एक उद्देश्य सहित शिक्षा
“धर्मी को चिता दे, वह अपनी विद्या बढ़ाएगा।”—नीतिवचन ९:९.
१. ज्ञान के विषय में यहोवा अपने सेवकों से क्या अपेक्षा करता है?
“यहोवा ज्ञानी ईश्वर है।” (१ शमूएल २:३) वह अपने सेवकों को शिक्षा देता है। मूसा ने भविष्यवाणी की कि समकालिक लोग इस्राएल के विषय में बोलेंगे: “निश्चय यह बड़ी जाति बुद्धिमान और समझदार है।” (व्यवस्थाविवरण ४:६) सच्चे मसीहियों को भी उसी समान ज्ञानी होना चाहिए। उन्हें परमेश्वर के वचन के उत्तम विद्यार्थी होने की आवश्यकता है। ऐसे अध्ययन का उद्देश्य दिखाते हुए, प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हम . . . तुम्हारे लिये यह प्रार्थना करने और बिनती करने से नहीं चूकते कि तुम सारे ज्ञान और आध्यात्मिक समझ सहित परमेश्वर की इच्छा के यथार्थ ज्ञान से भर जाओ। ताकि तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो, और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और तुम में हर प्रकार के भले फल लगे, और परमेश्वर के यथार्थ ज्ञान में बढ़ते जाओ।”—कुलुस्सियों १:९, १०, NW.
२. (क) परमेश्वर के विषय में यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के लिए क्या आवश्यक है? (ख) यहोवा के गवाहों के शासी निकाय ने इस विषय को किस प्रकार संभाला है?
२ परमेश्वर और उसके उद्देश्यों के विषय में यथार्थ ज्ञान पाने के लक्ष्य से अध्ययन करने के लिए कम से कम न्यूनतम शिक्षा की आवश्यकता है। लेकिन बहुत से लोग जिन्होंने परमेश्वर के वचन के सत्य को सीख लिया है ऐसे देशों में रहते हैं जहाँ उन्हें अच्छी लौकिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर थोड़ा या बिलकुल ही नहीं मिला। वे नुकसान में थे। इस समस्या का हल करने के लिए, यहोवा के गवाहों के शासी निकाय ने काफ़ी सालों से यह निर्देश दिया है कि जहाँ आवश्यकता है वहाँ कलीसिया में साक्षरता की कक्षाएँ आयोजित की जानी चाहिए। तीस साल से भी पहले, ब्राज़ील के अख़बार डीऐर्यो डी मोज़ही (Diario de Mogi) ने एक लेख प्रकाशित किया था जिसका शीर्षक था “यहोवा के गवाह निरक्षरता के विरुद्ध युद्ध करते हैं।” उस में कहा गया: “एक योग्य शिक्षक . . . धीरज के साथ दूसरों को पढ़ना और लिखना सिखाना शुरू करता है। . . . उन्हीं परिस्थितियों के कारण जो उन्हें परमेश्वर के सेवक होने के नाते उकसाती हैं, छात्रों को भाषण देने के लिए भाषा का ज्ञान विकसित करने की आवश्यकता है।” इस प्रकार संसार भर में हज़ारों लोग परमेश्वर के वचन के अच्छे विद्यार्थी बनने में समर्थ हुए हैं। मन में एक उच्च उद्देश्य रखते हुए उन्होंने यह बुनियादी शिक्षा ली है।
प्रभावकारी सेवक होने के लिए कौशल की ज़रूरत है
३, ४. (क) सच्चे मसीहियों को शिक्षा में रुचि क्यों है? (ख) इस्राएल में क्या स्थिति थी, और आज हमारी कलीसियाओं में कौन-सी बुनियादी शिक्षा अनिवार्य है?
३ सच्चे मसीहियों की शिक्षा में रुचि सिर्फ़ इसलिए नहीं है कि उन्हें शिक्षा लेने में आनन्द आता है, बल्कि इसलिए है कि यहोवा के ज़्यादा प्रभावकारी सेवक बन सकें। मसीह ने सभी मसीहियों को यह कार्य दिया कि, “जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ . . . उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” (मत्ती २८:१९, २०) दूसरों को सिखाने के लिए, पहले उन्हें स्वयं सीखना है, और इसके लिए अच्छी अध्ययन विधियों की आवश्यकता है। उनमें ध्यानपूर्वक शास्त्रवचनों को जाँचने की योग्यता होनी चाहिए। (प्रेरितों १७:११) अपने नियुक्त कार्य को पूरा करने के लिए, उन्हें प्रवाही रूप से पढ़ना भी आना चाहिए।—हबक्कूक २:२; १ तीमुथियुस ४:१३ देखिए।
४ जैसा हमने पिछले लेख में देखा, हमारे पास यह विश्वास करने का अच्छा कारण है कि आम तौर पर, प्राचीन इस्राएल में बच्चे भी पढ़ना-लिखना जानते थे। (न्यायियों ८:१४; यशायाह १०:१९) घर-घर गवाही देते समय मसीही सेवकों को स्पष्ट नोट्स बनाने की आवश्यकता होती है। वे पत्र लिखते हैं, सभाओं में नोट्स लेते हैं, और अपने अध्ययन विषयों पर नोट्स बनाते हैं। इन सब के लिए पढ़ने योग्य लिखाई की ज़रूरत है। मसीही कलीसिया के अन्दर हिसाब रखने के लिए कम से कम गणित के बुनियादी ज्ञान की आवश्यकता है।
उचित शिक्षा के लाभ
५. (क) “स्कूल” शब्द का मूल क्या है? (ख) युवजनों को कौन-से अवसर का लाभ उठाना चाहिए?
५ रुचि की बात है कि, “स्कूल” शब्द यूनानी शब्द स्खोले (skhole) से आता है, जिसका शुरू में अर्थ था “फुरसत” या फुरसत के समय को किसी गंभीर कार्य, जैसे कि सीखने में प्रयोग करना। बाद में यह उस जगह का नाम पड़ा जहाँ ऐसी शिक्षा ली जाती थी। यह संकेत करता है कि, एक समय पर—यूनान और अधिकांश दूसरे देशों में—केवल विशेषाधिकृत वर्ग के पास ही सीखने के लिए फुरसत थी। श्रमिक वर्ग आम तौर पर अज्ञानता में रहता था। आज, अधिकांश देशों में बच्चों और युवाओं को सीखने का समय दिया जाता है। युवा गवाहों को निश्चय ही अवसर को बहुमोल समझकर यहोवा के ज्ञानी और योग्य सेवक बनना चाहिए।—इफिसियों ५:१५, १६.
६, ७. (क) अच्छी शिक्षा के कुछ लाभ क्या हैं? (ख) विदेशी भाषा सीखना किन तरीकों से लाभकारी हो सकता है? (ग) आज, बहुत से युवजन स्कूल पूरा करने के बाद अपने आपको किस स्थिति में पाते हैं?
६ इतिहास, भूगोल, विज्ञान इत्यादि का मूल ज्ञान युवा गवाहों को संतुलित सेवक बनने में समर्थ करेगा। उनकी शिक्षा उन्हें केवल अनेक विषय ही नहीं बल्कि सीखने की प्रक्रिया भी सिखाएगी। सच्चे मसीही स्कूल छोड़ने पर सीखना और अध्ययन करना बंद नहीं करते हैं। फिर भी, वे अपने अध्ययन से क्या सीखते हैं, यह काफ़ी हद तक उनकी इस जानकारी पर निर्भर करेगा कि अध्ययन कैसे किया जाए। दोनों लौकिक और कलीसियाई शिक्षा उन्हें अपने सोचने की क्षमता विकसित करने में सहायता दे सकती हैं। (नीतिवचन ५:१, २) जब वे पढ़ेंगे तो ज़्यादा बेहतर समझ पाएंगे कि क्या महत्त्वपूर्ण है, किसको नोट करना और याद करना चाहिए।
७ उदाहरण के लिए, एक विदेशी भाषा सीखना युवजनों की मानसिक क्षमता को ही नहीं विकसित करेगा बल्कि उन्हें यहोवा के संगठन के लिए भी ज़्यादा उपयोगी बनाएगा। वॉच टावर सोसाइटी की कुछ शाखाओं में कई युवा भाइयों ने प्रवाही रूप से अंग्रेज़ी बोल सकना और पढ़ सकना लाभकारी पाया है। इसके अलावा, सभी मसीही सेवकों को अपनी मातृ-भाषा में स्पष्ट बोलने का प्रयास करना चाहिए। राज्य का सुसमाचार स्पष्ट, सही व्याकरण के साथ अभिव्यक्त करने के योग्य है। तथ्य दिखाते हैं कि संसार में आज, बहुतेरे जवानों को स्कूल पूरा करने के बाद भी सही तरीक़े से लिखने और बोलने और सबसे सरल गणित करने में भी कठिनाई होती है; और उन्हें इतिहास और भूगोल का केवल धुंधला-सा ही ज्ञान होता है।
पर्याप्त शिक्षा
८. लौकिक शिक्षा और एक व्यक्ति का अपना निर्वाह करने की योग्यता के विषय में कौन-से शास्त्रवचन हैं?
८ इसलिए, लौकिक शिक्षा के प्रति एक मसीही के रवैये पर विचार करने का यह उपयुक्त समय प्रतीत होता है। कौन-से बाइबल सिद्धान्त इस विषय से सम्बन्धित हैं? पहला, अधिकांश देशों में “कैसर” के प्रति उचित अधीनता की यह माँग है कि मसीही माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजें। (मरकुस १२:१७; तीतुस ३:१) जहाँ तक युवा गवाहों का सवाल है, अपने स्कूल-कार्य में उन्हें कुलुस्सियों ३:२३ याद रखना चाहिए, जो कहता है: “जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो।” दूसरा सम्मिलित सिद्धान्त यह है कि मसीहियों को अपना निर्वाह करने में स्वयं समर्थ होना चाहिए, चाहे वे पूरे-समय के पायनियर सेवक ही क्यों न हों। (२ थिस्सलुनीकियों ३:१०-१२) यदि विवाहित है, तो एक पुरुष को अपनी पत्नी और होनेवाले बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करने में, और थोड़ा बहुत ज़रूरतमंदों को और स्थानीय तथा विश्वव्यापी प्रचार कार्य को बढ़ाने के लिए देने में समर्थ होना चाहिए।—इफिसियों ४:२८; १ तीमुथियुस ५:८.
९, १०. (क) बहुत से देशों में क्या प्रवृति देखने में आती है? (ख) एक पायनियर सेवक के लिए पर्याप्त वेतन क्या हो सकता है?
९ एक युवा मसीही को इन सिद्धातों का आदर करने और अपने मसीही कर्तव्यों को पूरा करने के लिए कितनी शिक्षा की आवश्यकता है? यह देश-देश में अलग-अलग होता है। फिर भी, आम तौर पर ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत से देशों में सामान्य प्रवृति यह है कि उपयुक्त वेतन कमाने के लिए शिक्षा का स्तर अब कुछ साल पहले से ज़्यादा ऊँचा हो गया है। संसार के विभिन्न भागों में वॉचटावर सोसाइटी की शाखाओं से मिले समाचार दिखाते हैं कि बहुत-सी जगहों में केवल क़ानून द्वारा अनिवार्य शिक्षा पूरी करने के बाद या कुछ देशों में सेकन्डरी या हाई स्कूल समाप्त करने के बाद भी उपयुक्त वेतन वाली नौकरियाँ मिलना कठिन है।
१० “उपयुक्त वेतन” का क्या अर्थ है? यह ऊँची वेतन वाली नौकरियों को नहीं सूचित करता है। वेबस्टर्स डिक्शनरि (Webster’s Dictionary) इस संदर्भ में “उपयुक्त” का अर्थ “पर्याप्त, संतोषजनक” बताती है। उदाहरण के लिए, जो सुसमाचार के पायनियर सेवक बनना चाहते हैं उनके लिए “पर्याप्त” किसे कहा जा सकता है? ऐसे लोगों को आम तौर पर अंशकालिक काम की आवश्यकता होती है जिससे कि वे अपने भाइयों या अपने परिवार पर “भार” न बनें। (१ थिस्सलुनीकियों २:९) उनका वेतन “पर्याप्त,” या “संतोषजनक” कहा जा सकता है, यदि जो वे कमाते हैं उससे वे सुसभ्य ढंग से रह सकते हैं और उनके पास अपनी मसीही सेवकाई को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय और शक्ति बचती है।
११. कुछ युवजनों ने पायनियर सेवा क्यों छोड़ दी, और क्या प्रश्न उठता है?
११ आजकल स्थिति अक़सर कैसी है? ऐसे समाचार मिले हैं कि कुछ देशों में बहुत से नेक-इरादे वाले जवानों ने पायनियर बनने के लिए अनिवार्य न्यूनतम शिक्षा पूरी करके स्कूल छोड़ दिया। उनके पास कोई कारीगरी या सांसारिक योग्यता नहीं थी। यदि उन्हें अपने माता-पिता से आर्थिक सहायता नहीं मिलती, तो उन्हें अंशकालिक काम ढूंढना पड़ता था। कुछेक को सिर्फ़ निर्वाह करने के लिए ऐसी नौकरियाँ स्वीकार करनी पड़ीं जिनमें उन्हें काफ़ी ज़्यादा घंटे काम करना पड़ता था। शारीरिक रूप से थक जाने के कारण उन्होंने पायनियर सेवकाई छोड़ दी। ऐसे व्यक्ति अपना निर्वाह करने के लिए और फिर से पायनियर सेवा में आने के लिए क्या कर सकते हैं?
शिक्षा के प्रति संतुलित दृष्टिकोण
१२. (क) शिक्षा के सम्बन्ध में, एक मसीही कौन-से दो आत्यंतिक दृष्टिकोणों से दूर रहेगा? (ख) यहोवा के समर्पित सेवकों और उनके बच्चों के लिए, शिक्षा को क्या उद्देश्य पूरा करना चाहिए?
१२ शिक्षा के प्रति संतुलित दृष्टिकोण सहायता कर सकता है। संसार के बहुत से युवा लोगों के लिए शिक्षा एक प्रतिष्ठा-प्रतीक है, एक ऐसी चीज़ जो उन्हें समाज की सीड़ियाँ चढ़ने में सहायता करती है, एक समृद्ध, भौतिकवादी जीवन-शैली की कुन्जी। दूसरों के लिए, शिक्षा एक ऐसा काम है जिसे जितनी जल्दी संभव है ख़त्म किया जाना चाहिए। इनमें से कोई भी दृष्टिकोण सच्चे मसीहियों के लिए उचित नहीं है। तब किसे “संतुलित दृष्टिकोण” कहा जा सकता है? मसीहियों के लिए शिक्षा एक लक्ष्य की प्राप्ति का साधन होना चाहिए। इन अन्तिम दिनों में, उनका उद्देश्य है कि जितनी ज़्यादा और जितनी प्रभावकारी रूप से यहोवा की सेवा कर सकें, करें। यदि, जिस देश में वे रहते हैं, वहाँ न्यूनतम या हाई स्कूल शिक्षा से भी उन्हें केवल ऐसी नौकरी मिलेगी जिससे वे पायनियर के रूप में अपना निर्वाह नहीं कर पाएंगे, तो अतिरिक्त शिक्षा या प्रशिक्षण के विषय में विचार किया जा सकता है। यह पूरे-समय की सेवा के ख़ास लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा।
१३. (क) फिलिप्पीन में एक बहन अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ किस प्रकार पायनियर सेवा को जारी रखने में समर्थ हुई है? (ख) कौन-सी चेतावनी समयोचित है?
१३ कुछेक ने ऐसे प्रशिक्षण कोर्स लिए हैं जिसके कारण अच्छी नौकरियों के अवसर खुले हैं जिससे कि वे पूरे-समय की सेवा करने या फिर से उसमें आने में समर्थ हुए हैं। फिलिप्पीन में एक बहन परिवार की रोज़ी-रोटी कमानेवाली थी, लेकिन वह पायनियर कार्य करना चाहती थी। शाखा समाचार देती है: “वह ऐसा करने में समर्थ हुई है क्योंकि उसने एक प्रमाणित सरकारी लेखाकार के तौर पर योग्य बनने के लिए अतिरिक्त शिक्षा प्राप्त की है।” इसी शाखा की रिपोर्ट ने कहा: “हमारे यहाँ काफ़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो पढ़ाई कर रहे हैं और साथ ही अपनी सारणी को ऐसे व्यवस्थित कर सके हैं कि पायनियर कार्य कर सकें। आम तौर पर वे बेहतर प्रचारक बनते हैं क्योंकि वे ज़्यादा पढ़ाकू होते हैं, बशर्ते वे सांसारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ज़्यादा ही महत्त्वकांक्षी न हो जाएं।” अन्तिम टिप्पणी पर हमें सोचने की आवश्यकता है। जहाँ अतिरिक्त शिक्षा आवश्यक प्रतीत होती है, वहाँ इसका उद्देश्य नहीं भूलना चाहिए या इसे एक भौतिकवादी लक्ष्य में नहीं बदल देना चाहिए।
१४, १५. (क) क्यों शिक्षा के सम्बन्ध में कोई दृढ़बद्ध नियम नहीं बनाने चाहिए? (ख) कुछ ज़िम्मेदार भाइयों ने क्या लौकिक शिक्षा प्राप्त की, लेकिन किस चीज़ ने इसकी क्षतिपूर्ति कर दी?
१४ कुछ देशों में, माध्यमिक स्कूल व्यवसायिक प्रशिक्षण देते हैं जो एक जवान मसीही को स्कूल समाप्त करने के समय तक किसी व्यवसाय या रोज़गार के लिए तैयार कर देता है। जब ऐसा न भी हो, तब भी कुछ देशों में उद्यमी युवा केवल बुनियादी शिक्षा के बाद अंशकालिक काम ढूंढ लेते हैं जिससे वे पायनियर कार्य करने के लिए काफ़ी कमा लेते हैं। अतः, अतिरिक्त शिक्षा के पक्ष में या विरुद्ध कोई दृढ़बद्ध नियम नहीं बनाने चाहिए।
१५ बहुत से व्यक्ति, जिन्होंने केवल बुनियादी शिक्षा ही पायी थी, आज सफ़री ओवरसियरों के रूप में, सोसाइटी के मुख्यालय में, या किसी शाखा में ज़िम्मेदार पदों पर सेवा कर रहे हैं। वे वफ़ादार पायनियर थे, कभी अध्ययन करना नहीं छोड़ा, प्रशिक्षण प्राप्त किया, और इन्हें बड़ी ज़िम्मेदारियाँ दी गईं। उन्हें कोई पछतावा नहीं है। दूसरी ओर, उनकी उम्र के कुछ दूसरों ने विश्वविद्यालय की शिक्षा प्राप्त करने का चुनाव किया और विश्वास-नाशक तत्त्वज्ञान और “संसार के ज्ञान” के तले दबकर अपनी आध्यात्मिक उन्नति छोड़ दी।—१ कुरिन्थियों १:१९-२१; ३:१९, २०; कुलुस्सियों २:८.
मूल्य आंकना
१६. (क) इसका निर्णय कौन करता है कि अतिरिक्त शिक्षा लेनी चाहिए, और किस बात को पहला स्थान देना चाहिए? (ख) किस बात को ध्यान में रखना चाहिए?
१६ इसका फ़ैसला कौन करता है कि एक युवा मसीही को अतिरिक्त शिक्षा या प्रशिक्षण लेना चाहिए या नहीं? यहाँ सरदारी के विषय में बाइबल का सिद्धान्त लागू होता है। (१ कुरिन्थियों ११:३; इफिसियों ६:१) इस आधार पर निश्चित ही माता-पिता व्यवसाय या रोज़गार के चुनाव में और उसके बाद इसके लिए कितनी शिक्षा की आवश्यकता है, में अपने बच्चों की सहायता करना चाहेंगे। बहुत से देशों में शिक्षा और रोज़गार का चुनाव शुरू में ही माध्यमिक शिक्षा के दौरान करना पड़ता है। यह वह समय है जब मसीही माता-पिताओं और युवाओं को राज्य हितों को पहला स्थान देते हुए, बुद्धिमानी से चुनाव करने के लिए यहोवा के निर्देशन ढूँढ़ने की आवश्यकता है। युवजनों में अलग-अलग प्रवृत्तियाँ और अभिक्षमताएँ होती हैं। बुद्धिमान माता-पिता इनको ध्यान में रखेंगे। इमानदारी से किया हर काम आदरणीय है, चाहे वह मज़दूरी हो या अफ़सरी। जबकि संसार चाहे दफ़्तर के काम को बढ़िया माने और हाथ से की गयी मज़दूरी को घटिया माने, बाइबल निश्चित ही ऐसा नहीं करती है। (प्रेरितों १८:३) अतः आज जब माता-पिता और युवा मसीही, ध्यानपूर्वक और प्रार्थनापूर्वक लाभ-हानि तौलने के बाद माध्यमिक स्कूल से आगे पढ़ने के पक्ष में या विरुद्ध निर्णय लेते हैं तो कलीसिया में दूसरों को उनकी आलोचना नहीं करनी चाहिए।
१७. कुछ गवाह माता-पिता अपने बच्चों के लिए क्या चुनाव करते हैं?
१७ यदि मसीही माता-पिता ज़िम्मेदारी के साथ अपने बच्चों को हाई स्कूल के बाद अतिरिक्त शिक्षा देने का निर्णय करते हैं तो यह उनका विशेषाधिकार है। इन अध्ययनों की अवधि चुने गए व्यवसाय या रोज़गार की क़िस्म के अनुसार फ़रक होगी। आर्थिक कारणों से और जितनी जल्दी संभव हो अपने बच्चों को पूरे-समय की सेवा में जाने के लिए समर्थ होने में, बहुत से मसीही माता-पिताओं ने उनके लिए व्यवसायिक या तकनीकी स्कूलों में अल्पकालिक अध्ययन कार्यक्रम चुने हैं। कई बार युवाओं को किसी व्यवसाय में शिक्षा लेने की आवश्यकता रही है लेकिन लक्ष्य हमेशा पूरे जीवन यहोवा की सेवा करना रहा है।
१८. यदि अतिरिक्त कोर्स लिए जाते हैं तो क्या याद रखना चाहिए?
१८ यदि अतिरिक्त कोर्स लिए जाते हैं, तो निश्चित ही उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में नाम रौशन करना या प्रतिष्ठापूर्ण सांसारिक पेशा बनाना नहीं होना चाहिए। कोर्सों का चुनाव ध्यान से करना चाहिए। इस पत्रिका ने उच्च शिक्षा के ख़तरों पर ज़ोर दिया है, और ऐसा उचित ही किया है, क्योंकि अधिकांश उपलब्ध उच्च शिक्षा बाइबल के “खरे उपदेश” के विरुद्ध है। (तीतुस २:१; १ तीमुथियुस ६:२०, २१) इसके अलावा, १९६० के दशक से, उच्च शिक्षा के स्कूल अराजकता और अनैतिकता के अड्डे बन गए हैं। “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने इस क़िस्म के वातावरण में प्रवेश करने के लिए सख़्ती से निरुत्साहित किया है। (मत्ती २४:१२, ४५) फिर भी, यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि, आजकल युवाओं को हाई स्कूल और तकनीकी कॉलेजों और कार्यस्थल में भी ऐसे ही ख़तरों का सामना करना पड़ता है।—१ यूहन्ना ५:१९.a
१९. (क) जो अतिरिक्त कोर्स लेने का निर्णय लेते हैं उन्हें क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए? (ख) कुछ लोगों ने अपनी शिक्षा का प्रयोग अच्छे लाभ के लिए कैसे किया है?
१९ यदि अतिरिक्त शिक्षा लेने का निर्णय करते हैं तो भला होगा कि यदि संभव हो, तो एक युवा मसीही अपने घर में रहते हुए ऐसा करे, और इस प्रकार अपनी मसीही अध्ययन की आदतों, सभाओं में उपस्थिति और प्रचार कार्य को सामान्य रूप से बनाए रख सके। शुरू में ही बाइबल सिद्धान्तों पर सही स्थिति ले लेनी चाहिए। यह याद रखना चाहिए कि दानिय्येल और उसके तीन यहूदी साथी बन्धुआई में थे जब उन्हें बाबुल में उच्च शिक्षा लेने के लिए बाध्य किया गया था, लेकिन उन्होंने अपनी खराई को बनाए रखा। (दानिय्येल, अध्याय १) आध्यात्मिक हितों को पहला स्थान देते हुए, बहुत से देशों में युवा गवाहों ने ऐसे कोर्स लिए हैं जिससे उन्हें लेखाकार, कारीगर, शिक्षक, अनुवादक, दुभाषिया, या दूसरे पेशे के लिए अंशकालिक काम मिल सकता है जिससे वे अपने प्राथमिक काम, पायनियर कार्य के लिए पर्याप्त कमा सकते हैं। (मत्ती ६:३३) इनमें से काफ़ी युवा बाद में सफ़री ओवरसियर या बेथेल स्वयंसेवक बन गए हैं।
एक संयुक्त, शिक्षित लोग
२०. यहोवा के लोगों के बीच कौन-से सांसारिक भेद की जगह बिलकुल ही नहीं है?
२० यहोवा के लोगों के मध्य, चाहे एक व्यक्ति का पेशा अफ़सरी, मज़दूरी, खेती या दूसरों के लिए काम करना क्यों न हो, सभी को बाइबल के अच्छे विद्यार्थी और योग्य शिक्षक होने की आवश्यकता है। पढ़ने, अध्ययन करने और शिक्षा देने में सब लोगों का कुशल होना, संसार द्वारा मज़दूर और दफ़्तर कार्यकर्त्ता के बीच में बनाए गए भेद को दूर करता है। इसका परिणाम वह एकता और आदर है जो ख़ासकर बेथेल घरों और वॉच टावर सोसाइटी के निर्माण स्थलों पर स्वयंसेवकों के बीच देखा जाता है, जहाँ आध्यात्मिक गुण अति आवश्यक हैं और सभी से इनकी मांग की जाती है। यहाँ, अनुभवी दफ़्तर कार्मिक, कुशल श्रमिक कार्यकत्ताओं के साथ आनन्द से काम करते हैं, और सभी एक दूसरे के प्रति प्रशंसात्मक प्रेम दिखाते हैं।—यूहन्ना १३:३४, ३५; फिलिप्पियों २:१-४.
२१. युवा मसीहियों का लक्ष्य क्या होना चाहिए?
२१ माता-पिताओं, अपने बच्चों को नए संसार समाज के उपयोगी सदस्य बनने के लक्ष्य की ओर मार्गदर्शन दीजिए! युवा मसीहियों, शिक्षा के अपने अवसरों को ऐसे प्रयोग कीजिए कि वह यहोवा की सेवा करने में आपके विशेषाधिकारों का और पूरा लाभ उठाने के लिए आपको तैयार करे! सिखाए हुए जनों के रूप में, ऐसा हो कि आज भी और अनन्तकाल तक परमेश्वर के प्रतिज्ञात “नई पृथ्वी” में, आप सभी ईश्वरशासित समाज के सुसज्जित सदस्य साबित हों।—२ पतरस ३:१३; यशायाह ५०:४; ५४:१३; १ कुरिन्थियों २:१३.
[फुटनोट]
a सितम्बर १, १९७५, पृष्ठ ५४२-४ की द वॉचटावर भी देखिए।
अपनी स्मरण परीक्षा लीजिए
▫ सच्चे मसीहियों को शिक्षा में रुचि क्यों है?
▫ सच्चे मसीही शिक्षा के कौन-से आत्यंतिक दृष्टिकोणों से दूर रहेंगे?
▫ अतिरिक्त शिक्षा के कौन-से ख़तरों को ध्यान में रखना चाहिए, और क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
▫ यहोवा के लोगों के बीच कौन-से सांसारिक भेद की जगह बिलकुल ही नहीं है?
[पेज 9 पर तसवीरें]
अध्यवसायी रूप से अध्ययन करने के द्वारा, युवा मसीही नए संसार समाज के ज़्यादा उपयोगी सदस्य बन सकते हैं
[पेज 12 पर तसवीरें]
यदि अतिरिक्त शिक्षा चुनी जाती है, तो यह यहोवा की बेहतर सेवा करने की इच्छा के उद्देश्य से होनी चाहिए