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  • मन में स्थिर रहो —अन्त निकट है

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  • मन में स्थिर रहो —अन्त निकट है
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
w93 6/1 पेज 12-17

मन में स्थिर रहो —अन्त निकट है

“सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है; इसलिये [मन में स्थिर, NW] होकर प्रार्थना के लिये सचेत रहो।”—१ पतरस ४:७.

१. (क) एक धर्म-नेता और उसके अनुयायियों ने कौन-सी निराशा का अनुभव किया? (ख) चूँकि कुछ प्रत्याशाओं की पूर्ति नहीं हुई है, कौन-से प्रश्‍न पूछे जा सकते हैं?

“आज रात की अंतिम प्रार्थना के दौरान मुझे परमेश्‍वर से बुलावा आया। उसने कहा कि १,१६,००० लोगों का स्वर्गारोहण होगा और ३७ लाख़ मृत विश्‍वासियों की कब्रें आसमान की ओर खुलेंगी।” उनके पूर्वकथित न्याय के दिन, अक्‍तूबर २८, १९९२, की पूर्व-संध्या के समय मिशन फ़ॉर द कमिंग डेज़ (Mission for the Coming Days) के धर्म-नेता ने इस प्रकार कहा। लेकिन, जैसे अक्‍तूबर २९ का दिन पहुँचा, एक भी व्यक्‍ति का स्वर्गारोहण नहीं हुआ था, और कोई भी मृत लोगों की कब्रें नहीं खुली थीं। स्वर्गीय हर्षोन्माद में अचानक उठा लिए जाने के बजाय, कोरिया में उन कयामत के दिन के विश्‍वासियों ने केवल एक और दिन निकलते देखा। कयामत के दिन की अंतिम-अवधि आकर चली गई है, परन्तु कयामत के भविष्यवक्‍ता दृढ़ रहे। मसीहियों को क्या करना है? क्या उन्हें यह विश्‍वास छोड़ देना चाहिए कि अन्त शीघ्रता से निकट आ रहा है?

२. भविष्य न्याय के दिन के बारे में किसने प्रेरितों से बात की, और किन परिस्थितियों में उन्हें यह ज्ञान हुआ?

२ उत्तर देने के लिए, आइए हम उस अवसर को याद करें जब यीशु अपने शिष्यों के साथ एकांत में बात कर रहा था। गलील समुद्र के उत्तर-पूर्व, जिसके पृष्ठपट में विशाल हेर्मोन पर्वत के शानदार नज़ारे थे, वहाँ कैसरिया फिलिप्पी के ज़िला में उन्होंने उसे खरी खरी कहते हुए सुना कि वह मारा जाएगा। (मत्ती १६:२१) अन्य गंभीर बातें बताई जानी थी। उन्हें यह समझाने के बाद कि शिष्यता का अर्थ निरंतर आत्म-बलिदान की ज़िन्दगी जीना है, यीशु ने चेतावनी दी: “मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा में आएगा, और उस समय वह हर एक को उसके कामों के अनुसार प्रतिफल देगा।” (मत्ती १६:२७) यीशु ने एक भविष्य आगमन की बात की। लेकिन इस अवसर पर वह एक न्यायाधीश होगा। उस समय सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या वह व्यक्‍तियों को वफ़ादारी से उसका अनुगमन करते हुए पाता है या नहीं। यीशु का न्याय आचरण पर आधारित होगा, चाहे उस व्यक्‍ति के पास कितनी ही सांसारिक सम्पत्ति हो या न हो। उसके शिष्यों को हमेशा इस तथ्य को याद रखना था। (मत्ती १६:२५, २६) तो फिर, यीशु मसीह स्वयं अपने अनुयायियों को कहता है कि उसके न्याय समेत, प्रतापी आगमन के लिए, वे सतर्क रहें।

३. यीशु ने अपने भविष्य आगमन की निश्‍चितता को कैसे उदाहरण देकर समझाया?

३ यीशु अब जो कहता है, उस बात से उसके भविष्य आगमन की निश्‍चितता का उदाहरण मिलता है। अधिकार के साथ वह कहता है: “मैं तुम से सच कहता हूं, कि जो यहां खड़े हैं, उन में से कितने ऐसे हैं; कि जब तक मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आते हुए न देख लेंगे, तब तक मृत्यु का स्वाद कभी न चखेंगे।” (मत्ती १६:२८) छः दिनों के बाद इन शब्दों की पूर्ति होती है। रूपांतरित यीशु का एक वैभवशाली दृश्‍य उसके घनिष्ठ शिष्यों को चकित कर देता है। वे वास्तव में यीशु के चेहरे को सूर्य की नाईं चमकते और उसके वस्त्रों को झिलमिलाते हुए देखते हैं। यह रूपांतर मसीह की महिमा और राज्य का पूर्वदर्शन था। राज्य भविष्यवाणियों का क्या ही बलदायक प्रमाणीकरण! शिष्यों के लिए मन में स्थिर होने का क्या ही शक्‍तिशाली प्रोत्साहन!—२ पतरस १:१६-१९.

मन में स्थिर होना क्यों अत्यावश्‍यक है

४. उसके आगमन के प्रति मसीहियों को क्यों आध्यात्मिक रीति से सतर्क रहना चाहिए?

४ साल से भी कम समय बाद, हम यीशु को जैतून पहाड़ पर बैठे, फिर से अपने शिष्यों के साथ एकांत में बात करते हुए पाते हैं। जैसे वे यरूशलेम नगर को देखते हैं, वह स्पष्ट करता है कि उसकी भविष्य उपस्थिति का चिह्न क्या होगा और फिर चेतावनी देता है: “इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।” उसके अनुयायियों को लगातार सतर्क रहने की ज़रूरत है क्योंकि उसका आगमन अज्ञात है। उन्हें हर समय इसके लिए तत्पर रहना चाहिए।—मत्ती २४:४२.

५. सतर्कता की ज़रूरत को कैसे उदाहरण द्वारा समझाया जा सकता है?

५ अपने आने के ढंग में, प्रभु एक चोर की नाईं है। वह आगे कहता है: “परन्तु यह जान लो कि यदि घर का स्वामी जानता होता कि चोर किस पहर आएगा, तो जागता रहता; और अपने घर में सेंध लगने न देता।” (मत्ती २४:४३) एक चोर घोषणा द्वारा गृहस्वामी को सूचित नहीं करता कि वह कब आएगा; उसका मुख्य हथियार है, उसका आकस्मिक रूप से आना। इसलिए, गृहस्वामी को हर समय चौकस रहना चाहिए। लेकिन, एक वफ़ादार मसीही के लिए, अथक सतर्कता किसी भयभीत आशंका के कारण नहीं है। इसके उलट, वे इस उत्सुक प्रत्याशा की प्रेरणा से सतर्क रहते हैं कि शांति की सहस्राब्दि लाने के लिए, मसीह महिमा के साथ आएगा।

६. हमें क्यों मन में स्थिर होना चाहिए?

६ कितनी भी निगरानी रखने के बावजूद, कोई कभी भी पहले से अनुमान नहीं लगा सकेगा कि उसके आने की सुनिश्‍चित तिथि क्या है। यीशु कहता है: “इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।” (मत्ती २४:४४) इसलिए मन में स्थिरता की ज़रूरत है। यदि एक मसीही यह सोचता कि किसी एक दिन पर मसीह नहीं आएगा, तो शायद यह वही दिन होगा जब वह आया! निश्‍चय ही, बीते समय में नेकनीयत, वफ़ादार मसीहियों ने निष्कपटता से पूर्वबताने की कोशिश की कि अन्त कब आएगा। तो भी, यीशु की चेतावनी बार-बार सच प्रमाणित हुई है: “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता; न स्वर्ग के दूत, और न पुत्र, परन्तु केवल पिता।”—मत्ती २४:३६.

७. मसीह के अनुयायी होने के लिए, हमें अपनी ज़िन्दगी कैसे व्यतीत करनी चाहिए?

७ तो फिर, हमें क्या निष्कर्ष निकालना चाहिए? यही कि मसीह के अनुयायी होने के लिए, हमें हमेशा यह विश्‍वास करते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए कि इस दुष्ट व्यवस्था का अन्त सन्‍निकट है।

८. मसीही धर्म के सबसे आरंभिक दिनों से ही मसीहियों की क्या पहचान रही है?

८ ऐसी अभिवृत्ति हमेशा मसीहियों की पहचान रही है, जैसे सांसारिक इतिहासकार और बाइबल विद्वान स्वीकार करते हैं। उदाहरण के लिए, द ट्रांस्लेटर्स्‌ न्यू टेसटामेंट (The Translator’s New Testament) के संपादक अपने शब्दावली में “दिन” शब्द के नीचे यह कहते हैं: “नये नियम के समय के मसीही उस दिन (यानी कि उस समय) की प्रत्याशा में रहते थे जब वर्तमान संसार अपनी सारी बुराई और दुष्टता समेत अन्त किया जाता और यीशु सब मानवजाति का न्याय करने, शांति के नए युग का उद्‌घाटन करने और पूरे संसार पर अपने प्रभुत्व को शुरू करने के लिए पृथ्वी पर लौटता।” एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका बताती है: “मसीही धर्म का असाधारण विश्‍वव्यापी विस्तार प्रत्यक्ष रीति से अन्त समय की मसीही प्रत्याशा से संबन्धित है, जो मसीह की सन्‍निकट वापसी की प्रत्याशा के रूप में है। अन्त समय की मसीही प्रत्याशा कभी भी परमेश्‍वर के आगामी राज्य के लिए मात्र एक निष्क्रिय लालसा नहीं थी।”

मन में स्थिर होने का क्या अर्थ है

९. चाहे मसीहा के विषय में पतरस की कुछ प्रत्याशाएँ ग़लत थीं, वह क्यों विश्‍वस्त रह सकता था?

९ यीशु और उसके सबसे नज़दीकी शिष्यों के बीच हुई उन घनिष्ठ बातचीत के कुछ ३० साल बाद भी, प्रेरित पतरस अन्त के आने की राह देखते-देखते नहीं थका। जबकि मसीहा के विषय में उसकी और उसके संगी शिष्यों की आरंभिक प्रत्याशाएँ ग़लत थीं, तो भी वह विश्‍वस्त रहा कि यहोवा का प्रेम और शक्‍ति गारंटी देते हैं कि उनकी आशा की पूर्ति होगी। (लूका १९:११; २४:२१; प्रेरितों १:६; २ पतरस ३:९, १०) वह एक ऐसी बात छेड़ता है जो पूरे यूनानी शास्त्रों में पायी जाती है जब वह कहता है: “सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है।” फिर वह संगी मसीहियों से आग्रह करता है: “इसलिये [मन में स्थिर, NW] होकर प्रार्थना के लिये सचेत रहो।”—१ पतरस ४:७.

१०. (क) मन में स्थिर होने का क्या अर्थ है? (ख) हर चीज़ को यहोवा की इच्छा के अनुसार उचित रीति से देखने में क्या संबद्ध है?

१० ‘मन में स्थिर होने’ का अर्थ सांसारिक दृष्टिकोण से चतुर होना नहीं है। यहोवा कहता है: “मैं ज्ञानवानों के ज्ञान को नाश करूंगा, और समझदारों की समझ को तुच्छ कर दूंगा।” (१ कुरिन्थियों १:१९) पतरस जिस शब्द का प्रयोग करता है उसका अर्थ “संतुलित होना” भी हो सकता है। यह आध्यात्मिक संतुलन हमारी उपासना से जुड़ा हुआ है। इसलिए, मन में स्थिर होने से, हम हर चीज़ को यहोवा की इच्छा के अनुसार उचित रीति से देखते हैं; हम समझते हैं कि क्या चीज़ें महत्त्वपूर्ण हैं और क्या नहीं। (मत्ती ६:३३, ३४) सन्‍निकट अन्त के बावजूद, हम एक आवेशित जीवन-शैली में बह नहीं जाते; न ही जिस समय में हम जी रहे हैं उसके प्रति हम उदासीन हैं। (मत्ती २४:३७-३९ से तुलना कीजिए.) इसके बजाय, हम विचार, स्वभाव, और आचरण में संयम और संतुलन द्वारा नियंत्रित हैं, जो पहले परमेश्‍वर के प्रति व्यक्‍त होता है (“प्रार्थना के लिये सचेत”) और फिर हमारे पड़ोसी के प्रति (“एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो”)।—१ पतरस ४:७, ८.

११. (क) ‘अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नया बनने’ का क्या अर्थ है? (ख) अच्छे निर्णय लेने में एक नई मानसिक शक्‍ति कैसे हमारी मदद करती है?

११ मन में स्थिर होने का अर्थ है कि हम ‘अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नए बनाए’ गए हैं। (इफिसियों ४:२३) क्यों नए बनाए गए हैं? क्योंकि हम ने उत्तराधिकार में अपरिपूर्णता प्राप्त की है और पापमय वातावरण में रहते हैं, हमारा मन ऐसी प्रवृत्ति से प्रबल रूप से प्रभावित होता है जो आध्यात्मिकता के विरुद्ध है। यह शक्‍ति हमारे विचारों और प्रवृत्तियों को लगातार एक भौतिक, स्वार्थी दिशा में धकेलती है। इसलिए, जब एक व्यक्‍ति मसीही बनता है, तो उसे एक नई शक्‍ति, या प्रबल मनोवृत्ति की आवश्‍यकता होती है, जो उसके विचारों को सही दिशा, आध्यात्मिक दिशा में, आत्म-बलिदान के लिए तत्परता की ओर धकेले। इस प्रकार, उदाहरण के लिए, जब शिक्षा, पेशे, नौकरी, मनोरंजन, मन बहलाव, कपड़ों के ढंग, या किसी भी बात में चुनाव का प्रस्ताव रखा जाता है, तो उस मामले को शारीरिक, स्वार्थी दृष्टिकोण के बजाय आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने का उसका पहला झुकाव होगा। इस नई मनोवृत्ति के कारण, स्थिर मन और यह ज्ञान कि अन्त निकट है, के साथ निर्णय करना आसान हो जाते हैं।

१२. हम ‘विश्‍वास में पक्के’ कैसे रह सकते हैं?

१२ मन में स्थिर होने का अर्थ है कि हमारा आध्यात्मिक स्वास्थ्य अच्छा है। हम कैसे ‘विश्‍वास में पक्के’ रह सकते हैं? (तीतुस २:२) हमें अपने मन को सही प्रकार का भोजन देना चाहिए। (यिर्मयाह ३:१५) परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा के संचालन की सहायता के साथ-साथ उसकी सच्चाई के वचन का नियमित भोजन लेना हमें अपने आध्यात्मिक संतुलन को कायम रखने में मदद देगा। इसलिए, निजी अध्ययन के साथ-साथ क्षेत्र सेवा, प्रार्थना, और मसीही संगति में नियमितता अत्यावश्‍यक है।

मन की स्थिरता हमें कैसे सुरक्षित रखती है

१३. मन की स्थिरता हमें मूर्खतापूर्ण ग़लतियाँ करने से कैसे सुरक्षित रखती है?

१३ मन की स्थिरता हमें ऐसी मूर्खतापूर्ण ग़लती, जिससे हमारी अनन्त ज़िन्दगी खो सकती है, करने से बचा सकती है। यह कैसे संभव है? प्रेरित पौलुस “बुद्धि की व्यवस्था” के बारे में बात करता है। विश्‍वास में स्वस्थ व्यक्‍ति के लिए, वह बुद्धि की व्यवस्था ऐसी चीज़ से नियंत्रित होती है जिसमें वह आनन्दित होता है, अर्थात्‌ “परमेश्‍वर की व्यवस्था।” यह सच है कि “पाप की व्यवस्था” मन की व्यवस्था के विरुद्ध लड़ती है। लेकिन, यहोवा की सहायता से एक मसीही विजयी हो सकता है।—रोमियों ७:२१-२५.

१४, १५. (क) मन पर कौन-से दो प्रभाव प्रबल होने की कोशिश करते हैं? (ख) हम मन का युद्ध कैसे जीत सकते हैं?

१४ पौलुस आगे जाकर पापमय शरीर द्वारा नियंत्रित मन, जो भोगासक्‍त की ज़िन्दगी पर केंद्रित है, और परमेश्‍वर की आत्मा द्वारा नियंत्रित मन, जो आत्म-बलिदान के साथ यहोवा की सेवा करने की ज़िन्दगी पर केंद्रित है, के बीच सुस्पष्ट वैषम्य दिखाता है। पौलुस रोमियों ८:५-७ में लिखता है: “क्योंकि शारीरिक व्यक्‍ति शरीर की बातों पर मन लगाते हैं; परन्तु आध्यात्मिक आत्मा की बातों पर मन लगाते हैं। शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है, परन्तु आत्मा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है। क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्‍वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्‍वर की व्यवस्था के आधीन है, और न हो सकता है।”

१५ फिर पौलुस, आयत ११ में समझाता है कि कैसे पवित्र आत्मा के सहयोग में कार्य करनेवाला मन युद्ध में विजयी होता है: “और यदि उसी का आत्मा जिस ने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया तुम में बसा हुआ है; तो जिस ने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी मरनहार देहों को भी अपने आत्मा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है जिलाएगा।”

१६. मन की स्थिरता हमें किन प्रलोभनों से सुरक्षित रखती है?

१६ इसलिए, मन में स्थिर होने से, हम इस संसार के सर्वव्यापक प्रलोभनों के फंदों में नहीं फँसेंगे, जिस संसार की विशेषता है हर प्रकार के सुख-विलास, भौतिक चीज़, और लैंगिक दुराचरण में अमापनीय भोगासक्‍ति। हमारा स्थिर मन हमें ‘व्यभिचार से बचे रहने’ और इसके परिणामों से सुरक्षित रहने के लिए कहता है। (१ कुरिन्थियों ६:१८) हमारी स्थिर मनोवृत्ति हमें राज्य हितों को प्रथम स्थान देने के लिए प्रेरित करेगी। साथ ही यह हमारी विचार क्षमता को सुरक्षित रखेगी जब हम ऐसे लौकिक पेशे को अपनाने के लिए प्रलोभित होते हैं जो शायद यहोवा के साथ हमारे सम्बन्ध को कमज़ोर कर दे।

१७. आर्थिक ज़िम्मेदारियों की समस्या का सामना करते समय एक पायनियर बहन ने कैसे मन की स्थिरता दिखायी?

१७ उदाहरण के लिए, दक्षिण-पूर्व एशिया में एक उष्णप्रदेशीय देश में एक युवा बहन है जिसने राज्य हितों को अपने मन में प्रथम स्थान दिया। उसने पूर्ण-समय की सेवकाई के लिए प्रेम विकसित किया था। उस देश में ज़्यादातर नौकरियों के लिए छः या सात दिन पूर्ण-समय कार्य करना पड़ता है। विश्‍वविद्यालय से स्नातक होने के बाद, उसके पिता, जो एक यहोवा का गवाह नहीं था, ने उससे उम्मीद की कि वह परिवार के लिए ढेर-सा पैसा कमाएगी। परन्तु क्योंकि वह पायनियर कार्य करने के लिए अति इच्छुक थी, उसने एक अंशकालिक नौकरी ढूँढ़कर पायनियर सेवा शुरू कर दी। इस बात से उसका पिता क्रोधित हुआ, और उसने उसका सब सामान सड़क पर फेंक देने की धमकी दी। जुआ खेलने के कारण वह बुरी तरह कर्ज़ में डूबा हुआ था, और उसने सोचा कि उसकी बेटी उसका कर्ज़ उतारेगी। इस बहन का छोटा भाई विश्‍वविद्यालय में पढ़ रहा था, और उन कर्ज़ों के कारण उसकी ट्यूशन फ़ीस भरने के लिए पैसे नहीं थे। उसके छोटे भाई ने वादा किया कि यदि वह उसकी मदद करे, तो नौकरी मिलते ही वह परिवार की देख-भाल करेगा। एक तरफ़ उसका अपने भाई के लिए प्रेम था और दूसरी तरफ़ उसका पायनियर सेवा के लिए प्रेम। इस मामले पर ध्यानपूर्वक विचार करने के बाद, उसने पायनियर कार्य को जारी रखने और एक भिन्‍न नौकरी ढूँढ़ने का निर्णय किया। उसकी प्रार्थनाओं के जवाब में, उसे एक अच्छी नौकरी मिली जिससे वह न केवल आर्थिक रूप से अपने परिवार और अपने भाई की मदद कर सकी बल्कि वह अपने प्रथम प्रेम, अर्थात्‌ पायनियर सेवा को भी जारी रख सकी।

मन की स्थिरता कायम रखने में यहोवा की सहायता माँगिए

१८. (क) कुछ लोग क्यों निराश हो सकते हैं? (ख) कौन-से शास्त्रवचन निराश व्यक्‍तियों को सांत्वना दे सकते हैं?

१८ शायद मसीह के कुछ अनुयायियों को अपने मन की स्थिरता कायम रखने में कठिनाई हो रही हो। हो सकता है कि उनका धीरज कमज़ोर पड़ता जा रहा है क्योंकि यह वर्तमान दुष्ट रीति-व्यवस्था उनकी अपेक्षा किए हुए समय से ज़्यादा समय तक विद्यमान है। वे शायद इसके बारे में पूरी तरह से निराश हैं। लेकिन, अन्त निश्‍चय ही आएगा। यहोवा यह प्रतिज्ञा करता है। (तीतुस १:२) और उसका प्रतिज्ञात पार्थिव परादीस भी ज़रूर आएगा। यहोवा इसकी गारंटी देता है। (प्रकाशितवाक्य २१:१-५) जब नया संसार आएगा, तब जिन लोगों ने अपने मन की स्थिरता कायम रखी है, उन सब के लिए “जीवन का वृक्ष” होगा।—नीतिवचन १३:१२.

१९. मन की स्थिरता कैसे कायम रखी जा सकती है?

१९ हम कैसे मन की स्थिरता कायम रख सकते हैं? यहोवा की सहायता माँगिए। (भजन ५४:४) उसके निकट रहिए। यहोवा चाहता है कि हम उसके साथ घनिष्ठता को कायम रखें। इससे हम कितने ही आनन्दित हैं! “परमेश्‍वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा,” शिष्य याकूब लिखता है। (याकूब ४:८) पौलुस कहता है: “प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्दित रहो। तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो: प्रभु निकट है। किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्‍वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं। तब परमेश्‍वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।” (फिलिप्पियों ४:४-७) और जब इस मरणासन्‍न रीति-व्यवस्था के बोझ हद से ज़्यादा भारी लगने लगें, तब उन्हें यहोवा पर डाल दीजिए, और वह स्वयं आपको संभालेगा।—भजन ५५:२२.

२०. पहला तीमुथियुस ४:१० के अनुसार, हमें किस मार्ग में चलते रहना चाहिए?

२० जी हाँ, अन्त निकट है, इसलिए मन में स्थिर रहिए! यह १,९०० साल पहले एक अच्छी सलाह थी; आज भी यह अत्यावश्‍यक सलाह है। आइए हम लगातार अपनी स्थिर मानसिक क्षमताओं को यहोवा की प्रशंसा करने में इस्तेमाल करें, जैसे-जैसे वह हमें सुरक्षित रीति से अपने नए संसार में ले जाता है।—१ तीमुथियुस ४:१०.

आप कैसे उत्तर देंगे?

▫ मन की स्थिरता क्या है?

▫ मन में स्थिर होना क्यों इतना अत्यावश्‍यक है?

▫ हम कैसे अपने मन के स्वभाव में नए बन सकते हैं?

▫ हमें अपने मन में कौन-सा युद्ध निरंतर लड़ना है?

▫ हम कैसे मन की स्थिरता कायम रखते हैं?

[पेज 14 पर तसवीरें]

प्रार्थना में परमेश्‍वर के निकट होने से हमें मन की स्थिरता को कायम रखने में सहायता मिलती है

[पेज 16 पर तसवीरें]

मन में स्थिर रहने से, हम इस संसार के प्रलोभनों के फंदों में नहीं फँसेंगे

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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