क्या आपके अनुमान से भी ज़्यादा देर हो चुकी है?
अपनी मौत से तीन दिन पहले, यीशु ने यरूशलेम में एक बहुत ही व्यस्त दिन बिताया, एक ऐसा दिन जो अब ज़िन्दा मसीहियों के लिए परम महत्त्व का दिन साबित हुआ। उसने मंदिर में उपदेश दिया, और उन अनेक कपटपूर्ण सवालों को उलटाया जो उसे फँसाने की कोशिश में यहूदी धार्मिक अगुवों ने पूछा। और आख़िर में, उसने शास्त्रियों और फ़रीसियों की कड़ी निन्दा की, जिस से उनका गहेन्ना में जानेवाले कपटी और साँप के तौर से वर्गीकरण हुआ।—मत्ती, अध्याय २२, २३.
जैसे ही वह मंदिर का प्रतिवेश छोड़ रहा था, उसके एक शिष्य ने उस से कहा: “हे गुरु, कैसे कैसे पत्थर और कैसे कैसे भवन हैं!” अप्रभावित रहकर, यीशु ने उस से कहा: “क्या तुम ये बड़े बड़े भवन देखते हो: यहाँ पत्थर पर पत्थर भी बचा न रहेगा जो ढाया न जाएगा।” (मरकुस १३:१, २) यीशु फिर मंदिर में से आख़री बार निकल आया, किद्रोन घाटी में उतरा, उसे पार करके ज़ैतून के पहाड़ की ढाल पर चढ़ा।
जैसे वह वहाँ पहाड़ पर तीसरे पहर के सूरज की ढलती हुई धूप में बैठा हुआ था, और घाटी के उस पार मोरियाह पर्वत पर उसे मंदिर दिखायी दे रहा था, पतरस, याकूब, यूहन्ना और अन्द्रियास एकान्त में उसके पास आए। उनके मन में उसके वे शब्द भारी बोझ की तरह थे, जो उसने मंदिर के फेंके जाने के बारे में कहे थे। उन्होंने पूछा: “हम से कह कि ये बातें कब होंगी? और तेरे आने का, और जगत के अन्त का क्या चिह्न होगा?” (मत्ती २४:३; मरकुस १३:३, ४) उस अपराह्न ज़ैतून के पहाड़ पर उसने उनके सवाल का जो जवाब दिया, वह हमारे लिए अत्यन्त महत्त्व रखता है। यह हमें “जगत के अन्त” के बारे में बिना देरी किए सोचने के लिए प्रेरित करेगा।
उनका सवाल दोहरा था। एक भाग मंदिर और यहूदी व्यवस्था के अन्त के बारे में था; दूसरा राजा के रूप में यीशु की आगामी मौजूदगी और इस वर्तमान रीति-व्यवस्था के अन्त के बारे में था। इन दोनों सवालों का जवाब यीशु ने दिया, जैसा कि मत्ती २४ और २५, मरकुस १३ और लूका २१ में दिया गया है। (प्रकाशितवाक्य ६:१-८ भी देखें।) इस मौजूदा दुनिया, या रीति-व्यवस्था के अन्त के सम्बन्ध में, यीशु ने ऐसी कई विशेषताओं का वर्णन किया जो, अगर इन्हें साथ लिया जाए तो, अन्तिम दिनों की पहचान देनेवाला संयुक्त चिह्न बनता। क्या वह संयुक्त चिह्न पूरा हो रहा है? क्या यह हमें बाइबल में बताए गए अन्तिम दिनों के समय में रखता है? क्या इसकी पूर्ति से हमें यह चेतावनी मिलती है कि शायद हमारे अनुमान से भी ज़्यादा देर हो चुकी है?
यीशु के संयुक्त चिह्न की एक विशेषता यह है: “जाति पर जाति और राज्य पर राज्य चढ़ायी करेगा।” (मत्ती २४:७) १९१४ में, पहला विश्व युद्ध शुरू हो गया। उस दशक के यहोवा के गवाह फ़ौरन ही चौकस हो गए। और क्यों? तक़रीबन ३५ साल पहले, दिसम्बर १८७९ में, वॉच टावर पत्रिका में बाइबल कालक्रम के आधार पर बताया गया था कि मानव इतिहास में १९१४ एक निर्णायक साल होगा। क्या यह युद्ध, सचमुच ही विश्वव्यापी पैमाने पर होनेवाला पहला युद्ध, जिस में आख़िर को २८ राष्ट्र शामिल हुए, और १.४ करोड़ लोग मारे गए, अन्त के बारे में यीशु के संयुक्त चिह्न को पूरा करनेवाली घटनाओं की शुरुआत हो सकता था? क्या इसके बाद उस चिह्न की अन्य विशेषताएँ भी आतीं?
‘यीशु मसीह के प्रकाशितवाक्य’ में, इसी हत्याकाण्ड के बारे में पूर्वबतलाया गया है। यहाँ लाल-रंग का घोड़ा और उसका सवार “पृथ्वी पर से मेल (शान्ति, N.W.) उठा” लेते हैं। (प्रकाशितवाक्य १:१; ६:४) यह निश्चित रूप से १९१४ से १९१८ के दौरान घटित हुआ। और पहला विश्व युद्ध सिर्फ़ एक शुरुआत ही थी। १९३९ में, दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ। उस संघर्ष में उनसठ राष्ट्र खींच लिए गए, और तक़रीबन ५ करोड़ लोग मारे गए। दूसरे विश्व युद्ध के बाद के ४५ सालों में, १२५ से भी ज़्यादा युद्ध लड़े जा चुके हैं, जिन में २ करोड़ से भी ज़्यादा लोग मारे गए हैं।
इस चिह्न की एक और विशेषता है: “अकाल पड़ेंगे।” (मत्ती २४:७) पहले विश्व युद्ध के दौरान और उसके बाद व्यापक रूप से अकाल पड़े। एक रिपोर्ट में १९१४ से ६० से ज़्यादा प्रधान अकाल सूचिबद्ध किए गए हैं, जिन की वजह से करोड़ों जानें चली गयीं। इसके अलावा, आज भी कुपोषण और निवार्य रोगों से ४०,००० बच्चे हर दिन मर जाते हैं।
“बड़े बड़े भूईंडोल होंगे।” (लूका २१:११) पहले विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद इन्होंने इस पृथ्वी को हिला दिया। १९१५ में इट्ली में हुए एक भूईंडोल में ३२,६१० जानें चली गयीं; १९२० में चीन में हुए एक और भूईंडोल ने २,००,००० जानें ली; जापान में १९२३ में, ९९,३०० लोग मर गए; १९३५ में उस इलाके में, जो अब पाकिस्तान कहलाता है, २५,००० लोगों ने अपनी जानें गवाँ दी; तुर्की में १९३९ में, ३२,७०० मर गए; १९७० में पेरु में, ६६,८०० मारे गए; १९७६ में चीन के २,४०,००० लोग (कुछेक कहते हैं ८,००,०००) मर गए; १९८८ में आरमीनिया में रहनेवाले २५,००० लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे। बेशक, १९१४ से बड़े बड़े भूईंडोल हुए हैं!
‘जगह जगह मरियाँ पड़ेंगी।’ (लूका २१:११) १९१८ और १९१९ के दौरान, स्पेनिश इंफ़्लूएन्ज़ा से तक़रीबन १,००,००,००,००० लोग बीमार हो गए, और २,००,००,००० से भी ज़्यादा लोग मर गए। लेकिन वह सिर्फ़ शुरुआत ही थी। विकासशील राष्ट्रों में, मलेरिया, स्नेल फीवर, रिवर ब्लाईंड्नेस, अतिपाती दस्त, और अन्य बीमारियाँ आज भी सैंकड़ों करोड़ लोगों को अपाहिज बनाती हैं और उन की जान लेती हैं। इसके अलावा, दिल की बीमारी और कैंसर करोड़ों और जानें लेते हैं। लैंगिक रूप से संचारित रोग मनुष्यजाति में विध्वंस ला रहे हैं। आज एड्स (AIDS) की महाविपत्ति दिलों में दहशत बैठा रही है। अनुमान लगाया जाता है कि हर मिनट यह एक नए शिकार को संक्रमित कर रही है, और अभी तक इसकी कोई दवा नहीं।
‘अधर्म का बढ़ना।’ (मत्ती २४:१२) विधिहीनता १९१४ से लेकर बेक़ाबू बढ़ चुकी है, और आज यह स्थिति विस्फोटक है। हत्याएँ, बलात्कार, चोरियाँ, अपराधियों के गिरोहों के बीच युद्ध—ये सब अख़बारों के शीर्षक और रेडियो तथा टेलिविशन समाचार बनते हैं। निरर्थक हिंसा तूफ़ान-सी बेरोक आगे बढ़ती है। अमेरिका में, एक बन्दूकधारी रॅपिड-फ़ायर अस्सॉल्ट राईफ़ल से पाठशाला के बच्चों की एक भीड़ में एक सौ चक्रों की बौछार करता है—५ मृत, २९ घायल। इंग्लैंड में एक पागल आदमी AK-47 राईफ़ल से १६ लोगों की हत्या कर देता है। कैनाडा में एक नारी-द्वेषी पुरुष मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय में जाकर १४ लड़कियों को जान से मार डालता है। ऐसे लोग भेड़िए, सिंह, जंगली जानवर, नासमझ पशुओं की तरह हैं, जिनका जन्म पकड़े जाने और नष्ट किए जाने के लिए ही होता है।—यहेज़केल २२:२७; सपन्याह ३:३; २ पतरस २:१२ से तुलना करें।
“भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते देखते लोगों के जी में जी न रहेगा।” (लूका २१:२६) पहले परमाणुबम के विस्फ़ोट होने के कुछ ही समय बाद, परमाणु वैज्ञानिक हॅरल्ड सी. यूरे ने भविष्य के बारे में कहा: “हम भय में खाएँगे, भय में सोएँगे, भय में जीएँगे और भय में मरेंगे।” परमाणु युद्ध के भय के साथ अपराध, अकाल, आर्थिक अस्थिरता, नैतिक पात, पारिवारिक क्षय, और पृथ्वी के प्रदूषण का भय भी जोड़ा जा चुका है। दरअसल, दैनिक अख़बारों और टेलिविशन समाचार द्वारा बतलायी जानेवाली बुरी परिस्थितियों से भय हर कहीं फैलता है।
प्रेरित पौलुस ने भी इस रीति-व्यवस्था के अन्तिम दिनों में प्रचलित रहनेवाली परिस्थितियों के बारे में लिखा। उसके लफ़्ज़ पढ़ना दिन की ख़बरें पढ़ने के बराबर है। “पर यह जान रख,” उसने लिखा, “कि आख़िर के समय में कठिन समय आएँगे, जिनसे निपटना मुश्किल होगा। क्योंकि मनुष्य ख़ुदग़र्ज़, लोभी, डींगमार, अभिमानी, ईश-निन्दक, माता-पिता की आज्ञा न माननेवाले, नाशुक्र, बेवफ़ा, स्वाभाविक स्नेह रहित, मेल के ख़िलाफ़, तोहमत लगानेवाले, बिना आत्म-संयम के, उग्र, नेकी के दुश्मन, दग़ाबाज़, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्वर के नहीं बल्कि ऐश-ओ-आराम के ज़्यादा चाहनेवाले होंगे। वे भक्ति का वेश तो धारण करेंगे पर उस की शक्ति को न मानेंगे; ऐसे लोगों से दूर रहना।”—२ तीमुथियुस ३:१-५, N.W.
क्या सब कुछ “वैसा ही है जैसे सृष्टि के आरम्भ से था”?
प्रेरित पतरस ने अन्तिम दिनों की एक और विशेषता की पूर्वसूचना दी: “अन्तिम दिनों में हंसी ठट्ठा करनेवाले आएँगे, जो अपनी ही अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे। और कहेंगे, उसके आने की प्रतिज्ञा कहाँ गयी? क्योंकि जब से बाप-दादे सो गए हैं, सब कुछ वैसा ही है, जैसा सृष्टि के आरम्भ से था।”—२ पतरस ३:३, ४.
आज, जब अन्तिम दिनों का विषय आ जाता है, अनेक लोग हँसी उड़ाकर और यह कहकर पतरस के भविष्यसूचक शब्दों को पूरा करते हैं: ‘ओ, ये सारी बातें तो पहले भी घटित हो चुकी हैं। यह तो सिर्फ़ इतिहास खुद को दोहरा रहा है।’ इस प्रकार वे चेतावनियों की ओर ध्यान नहीं देते और “अपनी ही अभिलाषाओं के अनुसार” चलते हैं। यह “जानबूझकर” ही है, कि वे उन भविष्यद्वाणियों की पूर्ति की उपेक्षा करते हैं, जो इतने स्पष्ट रूप से अन्तिम दिनों की पहचान देती हैं।—२ पतरस ३:५.
बहरहाल, यीशु द्वारा पूर्वबतलाए गए संयुक्त चिह्न की अलग-अलग विशेषताएँ इस से पहले इतने कम अवधि में और इतनी तीव्रता से तथा दूर-दूर तक असर करनेवाले परिणामों समेत कभी भी एक साथ पूरी नहीं हुई हैं। (मिसाल के तौर पर, मत्ती २४:३-१२; मरकुस १३:३-८; लूका २१:१०, ११, २५, २६ की पुनः जाँच करें।) और अब हम आपका ध्यान अन्तिम दिनों की एक और पूर्वबतलायी गयी विशेषता की ओर ख़ास तौर से आकर्षित करना चाहते हैं, जैसे यह प्रकाशितवाक्य में वर्णन किया गया है।
आइए हम प्रकाशितवाक्य ११:१८ खोलें। यहाँ कहा गया है कि जब मसीह का राज्य हुक़्म करने लगता है और अन्यजातियाँ क्रोधित होती हैं और न्याय करने का समय आ पहुँचता है, तब यहोवा ‘पृथ्वी के बिगाड़नेवालों का नाश करेंगे।’ क्या प्रदूषण से आज पर्यावरण तबाह नहीं हो रहा? सच है, मनुष्यों ने हमेशा ही खुद को धनी बनाने के लिए इस पृथ्वी के साधनों का अनुचित लाभ उठाया है। लेकिन ऐसा करने में, वे कभी पृथ्वी को एक रहने योग्य ग्रह के तौर से नष्ट करने की स्थिति में न रहे हैं। अब, १९१४ से विकसित की गयी वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी की वजह से, निश्चय ही मनुष्यों में वह क्षमता आ चुकी है, और धन को लोभी रीति से छीनने के द्वारा वे सचमुच ही पृथ्वी को तबाह और पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं तथा पृथ्वी की जीवन निर्वाह करने की सक्षमता को ख़तरे में डाल रहे हैं।
एक धनलोलुप, भौतिकवादी समाज अब ये सब एक चिन्ताजनक रीति से कर रहा है। इसके फलस्वरूप घटित होनेवाली कुछेक नृशंसताएँ यहाँ दी गयी हैं: “तेज़ाबी वर्षा, पृथ्वी ग्रह का तापन, ओज़ोन परत में छिद्र, कूड़े-कचरे का आधिक्य, विषैले पदार्थों की क्षेपण भूमियाँ, ख़तरनाक़ शाकनाशी और कीटनाशी ओषधि, परमाण्विक अपशिष्ट द्रव्य, तेल का अधिप्लाव, असंसाधित मलजल का ग़ैर-ज़िम्मेदार रूप से फेंका जाना, संकटापन्न प्राणी-जातियाँ, ऐसे प्रदूषित तालाब जिन में कोई प्राणी ज़िन्दा नहीं रह सकते, प्रदूषित भूमिगत पानी, विनष्ट जंगल, प्रदूषित मिट्टी, ऊपरी मिट्टी का खो जाना, और दरख़्तों तथा फ़सल और साथ ही मानव स्वास्थ्य को हानि पहुँचानेवाला धूम-कोहरा।
प्रोफ़ेसर बॅरी कॉम्मनः कहते हैं: “मुझे यक़ीन है कि पृथ्वी के निरन्तर प्रदूषण से, अगर यह बेरोक जारी रहेगा, आख़िरकार मानवीय जीवन के लिए एक जगह के तौर से इस ग्रह की योग्यता नष्ट होगी। . . . मुश्किल वैज्ञानिक अज्ञानता में नहीं, सुविचारित लोभ में है।” स्टेट ऑफ द वर्ल्ड १९८७ नामक किताब में पृष्ठ ५ पर यूँ कहा गया है: “मानवीय क्रियाकलाप की पहुँच से खुद पृथ्वी पर रहने की योग्यता ख़तरे में पड़ना शुरु हुई है।” १९९० में अमेरिका में टेलिविशन के राष्ट्रीय कार्यक्रम में दिखायी गयी एक मुख्य श्रृंखला का शीर्षक था “रेस टू सेव द प्लॅनेट।” (इस ग्रह को बचाने की दौड़।)
मानव कभी प्रदूषण करना बन्द नहीं करेगा; परमेश्वर इसे बन्द कर देंगे जब वे उन लोगों को नष्ट कर देंगे जो इस पृथ्वी को नष्ट कर रहे हैं। परमेश्वर और उनका स्वर्गीय फ़ील्ड मार्शल, यीशु मसीह, आरमागेडोन के आख़री युद्ध में भौतिकवादी राष्ट्रों को न्यायदण्ड देकर ऐसा करेंगे।—प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६; १९:११-२१.
आख़िर में, अन्तिम दिनों के बारे में यीशु की भविष्यद्वाणी की एक अतिविशिष्ट विशेषता पर ग़ौर करें: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती २४:१४) इस सुसमाचार में बताया जाता है कि परमेश्वर का राज्य अब स्वर्ग में राज्य कर रहा है और जल्द ही इस बुरी रीति-व्यवस्था को नष्ट करने और पृथ्वी पर परादीस पुनःस्थापित करने के लिए कार्य करेगा। सुसमाचार का प्रचार पहले भी हुआ था लेकिन समस्त बसी हुई पृथ्वी में नहीं। बहरहाल, १९१४ से, यहोवा के गवाहों ने ऐसा ही किया है, यीशु के पूर्वबतलाए गए उत्पीड़न—सरकारी निषेधाज्ञाएँ, भीड़ हिंसा, क़ैद, यंत्रणा, और अनेक मौतों के बावजूद।
१९१९ में, इस सुसमाचार का प्रचार करनेवाले यहोवा के ४,००० गवाह थे। उनकी तादाद बढ़ती गयी है, यहाँ तक कि पिछले साल २१२ देशों में, तक़रीबन २०० भाषाओं में ४०,००,००० से भी ज़्यादा लोग प्रचार कर रहे थे। उन्होंने सैंकड़ों करोड़ बाइबल, किताबें, और पत्रिकाएँ वितरित कीं, और लोगों के घरों में करोड़ों बाइबल अध्ययन संचालित किए, तथा दुनिया के सभी हिस्सों में बड़े स्टेडियमों में सम्मेलन आयोजित किए। १९१४ से पहले ऐसी ज़बरदस्त मात्रा में सुसमाचार प्रचार का काम नहीं किया जा सका होगा। जिस पैमाने पर इसकी निष्पत्ति हुई है, उस से आधुनिक तेज़-गति वाले मुद्रण-यन्त्र, सफ़र करने की सहूलियतें, कम्प्यूटर, फैक्स मशीन, और प्रेषण तथा दूर-संचार सहूलियतें भी, जो बेजोड़ रूप से सिर्फ़ हमारे समय में ही उपलब्ध हैं, ज़रूरी रही हैं।
यिर्मयाह के समय के यरूशलेम को आनेवाले विनाश की चेतावनी दी गयी थी; उसके बाशिन्दों ने सिर्फ़ हँसी उड़ायी, लेकिन उनके अनुमान से भी ज़्यादा देर हो चुकी थी। आज, ज़बरदस्त समर्थक सबूतों के साथ, आरमागेडोन के विनाश की कहीं ज़्यादा महत्तर चेतावनी सुनायी जा रही है। (प्रकाशितवाक्य १४:६, ७, १७-२०) करोड़ों लोग अनसुनी करते हैं। लेकिन वक़्त बीतता जा रहा है; उनके अनुमान से भी ज़्यादा देर हो चुकी है। क्या आपके अनुमान से भी ज़्यादा देर हो चुकी है?
[पेज 7 पर तसवीरें]
यिर्मयाह के दिनों में उनके अनुमान से भी ज़्यादा देर हो चुकी थी