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  • एक स्वतंत्र मगर उत्तरदायी लोग
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1992
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एक स्वतंत्र मगर उत्तरदायी लोग

“सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।”—यूहन्‍ना ८:३२.

१, २. (क) मानव इतिहास में स्वतंत्रता किस प्रकार पेश की गयी है? (ख) केवल कौन सचमुच स्वतंत्र है? समझाएँ.

स्वतंत्रता। वह क्या ही प्रभावशाली शब्द है! मनुष्य की लालसा है कि वह स्वतंत्र रहे और इस वजह से मानवजाति ने अगणित युद्धों, क्रांतियों और अगणनीय सामाजिक हलचलों को सहा है। निस्संदेह, दी एन्साइक्लोपीडिया अमेरिकाना (The Encyclopedia Americana) कहती है: ‘सभ्यता के विकास में स्वतंत्रता से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका किसी और धारणा ने नहीं निभायी है।’

२ इसके बावजूद, कितने लोग वास्तव में स्वतंत्र हैं? कितने यह जानते हैं कि स्वतंत्रता है क्या? द वर्ल्ड बुक एन्साइक्लोपीडिया (The World Book Encyclopedia) कहती है: “लोगों को पूरी तरह स्वतंत्र होने के लिए उनके सोचने, बोलने और कार्य करने के ढंग पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए। उन्हें अपने चुनावों के बारे में अवगत होना चाहिए और उन्हें उन चुनावों में से चुनने का अधिकार होना चाहिए।” इस दृष्टि से, क्या आप किसी को जानते हैं जो सचमुच स्वतंत्र है? कौन कह सकता है कि उन के “सोचने, बोलने और कार्य करने के ढंग पर कोई प्रतिबन्ध नहीं” है? वस्तुतः, पूरे विश्‍व के केवल एक व्यक्‍ति पर यह वर्णन ठीक बैठता है—यहोवा परमेश्‍वर। केवल उसके पास पूर्ण स्वतंत्रता है। केवल वह ही जैसा चाहे वैसा चुनाव कर सकता है, और फिर हर विरोध के बावजूद उसे पूरा कर सकता है। वह “सर्वशक्‍तिमान” है।—प्रकाशितवाक्य १:८; यशायाह ५५:११.

३. आम तौर पर मनुष्य किस शर्त पर स्वतंत्रता का आनंद लेते हैं?

३ निम्न मानवों के लिए, स्वतंत्रता केवल तुलनात्मक ही हो सकती है। आम तौर पर, यह किसी प्राधिकारी द्वारा प्रदान की जाती या उसकी गारंटी पर मिलती है और यह हमारी उस प्राधिकार के प्रति अधीनता रखने से संबंधित है। वस्तुतः, लगभग हर स्थिति में, एक व्यक्‍ति केवल तब ही स्वतंत्र हो सकता है यदि वह अपनी स्वतंत्रता की गारंटी देनेवाले के प्राधिकार को स्वीकार करता है। उदाहरणार्थ, “स्वतंत्र संसार” में रहने वाले लोग बहुत-से लाभों का आनंद लेते हैं, जैसे कि आने-जाने की स्वतंत्रता, बोलने की स्वतंत्रता, और धर्म की स्वतंत्रता। इन स्वतंत्रताओं को किस बात से गारंटी मिलती है? देश के क़ानून से। कोई व्यक्‍ति इनका आनंद केवल तब तक ले सकता है जब तक वह क़ानून का पालन करता है। यदि वह अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है और क़ानून तोड़ता है, तो प्राधिकारी उसे उत्तरदायी ठहराते हैं, और जेल की सज़ा से उसकी स्वतंत्रता काफ़ी कम हो सकती है।—रोमियों १३:१-४.

परमेश्‍वरीय स्वतंत्रता—उत्तरदायित्व के साथ

४, ५. यहोवा के उपासक किन स्वतंत्रताओं का आनंद लेते हैं, और वह उनको किस लिए उत्तरदायी ठहराएगा?

४ पहली शताब्दी में, यीशु ने स्वतंत्रता के विषय में बात की। उसने यहूदियों से कहा: “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” (यूहन्‍ना ८:३१, ३२) वह बोलने की स्वतंत्रता या धर्म की स्वतंत्रता के विषय में नहीं बोल रहा था। निश्‍चित रूप से वह रोमी दासता से स्वतंत्रता के विषय में नहीं बोल रहा था, जिसकी लालसा बहुतेरे यहूदियों को थी। नहीं, यह कहीं ज़्यादा बहुमूल्य थी, एक ऐसी स्वतंत्रता जो मानवीय क़ानून या किसी मानव शासक की सनक से नहीं, लेकिन इस विश्‍व के परमप्रधान सर्वसत्ताधारी, यहोवा के द्वारा प्रदान की गयी थी। यह अंधविश्‍वास से स्वतंत्रता, धार्मिक अज्ञान से स्वतंत्रता और इससे काफ़ी कुछ ज़्यादा थी। यहोवा के द्वारा दी गयी स्वतंत्रता सच्ची स्वतंत्रता है, और यह अनंत काल तक बनी रहेगी।

५ प्रेरित पौलुस ने कहा: “प्रभु तो आत्मा है; और जहाँ कहीं प्रभु की आत्मा है वहां स्वतंत्रता है।” (२ कुरिन्थियों ३:१७) सदियों से यहोवा मानवजाति के साथ संबंध बनाये हुए है ताकि विश्‍वासी जन आख़िर में सर्वोत्तम और सर्वोच्च क़िस्म की मानव स्वतंत्रता का आनंद ले सके यानी “परमेश्‍वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता।” (रोमियों ८:२१) इस दौरान, यहोवा हमें बाइबल सत्य के द्वारा कुछ हद तक स्वतंत्रता प्रदान करता है, और अगर हम उस स्वतंत्रता का दुरुपयोग करें तो वह हमें उत्तरदायी ठहराता है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “जिसको हमें लेखा देना है, उसकी दृष्टि में कोई भी प्राणी छिपा नहीं। उसकी आँखों के सामने सब कुछ ख़ुला और नग्न है।”—इब्रानियों ४:१३, NW.

६-८. (क) आदम और हव्वा ने किन स्वतंत्रताओं का आनंद लिया, और किस शर्त पर वे उन स्वतंत्रताओं को रख सकते थे? (ख) आदम और हव्वा ने अपने और अपने बच्चों के लिए क्या खोया?

६ यहोवा के प्रति उत्तरदायित्व का विषय तब विशिष्ट किया गया जब हमारे प्रथम माता-पिता, आदम और हव्वा जीवित थे। यहोवा ने उन्हें स्वतंत्र इच्छा-शक्‍ति की बहुमूल्य देन देकर सृजा था। जब तक उन्होंने उस स्वतंत्र इच्छा-शक्‍ति का उत्तरदायित्वपूर्ण रूप से प्रयोग किया, उन्होंने दूसरी आशीषों का आनंद लिया, जैसे कि भय से स्वतंत्रता, बीमारी से स्वतंत्रता, मृत्यु से स्वतंत्रता, और अपने स्वर्गीय पिता के सामने शुद्ध विवेक के साथ आने की स्वतंत्रता। लेकिन जब उन्होंने अपनी स्वतंत्र इच्छा-शक्‍ति का दुरुपयोग किया, वह सब बदल गया।

७ यहोवा ने आदम और हव्वा को अदन की वाटिका में रखा, और उनके आनंद के लिए उन्हें सिवाय एक के—वाटिका के सभी पेड़ों के फल दिये। उसने इसे अपने लिए रखा; वह “भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष” था। (उत्पत्ति २:१६, १७) उस पेड़ के फल को न खाकर आदम और हव्वा यह स्वीकार करते कि केवल यहोवा भले और बुरे का स्तर बनाने के लिए स्वतंत्र था। यदि वे उत्तरदायित्व के साथ काम करते और वर्जित फल को न खाते, तो यहोवा उनकी दूसरी स्वतंत्रताओं को सुरक्षित बनाए रखता।

८ दुख की बात है कि हव्वा ने सर्प के चालाक सुझाव को मान लिया कि उसे अपने लिए “भले बुरे का ज्ञान” पाना चाहिए। (उत्पत्ति ३:१-५) पहले उसने, और फिर आदम ने वर्जित फल को खा लिया। परिणामस्वरूप, जब यहोवा परमेश्‍वर उनसे बात करने अदन की वाटिका में आया, वे लज्जित थे और उन्होंने अपने आपको छिपा लिया। (उत्पत्ति ३:८, ९) वे अब पापी थे जिन्होंने परमेश्‍वर के पास आने की स्वतंत्रता का बोध खो दिया जो एक शुद्ध विवेक से मिला था। इस कारण, उन्होंने दोनों ही, अपने लिए और अपने बच्चों के लिए, बीमारी और मृत्यु से स्वतंत्रता भी खो दी। पौलुस ने कहा: “एक मनुष्य [आदम] के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिए कि सब ने पाप किया।”—रोमियों ५:१२; उत्पत्ति ३:१६, १९.

९. कौन अपनी सीमित स्वतंत्रता के सही प्रयोग के लिए जाने जाते हैं?

९ फिर भी, मनुष्यजाति के पास अब भी स्वतंत्र इच्छा-शक्‍ति थी, और समय के साथ-साथ कुछ अपूर्ण मनुष्यों ने इसका प्रयोग यहोवा की सेवा में उत्तरदायित्व के साथ किया। उन में से कुछ के नाम हमारे लिए पुरातन काल से सुरक्षित रखे गये हैं। हाबिल, हनोक, नूह, इब्राहीम, इसहाक, और याकूब (जिसे इस्राएल भी कहा जाता है) जैसे पुरुष ऐसे व्यक्‍तियों के उदाहरण हैं जिन्होंने उस सीमित स्वतंत्रता का, जिसका वे अभी भी आनंद ले रहे थे, परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने में प्रयोग किया। परिणामस्वरूप उनका भला हुआ।—इब्रानियों ११:४-२१.

परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों की स्वतंत्रता

१०. उस वाचा की क्या शर्तें थीं जो यहोवा ने अपने ख़ास लोगों के साथ बनायी?

१० मूसा के दिनों में, यहोवा ने इस्राएल के पुत्रों को जिनकी संख्या उस समय लाखों में थी, मिस्र के दासत्व से स्वतंत्रता दिलायी और उनके साथ एक वाचा बांधी जिससे वे उसके ख़ास लोग बन गये। इस वाचा के अंतर्गत, इस्राएलियों का एक याजकपद था और जानवरों की बलि चढ़ाने की एक प्रणाली, जिससे उनके पाप सांकेतिक रूप से ढंप जाते थे। अतः उन्हें उपासना में परमेश्‍वर के निकट आने की स्वतंत्रता थी। उनके पास नियमों और विनियमों की भी प्रणाली थी जिससे वे अंधविश्‍वासी रिवाजों और झूठी उपासना से स्वतंत्र रह सकते थे। बाद में, उन्हें प्रतिज्ञात देश विरासत के तौर पर मिलता, इस आश्‍वासन के साथ कि उन्हें अपने दुश्‍मनों के ख़िलाफ़ परमेश्‍वरीय सहायता मिलती। वाचा में इस्राएलियों का हिस्सा उन पर यह दायित्व डालता था कि वे यहोवा के नियमों का पालन करें। इस्रालियों ने इस शर्त को स्वेच्छया स्वीकार किया, यह कहते हुए: “जो कुछ यहोवा ने कहा है वह सब हम नित करेंगे।”—निर्गमन १९:३-८; व्यवस्थाविवरण ११:२२-२५.

११. जब इस्राएल अपनी तरफ़ से वाचा को रखने में असफल रहा तो परिणाम क्या हुआ?

११ यहोवा के साथ उस ख़ास संबंध में इस्राएली १,५०० से भी ज़्यादा वर्षों तक रहे। लेकिन बार-बार वे वाचा को रखने में असफल रहे। बार-बार वे झूठी उपासना के बहकावे में आ गये और मूर्तिपूजा और अंधविश्‍वास के दास बन गये, इसलिए परमेश्‍वर ने उन्हें अपने दुश्‍मनों की वास्तविक दासता में जाने दिया। (न्यायियों २:११-१९) वाचा को रखने के द्वारा स्वतंत्र रहने की आशीषों का आनंद लेने के बजाए उन्हें उसका उल्लंघन करने की वजह से दण्ड मिला। (व्यवस्थाविवरण २८:१, २, १५) आख़िर में, सा.यु.पू. ६०७ में, यहोवा ने उस राष्ट्र को बाबुल के दासत्व में जाने दिया।—२ इतिहास ३६:१५-२१.

१२. अंत में मूसा की व्यवस्था वाचा के विषय में क्या प्रकट हुआ?

१२ यह एक कठिन सबक़ था। इससे उन्हें व्यवस्था रखने का महत्त्व सीख लेना चाहिए था। फिर भी, जब ७० वर्ष बाद, इस्राएली खुद अपने देश लौटे, वे अब भी व्यवस्था की वाचा का ठीक तरह से पालन करने में असफल रहे। उनके लौटने के लगभग सौ वर्ष बाद, यहोवा ने इस्राएल के याजकों से कहा: “तुम लोग धर्म के मार्ग से ही हट गये; तुम बहुतों के लिए व्यवस्था के विषय में ठोकर का कारण हुए; तुम ने लेवी की वाचा को तोड़ दिया है।” (मलाकी २:८) वस्तुतः इस्राएलियों में सबसे ईमानदार व्यक्‍ति भी पूर्ण व्यवस्था के अनुरूप नहीं हो सकता था। आशीष बनने के बजाए यह, प्रेरित पौलुस के शब्दों में, एक “स्राप” बना। (गलतियों ३:१३) ज़ाहिर है कि मूसा की व्यवस्था वाचा से कुछ ज़्यादा की आवश्‍यकता थी जो अपूर्ण विश्‍वासी मनुष्यों को परमेश्‍वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता दे सके।

मसीही स्वतंत्रता का प्रकार

१३. अंत में स्वतंत्रता के लिए कौनसा बेहतर आधार दिया गया?

१३ वह कुछ ज़्यादा यीशु मसीह का छुड़ौती बलिदान था। सा.यु. ५० के क़रीब, पौलुस ने गलतियों में अभिषिक्‍त मसीहियों की कलीसिया को लिखा। उसने वर्णन किया कि यहोवा ने किस प्रकार उन्हें व्यवस्था की वाचा के दासत्व से स्वतंत्र किया और फिर कहा: “मसीह ने स्वतंत्रता के लिए हमें स्वतंत्र किया है; सो इसी में स्थिर रहो, और दासत्व के जूए में फिर से न जुतो।” (गलतियों ५:१) यीशु ने मनुष्यों को किस प्रकार स्वतंत्र किया?

१४, १५. किन अद्‌भुत तरीक़ों से यीशु ने विश्‍वासी यहूदी और ग़ैर यहूदियों को स्वतंत्र किया?

१४ यीशु की मृत्यु के पश्‍चात्‌, वे यहूदी जिन्होंने उसे मसीह के तौर से स्वीकार किया और उसके शिष्य बन गये, नयी वाचा के अधीन आ गये, जिसने पुरानी व्यवस्था की वाचा की जगह ले ली। (यिर्मयाह ३१:३१-३४; इब्रानियों ८:७-१३) इस नयी वाचा के अधीन ये लोग—और वे ग़ैर-यहूदी विश्‍वासी जो उनके साथ बाद में जुड़े—एक नये, आध्यात्मिक राष्ट्र के अंग बने जिसने परमेश्‍वर के ख़ास लोगों के रूप में शारीरिक इस्राएल का स्थान लिया। (रोमियों ९:२५, २६; गलतियों ६:१६) इस रूप में, उन्होंने उस स्वतंत्रता का आनंद लिया जिसकी प्रतिज्ञा यीशु ने की थी जब उसने कहा: “सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” मूसा की व्यवस्था के स्राप से स्वतंत्र करने के अलावा, सत्य ने यहूदी मसीहियों को धार्मिक नेताओं द्वारा उन पर थोपी गयी भारी परंपराओं से स्वंतत्र किया। और इसने ग़ैर-यहूदी मसीहियों को उनकी भूतपूर्व उपासना की मूर्तिपूजा और अंधविश्‍वास से मुक्‍त किया। (मत्ती १५:३, ६; २३:४; प्रेरितों १४:११-१३; १७:१६) और इससे भी ज़्यादा था।

१५ स्वतंत्र करने वाले सत्य के विषय में बात करते समय यीशु ने कहा: “मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि जो कोई पाप करता है, वह पाप का दास है।” (यूहन्‍ना ८:३४) जब से आदम और हव्वा ने पाप किया, हर व्यक्‍ति जो जीया है पापी रहा है और इस लिए पाप का दास हुआ। केवल यीशु इस में सम्मिलित नहीं है, और यीशु के बलिदान से विश्‍वासियों को उस दासत्व से छुटकारा मिला। यह सच है कि वे अब भी अपूर्ण थे और प्राकृतिक तौर पर पापी थे। लेकिन अब, वे अपने पापों से पछता कर, यीशु के बलिदान के आधार पर क्षमा की विनती कर सकते थे, इस विश्‍वास से कि उनकी विनतियाँ सुनी जाएँगी। (१ यूहन्‍ना २:१, २) यीशु के छुड़ौती बलिदान के आधार परमेश्‍वर ने उन्हें धर्मी ठहराया, और वे एक शुद्ध विवेक के साथ उसके पास आ सकते थे। (रोमियों ८:३३) इसके अलावा, चूँकि छुड़ौती से अनंत जीवन पाने के लिये पुनरुत्थान की प्रत्याशा का मार्ग खुल गया, सत्य ने उन्हें मृत्यु के भय से भी स्वतंत्र कर दिया।—मत्ती १०:२८; इब्रानियों २:१५.

१६. मसीही स्वतंत्रता में किस प्रकार संसार द्वारा पेश की जाने वाली किसी भी स्वतंत्रता से अधिक सम्मिलित थी?

१६ एक अद्‌भुत ढंग से, मसीही स्वतंत्रता पुरुषों और स्त्रियों के लिए, मानवीय रूप से चाहे उनकी परिस्थिति कैसी भी हो, खोल दी गयी। ग़रीब लोग, क़ैदी, यहाँ तक कि दास भी, स्वतंत्र हो सकते थे। दूसरी ओर, राष्ट्रों के ऊँचे लोग जिन्होंने मसीह के संदेश को अस्वीकार किया था अब भी अंधविश्‍वास, पाप और मृत्यु के भय के दासत्व में थे। हमें कभी इस स्वतंत्रता के लिए यहोवा का धन्यवाद करना नहीं बन्द करना चाहिए, जिसका हम आनंद लेते हैं। संसार कुछ भी ऐसा नहीं दे सकता जो इसकी बराबरी कर सके।

स्वतंत्र मगर उत्तरदायी

१७. (क) पहली शताब्दी में किस प्रकार कुछ लोगों ने मसीही स्वतंत्रता को खो दिया? (ख) हमें क्यों शैतान के संसार की दिखावटी स्वतंत्रता के बहकावे में नहीं आना चाहिए?

१७ पहली शताब्दी में संभव है कि अधिकांश अभिषिक्‍त मसीहियों ने अपनी स्वतंत्रता में आनंद किया और हर क़ीमत पर अपनी ख़राई बनाए रखी। लेकिन दुख की बात है कि कुछ ने मसीही स्वतंत्रता को उसकी सारी आशीषों के साथ चखा और फिर उसे ठुकरा कर संसार के दासत्व में वापस चले गये। ऐसा क्यों हुआ? बेशक बहुतेरों का विश्‍वास कमज़ोर पड़ गया और वे ‘बहकर दूर चले’ गये। (इब्रानियों २:१) ‘विश्‍वास और उस अच्छे विवेक को दूर करने के कारण कितनों का विश्‍वास रूपी जहाज़ डूब गया।’ (१ तीमुथियुस १:१९) शायद वे भौतिकवाद या अनैतिक जीवन-शैली में फंस गये। यह कितना महत्त्वपूर्ण है कि हम निजी अध्ययन, संगति, प्रार्थना और मसीही क्रियाओं में व्यस्त रहकर अपने विश्‍वास को सुरक्षित रखें और बढ़ाएँ! (२ पतरस १:५-८) काश हम मसीही स्वतंत्रता का मूल्यांकन करना कभी न छोड़ें! यह सच है कि मसीही कलीसिया के बाहर की लापरवाही को देखकर कुछ लोग शायद प्रलोभित हो जाएँगे यह सोच कर कि जो संसार में हैं वे हम से ज़्यादा स्वतंत्र हैं। लेकिन, असल में, जो संसार में स्वतंत्रता दिखती है ज़्यादातर केवल ग़ैर-ज़िम्मेदारी होती है। यदि हम परमेश्‍वर के दास नहीं हैं, तो हम पाप के दास हैं और उस दासत्व की मज़दूरी कड़वी होती है।—रोमियों ६:२३; गलतियों ६:७, ८.

१८-२०. (क) किस प्रकार कुछ लोग “क्रूस के बैरी” बन गये? (ख) किस प्रकार कुछ लोगों ने “अपनी इस स्वतंत्रता को बुराई के लिए आड़” बनाया?

१८ फिलिप्पियों के नाम अपनी पत्री में, पौलुस ने आगे लिखा: “बहुतेरे ऐसी चाल चलते हैं, जिन की चर्चा मैं ने तुम से बार बार किया है, ओर अब भी रो रोकर कहता हूँ, कि वे अपनी चाल-चलन से मसीह के क्रूस के बैरी हैं।” (फिलिप्पियों ३:१८) हाँ, वहाँ कुछ भूतपूर्व मसीही थे जो शायद धर्मत्यागी बनकर विश्‍वास के बैरी बन गये थे। कितना आवश्‍यक है कि हम उनके मार्ग पर न चलें! इसके अलावा पतरस ने लिखा: “अपने आप को स्वतंत्र जानो पर अपनी इस स्वतंत्रता को बुराई के लिए आड़ न बनाओ, परन्तु अपने आपको परमेश्‍वर के दास समझ कर चलो।” (१ पतरस २:१६) किस प्रकार एक व्यक्‍ति अपनी स्वतंत्रता को बुराई के लिए आड़ बना सकता है? घोर पाप करने के द्वारा—शायद गुप्त रूप से—जबकि वह अब भी कलीसिया से संगति बनाए हुए है।

१९ दियुत्रिफेस को याद करें। यूहन्‍ना ने उसके विषय में कहा: “दियुत्रिफेस जो [कलीसिया में] बड़ा बनना चाहता है, हमें ग्रहण नहीं करता। . . . भाइयों को ग्रहण नहीं करता, और उन्हें जो ग्रहण करना चाहते हैं, मना करता है: और मण्डली से निकाल देता है।” (३ यूहन्‍ना ९, १०) दियुत्रिफेस ने अपनी स्वतंत्रता को स्वयं अपनी स्वार्थी महत्त्वाकांक्षा के लिए आड़ के रूप में प्रयोग किया।

२० शिष्य यहूदा ने लिखा: “कितने ऐसे मनुष्य चुपके से हम में आ मिले हैं, जिन के इस दण्ड का वर्णन पुराने समय में पहिले ही से लिखा गया था: ये भक्‍तिहीन हैं, और हमारे परमेश्‍वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालते हैं, और हमारे अद्वैत स्वामी और प्रभु यीशु मसीह का इन्कार करते हैं।” (यहूदा ४) जबकि ये कलीसिया के साथ संगति बनाए हुए थे, ये एक भ्रष्ट प्रभाव थे। (यहूदा ८-१०, १६) प्रकाशितवाक्य में हम पढ़ते हैं कि पिरगमुन और थुआतीरा की कलीसियाओं में दलबंदी, मूर्तिपूजा और व्यभिचार था। (प्रकाशितवाक्य २:१४, १५, २०-२३) यह मसीही स्वतंत्रता का क्या ही दुरुपयोग था!

२१. उनके लिए आगे क्या है जो अपनी मसीही स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हैं?

२१ अपनी मसीही स्वतंत्रता का इस तरह दुरुपयोग करनेवालों के लिए आगे क्या है? याद कीजिए कि इस्राएल का क्या हुआ। इस्राएल परमेश्‍वर का चुना हुआ राष्ट्र था, लेकिन अंत में यहोवा ने उसे अस्वीकार किया। क्यों? क्योंकि इस्राएलियों ने परमेश्‍वर के साथ अपने संबंध को बुराई के लिए एक आड़ के रूप में प्रयोग किया। उन्होंने इब्राहीम के पुत्र होने का गौरव किया, लेकिन यीशु को अस्वीकार किया जो इब्राहीम का वंश और यहोवा द्वारा चुना हुआ मसीहा था। (मत्ती २३:३७-३९; यूहन्‍ना ८:३९-४७; प्रेरितों २:३६; गलतियों ३:१६) सम्पूर्ण रूप में “परमेश्‍वर का इस्राएल” इसी तरह अविश्‍वासी नहीं ठहरेगा। (गलतियों ६:१६) लेकिन कोई भी व्यक्‍तिगत मसीही जो आध्यात्मिक या नैतिक प्रदूषण फैलाता है अंत में अनुशासित किया जाएगा, शायद हानिकारक न्याय भी। हम सब जिस प्रकार अपनी मसीही स्वतंत्रता का प्रयोग करते हैं उसके लिए उत्तरदायी हैं।

२२. उन्हें क्या आनंद मिलता है जो अपनी मसीही स्वतंत्रता परमेश्‍वर के लिए परिश्रम करने में प्रयोग करते हैं?

२२ परमेश्‍वर के लिए परिश्रम करना और सचमुच स्वतंत्र रहना कितना बेहतर होगा। केवल यहोवा ही ऐसी स्वतंत्रता देता है जिसकी कोई क़ीमत है। नीतिवचन कहता है: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूँगा।” (नीतिवचन २७:११) हम सब अपनी मसीही स्वतंत्रता यहोवा के दोषनिवारण के लिए प्रयोग करें। अगर हम ऐसा करते हैं तो हमारे जीवन में अर्थ होगा, हम अपने स्वर्गीय पिता को ख़ुश करेंगे, और अंत में हम उन लोगों में होंगे जो परमेश्‍वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता का आनंद लेते हैं।

क्या आप समझा सकते हैं?

▫ केवल कौन सचमुच स्वतंत्र है?

▫ आदम और हव्वा ने किन स्वतंत्रताओं का आनंद लिया, और उन्होंने उन्हें क्यों खो दिया?

▫ जब इस्राएलियों ने यहोवा के साथ अपनी वाचा का पालन किया, उन्हें किन स्वतंत्रताओं का आनंद प्राप्त हुआ?

▫ यीशु को स्वीकार करनेवालों को कौनसी स्वतंत्रताएँ मिलीं?

▫ पहली शताब्दी में कुछ लोगों ने किस प्रकार अपनी मसीही स्वतंत्रता को खो दिया या फिर उसका दुरुपयोग किया?

[पेज 6 पर तसवीरें]

यीशु ने जो स्वतंत्रता दी वह मनुष्य द्वारा दी जाने वाली किसी भी स्वतंत्रता से कहीं बेहतर थी

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