ होता है और इसके परिणामस्वरूप ईश्वरीय अनुमोदन नहीं मिलता। (याकूब २:२६) १५वें भजन में उल्लेख किए गए अच्छे काम करनेवाले कभी न डगमगाएँगे, इसलिए कि यहोवा उनकी रक्षा करेंगे और उनको सँभालेंगे।—भजन ५५:२२.
अवश्य, पवित्र उपासना में १५वें भजन में उल्लेख किए गए दस बातों के अलावा और बहुत कुछ है। यीशु के अनुयायियों ने बाद में परमेश्वर की उपासना “आत्मा और सच्चाई से” करने के बारे में अन्य बातें सीखीं। (यूहन्ना ४:२३, २४) आप भी सीख सकते हैं, इसलिए कि जो लोग ऐसा करते हैं, वे आज मौजूद हैं। यहोवा के इन गवाहों के साथ नियमित रूप से संगति करना और बाइबल का अध्ययन करना एक पार्थिव परादीस में जीवन की आशा को विकसित कर सकता है, जहाँ आप हमेशा के लिए परमेश्वर के दोस्त और मेहमान बनकर रह सकते हैं।