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  • 801 उड़ान—मैं दुर्घटना से बच निकला
  • सजग होइए!–1998
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सजग होइए!–1998
g98 4/8 पेज 22-24

801 उड़ान—मैं दुर्घटना से बच निकला

मैंने खिड़की से बाहर देखा जब हमारा जहाज़ ग्वाम में उतर रहा था। ‘अजीब बात है,’ मैंने सोचा। ‘बहुत अँधेरा लग रहा है।’ सच है कि आधी रात हो चुकी थी, और तेज़ बारिश के कारण ठीक से दिख नहीं रहा था। लेकिन द्वीप की जगमगाती बत्तियाँ और हवाई अड्डे की चमकती उड़ान पट्टियाँ कहाँ हैं? मुझे तो सिर्फ अपने जम्बो जॆट के पंखों में से मद्धिम प्रकाश दिख रहा था।

हमारे एक विमान परिचारक ने वही घोषणा की जो विमान उतरने से पहले हमेशा की जाती है, और जब विमान के उतरने के लिए पहियों को बाहर निकाला गया तब मुझे आवाज़ सुनायी पड़ी कि वो अपनी जगह पर ठीक से फिट हो गये हैं। अचानक, तेज़ आवाज़ करता हुआ हमारा विमान ज़मीन पर घिसटने लगा। विमान बहुत ज़ोर से झटके मार रहा था। यात्रियों ने अपनी कुर्सियों के हत्थों को कसकर पकड़ लिया और चिल्लाने लगे, “यह क्या हो रहा है?”

देखते-ही-देखते, हमारा बोइंग 747 हवाई अड्डे से पाँच किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ी से जा टकराया, प्रत्यक्षतः इसलिए कि हमारे विमान चालक का अंदाज़ा गलत हो गया था। अगस्त ६, १९९७ में उस विमान दुर्घटना के कारण कुल २२८ यात्रियों और विमान कर्मियों की मौत हो गयी। मैं बचनेवाले मात्र २६ लोगों में से एक था।

सीओल, कोरिया से विमान पर सवार होने से पहले, विमान कंपनी के एक प्रतिनिधि ने मेरी सीट बदल दी और मुझे फर्स्ट क्लास में बची आखिरी सीट दे दी। मैं इतना खुश था कि मैंने अपनी पत्नी सून डक को फोन किया, जो मुझे ग्वाम हवाई अड्डे पर मिलने के लिए आनेवाली थी। मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि सीट बदलना इतना फायदेमंद साबित होगा।

दुर्घटना और उसके बाद का दृश्‍य

अच्छी रोशनी न होने के कारण, विमान कर्मियों को शायद सामने खड़ा खतरा न दिखा हो। सब कुछ इतनी जल्दी हो गया! एक क्षण तो मैं अपने आपको अनहोनी के लिए तैयार कर रहा था, और दूसरे ही क्षण देखता हूँ कि मैं विमान से बाहर, ज़मीन पर पड़ा हूँ, और अभी-भी अपनी सीट से बँधा हूँ। मुझे पक्का नहीं मालूम कि मैं बेहोश हुआ था या नहीं।

‘क्या यह सपना है?’ मैंने सोचा। जब मुझे एहसास हुआ कि यह सपना नहीं, तब सबसे पहले मैंने यह सोचा कि जब मेरी पत्नी को इस दुर्घटना के बारे में पता चलेगा तब उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी। बाद में, उसने मुझे बताया कि उसने आशा नहीं छोड़ी थी। जब उसने हवाई अड्डे पर किसी को यह कहते हुए सुना कि सिर्फ सात यात्री बचे हैं, तब भी उसे विश्‍वास था कि मैं उन सात जनों में से एक हूँगा।

हमारे विमान के चार टुकड़े हो गये थे, जो जंगल के ऊबड़-खाबड़ इलाके में फैल गये थे। लाशें हर जगह छितरी पड़ी थीं। विमान के कुछ हिस्से जल रहे थे, और मुझे भयंकर शोक-विलाप के साथ-साथ धमाके सुनायी पड़ रहे थे। “बचाओ! बचाओ!” लोग गिड़गिड़ा रहे थे। मेरी सीट १.८-मीटर-ऊँची कँटीली झाड़ में जा गिरी थी। आग की भयानक रोशनी में, मुझे पास ही एक खड़ी-पहाड़ी दिख रही थी। रात के करीब २ बज रहे थे, और बारिश हो रही थी।

मैं इतना बौखलाया हुआ था कि मैंने सोचा भी नहीं कि मुझे चोट आयी होगी। फिर मैंने देखा कि एक छोटी लड़की के सिर की खाल उसके सिर के पीछे लटक रही है। मैंने तुरंत अपने सिर को छूआ और पाया कि मेरी बाँयीं आँख के पास लगी चोट से खून बह रहा है। मैं अपने बाकी शरीर को देखने लगा और पाया कि मुझे बहुत-सी छोटी-छोटी चोटें लगी हैं। लेकिन, शुक्र है कि कोई भी चोट बहुत बड़ी नहीं दिख रही थी। परंतु मेरी टाँगों में सुन्‍न करनेवाला दर्द हो रहा था, जिसके कारण हिलना भी मुश्‍किल हो रहा था। मेरी दोनों टाँगें टूट गयी थीं।

बाद में, जब मैं अस्पताल पहुँचा, तब डॉक्टरों ने मेरी चोटों को “छोटी चोट” कहा। और बचनेवाले दूसरे लोगों से तुलना करने पर तो वो सचमुच छोटी थीं। एक आदमी को मलबे में से खींचकर निकाला गया और उसकी टाँगें गायब थीं। दूसरे बुरी तरह जल गये थे, जिनमें वे तीन भी थे जिनकी दुर्घटना में तो जान बच गयी लेकिन बाद में वे हफ्तों तक दर्द में तड़प-तड़पकर मर गये।

लपटों के कारण चिंतित

अपनी चोटों के बारे में सोचने के बजाय, मुझे यह चिंता थी कि बचाव-कर्मी समय पर मुझ तक पहुँच पाएँगे या नहीं। विमान का बीचवाला हिस्सा, जहाँ मेरी सीट होती, लगभग पूरी तरह तहस-नहस हो गया था। जो कुछ बचा था वह जल रहा था, और अंदर फँसे यात्री दर्दनाक मौत मर रहे थे। मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा कि वे कैसे चिल्ला-चिल्लाकर मदद माँग रहे थे।

मेरी सीट विमान की नोक के पास पड़ी थी। मैं मलबे से एक हाथ की दूरी पर था। अपनी गर्दन पीछे घुमाकर मैं लपटों को देख सकता था। मुझे डर था कि कुछ ही समय में वे मुझ तक आ जाएँगी, लेकिन शुक्र है कि ऐसा नहीं हुआ।

आखिरकार बचा लिया गया!

समय बहुत धीरे-धीरे चल रहा था। एक घंटे से ज़्यादा समय बीत चुका था। आखिरकार, कुछ बचाव-कर्मियों ने सुबह ३ बजे के करीब पता लगा लिया कि दुर्घटना कहाँ हुई है। मैं उन्हें ऊपर पहाड़ी पर बात करते, नज़ारा देखकर हैरानी जताते सुन सकता था। उनमें से एक ने आवाज़ लगायी: “कोई है क्या वहाँ?”

“हाँ, मैं हूँ,” मैं चिल्लाया। “बचाओ!” दूसरे यात्री भी चिल्लाए। एक बचाव-कर्मी ने दूसरे को “टॆड” नाम से बुलाया। सो मैं चिल्लाने लगा, “टॆड, मैं यहाँ हूँ!” और “टॆड, आकर हमारी मदद करो!”

“हम नीचे आ रहे हैं! ज़रा ठहरो,” जवाब आया।

तेज़ बारिश ने शायद बहुतों को लपटों से बचाया हो, पर उसने फिसलन-भरी ढलान से नीचे उतरना मुश्‍किल बना दिया। फलस्वरूप, इससे पहले कि बचाव-कर्मी बचनेवालों तक पहुँचते एक लंबा घंटा और बीत गया। मुझे ढूँढ़ निकालने में उन्हें मानो एक युग लगा।

“हम आ गये हैं,” फ्लैश-लाइट दिखाते हुए दो बचाव-कर्मियों ने कहा। “चिंता मत करो।” जल्द ही दो बचाव-कर्मी और आ गये, और उन सब ने मिलकर मुझे उठाने की कोशिश की। दो जनों ने मेरी बाँहें थामीं, और दूसरे दो जनों ने मेरी टाँगें पकड़ीं। उस तरह उठाया जाना बहुत ही दर्दनाक था, और खासकर इसलिए कि वे बार-बार मिट्टी में फिसल रहे थे। थोड़ी दूर जाने के बाद, उन्होंने मुझे नीचे रख दिया। उनमें से एक जन स्ट्रॆचर ले आया, और मुझे वहाँ ले जाया गया जहाँ से सेना का एक हॆलिकॉप्टर मुझे पहाड़ी के ऊपर खड़ी एम्ब्यूलॆंस तक ले जाता।

पत्नी से मुलाकात, आखिर हो ही गयी!

सुबह ५:३० बजे जाकर कहीं मैं आपात कक्ष पहुँचा। क्योंकि मुझे काफी चोट आयी थी, डॉक्टरों ने मुझे फोन नहीं करने दिया। सो विमान के गिरने के लगभग नौ घंटे बाद, सुबह १०:३० बजे मेरी पत्नी को पता चला कि मैं बच गया हूँ। एक मित्र ने बचनेवालों की सूची में मेरा नाम देख लिया था, उसी ने मेरी पत्नी को यह संदेश दिया।

बाद में शाम ४:०० बजे के करीब, जब मेरी पत्नी को अनुमति दी गयी कि वह मुझे देख सकती है, तब मैं तुरंत उसे पहचान नहीं पाया। दर्द निवारक दवाओं के कारण मैं उतना सचेत नहीं था। “शुक्र है कि आप ज़िंदा हैं,” उसके पहले शब्द थे। मुझे वह बातचीत याद नहीं, लेकिन बाद में मुझे बताया गया कि मैंने जवाब दिया था: “यहोवा का शुक्र मनाओ।”

प्राथमिकताओं को सही क्रम में रखना

जब मैं अस्पताल में भरती था, तब मुझे जो दर्द हो रहा था वह जाना-पहचाना-सा था। १९८७ में, जब हमें कोरिया से ग्वाम आये एक साल भी नहीं हुआ था, तब मैं एक निर्माण-काम के दौरान हुई दुर्घटना में चार-मंज़िला मचान से नीचे गिर गया था और मेरी दोनों टाँगें टूट गयी थीं। वह मेरे जीवन में एक निर्णायक समय साबित हुआ। मेरी बड़ी बहन यहोवा की साक्षी है, और वह मुझसे बाइबल अध्ययन करने के लिए कहा करती थी। अब स्वास्थ्य-सुधार में जो छः महीने लगे उनमें मुझे बाइबल अध्ययन करने का अवसर मिला। फलस्वरूप, उसी साल मैंने यहोवा परमेश्‍वर को अपना जीवन समर्पित किया और पानी के बपतिस्मे द्वारा उसे चिन्हित किया।

विमान दुर्घटना के बाद से, मैं अपने एक मनपसंद शास्त्रवचन के बारे में सोच रहा हूँ, जो कहता है: “इसलिए पहिले तुम [परमेश्‍वर के] राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।” (मत्ती ६:३३) विमान दुर्घटना के बाद स्वास्थ्य-सुधार करते समय, मुझे अपने जीवन पर फिर से विचार करने का अवसर मिला।

उड़ान 801 की दुर्घटना ने बहुत ही सशक्‍त रूप से मेरे अंदर यह बिठाया कि जीवन कितना मूल्यवान है। मैं कितनी आसानी से मर सकता था! (सभोपदेशक ९:११) वैसे भी, मेरे शरीर की मरम्मत करने के लिए मुझे कई ऑपरेशनों की ज़रूरत पड़ी और इलाज कराते हुए मैंने अस्पताल में एक महीने से भी ज़्यादा समय बिताया।

अब मैं अपने महान सृष्टिकर्ता को दिखाना चाहता हूँ कि जीवन का जो आश्‍चर्यजनक दान उसने दिया है, साथ ही उसने जो प्रबंध किया है कि मनुष्य पार्थिव परादीस में अनंत जीवन का आनंद लें, मैं सचमुच उसकी कदर करता हूँ। (भजन ३७:९-११, २९; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) मुझे एहसास है कि ऐसी कदर दिखाने का सबसे अच्छा तरीका है राज्य हितों को अपने जीवन में हमेशा पहला स्थान देना।—योगदान।

[पेज 22 पर चित्र का श्रेय]

US Navy/Sipa Press

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