ज्योति और प्रेम में चलते रहें
यूहन्ना की पहली पत्री से विशिष्टताएँ
यहोवा ज्योति और प्रेम का स्रोत हैं। आध्यात्मिक ज्योति के लिए हमें परमेश्वर की ओर देखना चाहिए। (भजन ४३:३) और प्रेम उनकी पवित्र आत्मा के फलों में से है।—गलतियों ५:२२, २३.
प्रेरित यूहन्ना की पहली उत्प्रेरित पत्री में ज्योति, प्रेम और अन्य बातों पर विचार किया गया है। यह क़रीब सामान्य युग के वर्ष ९८ में इफिसुस में या उसके आस-पास कहीं लिखी गई थी। उस चिट्ठी को लिखने का मुख्य कारण धर्मत्याग से मसीहियों की हिफ़ाज़त करना और उन्हें ज्योति में चलते रहने की मदद करना था। चूँकि हम अपने प्रेम, विश्वास और सच्चाई के प्रति वफ़ादारी को दी चुनौतियों का सामना करते हैं, इस पत्री पर विचार करने से निश्चय ही हमें फ़ायदा होगा।
‘ज्योति में चलें’
यूहन्ना ने स्पष्ट किया कि विश्वसनीय मसीहियों को आध्यात्मिक ज्योति में चलना चाहिए। (१:१-२:२९) उसने कहा: “परमेश्वर ज्योति है: और उस में कुछ भी अन्धकार [कोई भी बुरी, अनैतिक, झूठी या अपवित्र बातें] नहीं।” चूँकि आत्मा से अभिषिक्त मसीही ‘ज्योति में चलते हैं,’ वे परमेश्वर, मसीह और एक दूसरे से “सहभागिता” रखते हैं। और यीशु के लहू से उन्हें पापों से शुद्ध भी किया गया है।
चाहे हम स्वर्गीय आशा रखनेवाले अभिषिक्त मसीही हों, या हम पृथ्वी पर अनन्त जीवन की प्रत्याशा रखते हों, हम सिर्फ़ तभी यीशु के बलिदान से लाभ प्राप्त करते रहेंगे, अगर हम दुनिया को नहीं बल्कि अपने भाइयों से प्रेम रखेंगे। हमें धर्मत्यागियों से प्रभावित होने से बचे रहना चाहिए, जैसा “मसीह का विरोधी,” जो पिता और पुत्र, दोनों का इन्कार करता है। और हम यह कभी ना भूलें कि अनन्त जीवन का आनन्द सिर्फ़ वही लोग लेंगे जो सच्चाई से लगे रहेंगे और धर्म के काम करते रहेंगे।
परमेश्वर की सन्तान प्रेम दर्शाते हैं
यूहन्ना आगे परमेश्वर की सन्तान की पहचान देता है। (३:१-४:२१) एक बात तो यह है कि वे धर्म के काम करते हैं। वे यहोवा परमेश्वर की आज्ञा का पालन भी करते हैं कि ‘वे उनके पुत्र यीशु मसीह के नाम पर विश्वास करें और आपस में प्रेम रखें।’
जो शख़्स “परमेश्वर को जानता है,” वह यहोवा के उद्देश्यों के बारे में और उनका प्रेम किस तरह अभिव्यक्त किया गया है, इसके बारे में भी जानता है। इस से उस व्यक्ति को प्रेम दर्शाने में मदद होनी चाहिए। दरअसल, “जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है।” ईश्वरीय प्रेम तब दर्शाया गया जब परमेश्वर ने “हमारे पापों के प्रायश्चित्तिक बलि के लिए अपने पुत्र को भेजा।” (न्यू.व.) अगर यहोवा ने हम से उस हद तक प्रेम किया है, तो हम पर बाध्यता है कि आपस में प्रेम रखें। जी हाँ, जो कोई परमेश्वर से प्रेम रखने का दावा करता है, उसे अवश्य अपने आध्यात्मिक भाई से भी प्रेम रखना चाहिए।
विश्वास ‘संसार पर जय करता है’
प्रेम से परमेश्वर की सन्तान उनकी आज्ञाओं का पालन करने के लिए प्रेरित होते हैं, लेकिन विश्वास से ही वे ‘संसार पर जय करते हैं।’ (५:१-२१) परमेश्वर, उनके वचन, और उनके पुत्र पर हमारा विश्वास, इस दुनिया की ग़लत विचारणा और तौर-तरीक़ों को अस्वीकार करने और यहोवा की आज्ञाओं का पालन करने के ज़रिए, हमें ‘संसार पर जय कर सकने’ के लिए योग्य बनाते हैं। परमेश्वर ने ‘संसार पर जय करनेवालों’ को अनन्त जीवन की आशा दी है और वह उन प्रार्थनाओं को सुनते हैं जो उनकी इच्छानुसार हैं। चूँकि जो कोई “परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है,” पाप नहीं करता, इसलिए शैतान ऐसे व्यक्ति को कसकर नहीं पकड़ता। लेकिन अभिषिक्त जनों और यहोवा के पार्थिव आशा रखनेवाले सेवकों को भी हमेशा याद रखना चाहिए कि ‘सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।’
[पेज 30 पर बक्स/तसवीरें]
एक प्रायश्चित्तिक बलि: यीशु “हमारे पापों [उसके अभिषिक्त अनुयायियों के पापों] का प्रायश्चित्तिक बलि है, और केवल हमारे ही नहीं, बरन सारे जगत के,” बाक़ी मनुष्यजाति के “पापों का भी है”। (१ यूहन्ना २:२, न्यू.व.) उसकी मृत्यु एक “प्रायश्चित्त” था (यूनानी, हाय·ले·स्मॉसʹ, जो “तुष्टिकरण करने का ज़रिया,” एक “हरजाना” सूचित करता है) लेकिन इस अर्थ से नहीं कि परमेश्वर की दुःखी भावनाओं को शान्त करना था। उलटा, यीशु के बलिदान ने परिपूर्ण ईश्वरीय न्याय की माँगों को शान्त, या संतुष्ट किया। कैसे? पापों को क्षमा करने के लिए धर्मी और न्यायपूर्ण आधार का प्रबंध करके, ताकि परमेश्वर “तब भी धर्मी ठहरें जब वह यीशु पर विश्वास करनेवाले [स्वाभाविक रूप से पापी] मनुष्यों को धर्मी ठहराते हैं।” (रोमियों ३:२३-२६, न्यू.व.; ५:१२) मनुष्य के पापों के लिए सम्पूर्ण प्रायश्चित्त करने का ज़रिया प्रदान करके, यीशु के बलिदान से मनुष्य को यहोवा के साथ अच्छे संबंध का पुनःस्थापन चाहना और प्राप्त करना अनुकूल, या सहायक बन गया। (इफिसियों १:७; इब्रानियों २:१७) इसके के लिए हम सब को कितना शुक्रगुज़ार होना चाहिए!