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  • नरक की सच्चाई
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
w91 7/1 पेज 6-7

नरक की सच्चाई

ज़ाहिर है कि मृत्यु के बाद दण्ड-प्राप्ति के विश्‍वास के पीछे आधारभूत धर्मसिद्धान्त यह विश्‍वास है कि जब यह माँसल देह मर जाता है, तब असली मनुष्य वास्तव में नहीं मरता, लेकिन कि कुछ चीज़—जिसे अक्सर प्राण (सोल) कहा जाता है—देह की मृत्यु के बाद जीवित रहता है। जैसा कि हम ने पिछले लेख में देखा, यह विश्‍वास मेसोपोटेमिया के प्रारंभिक सुमेरियों और बाबेलोनियों के बीच में शुरु हुआ। बाद में, इसे यूनानियों ने अपनाया, जिनके प्लेटो जैसे दार्शनिकों ने इस मत का परिष्कार किया। “देह और प्राण” में उनका परिष्कृत द्वैतवादी विश्‍वास धर्मत्यागी यहूदी विश्‍वास का हिस्सा बन गया।

तथाकथित मसीहियों ने एक ऐसे परलोक के जीवन में विश्‍वास को कब अपनाया? निश्‍चय ही यीशु और उसके प्रेरितों के समय में तो नहीं। फ्रांसीसी एन्साइक्लोपीडिया यूनिवर्सेलिस कहता है: “[अप्रामाणिक] अपॉकलिप्स ऑफ पीटर (सामान्य युग की दूसरी सदी) पहला मसीही लेख था जिस में नरक में पापियों के दण्ड और यातनाओं का वर्णन किया गया।”

दरअसल, ऐसा लगता है कि प्रारंभिक चर्च फ़ादरों के बीच नरक के बारे में बहुत असहमति थी। जस्टिन मार्टर, सिकंदरिया के क्लेमेन्ट, तर्तुलियन और सिप्रियन सभी एक अग्निमय नरक के पक्ष में थे। ऑरिजेन ने नरक को एक प्रतिकारी परिवर्तन लाने की कोशिश की, यह दावा करते हुए कि नरक के पापी आख़िरकार बचा लिए जाते। नाट्‌ज़ीॲन्ज़स के ग्रेगोरी और निस्सा के ग्रेगोरी ने उसका अनुसरण कुछ हद तक किया। लेकिन अगस्तीन ने नरक के बारे में ऐसे कोमल विचारों का ख़ात्मा किया। अपनी किताब अर्ली क्रिस्चियन डॉक्ट्रिन्ज़ में, ऑक्सफ़र्ड के प्राध्यापक जे. एन. डी. केल्ली लिखते हैं: “पाँचवीं सदी तक यह कठोर सिद्धान्त कि पापियों को इस जीवन के बाद दूसरा मौक़ा नहीं मिलेगा और कि उनको भस्म कर देनेवाली आग को कभी बुझाया नहीं जाएगा, हर कहीं सर्वोपरी था।”

जहाँ तक पर्गेटरी का सवाल है, किताब ऑर्फियस—अ जेनरल हिस्टरी ऑफ रिलिजियन्ज़ कहती है: “संत अगस्तीन ने समझा था कि भावी परमानन्द और नरकदण्ड के बीच परख-अवधि की एक मध्यवर्ती अवस्था थी, यानी अग्नि के द्वारा प्राणों का शुद्धिकरण। यह पर्गेटरी का ऑर्फिक [मूर्तिपूजक यूनानी] और वर्जिलियन [मूर्तिपूजक रोमी] धर्मसिद्धान्त है: इसके बारे में सुसमाचार वृत्तान्तों में एक शब्द भी नहीं है। . . . पर्गेटरी के धर्मसिद्धान्त को . . . छठी सदी में सूत्रबद्ध किया गया, और फ्लॉरेन्स की परिषद्‌ (१४३९) ने इसे गिरजे का एक धर्मसिद्धान्त घोषित किया।” न्यू कैथोलिक एन्साइक्लोपीडिया स्वीकार करता है: “पर्गेटरी के विषय में कैथोलिक धर्मसिद्धान्त पवित्र शास्त्र पर नहीं, बल्कि परंपरा पर आधारित है।” लिम्बो के संबंध में, रोम के कार्डिनल रॅट्‌ज़िंगर क़बूल करते हैं कि यह “सिर्फ़ एक धर्मवैज्ञानिक परिकल्पना है।”

मृत्यु के पश्‍चात्‌ कोई दण्ड नहीं

यद्यपि, बाइबल के बारे में क्या? क्या यह कहती है कि मृत्यु पर प्राण देह के बाद उत्तरजीवित रहता है और इसलिए इसे एक अग्निमय नरक या पर्गेटरी में दण्डित किया जा सकता है? न्यू कैथोलिक एन्साइक्लोपीडिया कहता है: “मृत्यु के बाद प्राण के उत्तरजीवित रहने की धारणा बाइबल में आसानी से ज्ञेय नहीं। . . . पु[राने] नि[यम] का प्राण मनुष्य का एक हिस्सा नहीं, बल्कि पूरा मनुष्य है—एक जीवित प्राणी के रूप में मनुष्य। उसी तरह, न[ए] नि[यम] में यह मानवी जीवन सूचित करता है: एक व्यक्‍ति का जीवन।”

तो मृत्यु के पश्‍चात्‌ दण्ड-प्राप्ति का मूल आधार-वाक्य अप्रभावी सिद्ध होता है। बाइबल कहती है: “जो प्राणी पाप करे वही मर जाएगा।” (यहेज़केल १८:४, रिवाइज़्ड स्टॅन्डर्ड वर्शन, कैथोलिक संस्करण) वह यह भी कहती है: “पाप की मज़दूरी तो मृत्यु है।” (रोमियों ६:२३, RSV) इसलिए, जब बाइबल पश्‍चातापहीन दुष्ट लोगों के बारे में बताती है, जिनका अन्त “गीहेन्‍ना”, “अनन्त आग” या “आग की झील” में होगा, यह सिर्फ़ उनके द्वारा स्थायी मृत्यु या “दूसरी मृत्यु” के अनुभव होने के बारे में बता रही है।—मत्ती २३:३३; २५:४१, ४६; प्रकाशितवाक्य २०:१४; २१:८,a २ थिस्सलुनीकियों १:७-९ से तुलना करें।

पुनरुत्थान के ज़रिए नरक को खाली किया जाता है

तो फिर, क्या नरक तपित है? बाइबल के अनुसार नहीं। वास्तव में, कुछेक बाइबलों में जिन इब्रानी और यूनानी शब्दों का अनुवाद “नरक” किया गया है, वे सिर्फ़ मनुष्यजाति के सामान्य क़ब्र का उल्लेख करते हैं। यह यातना की कोई तपित जगह नहीं है। बल्कि, यह विश्राम की एक जगह है, जिस में से मृतक पुनरुत्थान में वापस आएँगे। (सभोपदेशक ९:१०; प्रेरितों २४:१५) ऑस्कर कलमॅन्‍न, जो बासिल विश्‍वविद्यालय, स्विट्‌ज़रलैंड, और पॅरिस के सॉरबॉन्‍न विश्‍वविद्यालय के धर्मवैज्ञानिक प्राध्यापक वर्ग में प्राध्यापक हैं, “मृतकों के पुनरुत्थान की मसीही प्रत्याशा और प्राण की अमरता में यूनानी विश्‍वास के बीच के मूलभूत फ़रक़” के बारे में बताते हैं। वह सही-सही कहते हैं कि “यह तथ्य कि उत्तरकालीन मसीहियत ने इन दो विश्‍वासों के बीच एक कड़ी बनायी थी, . . . दरअसल यह एक कड़ी बिल्कुल ही नहीं है, उलटा यह दूसरे विश्‍वास [मानवी जीव की अमरता में मूर्तिपूजक विश्‍वास] के पक्ष में, पहले विश्‍वास [पुनरुत्थान के बाइबलीय सिद्धान्त] का परित्याग है।—तिरछे अक्षर हमारे।

यहोवा के गवाहों ने प्राण की अमरता की कल्पना के पक्ष में अपने पुनरुत्थान में के विश्‍वास का परित्याग नहीं किया है। आपको अपनी आनन्दित आशा बताने और बाइबल से यह साबित करने में उन्हें बहुत खुशी होगी कि, सच बात तो यह है कि, नरक तपित है ही नहीं।

[फुटनोट]

a इन और अन्य बाइबल शास्त्रपदों पर, जो एक अग्निमय नरक के सिद्धान्त का समर्थन करने की कोशिश में कुछेक लोगों द्वारा इस्तेमाल किए गए हैं, अधिक जानकारी हासिल करने के लिए वॉचटावर बाइबल ॲन्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पुस्तक क्या यही जीवन सब कुछ है? देखें।

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