बाइबल का दृष्टिकोण
क्या बाइबल शिक्षा के पक्ष में नहीं?
“अज्ञानी ही शिक्षा को तुच्छ जानते हैं।” —पूबलीलयुस स्यूरुस, नैतिक कथन (अंग्रेज़ी), सा.यु.पू. प्रथम शताब्दी।
बाइबल हमसे आग्रह करती है कि “खरी बुद्धि और विवेक की रक्षा कर।” (नीतिवचन ३:२१) ज्ञान का परमेश्वर, यहोवा चाहता है कि उसके उपासक शिक्षित लोग हों। (१ शमूएल २:३; नीतिवचन १:५, २२) फिर भी, बाइबल के कुछ कथन प्रश्न खड़े कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, अपने पिछले कामों का ज़िक्र करते हुए, जिसमें उसकी उच्च शिक्षा भी थी, प्रेरित पौलुस ने लिखा: ‘मैं उन सब बातों को कूड़ा समझता हूं।’ (फिलिप्पियों ३:३-८) दूसरी ईश्वरप्रेरित पत्री में, उसने दावे से कहा: “इस संसार का ज्ञान परमेश्वर के निकट मूर्खता है।”—१ कुरिन्थियों ३:१९.
तो क्या बाइबल शिक्षा के पक्ष में नहीं? एक मसीही को किस हद तक लौकिक शिक्षा लेनी चाहिए? जितनी शिक्षा कानूनन ज़रूरी है क्या उतनी काफी है, या क्या उससे अधिक शिक्षा लेनी चाहिए?
प्रथम शताब्दी में शिक्षा
प्रथम-शताब्दी मसीहियों के बीच, बहुत अलग-अलग शैक्षिक पृष्ठभूमि के लोग थे। कुछ प्रमुख पुरुषों ने गलीली प्रेरित पतरस और यूहन्ना को “अनपढ़ और साधारण मनुष्य” समझा। (प्रेरितों ४:५, ६, १३) क्या इसका अर्थ था कि ये दो पुरुष अशिक्षित थे अथवा स्कूल नहीं गये थे? जी नहीं। इसका बस इतना अर्थ था कि उन्होंने यरूशलेम में उच्च शिक्षा के इब्रानी स्कूलों में शिक्षा नहीं ली थी। मसीहियत के इन दो साहसी समर्थकों के लेखों ने बाद में इस तथ्य की पुष्टि कर दी कि वे सुशिक्षित, अकलमंद पुरुष थे, जो शास्त्र की स्पष्ट व्याख्या करने में समर्थ थे। उनकी शिक्षा में अपने परिवार की भौतिक ज़रूरतों को पूरा करने का व्यावहारिक प्रशिक्षण शामिल था। वे मछुवाही के काम में साझेदार थे जिसमें शायद अच्छी कमाई थी।—मरकुस १:६-२१; लूका ५:७, १०.
इसकी विषमता में, शिष्य लूका, जिसने एक सुसमाचार पुस्तक और प्रेरितों की पुस्तक लिखी, और भी उच्च शिक्षा प्राप्त था। वह एक चिकित्सक था। (कुलुस्सियों ४:१४) उसकी चिकित्सीय पृष्ठभूमि के कारण उसके ईश्वरप्रेरित लेख एक विशिष्ट शैली में हैं।—लूका ४:३८; ५:१२; प्रेरितों २८:८ देखिए।
मसीही बनने से पहले प्रेरित पौलुस को उस समय के एक अति बुद्धिशाली विद्वान, गमलीएल की छत्रछाया में यहूदी व्यवस्था में प्रशिक्षण मिला था। (प्रेरितों २२:३) पौलुस की स्कूली शिक्षा शायद आज के विश्वविद्यालय की शिक्षा के बराबर थी। इसके अलावा, यहूदी समाज में यह अच्छा समझा जाता था कि युवजन कोई हुनर सीखें, चाहे आगे चलकर उन्हें उच्च शिक्षा ही लेनी हो। लगता है कि पौलुस ने लड़कपन में ही तंबू बनाने का काम सीखा। ऐसे कौशल ने उसे पूर्ण-समय सेवकाई में अपना भरण-पोषण खुद करने में समर्थ किया।
इसके बावजूद, पौलुस ने पहचाना कि परमेश्वर के ज्ञान के सर्वाधिक महत्त्व के आगे लौकिक शिक्षा—जबकि ज़रूरी है—बहुत कम महत्त्व की है। इसीलिए, बाइबल परमेश्वर और मसीह का ज्ञान लेने पर सबसे ज़्यादा महत्त्व देती है। आज मसीही लोग लौकिक शिक्षा के बारे में यही यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाएँ तो अच्छा है।—नीतिवचन २:१-५; यूहन्ना १७:३; कुलुस्सियों २:३.
विषय पर ध्यानपूर्वक विचार करना
कुछ मसीहियों ने पाया है कि अतिरिक्त शिक्षा लेने से, चाहे वह किताबी या व्यावसायिक अध्ययन के रूप में हो, उन्हें अपने परिवार की भौतिक ज़रूरतों को पूरा करने में मदद मिली है। अपने परिवार का भरण-पोषण करना उचित है, क्योंकि ‘अपने परिवार की देखभाल करना’ धार्मिक कर्त्तव्य है। (१ तीमुथियुस ५:८, NHT) ऐसा करने के लिए ज़रूरी कौशल सीखना व्यावहारिक बुद्धि का काम है।
लेकिन, जो लोग इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्राथमिक शिक्षा से अधिक शिक्षा लेने की ज़रूरत महसूस करते हैं उन्हें इसके फायदे और नुकसान, दोनों पर विचार कर लेना चाहिए। फायदा यह हो सकता है कि व्यक्ति ऐसा रोज़गार पाने के योग्य हो जाए जिससे वह अपने और अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छी तरह कर पाए साथ ही पूरे जोश से मसीही सेवकाई में लगा रहे। इसके अलावा, वह शायद भौतिक रूप से दूसरों की मदद कर पाए, “जिसे प्रयोजन हो, उसे देने को उसके पास कुछ हो।”—इफिसियों ४:२८.
कुछ नुकसान क्या हो सकते हैं? हो सकता है कि व्यक्ति ऐसी शिक्षाओं के संपर्क में आए जो परमेश्वर और बाइबल में विश्वास को घटाती हैं। पौलुस ने मसीहियों को सलाह दी कि “जिस ज्ञान को ज्ञान कहना ही भूल है” उससे और ‘तत्व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे से जो मनुष्यों के परम्पराई मत के अनुसार है’ बचकर रहें। (१ तीमुथियुस ६:२०, २१; कुलुस्सियों २:८) यह निश्चित है कि किसी-किसी तरह की शिक्षा के संपर्क में आना एक मसीही के विश्वास को नुकसान पहुँचा सकता है। जो अतिरिक्त प्रशिक्षण या अध्ययन के बारे में सोचते हैं उन्हें ऐसे हानिकर प्रभावों के जोखिम से अवगत रहना चाहिए।
मूसा को “मिसरियों की सारी विद्या पढ़ाई गई।” (प्रेरितों ७:२२) लेकिन उसने ऐसी शिक्षा पाने के बावजूद, जिसमें निःसंदेह अनेक-ईश्वर शिक्षाएँ, परमेश्वर का अनादर करनेवाली शिक्षाएँ भी थीं, अपना विश्वास मज़बूत बनाए रखा। उसी तरह, आज मसीही ध्यान रखते हैं कि वे जिस भी वातावरण में हों, वहाँ अहितकर प्रभावों में न फँस जाएँ।
अतिरिक्त शिक्षा लेने का एक और खतरा हो सकता है कि ज्ञान घमंडी या अहंकारी बनाता है। (१ कुरिन्थियों ८:१) अनेक लोग स्वार्थी कारणों से शिक्षा के द्वारा ज्ञान लेना चाहते हैं, और उचित उद्देश्य से लिया गया ज्ञान भी श्रेष्ठता और अभिमान की भावनाएँ उत्पन्न कर सकता है। ऐसे स्वभाव परमेश्वर को अप्रसन्न करते हैं।—नीतिवचन ८:१३.
फरीसियों पर ध्यान दीजिए। इस प्रमुख धार्मिक संप्रदाय के लोग अपने ज्ञान और तथाकथित धार्मिकता पर घमंड करते थे। उन्हें रबीनी परंपराओं के बड़े संग्रह का अच्छा ज्ञान था, और वे आम लोगों को तुच्छ समझते थे, जो कम शिक्षित थे। फरीसी आम लोगों को अज्ञानी, घृणित, यहाँ तक कि श्रापित समझते थे। (यूहन्ना ७:४९) इसके अलावा, वे धन के लोभी थे। (लूका १६:१४) उनका उदाहरण दिखाता है कि यदि शिक्षा गलत उद्देश्य से ली जाए, तो यह व्यक्ति को घमंडी या धन का लोभी बना सकती है। इसलिए, यह तय करते समय कि किस प्रकार की और कितनी शिक्षा लेनी चाहिए, अच्छा होगा कि एक मसीही अपने आपसे यह पूछे, ‘मेरा उद्देश्य क्या है?’
व्यक्तिगत चुनाव का विषय
प्रथम शताब्दी के जैसे आज भी मसीही बहुत-सी अलग-अलग शैक्षिक पृष्ठभूमि के हैं। अपने माता-पिता के मार्गदर्शन में, युवजन अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद अतिरिक्त लौकिक शिक्षा लेने का चुनाव कर सकते हैं। उसी तरह, जो वयस्क अपने परिवार के भरण-पोषण के साधन को सुधारने में दिलचस्पी रखते हैं वे यह लक्ष्य साधने के लिए ऐसी अतिरिक्त शिक्षा को एक कारगर उपाय समझ सकते हैं।a पारंपरिक उच्च शिक्षा के कुछ पहलू पेशेवर या व्यावसायिक कौशल के बजाय सामान्य बौद्धिक क्षमता विकसित करने पर ज़ोर देते हैं। अतः, एक व्यक्ति शायद पाए कि ऐसी शिक्षा लेने में काफी समय लगाने के बाद भी उसमें उस कौशल की कमी है जिससे आसानी से नौकरी मिल सके। इस कारण, कुछ लोग व्यावसायिक या टॆक्निकल स्कूलों में पढ़ने का चुनाव करते हैं, ताकि वे रोज़गार बाज़ार की असल माँगों को आसानी से पूरा कर सकें।
बात जो भी हो, ये निजी प्रकार के फैसले हैं। इस विषय में मसीहियों को एक दूसरे की आलोचना नहीं करनी चाहिए अथवा दोष नहीं लगाना चाहिए। याकूब ने लिखा: “तू कौन है, जो अपने पड़ोसी पर दोष लगाता है?” (याकूब ४:१२) यदि एक मसीही अतिरिक्त शिक्षा लेने की सोच रहा है, तो अच्छा होगा कि वह अपने खुद के उद्देश्यों को जाँचे ताकि यह निश्चित कर ले कि वह स्वार्थी, भौतिकवादी कारणों से तो ऐसा नहीं कर रहा।
यह स्पष्ट है कि बाइबल शिक्षा के बारे में संतुलित दृष्टिकोण रखने का पक्ष लेती है। मसीही माता-पिता ईश्वरप्रेरित वचन पर आधारित आध्यात्मिक शिक्षा के सर्वाधिक महत्त्व को पहचानते हैं और अतिरिक्त शिक्षा के बारे में अपने बच्चों को संतुलित सलाह देते हैं। (२ तीमुथियुस ३:१६) जीवन के बारे में व्यावहारिक रहते हुए, वे स्वीकार करते हैं कि लौकिक शिक्षा का महत्त्व है। इससे उनके बच्चे ज़रूरी कौशल हासिल करते हैं ताकि बड़े होकर अपना और अपने भावी परिवार का भरण-पोषण कर पाएँ। इसलिए, यह तय करते समय कि अतिरिक्त शिक्षा ली जानी चाहिए या नहीं, और किस हद तक ली जानी चाहिए, हर मसीही ठोस व्यक्तिगत फैसले कर सकता है। वह ऐसा यहोवा परमेश्वर के प्रति भक्ति के आधार पर कर सकता है जो “सब बातों में लाभदायक है, क्योंकि इस पर वर्तमान और आने वाले जीवन की प्रतिज्ञा निर्भर है।”—१ तीमुथियुस ४:८, NHT.
[फुटनोट]
a इस विषय पर अधिक विस्तृत जानकारी के लिए, फरवरी १, १९९३ की प्रहरीदुर्ग, पृष्ठ ३-१४, और ब्रोशर यहोवा के साक्षी और शिक्षा (अंग्रेज़ी) देखिए। ये दोनों प्रकाशन वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी के हैं।
[पेज 26 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“खरी बुद्धि और विवेक की रक्षा कर।”—नीतिवचन ३:२१
[पेज 27 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
इस पर विचार करते समय कि अतिरिक्त शिक्षा लेनी चाहिए या नहीं, अच्छा होगा कि एक मसीही अपने आपसे यह पूछे, ‘मेरा उद्देश्य क्या है?’