मसीही स्वतंत्रता में स्थिर रहें
गलतियों को लिखी पत्री से विशिष्टताएँ
यहोवा स्वतंत्रता के परमेश्वर हैं। (२ कुरिन्थियों ३:१७) उनके पुत्र, यीशु मसीह ने कहा: “तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” (यूहन्ना ८:३२) और मसीह के अनुकरण में, प्रेरित पौलुस ने स्वतंत्रता के सुसमाचार का प्रचार किया।—रोमियों ६:१८; ८:२१.
उस स्वतंत्रता दिलानेवाले संदेश का प्रचार करके, पौलुस ने अपनी पहली मिशनरी यात्रा के दौरान (सामान्य युग वर्ष ४७-४८) गलतिया (एशिया माइनर में एक रोमी प्रान्त) की कलीसियाएँ स्थापित की। गलतिया निवासी शासी निकाय के निर्णय के बारे में जानते थे कि मसीहियों के लिए खतना अनावश्यक है। (प्रेरितों के काम १५:२२-२९) परन्तु यह आग्रह करके कि वे खतना करवाए, यहूदी बनानेवाले लोग उन्हें ग़ुलामी की अवस्था में लाना चाहते थे। इसलिए पौलुस ने क़रीब सा.यु. वर्ष ५०-५२ में कुरिन्थ या सूरियाई अन्ताकिया से गलतियों के नाम लिखी चिट्ठी में मसीही स्वतंत्रता पर ज़ोर दिया। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने कहा: “मसीह ने स्वतंत्रता के लिए हमें स्वतंत्र किया है। सो इसी में स्थिर रहो, और दासत्व के जूए में फिर से न जुतो।”—गलतियों ५:१.
पौलुस अपनी प्रेरिताई की रक्षा करते हैं
पौलुस ने पहले दिखाया कि उसकी प्रेरिताई “यीशु मसीह और परमेश्वर . . . के द्वारा” थी। (१:१-२:१४) एक ईश्वरीय प्रकाश की वजह से पौलुस (बरनबास और तीतुस के साथ) खतना के मामले के संबंध में यरूशलेम गए। वहाँ याकूब, कैफा (पतरस), और यूहन्ना ने स्वीकार किया कि उसे अन्यजातियों में प्रेरित बनने का अधिकार दिया गया था। और बाद में जब अन्ताकिया में पतरस अन्यजातीय विश्वासियों से अलग हुए, इसलिए कि वह यहूदी मसीहियों से डरते थे, पौलसु ने उन्हें झिड़की दी।
धर्मी कैसे ठहराए गए?
प्रेरित ने एक और अति महत्त्वपूर्ण मुद्दे की बात कही कि केवल यीशु मसीह में विश्वास रखकर कोई धर्मी ठहराया जा सकता है। (२:१५–३:२९) गलतियों ने परमेश्वर की आत्मा पायी, परन्तु व्यवस्था के कामों की वजह से नहीं, बल्कि इस वजह से कि उन्होंने विश्वास से सुसमाचार को स्वीकार किया था। इब्राहीम के सच्चे पुत्रों को विश्वास है, लेकिन जो व्यक्ति अपने आप को “व्यवस्था के कामों” के द्वारा धर्मी साबित करना चाहते हैं, “वे सब स्राप के अधीन हैं।” क्यों? इसलिए कि वे संपूर्ण रूप से व्यवस्था का पालन नहीं कर सकते। दरअसल, व्यवस्था ने अपराधों को प्रकट किया और यह “मसीह तक पहुँचाने को हमारा शिक्षक” थी।
स्थिर रहें!
अपनी मृत्यु से, मसीह ने ‘उन लोगों को छुटकारा दिला दिया, जो व्यवस्था के अधीन थे।’ परन्तु उनके अनुयायियों को मसीही स्वतंत्रता में स्थिर रहना चाहिए। (४:१-६:१८) तो गलतियों को ऐसे सभी लोगों का प्रतिरोध करने की आवश्यकता थी जो उन्हें दासत्व का जूआ स्वीकार करने के लिए फुसला रहे थे। इसके अतिरिक्त, उन्हें अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करना था, परन्तु उन्हें “शरीर के कामों” से बचकर रहना था और परमेश्वर की आत्मा का फल प्रदर्शित करना था। जो लोग उन्हें व्यवस्था की ग़ुलामी में लाना चाहते थे, वे “शारीरिक दिखाव चाहते थे,” उत्पीड़न से बचना चाहते थे, और घमण्ड करने के लिए कोई कारण चाहते थे। फिर भी, पौलुस ने दिखाया कि न खतना और न खतना-रहित कुछ है। उलटा, ‘नयी सृष्टि कुछ है।’ उन्होंने प्रार्थना की कि आत्मिक इस्राएल, नयी सृष्टि के सदस्यों को शान्ति और दया मिले।
पौलुस की गलतियों के नाम चिट्ठी से उन्हें उन लोगों का प्रतिरोध करने में मदद हुई, जो उन्हें आध्यात्मिक रूप से ग़ुलाम बनाना चाहते थे। ऐसा हो कि यह हमें आत्मा का फल प्रदर्शित करने और मसीही स्वतंत्रता में स्थिर रहने में भी मदद करे।
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दाग़ चिह्न: “आगे को कोई मुझे दुःख न दे, क्योंकि मैं यीशु के दागों को अपनी देह में लिए फिरता हूँ,” पौलुस ने लिखा। (गलतियों ६:१७) कुछ प्राचीन मूर्तिपूजकों में, ग़ुलामों पर दाग़ लगाए जाते थे, जिस से उनके स्वामी स्पष्ट बताए जा सके। विविध डिज़ाइनों को उनके शरीर पर गरम लोहे से जलाया जाता था या अंकित किया जाता था। बेशक, पौलुस की मसीही सेवकाई की वजह से उसके शरीर के साथ किए गए शारीरिक दुर्व्यवहार से कुछेक निशान रह गए थे, जो उनके दावे को साक्ष्यांकित करते थे कि वह मसीह का एक विश्वासयोग्य दास था, जिसे उनकी ख़ातिर उत्पीड़ित किया गया था। (२ कुरिन्थियों ११:२३-२७) शायद यही वे “दाग़” थे जिसका ज़िक्र पौलुस ने किया, या शायद वह उस ज़िन्दगी के बारे में सोच रहे होंगे, जो उन्होंने परमेश्वर की आत्मा का फल प्रदर्शित करते हुए और अपनी सेवकाई को पूरा करते हुए, एक मसीही की हैसियत से बितायी थी।
[तसवीर]
रोमी ग़ुलामों को अपने मालिकों की सेवा करने के लिए मजबूर किया जाता था, परन्तु पौलुस यीशु मसीह का एक उत्सुक और आनन्दित दास था