मसीह के ज़रिए एकता निश्चित है
इफिसियों को लिखी पत्री से विशिष्टताएँ
सामान्य युग वर्ष ५२ के प्रारंभिक हिस्से में, प्रेरित पौलुस ने इफिसुस में प्रचार किया। एशिया माइनर का यह समृद्ध नगर झूठे धर्म का केंद्र भी था। लेकिन पौलुस के इफिसुस लौटने के बाद, संभवतः सा.यु. वर्ष ५२/५३ की सर्दी के मौसम में, वहाँ मसीहियत की उन्नति हुई। वह हर दिन एक पाठशाला के सभागृह में प्रवचन देते थे और उनके क़रीब तीन साल के वास के दौरान उन्होंने घर-घर जाकर प्रचार किया।—प्रेरितों के काम १९:८-१०; २०:२०, २१, ३१.
लगभग सा.यु. वर्ष ६०-६१ में, रोम में कारावास में होकर पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को लिखा। यीशु मसीह के साथ और उनके ज़रिए एकता ही उनकी चिट्ठी का विषय है। वास्तव में, इस में ‘मसीह में’ एकता के १३ उल्लेख हैं, जो पौलुस द्वारा लिखी अन्य किसी भी चिट्ठी से ज़्यादा है। इफिसियों के जैसे, हम मसीह की भूमिका, अनैतिकता से दूर रहने और दुष्ट आत्मिक सेनाओं का प्रतिरोध करने के बारे में पौलुस के शब्दों से लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
एकता परमेश्वर का उद्देश्य है
पहले, पौलुस ने समझाया कि परमेश्वर कैसे मसीह के ज़रिए एकता ले आते। (१:१-२३) यहोवा ने प्रयोजन किया कि वह एक “प्रबंध” (मामलों को प्रशासित करने के एक तरीक़े) के ज़रिए, जो कुछ स्वर्ग में है, और जो कुछ पृथ्वी पर है, सब कुछ एकत्र करेंगे। मसीह के ज़रिए, परमेश्वर अपने साथ ऐसे लोगों को मिला देते जो स्वर्गीय जीवन के लिए चुने हुए हैं और अन्यों को जो पृथ्वी पर जीएँगे। आज, परमेश्वर ने अभिषिक्त लोगों को और “एक बड़ी भीड़” को एक कर दिया है, और ‘जो कुछ पृथ्वी पर है, इसका एकत्रीकरण’ उस समय तक चलता रहेगा जब स्मरणार्थ क़ब्रों में लोग यीशु की आवाज़ सुनकर बाहर आ जाएँगे। (प्रकाशितवाक्य ७:९; यूहन्ना ५:२८, २९) हमें इसके लिए आभारी होना चाहिए, वैसे ही, जैसे पौलुस ने प्रार्थना की कि इफिसुस के लोग उनके लिए किए गए परमेश्वर के प्रबंध की क़दर करते।
इसके बाद ध्यान अन्यजातीय मसीहियों की ओर निर्दिष्ट किया गया, जो कि किसी वक्त अपराधों में मरे हुए थे। (२:१-३:२१) मसीह के ज़रिए, व्यवस्था का अन्त कर दिया गया और यहूदियों तथा यूनानियों को एक कर दिए जाने तथा परमेश्वर को आत्मा द्वारा वास करने के लिए एक मंदिर बनने का आधार तैयार किया गया। पौलुस का प्रबन्धक कार्य इस पवित्र भेद को बतलाना था, कि अन्यजातीय लोग मसीह में एकता पा सकते हैं, जिन के ज़रिए वे बड़े हियाव से परमेश्वर के निकट आ सकते हैं। पौलुस ने फिर से इफिसियों के लिए प्रार्थना की, अब की बार यह माँगते हुए कि यहोवा उन्हें विश्वास और प्रेम के द्वारा दृढ़ रूप से स्थिर बनाए।
ऐसे तत्त्व जिनसे एकता बढ़ती है
पौलुस ने दिखाया कि परमेश्वर ने एक कर देनेवाले तत्त्व दिए हैं। (४:१-१६) इन में वह एक आत्मिक देह है, जो कि कलीसिया है। यह देह मसीह की अध्यक्षता के नीचे एकता से कार्य करता है। और वह सब को विश्वास में एक हो जाने की मदद करने के लिए मनुष्यों को उपहार के रूप में देते हैं।
यहोवा उन मसीही गुणों को दर्शाना संभव कर देते हैं, जो एकता को बढ़ावा देते हैं। (४:१७–६:९) “नया व्यक्तित्व पहनकर,” मसीही अश्लील भाषा जैसे अधर्म से दूर रहते हैं। वे बुद्धिमानी से चलते हैं, मसीह के प्रति आदर दिखाते हैं, और उचित अधीनता प्रकट करते हैं।
इसके अतिरिक्त, परमेश्वर मसीहियों को दुष्ट आत्मिक सेनाओं को प्रतिरोध करने के लिए समर्थ करते हैं, जो कि हमारी एकता भंग करने की कोशिश कर रहे हैं। (६:१०-२४) परमेश्वर की ओर से प्राप्त आध्यात्मिक कवच से ऐसी रक्षा मिलती है। तो आइए, हम इसका उपयोग करें और, अपने संगी विश्वासियों को हमारी बिनतियों में शामिल करके सच्चे दिल से प्रार्थना करें।
पौलुस ने इफिसियों को कैसी उत्तम सलाह दी! अनैतिकता से बचे रहकर तथा दुष्ट आत्मिक सेनाओं का प्रतिरोध करके, हम भी इसकी ओर ध्यान दें। और यीशु मसीह के ज़रिए जिस एकता का हम आनन्द लेते हैं, उसकी हम अपनी मन की गहराई से क़दर करें।
[पेज 31 पर तसवीरें]
जलते हुए तीर: आध्यात्मिक कवच में “विश्वास की बड़ी ढाल” है, जिस से शैतान के “जलते हुए तीरों” को बुझा, या अहानिकर बना सके। (इफिसियों ६:१६, न्यू.व.) रोमियों द्वारा इस्तेमाल किए जानेवाले कुछेक अस्त्र खोखले सरकण्डे थे, जिसमें नोक के नीचे लोहे से बना आधान होता था, जिस में जलता हुआ नैफ़्था भर दिया जाता था। ढीले रखे हुए धनुष्यों से इन्हें मार दिया जाता था, ताकि आग न बुझ जाए, और उस पर पानी डालने के परिणामस्वरूप आग मात्र और भी तीव्र बन जाती थी। लेकिन बड़े ढाल सैनिकों को ऐसे तीरों से बचाते थे, उसी तरह जैसे यहोवा अपने सेवकों को “सब जलते हुए तीरों को बुझा” सकने के लिए सामर्थ बना देते हैं। जी हाँ, विश्वास से हमें ऐसे हमलों का प्रतिरोध करने की मदद मिलती है, जैसा कि दुष्टात्माओं के हमले और साथ साथ अपराध करने, एक भौतिकवादी जीवन-शैली का पीछा पकड़े रहने तथा भय या संदेह के सामने झुक जाने के प्रलोभन।