‘परमेश्वर का इस्राएल’ और ‘बड़ी भीड़’
“मैं ने दृष्टि की, और देखो, . . . एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था।”—प्रकाशितवाक्य ७:९.
१-३. (क) अभिषिक्त मसीहियों के पास कौन-सी महिमावान् स्वर्गीय प्रत्याशाएँ हैं? (ख) शैतान ने प्रथम-शताब्दी कलीसिया को नष्ट करने की कोशिश कैसे की? (ग) १९१९ में ऐसा क्या हुआ जिससे नज़र आया कि अभिषिक्त मसीही कलीसिया को भ्रष्ट करने की शैतान की कोशिशें असफल हो चुकी थीं?
सामान्य युग ३३ में “परमेश्वर के इस्राएल” की स्थापना यहोवा के उद्देश्य को पूरा करने की ओर एक बड़ा क़दम था। (गलतियों ६:१६) इसके अभिषिक्त सदस्यों को अमर आत्मिक प्राणी बनने की और परमेश्वर के स्वर्गीय राज्य में मसीह के साथ राज्य करने की आशा है। (१ कुरिन्थियों १५:५०, ५३, ५४) इस पद पर, वे यहोवा के नाम को पवित्र करने में और उस प्रमुख बैरी, शैतान अर्थात् इब्लीस का सिर कुचलने में एक मुख्य भाग अदा करते हैं। (उत्पत्ति ३:१५; रोमियों १६:२०) इसमें आश्चर्य नहीं कि इस नयी कलीसिया पर सताहट लाने के द्वारा और उसे भ्रष्ट करने की कोशिश करने के द्वारा, इसे नष्ट करने के लिए शैतान ने अपनी पूरी कोशिश की!—२ तीमुथियुस २:१८; यहूदा ४; प्रकाशितवाक्य २:१०.
२ जब प्रेरित जीवित थे, शैतान सफल नहीं हो सका। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद धर्मत्याग बिना किसी रोकथाम के फैल गया। अंततः, जब शैतान ने धर्मत्यागी धार्मिक नक़ल, जो आज मसीहीजगत के रूप में जाना जाता है, को पैदा किया तो मानवी दृष्टिकोण से ऐसा लगा मानो यीशु द्वारा स्थापित पवित्र मसीही कलीसिया भ्रष्ट हो गयी। (२ थिस्सलुनीकियों २:३-८) फिर भी, सच्ची मसीहियत बनी रही।—मत्ती २८:२०.
३ यीशु ने अच्छे बीज और जंगली बीज के अपने दृष्टान्त में पूर्वबताया कि कुछ समय तक सच्चे मसीही “जंगली बीज,” या झूठे मसीहियों के साथ-साथ बढ़ते; और यह हुआ। लेकिन उसने यह भी कहा कि अन्तिम दिनों के दौरान, “राज्य के सन्तान” सुस्पष्ट रूप से फिर “जंगली बीज” से अलग होंगे। (मत्ती १३:३६-४३) यह भी सच साबित हुआ। १९१९ में असली अभिषिक्त मसीही बाबुलीय क़ैद से बाहर आए। उन्हें ईश्वरीय रूप से “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के तौर पर स्वीकारा गया, और वे निडरतापूर्वक राज्य का सुसमाचार प्रचार करने के लिए निकल पड़े। (मत्ती २४:१४, ४५-४७; प्रकाशितवाक्य १८:४) उनमें से लगभग सभी अन्यजाति के थे; लेकिन क्योंकि उनके पास इब्राहीम का विश्वास था, वे असल में “इब्राहीम की सन्तान” थे। वे “परमेश्वर के इस्राएल” के सदस्य थे।—गलतियों ३:७, २६-२९.
“बड़ी भीड़”
४. ख़ासकर १९३० के दशक में, मसीहियों का कौन-सा समूह दृष्टिगोचर हुआ?
४ शुरूआत में, जिन व्यक्तियों ने इन अभिषिक्त मसीहियों के प्रचार के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखायी, वे भी आत्मिक इस्राएली बन गए, जो स्वर्गीय आशावाले १,४४,००० के शेषजन थे। (प्रकाशितवाक्य १२:१७) लेकिन, ख़ासकर १९३० के दशक में एक और समूह दृष्टिगोचर हुआ। इनकी पहचान भेड़शालाओं के दृष्टान्त की ‘अन्य भेड़ों’ के तौर पर की गयी। (यूहन्ना १०:१६, NW) वे मसीह के शिष्य थे जिनके पास परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन की आशा थी। वे मानो अभिषिक्त मसीहियों की आत्मिक सन्तान थे। (यशायाह ५९:२१; ६६:२२. १ कुरिन्थियों ४:१५, १६ से तुलना कीजिए।) उन्होंने अभिषिक्त मसीही कलीसिया को विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास के तौर पर स्वीकार किया, और अपने अभिषिक्त भाइयों की तरह उन्हें यहोवा के लिए गहरा प्रेम था, यीशु के बलिदान में विश्वास था, परमेश्वर की स्तुति करने के लिए जोश था और धार्मिकता की ख़ातिर दुःख सहने के लिए वे तैयार थे।
५. अन्य भेड़ों की स्थिति क्रमिक रूप से कैसे बेहतर समझ में आयी है?
५ पहले इन अन्य भेड़ों की स्थिति अच्छी तरह समझ नहीं आयी थी, लेकिन समय के बीतते बातें और स्पष्ट होती गयीं। १९३२ में अभिषिक्त मसीहियों को प्रोत्साहन दिया गया कि अन्य भेड़ों को प्रचार कार्य में भाग लेने के लिए प्रेरित करें—ऐसा काम जो अनेक अन्य भेड़ पहले ही कर रहे थे। १९३४ में अन्य भेड़ों को पानी का बपतिस्मा लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया। १९३५ में उन्हें प्रकाशितवाक्य अध्याय ७ की “बड़ी भीड़” के तौर पर पहचाना गया। १९३८ में उन्हें यीशु मसीह की मृत्यु के स्मारक में प्रेक्षकों के तौर पर उपस्थित होने के लिए आमंत्रण दिया गया। १९५० में यह समझा गया कि उनमें से प्रौढ़ पुरुष वे “राजकुमार” थे, जो “आंधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़” का काम करते हैं। (भजन ४५:१६; यशायाह ३२:१, २) १९५३ में, परमेश्वर का पार्थिव संगठन—जिसका अधिकांश भाग उस समय अन्य भेड़ों से बना था—उस पार्थिव समाज के केन्द्र-बिन्दु के रूप से देखा गया जो नए संसार में मौजूद होता। १९८५ में यह समझा गया कि यीशु के छुड़ौती बलिदान के आधार पर, अरमगिदोन से जीवित बचकर निकलने की आशा के साथ, अन्य भेड़ परमेश्वर के मित्रों के रूप में धर्मी घोषित किए जाते हैं।
६. अभिषिक्त और अन्य भेड़ों की आज सापेक्षिक स्थितियाँ क्या हैं, और इससे कौन-से सवाल खड़े होते हैं?
६ अब तक, ‘अन्तिम दिनों’ के इस आख़री भाग में, १,४४,००० में से अधिकांश जनों की मृत्यु हो चुकी है और उन्होंने अपना स्वर्गीय प्रतिफल पा लिया है। (२ तीमुथियुस ३:१; प्रकाशितवाक्य ६:९-११; १४:१३) मसीही जिनके पास पार्थिव आशा है ज़्यादातर सुसमाचार का प्रचार करते हैं, और इसमें वे यीशु के अभिषिक्त भाइयों का समर्थन करने को एक विशेषाधिकार समझते हैं। (मत्ती २५:४०) लेकिन, ये अभिषिक्त जन ही विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास हैं, जिनके माध्यम से इन अन्तिम दिनों के दौरान आध्यात्मिक भोजन दिया गया है। जब सभी अभिषिक्त जनों को अपना स्वर्गीय प्रतिफल मिल चुका होगा तब इन अन्य भेड़ों की स्थिति क्या होगी? तब अन्य भेड़ों के लिए कौन-से प्रबन्ध किए जाएँगे? प्राचीन इस्राएल पर एक नज़र इन सवालों का जवाब देने में हमारी मदद करेगी।
प्रारूपिक “याजकों का राज्य”
७, ८. व्यवस्था वाचा के अधीन किस हद तक प्राचीन इस्राएल याजकों का राज्य और एक पवित्र जाति था?
७ जब यहोवा ने इस्राएल को अपनी ख़ास जाति के तौर पर चुना, तब उसने उनके साथ एक वाचा बाँधी, और कहा: “यदि तुम निश्चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा को पालन करोगे, तो सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे; समस्त पृथ्वी तो मेरी है। और तुम मेरी दृष्टि में याजकों का राज्य और पवित्र जाति ठहरोगे।” (निर्गमन १९:५, ६) व्यवस्था वाचा के आधार पर इस्राएल यहोवा के ख़ास लोग थे। लेकिन, याजकों के राज्य और पवित्र जाति के सम्बन्ध में प्रतिज्ञा की पूर्ति कैसे होती?
८ इस्राएल जब विश्वासी था, तो उसने यहोवा की सर्वसत्ता की क़दर की और उसे अपने राजा के तौर पर स्वीकार किया। (यशायाह ३३:२२) अतः वे एक राज्य थे। लेकिन, जैसे बाद में प्रकट किया गया “राज्य” के बारे में प्रतिज्ञा का उससे भी कुछ ज़्यादा अर्थ होता। इसके अतिरिक्त, जब उन्होंने यहोवा की व्यवस्था को माना, तो वे शुद्ध थे और अपने चारों ओर की जातियों से अलग थे। वे एक पवित्र जाति थे। (व्यवस्थाविवरण ७:५, ६) क्या वे एक याजकों का राज्य थे? इस्राएल में लेवी का गोत्र मन्दिर की सेवा के लिए अलग रखा गया था, और उस गोत्र में लेवीय याजकवर्ग था। जब मूसा की व्यवस्था का प्रारंभ किया गया, प्रत्येक ग़ैर-लेवी परिवार के पहलौठे के बदले लेवी पुरुषों को लिया गया था।a (निर्गमन २२:२९; गिनती ३:११-१६, ४०-५१) इस प्रकार, इस्राएल में प्रत्येक परिवार का मानो मन्दिर की सेवा में प्रतिनिधित्व किया गया था। इस प्रतिनिधिक तरीक़े से यह जाति याजकवर्ग बनने के सबसे क़रीब थी। तथापि, उन्होंने जातियों के सम्मुख यहोवा का प्रतिनिधित्व किया। कोई भी परदेशी जो सच्चे परमेश्वर की उपासना करना चाहता था उसे इस्राएल की संगति में ऐसा करना था।—२ इतिहास ६:३२, ३३; यशायाह ६०:१०.
९. किस कारण से यहोवा ने इस्राएल के उत्तरी राज्य को ‘अपना याजक रहने के अयोग्य ठहराया’?
९ सुलैमान की मृत्यु के बाद, परमेश्वर के लोग राजा यारोबाम के अधीन उत्तरी इस्राएल जाति में और राजा रहूबियाम के अधीन दक्षिणी यहूदा जाति में विभाजित हो गए। चूँकि मन्दिर जो सच्ची उपासना का केन्द्र था, यहूदा के क्षेत्र में था, यारोबाम ने स्वयं अपने राष्ट्रीय क्षेत्र में बछड़ों की मूर्तियाँ खड़ी करके एक अवैध क़िस्म की उपासना स्थापित की। इसके अलावा, “उस ने ऊंचे स्थानों के भवन बनाए, और सब प्रकार के लोगों में से जो लेवीवंशी न थे, याजक ठहराए।” (१ राजा १२:३१) उत्तरी जाति झूठी उपासना में और भी गहरे डूबती गयी जब राजा अहाब ने अपनी परदेशी पत्नी, ईज़ेबेल को देश में बाल उपासना की नींव डालने की अनुमति दी। आख़िरकार, यहोवा ने विद्रोही राज्य पर न्यायदण्ड घोषित किया। होशे के द्वारा उसने कहा: “मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नाश हो गई; तू ने मेरे ज्ञान को तुच्छ जाना है, इसलिये मैं तुझे अपना याजक रहने के अयोग्य ठहराऊंगा।” (होशे ४:६) कुछ ही समय बाद, अश्शूरियों ने इस्राएल के उत्तरी राज्य को मिटा डाला।
१०. यहूदा के दक्षिणी राज्य ने विश्वासी रहते समय, जातियों के सम्मुख यहोवा का प्रतिनिधित्व कैसे किया?
१० दक्षिणी जाति यहूदा के बारे में क्या? हिजकिय्याह के दिनों में यहोवा ने यशायाह के ज़रिए उनसे कहा: “तुम मेरे साक्षी हो और मेरे दास हो, जिन्हें मैं ने . . . चुना है। . . . इस प्रजा को मैं ने अपने लिये बनाया है कि वे मेरा गुणानुवाद करें।” (यशायाह ४३:१०, २१; ४४:२१) विश्वासी रहते समय, दक्षिणी राज्य ने जातियों को यहोवा की महिमा घोषित करने का और सच्चे दिल के लोगों को उसके मन्दिर में उसकी उपासना करने के लिए और वैध लेवीय याजकवर्ग की सेवाएँ प्राप्त करने के लिए आकर्षित करने का कार्य किया।
इस्राएल में परदेशी
११, १२. कुछ परदेशियों के नाम बताइए जो इस्राएल की संगति में यहोवा की सेवा करने लगे।
११ जहाँ तक उन परदेशियों का सवाल है जिन्होंने इस राष्ट्रीय गवाही के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखायी, उनके लिए मूसा के माध्यम से दी गयी व्यवस्था में प्रबन्ध किया गया था—जिसकी पत्नी, सिप्पोरा मिद्यानी थी। ग़ैर-इस्राएलियों की “मिली जुली हुई एक भीड़” ने इस्राएल के साथ मिस्र को छोड़ा और वे तब उपस्थित थे जब व्यवस्था दी गयी। (निर्गमन २:१६-२२; १२:३८; गिनती ११:४) राहाब और उसका परिवार यरीहो से बच निकला था और बाद में उन्हें यहूदी कलीसिया में स्वीकार कर लिया गया। (यहोशू ६:२३-२५) कुछ ही समय बाद, गिबोनियों ने इस्राएल के साथ सुलह कर ली और उन्हें निवासस्थान से सम्बन्धित काम नियत किए गए।—यहोशू ९:३-२७; १ राजा ८:४१-४३; एस्तेर ८:१७ भी देखिए।
१२ अंततः, परदेशियों ने ऊँचे ओहदों पर कार्य किया। बतशेबा के पति, हित्ती ऊरिय्याह की गिनती दाऊद के “वीर” पुरुषों में की जाती थी, वैसे ही अम्मोनी सेलेक की भी। (१ इतिहास ११:२६, ३९, ४१; २ शमूएल ११:३, ४) एबेदमेलेक, जो एक कूशी था, राजभवन में काम करता था और उसकी पहुँच राजा तक थी। (यिर्मयाह ३८:७-९) इस्राएल के बाबुल में निर्वासन से लौटने के बाद, ग़ैर-इस्राएली नतिनों को याजकों की सहायता करने के लिए ज़्यादा ज़िम्मेदारी दी गयी थी। (एज्रा ७:२४) चूँकि ऐसा समझा जाता है कि इन विश्वासी परदेशियों अथवा विदेशियों में से अनेकों ने आज की बड़ी भीड़ का पूर्वसंकेत किया, उनकी स्थिति हमारे लिए दिलचस्पी की बात है।
१३, १४. (क) इस्राएल में यहूदी-मतधारकों के पास क्या विशेषाधिकार और ज़िम्मेदारियाँ थीं? (ख) इस्राएलियों को विश्वासी यहूदी-मतधारकों को किस नज़र से देखना था?
१३ ये व्यक्ति यहूदी-मतधारक थे, जो मूसा की व्यवस्था के अधीन यहोवा के समर्पित उपासक थे और इस्राएलियों के साथ-साथ अन्यजातियों से अलग किए गए थे। (लैव्यव्यवस्था २४:२२) जैसे इस्राएली करते थे, वे बलिदान चढ़ाते थे, झूठी उपासना से दूर रहते थे और लहू से परे रहते थे। (लैव्यव्यवस्था १७:१०-१४; २०:२) उन्होंने सुलैमान के मन्दिर के निर्माण में मदद की और राजा आसा और राजा हिजकिय्याह के अधीन सच्ची उपासना की पुनःस्थापना में शामिल हुए। (१ इतिहास २२:२; २ इतिहास १५:८-१४; ३०:२५) जब सा.यु. ३३ में पिन्तेकुस्त के दिन पतरस ने राज्य की पहली कुंजी का प्रयोग किया, तो उसके शब्द ‘यहूदियों और [ग़ैर-यहूदी] यहूदी-मतधारकों’ द्वारा सुने गए। संभवतः, उस दिन बपतिस्मा लेनेवाले तीन हज़ार लोगों में कुछ यहूदी-मतधारक थे। (प्रेरितों २:१०, ४१) थोड़े ही समय बाद, एक कूशी यहूदी-मतधारक को फिलिप्पुस ने बपतिस्मा दिया—इससे पहले कि पतरस ने राज्य की आख़री कुंजी का प्रयोग कुरनेलियुस और उसके परिवार के लिए किया। (मत्ती १६:१९; प्रेरितों ८:२६-४०; १०:३०-४८) स्पष्टतया, यहूदी-मतधारकों को अन्यजाति के लोग नहीं समझा जाता था।
१४ फिर भी, इस्राएल में यहूदी-मतधारकों का स्थान स्वदेशी इस्राएलियों जैसा नहीं था। यहूदी-मतधारक याजकों के तौर पर सेवा नहीं करते थे, और उनके पहलौठों का प्रतिनिधित्व लेवीय याजकवर्ग में नहीं होता था।b और यहूदी-मतधारकों के पास इस्राएल में ज़मीन की मीरास नहीं थी। फिर भी, इस्राएलियों को विश्वासी यहूदी-मतधारकों का लिहाज़ करने और उन्हें भाई समझने की आज्ञा दी गयी थी।—लैव्यव्यवस्था १९:३३, ३४.
आत्मिक जाति
१५. जब शारीरिक इस्राएल ने मसीहा को स्वीकार करने से इनकार किया तो इसका परिणाम क्या हुआ?
१५ व्यवस्था का उद्देश्य इस्राएल को शुद्ध रखना था, उनके चारों ओर की जातियों से अलग। लेकिन इससे एक और उद्देश्य पूरा हुआ। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें।” (गलतियों ३:२४) दुःख की बात है कि अधिकांश इस्राएली व्यवस्था द्वारा मसीह तक पहुँचने में असफल हुए। (मत्ती २३:१५; यूहन्ना १:११) इसलिए यहोवा परमेश्वर ने उस जाति को ठुकरा दिया और “परमेश्वर के इस्राएल” का जन्म करवाया। इसके अतिरिक्त, उसने ग़ैर-यहूदियों को भी इस नए इस्राएल के पूर्ण नागरिक बनने का आमंत्रण दिया। (गलतियों ३:२८; ६:१६) निर्गमन १९:५, ६ में एक राजसी याजकवर्ग के बारे में यहोवा की प्रतिज्ञा की अद्भुत और आख़री पूर्ति इसी नयी जाति पर होती है। कैसे?
१६, १७. किस अर्थ में पृथ्वी पर अभिषिक्त मसीही “राज-पदधारी” हैं? “याजकों का समाज” हैं?
१६ पतरस ने निर्गमन १९:६ का उद्धरण दिया जब उसने अपने समय के अभिषिक्त मसीहियों को लिखा: “तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्वर की) निज प्रजा हो।” (१ पतरस २:९) इसका अर्थ क्या है? क्या पृथ्वी पर अभिषिक्त मसीही राजा हैं? नहीं, उनका राजत्व अब भी आना बाक़ी है। (१ कुरिन्थियों ४:८) फिर भी, वे इस अर्थ में “राज-पदधारी” हैं कि उनको भावी राजसी विशेषाधिकारों के लिए चुना गया है। अब भी वे एक राजा, यीशु के अधीन एक जाति हैं जिसे महान सर्वसत्ताधारी, यहोवा परमेश्वर द्वारा नियुक्त किया गया है। पौलुस ने लिखा: “[यहोवा] ने हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया।”—कुलुस्सियों १:१३.
१७ क्या पृथ्वी पर अभिषिक्त मसीही एक याजकवर्ग हैं? एक अर्थ में, हाँ। एक कलीसिया के तौर पर, वे एक निर्विवाद याजकीय कार्य करते हैं। पतरस ने इस बात को समझाया जब उसने कहा: ‘तुम भी आप आत्मिक घर बनते जाते हो, जिस से याजकों का पवित्र समाज बनो।’ (१ पतरस २:५; १ कुरिन्थियों ३:१६) आज, अभिषिक्त मसीहियों का शेषवर्ग एक निकाय के तौर पर “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” है, जो आध्यात्मिक भोजन को वितरित करने का साधन है। (मत्ती २४:४५-४७) जैसे प्राचीन इस्राएल के मामले में था, कोई भी व्यक्ति जो यहोवा की उपासना करना चाहता है, उसे इन अभिषिक्त मसीहियों की संगति में ऐसा करना है।
१८. याजकों के समाज के तौर पर, पृथ्वी पर अभिषिक्त मसीही कलीसिया की मुख्य ज़िम्मेदारी क्या है?
१८ इसके अतिरिक्त, जातियों के बीच यहोवा की महानता की गवाही देने के विशेषाधिकार में अभिषिक्त मसीहियों ने इस्राएल की जगह ले ली। संदर्भ दिखाता है कि जब पतरस ने अभिषिक्त मसीहियों को राज-पदधारी याजकों का समाज कहा, तो उसके मन में प्रचार कार्य था। वाक़ई, उसने एक ही उद्धरण में निर्गमन १९:६ में यहोवा की प्रतिज्ञा को यशायाह ४३:२१ में इस्राएल को कहे उसके शब्दों के साथ जोड़ दिया, जब उसने कहा: “तुम . . . राज-पदधारी, याजकों का समाज . . . हो, इसलिये कि जिस ने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो।” (१ पतरस २:९) इसके सामंजस्य में, पौलुस ने यहोवा के गुणों की घोषणा को मन्दिर का बलिदान कहा। उसने लिखा: “हम [यीशु के] द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात् उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिये सर्वदा चढ़ाया करें।”—इब्रानियों १३:१५.
स्वर्गीय पूर्ति
१९. इस्राएल याजकों का एक राज्य होता इस प्रतिज्ञा की आख़री, महिमावान् पूर्ति कौन-सी है?
१९ लेकिन, आख़िरकार निर्गमन १९:५, ६ की कहीं ज़्यादा महिमावान् पूर्ति होती है। प्रकाशितवाक्य की किताब में, प्रेरित यूहन्ना स्वर्गीय प्राणियों को यह शास्त्रवचन लागू करते हुए सुनता है जब वे पुनरुत्थित यीशु की स्तुति करते हैं: “तू ने बध होकर अपने लोहू से हर एक कुल, और भाषा, और लोग, और जाति में से परमेश्वर के लिये लोगों को मोल लिया है। और उन्हें हमारे परमेश्वर के लिये एक राज्य और याजक बनाया; और वे पृथ्वी पर राज्य करते हैं।” (प्रकाशितवाक्य ५:९, १०) अंततः, इसके पूर्ण अर्थ में राज-पदधारी याजकों का समाज परमेश्वर का स्वर्गीय राज्य है, वह शासकीय अधिकार जिसके लिए यीशु ने हमें प्रार्थना करना सिखाया। (लूका ११:२) सभी १,४४,००० अभिषिक्त मसीही जो अन्त तक धीरज धरते हैं उनका उस राज्य प्रबन्ध में भाग होगा। (प्रकाशितवाक्य २०:४, ६) इतने समय पहले मूसा के माध्यम से की गयी प्रतिज्ञा की क्या ही अद्भुत पूर्ति!
२०. कौन-से सवाल का जवाब अब भी दिया जाना है?
२० इन सब बातों का बड़ी भीड़ की स्थिति और उनके भविष्य में उस समय से क्या सम्बन्ध है जब सभी अभिषिक्त जन अपनी अद्भुत मीरास पा चुके होंगे? इस श्रंखला के आख़िरी लेख में यह बात स्पष्ट होगी।
[फुटनोट]
a जब इस्राएल के याजकवर्ग का प्रारंभ किया गया, तो इस्राएल के ग़ैर-लेवी गोत्रों के पहलौठे पुत्रों और लेवी के गोत्र के पुरुषों की गिनती की गयी। लेवी पुरुषों से २७३ पहलौठे ज़्यादा थे। इसलिए, यहोवा ने आज्ञा दी कि इन २७३ अतिरिक्त व्यक्तियों के लिए प्रति व्यक्ति छुड़ौती के रूप में पाँच शेकेल दिए जाएँ।
b ग़ैर-इस्राएलियों की मिली-जुली भीड़ उपस्थित थी जब व्यवस्था को सा.यु.पू. १५१३ में प्रारंभ किया गया, लेकिन जब इस्राएल के पहलौठों के बदले लेवियों को लिया गया तो उनके पहलौठे शामिल नहीं किए गए। (अनुच्छेद ८ देखिए।) इसलिए, इन ग़ैर-इस्राएलियों के पहलौठों के बदले में लेवी नहीं लिए गए।
क्या आप समझा सकते हैं?
◻ अन्य भेड़ों की स्थिति क्रमिक रूप से कैसे बेहतर समझ में आयी है?
◻ यहोवा ने क्यों इस्राएल के उत्तरी राज्य को अपना याजक रहने के अयोग्य ठहराया?
◻ जब यहूदा विश्वासी था, तो जातियों के सम्मुख उसकी क्या स्थिति थी?
◻ इस्राएल में विश्वासी यहूदी-मतधारकों की क्या स्थिति थी?
◻ अभिषिक्त कलीसिया याजकों के राज्य के तौर पर कैसे कार्य करती है?
[पेज 16 पर तसवीरें]
एक राज-पदधारी, याजकों के समाज के तौर पर, अभिषिक्त मसीही पृथ्वी पर यहोवा की महिमा की घोषणा करते हैं
[पेज 18 पर तसवीरें]
निर्गमन १९:६ की आख़री पूर्ति राज्य है