क्या यह भोज आपके लिए अर्थ रख सकता है?
पूनम का चांद अपना मद्धिम प्रकाश सारे देश पर बिखेर रहा है। पुराने यरूशलेम के एक घर के ऊपरी कमरे में, १२ आदमी एक मेज़ के चारों ओर एकत्रित हुए हैं। ग्यारह आदमी एकाग्रचित्त हैं जब उनका गुरु एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अनुपालन पेश करता है और अति महत्त्व के शब्द कहता है। एक वृत्तांत यूँ कहता है:
“यीशु [मसीह] ने रोटी ली, और आशीष मांगकर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, लो खाओ; यह मेरी देह है। फिर उस ने कटोरा लेकर, धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, तुम सब इस में से पीओ। क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लोहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है। मैं तुम से कहता हूं, कि दाख का यह रस उस दिन तक कभी न पीऊंगा, जब तक तुम्हारे साथ अपने पिता के राज्य में नया न पीऊं। फिर वे भजन गाकर जैतून पहाड़ पर गए।”—मत्ती २६:२६-३०.
हमारे सामान्य युग के वर्ष ३३ में यहूदी महीना निसान के चौदहवें दिन पर सूर्यास्त के बाद यह घटित हुआ। यीशु और उसके प्रेरितों ने सा.यु.पू. सोलहवीं सदी में मिस्री ग़ुलामी से इस्राएल के छुटकारे के स्मरण में अभी-अभी फसह मनाया था। मसीह ने यहूदा इस्करियोती को विदा किया था, जो उसके साथ विश्वासघात करनेवाला था। इसलिए, सिर्फ़ यीशु और उसके ११ वफ़ादार प्रेरित हाज़िर थे।
यह भोज यहूदी फसह का भाग नहीं था। यह एक नयी चीज़ थी जो प्रभु का संध्या भोज कहलाया गया। इस अनुपालन के विषय में, यीशु ने अपने अनुयायियों को आज्ञा दी: “मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” (लूका २२:१९, २०; १ कुरिन्थियों ११:२४-२६) उसने ऐसा क्यों कहा? और किस तरह यह सदियों-पूरानी घटना संभवतः आपके लिए अर्थ रख सकती है?