नागरिक या विदेशी, परमेश्वर आपका स्वागत करते हैं!
“एक ही मनुष्य से मनुष्यों की सब राष्ट्र सारी पृथ्वी पर रहने के लिए बनाई।”—प्रेरितों १७:२६, NW.
१. आज बहुत से देशों में विदेशी संस्कृतियों के लोगों को स्वीकार करने के सम्बन्ध में क्या दशा है?
समाचार पत्रों की रिपोर्टें यह सूचित करती हैं कि बहुत से देशों में विदेशियों, आप्रवासियों, और शरणार्थियों के लिए चिन्ता बढ़ती जा रही है। एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका के कुछ भागों से निकलने के लिए लाखों लोग बेचैन हैं। शायद वे दबानेवाली दरिद्रता, गृह युद्ध, या उत्पीड़न से छुटकारा पाना चाहते हैं। परन्तु क्या किसी दूसरी जगह में उनका स्वागत है? टाइम (Time) पत्रिका ने बताया: “जैसे-जैसे यूरोप की मानवजातीय विविधता बदलती जाती है, कुछ देश यह पाते हैं कि वे विदेशी संस्कृतियों के प्रति इतने सहनशील नहीं हैं, जितना एक समय पर वे सोचा करते थे।” १,८०,००,००० “अनचाहे” शरणार्थियों के बारे में टाइम (Time) पत्रिका ने कहा: “स्थिर राष्ट्रों को इनके द्वारा दी गयी चुनौती क़ायम रहेगी।”
२, ३. (अ) स्वीकृति के सम्बन्ध में बाइबल कौनसा सुखद आश्वासन देती है? (ब) परमेश्वर का लोगों के साथ व्यवहार के बारे में शास्त्रवचन जो प्रस्तुत करती हैं, उसे जाँचने से हम क्यों लाभ पा सकते हैं?
२ इस सम्बन्ध में आगे चाहे जो भी हो, बाइबल बताती है कि परमेश्वर हरेक राष्ट्र के लोगों का स्वागत करते हैं—चाहे एक व्यक्ति स्वाभाविक नागरिक, एक आप्रवासी, या एक शरणार्थी हो। (प्रेरितों १०:३४, ३५) ‘फिर भी,’ कुछ लोग पूछ सकते हैं, ‘आप यह कैसे कह सकते हैं? क्या परमेश्वर ने औरों को अलग करके, केवल प्राचीन इस्राएल को अपने लोग होने के लिए नहीं चुना था?’
३ ख़ैर, आइए देखें कि परमेश्वर ने प्राचीन समय के लोगों के साथ कैसे व्यवहार किया था। हम कुछ भविष्यवाणियों की जाँच भी कर सकते हैं जिनका सम्बन्ध उन ख़ुश अनुग्रहों से है जो आज सच्चे उपासकों को उपलब्ध हैं। इन भविष्यसूचक वचनों पर पुनर्विचार करना अधिक समझ के भेद खोल सकते हैं, जिसे शायद आप अत्याधिक प्रोत्साहनदायक पा सकते हैं। इससे इस बात का भी संकेत मिलता है कि, बड़े क्लेश के बाद, परमेश्वर “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा” के व्यक्तियों के साथ कैसे व्यवहार करेंगे।—प्रकाशितवाक्य ७:९, १४-१७.
‘सारी जातियाँ अपने को धन्य मानेंगी’
४. राष्ट्रीयता की समस्या कैसे विकसित हुई, परन्तु परमेश्वर ने कौनसे क़दम उठाए?
४ जल-प्रलय के बाद, नूह का सन्निकट परिवार ही पूरी मानवजाति थी, और सभी सच्चे उपासक थे। परन्तु कुछ समय बाद यह एकता बदल गयी। कुछ समय बाद, कई लोगों ने परमेश्वर की इच्छा की अवहेलना करते हुए, एक गुम्मट बनाना शुरू कर दिया। परिणामस्वरूप मानवजाति विभिन्न भाषा समूहों में विभाजित हो गयी, जो तितर-बितर जाति और राष्ट्र बन गए। (उत्पत्ति ११:१-९) फिर भी, इब्राहीम तक पहुँचने वाले वंश में सच्ची उपासना जारी रही। परमेश्वर ने वफादार इब्राहीम को आशिष दी और यह वादा किया कि उसकी सन्तान एक महान बड़ा राष्ट्र बनेगी। (उत्पत्ति १२:१-३) वह राष्ट्र प्राचीन इस्राएल था।
५. परमेश्वर का इब्राहीम के साथ व्यवहार से हम सब क्यों हिम्मत पा सकते हैं?
५ बहरहाल, यहोवा इस्राएल को छोड़ और लोगों को त्याग नहीं दे रहे थे, क्योंकि उनका उद्देश्य पूरी मानवजाति को सम्मिलित करने का था। परमेश्वर ने इब्राहीम से जो वादा किया उस से हम यह स्पष्टतः देख सकते हैं: “पृथ्वी की सारी जातियाँ अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।” (उत्पत्ति २२:१८, तिरछा टाइप हमारा.) सदियों से परमेश्वर ने इस्राएल के साथ एक विशेष ढंग से व्यवहार किया, उन्हें एक राष्ट्रीय नियम संहिता दी, अपने मंदिर में भेंट चढ़ाने के लिए याजकों का प्रबन्ध किया, और रहने के लिए प्रतिज्ञात देश दिया।
६. इस्राएल के साथ परमेश्वर के प्रबन्धों से सबको कैसे लाभ हो सकता है?
६ इस्राएल को दिए गए परमेश्वरीय नियम, हरेक राष्ट्र के लोगों के लिए अच्छा था क्योंकि यह मानवीय पाप ज़ाहिर करता था, और एक सिद्ध बलिदान की आवश्यकता को दिखाता था जो मानव पाप को एक ही बार हमेशा के लिए ढक देगा। (गलतियों ३:१९; इब्रानियों ७:२६-२८; ९:९; १०:१-१२) फिर भी, क्या आश्वासन था कि इब्राहीम का वंश—जिसके द्वारा सभी जातियाँ अपने को धन्य मानेंगी—आएगा और इन योग्यताओं को पूरा करेगा? यहाँ पर भी इस्राएल का नियम ने सहायता किया। यह नियम कनानियों के साथ अन्तर्विवाह को मना करता था, क्योंकि वे लोग अनैतिक कार्यों और अनुष्ठानों के लिए कुख्यात थे, जैसे बच्चों को ज़िंदा जलाने की प्रथा। (लैव्यव्यवस्था १८:६-२४; २०:२, ३; व्यवस्थाविवरण १२:२९-३१; १८:९-१२) परमेश्वर ने आदेश दिया कि उनको और उनकी प्रथाओं को हटा दिया जाना चाहिए। यह सबके दीर्घकालीन लाभ के लिए होगा, परदेशी का भी, क्योंकि इससे वंश का क्रम भ्रष्ट न हो जाने में सहायता मिलती।—लैव्यव्यवस्था १८:२४-२८; व्यवस्थाविवरण ७:१-५; ९:५; २०:१५-१८.
७. परमेश्वर अजनबियों का स्वागत करते हैं, इसका प्रारंभिक संकेत क्या था?
७ जिस समय नियम लागू था और परमेश्वर इस्राएल को ख़ास दृष्टि से देखते थे, उस समय पर भी उन्होंने ग़ैर-इस्राएलियों पर दया दिखाई। उनका ऐसा करने की तत्परता तब प्रदर्शित हुई जब इस्राएल राष्ट्र मिस्र की ग़ुलामी से बाहर निकलकर अपने देश की ओर जा रहा था। “उनके साथ मिली जुली हुई एक भीड़ गई।” (निर्गमन १२:३८) “विदेशियों का एक झुंड . . . एक सम्मिश्रण, या विभिन्न राष्ट्रों का एक जन समूह,” प्रोफेसर सी. एफ़ काइल ने उनकी पहचान इस तरह किया। (लैव्यव्यवस्था २४:१०; गिनती ११:४) संभवतः बहुत से व्यक्ति मिस्री थे जिन्होंने सच्चे परमेश्वर को स्वीकार किया था।
विदेशियों के लिए स्वागत
८. गिबोन के निवासियों को परमेश्वर के लोगों के बीच कैसे जगह मिली?
८ जैसे इस्राएल ने प्रतिज्ञात देश में से दूषित राष्ट्रों को हटा देने के परमेश्वरीय आदेश पूरा किया, परमेश्वर ने विदेशियों के एक समूह की रक्षा की, गिबोन के निवासी, जो यरूशलेम के उत्तर की ओर रहते थे। उन्होंने यहोशू के पास भेष बदले हुए राजदूतों को भेजा, शान्ति के लिए निवेदन करने और उसे प्राप्त करने के वास्ते। जब उनकी चाल का पता चल गया, यहोशू ने फ़ैसला दिया कि हर गिबोन का निवासी “परमेश्वर के भवन के लिए लकड़हारा और पानी भरनेवाला” के रूप में सेवा करेगा। (यहोशू ९:३-२७) आज बहुत से आप्रवासी भी एक नए लोग का हिस्सा बनने के लिए विनम्र सेवा पद स्वीकार करते हैं।
९. इस्राएल में विदेशियों के सम्बन्ध में राहाब और उसके परिवार का उदाहरण कैसे प्रोत्साहनदायक है?
९ आपको यह जानकर शायद प्रोत्साहन मिलेगा कि उस समय परमेश्वर का स्वागत केवल विदेशियों के समूहों के लिए नहीं था: एकल व्यक्तियों का भी स्वागत था। आज कुछ राष्ट्र ऐसे आप्रवासियों का ही स्वागत करते हैं जिनके पास ऊँचा ओहदा, पूँजी लगाने के लिए धन, या उच्च शिक्षा है। यहोवा के साथ ऐसा नहीं है, जैसे हम गिबोन के निवासियों के प्रसंग से कुछ ही समय पहले हुई एक घटना से देख सकते हैं। यह एक कनानी से संबंधित था जो निश्चय ही उच्च सामाजिक ओहदा की नहीं थी। बाइबल उसे “राहाब वेश्या” कहकर संबोधित करती है। सच्चे परमेश्वर में उसके विश्वास के कारण, वह और उसका घराना यरीहो के गिरने के समय बचा लिए गए थे। यद्यपि राहाब एक विदेशी थी, तो भी इस्राएलियों ने उसे स्वीकार किया। वह विश्वास का एक प्रतिमान थी, जो हमारे नक़ल के योग्य है। (इब्रानियों ११:३०, ३१, ३९, ४०; यहोशू २:१-२१; ६:१-२५) वह मसीह की पुरखिन भी बनी।—मत्ती १:५, १६.
१०. इस्राएल में विदेशियों का सत्कार किस पर निर्भर करता था?
१० सच्चे परमेश्वर को प्रसन्न करने के उनके प्रयत्नों के अनुरूप ग़ैर-इस्राएलियों को प्रतिज्ञात देश में स्वीकार किया गया। इस्राएलियों को कहा गया था कि यहोवा की सेवा न करनेवालों के साथ संगति, विशेषकर धार्मिक संगति, न करें। (यहोशू २३:६, ७, १२, १३; १ राजा ११:१-८; नीतिवचन ६:२३-२८) फिर भी, बहुत से ग़ैर-इस्राएलियों ने बुनियादी नियमों का पालन किया। कुछ तो ख़तना-प्राप्त यहूदी मतधारण करनेवाले बन गए, और यहोवा ने अपनी कलीसिया के सदस्यों के रूप में उनका पूरा स्वागत किया।—लैव्यव्यवस्था २०:२; २४:२२; गिनती १५:१४-१६; प्रेरितों ८:२७.a
११, १२. (अ) इस्राएलियों को विदेशी उपासकों के साथ कैसे बरताव करना था? (ब) यहोवा के उदाहरण की नक़ल करने में हमें सुधार की आवश्यकता क्यों हो सकती है?
११ परमेश्वर ने इस्राएलियों को विदेशी उपासकों के प्रति अपने व्यवहार का अनुकरण करने का आदेश दिया: “जो परदेशी तुम्हारे संग रहे वह तुम्हारे लिए देशी के समान हो, और उससे अपने ही समान प्रेम रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे।” (लैव्यव्यवस्था १९:३३, ३४; व्यवस्थाविवरण १:१६; १०:१२-१९) हालाँकि हम नियम के अधीन नहीं हैं, यह हमारे लिए एक सबक़ देता है। दूसरी जाति, राष्ट्र, या संस्कृति के लोगों के प्रति पूर्वधारणा या शत्रुता के भाव को मान लेना सहज है। सो अच्छा होगा यदि हम अपने आप से पूछे: ‘क्या मैं यहोवा के उदाहरण की नक़ल करते हुए ऐसी पूर्वधारणाओं को अपने अन्दर से हटाने की कोशिश कर रहा हूँ?’
१२ इस्राएलियों के पास परमेश्वर का स्वागत का दृश्य प्रमाण था। राजा सुलैमान ने प्रार्थना की: “वह विदेशी, जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरा नाम सुनकर, वास्तव में दूर देश से आए . . . और आकर इस भवन की ओर प्रार्थना करें, तब तू अपने स्वर्गीय निवासस्थान में से सुन . . . जिस से पृथ्वी के सब देशों के लोग तेरा नाम जानकर . . . तेरा भय मानें।”—१ राजा ८:४१-४३; २ इतिहास ६:३२, ३३.
१३. परमेश्वर ने इस्राएल के साथ अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रबन्ध क्यों किया?
१३ जब यहोवा इस्राएल राष्ट्र को अपने लोगों की तरह इस्तेमाल करते हुए, मसीह के वंश क्रम की रक्षा कर रहे थे, तब परमेश्वर ने महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के विषय में पूर्वबतलाया। इससे पहले, जब इस्राएल नियम वाचा में शामिल होने के लिए राज़ी हो गया था, तब परमेश्वर ने यह अनुमति दी कि वे एक “याजकों का राज्य और पवित्र जाति” का स्रोत बन सकते थे। (निर्गमन १९:५, ६) लेकिन इस्राएल ने सदियों तक अविश्वासिता दिखाई। इसलिए यहोवा ने पूर्वबतलाया कि वह एक नई वाचा कर लेगा, जिसके अंतर्गत “इस्राएल के घराने” में शामिल होनेवाले की गलतियाँ और पाप क्षमा किए जाएँगे। (यिर्मयाह ३१:३३, ३४) उस नई वाचा ने मसीह की प्रतीक्षा की, जिसका बलिदान बहुत लोगों के पापों को असल में धो डाल सकता है।—यशायाह ५३:५-७, १०-१२.
स्वर्ग में इस्राएली
१४. यहोवा ने कौनसे नए “इस्राएल” को स्वीकार किया, और कैसे?
१४ हमें मसीही यूनानी शास्त्र यह जानने में मदद करती है कि यह सब कैसे पूरा हुआ। यीशु ही मसीह था, जिसकी मृत्यु ने नियम की पूर्ति की और पापों की पूर्ण क्षमा का आधार रखी। वह लाभ पाने के लिए, एक व्यक्ति को शरीर में एक खतनाप्राप्त यहूदी नहीं होना था। नहीं। प्रेरित पौलुस ने लिखा कि नई वाचा में, “यहूदी वही है जो मन में है; और खतना वही है, जो हृदय का और आत्मा में है; न कि लेख का।” (रोमियों २:२८, २९; ७:६) जिन्होंने यीशु के बलिदान पर विश्वास किया उन्हें क्षमा मिली, और परमेश्वर ने उन्हें ‘आत्मा से यहूदी’ के रूप में स्वीकार किया, जो मिलकर “परमेश्वर का इस्राएल” नामक आत्मिक राष्ट्र बनते हैं।—गलतियों ६:१६.
१५. आत्मिक इस्राएल का भाग होने के लिए शारीरिक राष्ट्रीयता एक कारक क्यों नहीं है?
१५ हाँ, आत्मिक इस्राएल में स्वीकार किए जाना, एक विशेष राष्ट्र या जातीय पृष्ठभूमि पर निर्भर नहीं करता था। कुछ लोग स्वाभाविक यहूदी थे, जैसे कि यीशु के प्रेरित। अन्य, रोमी सेना अधिकारी कुरनेलियुस के समान ख़तनारहित ग़ैर-यहूदी थे। (प्रेरितों १०:३४, ३५, ४४-४८) पौलुस ने आत्मिक इस्राएल के बारे में सही कहा: “उस में न तो यूनानी रहा, न यहूदी, न ख़तना, न ख़तनारहित, न विदेशी, न स्कूती, न दास और न स्वतंत्र।” (कुलुस्सियों ३:११, NW) जो परमेश्वर की आत्मा के द्वारा अभिषिक्त होते हैं, वे “एक चुना हुआ वंश, राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्वर की) निज प्रजा” बन जाते हैं।—१ पतरस २:९; निर्गमन १९:५, ६ से तुलना करें.
१६, १७. (अ) परमेश्वर के उद्देश्य में आत्मिक इस्राएलियों की क्या भूमिका है? (ब) जो लोग परमेश्वर के इस्राएल के भाग नहीं है, उन पर ध्यान देना क्यों उपयुक्त है?
१६ परमेश्वर के उद्देश्य में आत्मिक इस्राएलियों का क्या भविष्य है? यीशु ने जवाब दिया: “हे छोटे झुण्ड, मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है कि तुम्हें राज्य दे।” (लूका १२:३२) अभिषिक्त जन, जिनका “स्वदेश स्वर्ग है,” मेम्ने के राज्य शासन में उनके साथ सह-वारिस होंगे। (फिलिप्पियों ३:२०; यूहन्ना १४:२, ३; प्रकाशितवाक्य ५:९, १०) बाइबल सूचित करती है कि ये ‘इस्राएल की संतानों में से मुहर किए गए’ हुए हैं, और “परमेश्वर और मेम्ने के निमित्त पहिले फल होने के लिए मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं।” इनकी संख्या १,४४,००० है। किन्तु, मुहर लगाए जानेवाले इस संख्या के विषय में विवरण देने के बाद, यूहन्ना एक विभिन्न समूह का परिचय देता है—“हर एक जाति और कुल और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था।”—प्रकाशितवाक्य ७:४, ९; १४:१-४.
१७ कुछ लोग सोच सकते हैं: ‘उन लाखों लोगों का क्या जो आत्मिक इस्राएल का भाग नहीं हैं, उन लोगों के बारे में जो बड़ी भीड़ के रूप में बड़े क्लेश से बच निकलेंगे? आत्मिक इस्राएल के बचे हुए कुछ व्यक्तियों के सम्बन्ध में उन लोगों की आज क्या भूमिका है?’b
भविष्यवाणी में विदेशी
१८. बाबुलीय निर्वासन से इस्राएलियों की वापसी किस बात से हुई?
१८ जब इस्राएल नियम वाचा के अधीन था लेकिन उसके प्रति विश्वासघाती था, उस समय की तरफ मुड़कर देखने से हम पाते हैं कि परमेश्वर ने तै किया कि बाबुलियों द्वारा इस्राएल को उजाड़ा जाए। सा.यु.पू. वर्ष ६०७ में, इस्राएल को ७० साल के लिए ग़ुलामी में ले जाया गया। फिर परमेश्वर ने उस राष्ट्र को दुबारा मोल लिया। अधिपति जरुब्बाबेल के नेतृत्व में, स्वाभाविक इस्राएल का एक अवशेष अपने देश वापस लौट आया। मादियों और फारसियों के शासकों ने, जिन्होंने बाबुल को पराजित किया था, वापस जा रहे निर्वासितों को खाद्य और आदि सामग्री भी दिए। यशायाह की पुस्तक ने इन घटनाओं के बारे में पूर्वसूचना दी थी। (यशायाह १:१-९; ३:१-२६; १४:१-५; ४४:२१-२८; ४७:१-४) और एज्रा हमें उस वापसी के बारे में ऐतिहासिक ब्योरा देता है।—एज्रा १:१-११; २:१, २.
१९. इस्राएल की वापसी के सम्बन्ध में, क्या भविष्यसूचक संकेत था कि विदेशियों को भी शामिल किया जाएगा?
१९ फिर भी, परमेश्वर के लोगों का दुबारा मोल लिए जाना और वापसी के बारे में पूर्वबतलाते हुए यशायाह ने यह सनसनीख़ेज़ भविष्यवाणी दी: “अन्यजातियाँ तेरे पास प्रकाश के लिए और राजा तेरे आरोहण के प्रताप की ओर आयेंगे।” (यशायाह ५९:२०; ६०:३) सुलैमान की प्रार्थना के अनुरूप, वैयक्तिक विदेशियों का स्वागत के अलावा इसका और अधिक अर्थ है। यशायाह, पद में एक असाधारण परिवर्तन के विषय में संकेत कर रहा था। “अन्यजातियाँ” इस्राएल की सन्तानों के साथ सेवा करेंगी: “विदेशी लोग तेरी शहरपनाह को बनाएँगे, और उनके अपने राजा तेरी सेवा टहल करेंगे; क्योंकि मैं ने क्रोध में आकर तुझे दुःख दिया था, परन्तु अब तुझ से प्रसन्न होकर, निश्चय ही तुझ पर दया करूँगा।”—यशायाह ६०:१०, NW.
२०, २१. (अ) इस्राएल की ग़ुलामी से वापसी का हमारे समय में कौनसी समानान्तरता पायी जाती है? (ब) आत्मिक इस्राएल में कैसे ‘पुत्र-पुत्रियाँ’ जोड़ी गयीं?
२० इस्राएल का निर्वासन में जाना और वापस आना, कई अंश तक तो आधुनिक समय के आत्मिक इस्राएल का समानान्तर है। प्रथम विश्व युद्ध से पहले, अभिषिक्त मसीहियों का अवशेष पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा से सहमत नहीं थे; वे मसीहीजगत के गिरजों से ली गयी कुछ विचारों और प्रथाओं पर दृढ़ थे। फिर, युद्धकालीन उन्माद के दौरान और आंशिक रूप से पादरीवर्ग की उकसाहट की वजह से, आत्मिक इस्राएल के अवशेष में से प्रमुख जनों को बेइंसाफ़ी से क़ैद किया गया। युद्ध के बाद, सा.यु. वर्ष १९१९ में, वास्तविक जेल में बंद उन अभिषिक्त जनों को आज़ाद किया गया और निर्दोष ठहराया गया था। इससे यह प्रमाणित हुआ कि परमेश्वर के लोग, बड़े बाबुल, अर्थात झूठे धर्म का विश्वव्यापी साम्राज्य की ग़ुलामी से छुड़ाए गए। परमेश्वर के लोग एक आत्मिक परादीस को बनाने और उस में रहने के लिए आगे बढ़े।—यशायाह ३५:१-७; ६५:१३, १४.
२१ यशायाह के वर्णन में यह सूचित किया गया था: “वे सब के सब इकट्ठे होकर तेरे पास आ रहे हैं; तेरे पुत्र दूर से आ रहे हैं, और तेरी पुत्रियाँ हाथों-हाथ पहुँचाई जा रही हैं। तब तू इसे देखेगी और तेरा मुख चमकेगा, तेरा हृदय थरथराएगा और आनन्द से भर जाएगा; क्योंकि समुद्र का सारा धन और अन्यजातियों की धन-सम्पत्ति तुझ को मिलेगी।” (यशायाह ६०:४, ५) आनेवाले दशकों में, ‘पुत्र और पुत्रियाँ’ आती रहीं, और वे आत्मा से अभिषिक्त होकर, आत्मिक इस्राएल के अन्तिम स्थानों को लेने लगे।
२२. कैसे “विदशी” आत्मिक इस्राएलियों के साथ कार्य करने आए हैं?
२२ उन ‘विदेशियों’ के बारे में क्या ‘जो तेरी शहरपनाह को बनाएँगे’? यह भी हमारे ही समय में हुआ है। जैसे-जैसे १,४४,००० की बुलाहट समाप्ति पर आ रही थी, सभी राष्ट्रों से निकली एक बड़ी भीड़ आत्मिक इस्राएल के साथ उपासना करने के लिए एकत्रित होने लगी। इन नए व्यक्तियों को परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन की प्रत्याशा है। यद्यपि उनकी वफादार सेवा का अन्तिम स्थल अलग होगा, वे राज्य का सुसमाचार प्रचार करने में अभिषिक्त अवशेष की सहायता करने में ख़ुश थे।—मत्ती २४:१४.
२३. “विदेशियों” ने किस हद तक अभिषिक्त जनों को सहायता प्रदान की है?
२३ आज, लगभग ४०,००,००० से अधिक “विदेशी,” अवशेष के साथ जिनका ‘स्वदेश स्वर्ग है,’ यहोवा के प्रति अपनी भक्ति का प्रमाण दे रहे हैं। उन में से अनेक पुरुष और स्त्रियाँ, जवान और बूढ़े, पायनियर के रूप में पूर्ण-समय के सेवकाई में कार्य कर रहे हैं। अधिकांश ६६,००० से अधिक कलीसियाओं में, ऐसे विदेशी प्राचीनों और सहायक सेवकों की ज़िम्मेदारियाँ निभा रहे हैं। इस में अवशेष जन ख़ुश होते हैं और यशायाह के शब्दों की पूर्ति देखते हैं: “अजनबी आ खड़े होंगे और तुम्हारे झुण्ड को चराएँगे, और विदेशी लोग तुम्हारे चरवाहे और दाख़ की बारी के माली होंगे।”—यशायाह ६१:५, NW.
२४. बीते समय में इस्राएलियों एवं अन्यों के साथ परमेश्वर के व्यवहारों से हम क्यों प्रोत्साहित हो सकते हैं?
२४ इसलिए आप पृथ्वी के किसी भी राष्ट्र में एक नागरिक, आप्रवासी, या शरणार्थी हों, आपको आत्मिक विदेशी बनने का महान सुअवसर है जिसका सर्वशक्तिमान हार्दिक स्वागत करते हैं। उनके स्वागत में यह संभावना भी सम्मिलित है कि अभी और अनन्त भविष्य में उनकी सेवा में ख़ास अनुग्रहों का आनन्द उठाए जाए।
[फुटनोट]
a “परदेशी,” “अधिवासी,” “अजनबी,” और “विदेशी,” के दरमियान फ़रक के विषय में, वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित इंसाइट ऑन द स्क्रिपचर्स् (Insight on the Scriptures), खण्ड १, पृष्ठ ७२-५, ८४९-५१ देखें.
b यहोवा के गवाहों द्वारा संचालित १९९१ के प्रभु संध्या भोज के वार्षिक स्मारक दिवस पर १,०६,००,००० से अधिक जन उपस्थित थे, परन्तु केवल ८,८५० ने आत्मिक इस्राएल के अवशेष होने का दावा किया।
क्या आपने इस पर ध्यान दिया?
▫ परमेश्वर ने यह आशा कैसे दी कि प्रत्येक राष्ट्र के लोग उनके द्वारा स्वीकार किए जाएँगे?
▫ क्या दिखाता है कि परमेश्वर के ख़ास लोग, इस्राएल, के अतिरिक्त अन्य लोग उनके पास जा सकते थे?
▫ भविष्यवाणी में, परमेश्वर ने यह कैसे सूचित किया कि विदेशी लोग इस्राएल के साथ मिल जाएँगे?
▫ बाबुल में इस्राएल का निर्वासन से वापसी का क्या समानान्तर है, और “विदेशी” कैसे शामिल हुए हैं?
[पेज 23 पर तसवीरें]
राजा सुलैमान ने विदेशियों के बारे में प्रार्थना किया जो यहोवा की उपासना करने आएँगे