मन की स्थिरता और धार्मिकता के साथ जीना
हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जो अधार्मिकता की तरफ़ एक शक्तिशाली प्रभाव डालती है। इस रीति-व्यवस्था के स्तर बिगड़ते जाते हैं। (२ तीम. ३:३) मसीही होने के नाते, हमें सच के पक्ष में स्थिति लेनी चाहिए और यह समझना चाहिए कि क्यों हमें ऐसा करते रहना चाहिए। पर किस तरह का निर्देशन और मार्गदर्शन उपलब्ध है? हमें कौनसे स्तरों को पालना चाहिए? “मन की स्थिरता और धार्मिकता के साथ जीना” हमारे १९९३ सेवा वर्ष के ख़ास असेम्बली दिन कार्यक्रम का चुना हुआ प्रोत्साहनदायक शीर्षक है।—तीतुस २:१२.
२ वार्ता, निदर्शन, और अनुभवों के ज़रिये, हम सीखेंगे कि अधर्म का विरोध करने और सांसारिक अभिलाषाओं को अस्वीकार करने में हम अपने आपको कैसे बलवान बना सकते हैं। हम यह भी देख लेंगे कि कैसे इस दुष्ट रीति-व्यवस्था में मन की स्थिरता और धार्मिकता के साथ जीना मुमक़िन है। हमारी मानसिक शक्तियों को सुरक्षित रखने में हमारी मदद करनेवाले प्रबंधों का सारांश दिया जाएगा। (१ पत. ४:७) दोपहर के कार्यक्रम के वार्ताओं और मुलाकातों पर ख़ास तौर से माँ-बाप और युवक ध्यान देना चाहेंगे। ये धार्मिक बुद्धि और अनुभव पाने और एक ख़ुश ईश्वरशासित भविष्य निर्माण करने के लिए मिलजुलकर कार्य करने की ज़रूरत पर ज़ोर देंगे।
३ हालाँकि हम एक अधर्मी दुनिया से घेर लिए गए हैं, परमेश्वर का वचन हमें सबसे बेहतर मार्ग में शिक्षा देता है जिस पर हमें चलना चाहिए। “एक निरानन्द दुनिया में अपने आशिषों की क़दर करना” नामक वार्ता में बाइबल की सलाह पर ध्यान देने के फ़ायदों को विशिष्ट किया जाएगा। जैसे-जैसे हम उपस्थित होने के लिए तैयारी करते हैं, हम याद रखना चाहते हैं कि कार्यक्रम पर निकटता से ध्यान देना और सलाह को लागू करना हमें यहोवा की सेवा में ज़्यादा प्रभावकारी होने के लिए समर्थ बनाएगा।—फिलि. ३:१५, १६.