अपने संयम को बने रहने और उमड़ने दीजिए
“अपने विश्वास को . . . संयम . . . प्रदान करते जाओ।”—२ पतरस १:५-७, NW.
१. एक मसीही शायद कौनसी असाधारण स्थिति में गवाही दे?
यीशु ने कहा: “तुम मेरे लिये हाकिमों और राजाओं के साम्हने उन पर, . . . गवाह होने के लिये पहुंचाए जाओगे।” (मत्ती १०:१८) यदि आपको एक हाकिम, एक न्यायाधीश, या एक राष्ट्रपति के साम्हने बुलाया जाता, तो आप किस विषय पर बात करते? शायद पहले इस विषय पर कि आप उधर क्यों थे, आपके विरुद्ध जो दोषारोपण है। परमेश्वर की आत्मा ऐसा करने में आपकी सहायता करेगी। (लूका १२:११, १२) परन्तु क्या आप संयम के बारे में बात करने की कल्पना कर सकते हैं? क्या आप इसे हमारे मसीही संदेश का एक महत्त्वपूर्ण भाग समझते हैं?
२, ३. (क) यह कैसे घटित हुआ कि फेलिक्स और द्रुसिल्ला को पौलुस गवाही दे सका? (ख) पौलुस के लिए उस स्थिति में संयम के बारे में बात करना क्यों एक उपयुक्त विषय था?
२ एक वास्तविक-जीवन के उदाहरण पर विचार कीजिए। एक यहोवा का गवाह गिरफ़्तार किया गया और उस पर मुक़दमा चलाया गया। जब उसे बोलने का एक मौक़ा दिया गया, तब वह एक मसीही होने के नाते, एक गवाह होने के नाते अपना विश्वास स्पष्ट करना चाहता था। आप रिकार्ड की जाँच कर सकते हैं और आप पाएँगे कि उसने “धर्म और संयम और आनेवाले न्याय” के बारे में न्यायालयीय गवाही दी। हम कैसरिया में प्रेरित पौलुस के एक अनुभव की ओर संकेत कर रहे हैं। वहाँ एक प्रारंभिक पूछताछ हुई। “कितने दिनों के बाद फेलिक्स अपनी पत्नी द्रुसिल्ला को, जो यहूदिनी थी, साथ लेकर आया; और पौलुस को बुलवाकर उस विश्वास के विषय में जो मसीह यीशु पर है, उस से सुना।” (प्रेरितों २४:२४) इतिहास रिपोर्ट करता है कि फेलिक्स “एक दास की सभी मूल प्रवृत्ति के साथ राजा की शक्ति को नियंत्रित करते हुए, हर प्रकार की क्रूरता और कामुकता अभ्यास करता था।” वह पहले दो बार विवाह कर चुका था जब उसने द्रुसिल्ला को (परमेश्वर के नियम का उल्लंघन करते हुए) अपने पति को तलाक़ देने और उसकी तीसरी पत्नी बनने के लिए राज़ी किया। शायद द्रुसिल्ला थी जो इस नए धर्म, मसीहीयत के बारे में सुनना चाहती थी।
३ पौलुस ने “धर्म और संयम और आनेवाले न्याय” के बारे में बताया। (प्रेरितों २४:२५) इससे सत्यनिष्ठा के बारे में परमेश्वर के स्तर और उस क्रूरता तथा अन्याय के बीच विषमता स्पष्ट हो गई होगी, जिसके फेलिक्स और द्रुसिल्ला भाग थे। पौलुस ने शायद अपने इस मामले में फेलिक्स को न्याय प्रदर्शित करने के लिए प्रभावित करने की आशा की हो। लेकिन “संयम और आनेवाले न्याय” के बारे में चर्चा क्यों की? यह अनैतिक जोड़ा पूछ रहा था कि ‘वह विश्वास जो मसीह यीशु पर है’ क्या आवश्यक बनाता है। इसलिए उन्हें यह जानने की ज़रूरत थी कि उसका अनुसरण करना माँग करता है कि एक व्यक्ति अपने विचारों, बोली, और कार्यों पर नियंत्रण रखे, जो कि संयम का ही अर्थ है। सभी मनुष्य अपने विचारों, शब्दों, और कार्यों के लिए परमेश्वर के प्रति उत्तरदायी हैं। इस प्रकार, पौलुस के मामले में फेलिक्स की ओर से कोई भी न्याय से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण वह न्याय था जिसका सामना परमेश्वर के आगे यह हाकिम और उसकी पत्नी कर रहे थे। (प्रेरितों १७:३०, ३१; रोमियों १४:१०-१२) स्वाभाविक है कि पौलुस का संदेश सुनने पर, ‘फेलिक्स भयमान हुआ।’
यह महत्त्वपूर्ण है लेकिन आसान नहीं
४. संयम क्यों सच्ची मसीहीयत का एक महत्त्वपूर्ण भाग है?
४ प्रेरित पौलुस ने संयम को मसीहियत का एक अनिवार्य भाग पहचाना। यीशु के एक नज़दीकी साथी, प्रेरित पतरस ने इसकी पुष्टि की। उन व्यक्तियों को लिखते समय जो स्वर्ग में ‘ईश्वरीय स्वभाव के समभागी होंगे,’ पतरस ने विश्वास, प्रेम, और संयम जैसे ख़ास गुणों को प्रदर्शित करने का आग्रह किया, जो आवश्यक थे। इस प्रकार, संयम इस आश्वासन में सम्मिलित था: “यदि ये बातें तुम में बनी रहें, और उमड़ती जाएं, तो ये तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के यथार्थ ज्ञान के सम्बन्ध में निष्क्रिय और निष्फल होने से बचाए रखेंगी।”—२ पतरस १:१, ४-८, NW.
५. हमें संयम के बारे में क्यों ख़ासकर चिंतित होना चाहिए?
५ लेकिन, आप जानते हैं कि वास्तव में संयम को अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करने से यह कहना कि हमें इसे प्रदर्शित करना चाहिए ज़्यादा आसान है। एक कारण यह है कि संयम अपेक्षाकृत एक असाधारण गुण है। पौलुस ने २ तीमुथियुस ३:१-५ में उन मनोवृत्तियों का वर्णन किया जो हमारे समय में, “अन्तिम दिनों” में प्रचलित होंगी। हमारी अवधि को चरित्र-चित्रण करनेवाली एक विशेषता यह होगी कि बहुत लोग “असंयमी” होंगे। हम अपने चारों ओर इसे सच प्रमाणित होते हुए देखते हैं, है कि नहीं?
६. संयम की कमी आज कैसे प्रकट है?
६ बहुत लोग यह विश्वास करते हैं कि “अपनी भावनाओं को बिना रोक के व्यक्त करना” या “मन का ग़ुबार निकालना” मूलरूप से स्वास्थ्यकर है। उनका दृष्टिकोण उन प्रसिद्ध अदाकारों द्वारा मज़बूत किया गया है जिनका समाचार-माध्यम में अकसर ज़िक्र किया जाता है और जो प्रतीयमानतः हर प्रकार के संयम की उपेक्षा करते हैं, तथा केवल अपने ही आवेग को पूरा करते हैं। उदाहरण के लिए: बहुत से लोग जो व्यवसायी खेल पसन्द करते हैं, वे भावना के हिंसक प्रदर्शन, यहाँ तक कि हिंसात्मक क्रोध के भी आदी हो गए हैं। क्या आप, कम से कम समाचार-पत्र से, उन उदाहरणों का अनुस्मरण नहीं कर सकते, जहाँ खेल की प्रतियोगिताओं पर क्रूर लड़ाई या भीड़ की नोकझोंक फूट पड़ी हो? फिर भी, हमारा मुद्दा यह माँग नहीं करता कि हम असंयम के उदाहरणों पर पुनर्विचार करने के लिए ज़्यादा समय लगाएँ। आप अनेक ऐसे क्षेत्रों को सूचीबद्ध कर सकते हैं जिनमें हमें संयम दिखाने की ज़रूरत है—भोजन और पेय के सम्बन्ध में हमारा उपभोग, प्रतिजाति के साथ हमारा आचरण, और शौक पर ख़र्च किए गए समय तथा पैसे। लेकिन बहुत से ऐसे क्षेत्रों को सरसरी दृष्टि से देखने के बजाय, आइए एक ऐसे मुख्य क्षेत्र की जाँच करें जिसमें हमें संयम प्रकट करना है।
हमारी भावनाओं के सम्बन्ध में संयम
७. संयम के कौनसे पहलू पर ख़ास ध्यान दिया जाना चाहिए?
७ हम में से अनेक व्यक्ति अपने कार्यों को व्यवस्थित करने या नियंत्रित करने में काफ़ी सफल हुए हैं। हम चोरी नहीं करते, अनैतिकता के आगे नहीं झुकते और न ही हत्या करते हैं; हम जानते हैं कि ऐसे अपराधों के विषय में परमेश्वर के नियम क्या हैं। लेकिन, अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में हम कितने सफल हैं? वे लोग जो भावात्मक संयम को विकसित करने में असफल होते हैं, समय बीतने पर, अकसर अपने कार्यों के सम्बन्ध में संयम खो बैठते हैं। इसलिए आइए हम अपनी भावनाओं पर ध्यान केंद्रित करें।
८. हमारी भावनाओं के सम्बन्ध में यहोवा हम से क्या अपेक्षा करता है?
८ यहोवा परमेश्वर यह अपेक्षा नहीं करता कि हम स्वचालित यन्त्र बनें, ताकि हम कोई भावना न रखें और न प्रकट करें। लाजर की कब्र पर, यीशु ‘आत्मा में बहुत ही उदास हुआ, और बेचैन हुआ।’ फिर “यीशु के आंसू बहने लगे।” (यूहन्ना ११:३२-३८) उसने एक क़ाफी भिन्न भावना दिखाई जब, अपनी क्रिया पर परिपूर्ण नियंत्रण के साथ, उसने सर्राफों को मन्दिर से निकाला। (मत्ती २१:१२, १३; यूहन्ना २:१४-१७) उसके निष्ठावान चेलों ने भी गहरी भावनाओं को प्रदर्शित किया। (लूका १०:१७; २४:४१; यूहन्ना १६:२०-२२; प्रेरितों ११:२३; १२:१२-१४; २०:३६-३८; ३ यूहन्ना ४) फिर भी, उन्होंने संयम की ज़रूरत को पहचाना ताकि उनकी भावनाएँ पाप की ओर न ले जाएँ। इफिसियों ४:२६ इसे क़ाफी स्पष्ट करता है: “क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे।”
९. अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना क्यों इतना महत्त्वपूर्ण है?
९ एक ख़तरा है कि शायद ऐसा प्रतीत हो कि एक मसीही संयम प्रकट कर रहा है जबकि, वास्तव में, उसकी भावनाएँ अनियंत्रित हो जाती हैं। उस प्रतिक्रिया को स्मरण कीजिए जब परमेश्वर ने हाबिल के बलिदान को स्वीकृति दी: “कैन अति क्रोधित हुआ, और उसके मुंह पर उदासी छा गई। तब यहोवा ने कैन से कहा, तू क्यों क्रोधित हुआ? और तेरे मुंह पर उदासी क्यों छा गई है? यदि तू भला करे, तो क्या तेरी भेंट ग्रहण न की जाएगी? और यदि तू भला न करे, तो पाप द्वार पर छिपा रहता है, और उसकी लालसा तेरी ओर होगी।” (उत्पत्ति ४:५-७) कैन अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में असफल हुआ, जिसके कारण उसने हाबिल की हत्या की। अनियंत्रित भावनाएँ एक अनियंत्रित कार्य की ओर ले गईं।
१०. हामान के उदाहरण से आप क्या सीखते हैं?
१० मोर्दकै और एस्तेर के दिनों के एक उदाहरण पर भी विचार कीजिए। हामान नामक अधिकारी क्रोधित हुआ कि मोर्दकै उसके साम्हने नहीं झुकता। बाद में हामान ने त्रुटिपूर्णता से सोचा कि उस पर कृपादृष्टि की जाएगी। “उस दिन हामान आनन्दित और मन में प्रसन्न होकर बाहर गया। परन्तु जब उस ने मोर्दकै को राजभवन के फाटक में देखा, कि वह उसके साम्हने न तो खड़ा हुआ, और न हटा, तब वह मोर्दकै के विरुद्ध क्रोध से भर गया। तौभी वह अपने को रोककर अपने घर गया।” (एस्तेर ५:९, १०) उसने आनन्द की भावना को झट महसूस किया। फिर भी उसने उस व्यक्ति को मात्र देखते ही क्रोध को भी झट महसूस किया, जिसके विरुद्ध वह दुर्भाव रखता था। क्या आपका यह विचार है कि जब बाइबल कहती है कि हामान ने ‘अपने को रोका,’ इसका अर्थ था कि वह संयम में अनुकरणीय था? बिल्कुल नहीं। फ़िलहाल, हामान ने अपने कार्यों को और भावना के किसी प्रकार के प्रदर्शन को तो नियंत्रित कर लिया, लेकिन वह ईर्ष्यालु क्रोध को नियंत्रित करने में असफल हुआ। उसकी भावनाएँ उसे हत्या का षड्यंत्र रचने की ओर ले गईं।
११. फिलिप्पी कलीसिया में, कौनसी समस्या मौजूद थी और कौनसी बात इसकी ओर ले जा सकती थी?
११ इसी प्रकार, आज भावनाओं पर नियंत्रण की कमी मसीहियों को बहुत हानि पहुँचा सकती है। कुछ व्यक्ति शायद महसूस करें, ‘ओह, यह तो कलीसिया में एक समस्या नहीं होगी।’ लेकिन यह समस्या हुई है। फिलिप्पी में दो अभिषिक्त मसीहियों का एक गम्भीर मतभेद हुआ, जिसके बारे में बाइबल वर्णन नहीं करती है। इसे एक संभावना के रूप में कल्पना कीजिए: यूओदिया ने कुछेक भाई-बहनों को भोजन या एक सुखद समूहन के लिए आमंत्रित किया। सुन्तुखे को आमंत्रित नहीं किया गया, और इस कारण उसे चोट पहुँची। शायद उसने किसी परवर्त्ती अवसर पर यूओदिया को न आमंत्रित करने के द्वारा इसका उत्तर दिया। फिर दोनों एक दूसरे की ग़लतियाँ ढूँढ़ने लगीं; अन्त में, वे एक दूसरे से बिल्कुल ही बात नहीं करती थीं। ऐसे दृश्यलेख में, क्या एक भोजन के लिए आमंत्रण की कमी मूल समस्या होती? नहीं। वह केवल चिनगारी होती। जब ये दोनों अभिषिक्त बहनें अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में असफल हुईं, तब यह चिनगारी दावाग्नि बन गई। समस्या तब तक बनी रही और बढ़ती गई जब तक कि एक प्रेरित को हस्तक्षेप न करना पड़ा।—फिलिप्पियों ४:२, ३.
आपकी भावनाएँ और आपके भाई
१२. परमेश्वर हमें सभोपदेशक ७:९ में पाई गई सलाह क्यों देता है?
१२ निःसंदेह, एक व्यक्ति का अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना आसान नहीं है, जब वह महसूस करता है कि उसका अपमान हुआ है, उसे चोट पहुँची है, या उसके साथ पक्षपात का व्यवहार किया गया है। यहोवा यह जानता है, क्योंकि उसने मानव सम्बन्धों पर मनुष्य के आरम्भ से ग़ौर किया है। परमेश्वर हमें सलाह देता है: “अपने मन में उतावली से क्रोधित न हो, क्योंकि क्रोध मूर्खों ही के हृदय में रहता है।” (सभोपदेशक ७:९) ध्यान दीजिए कि परमेश्वर पहले भावनाओं को ध्यान देता है न कि कार्यों को। (नीतिवचन १४:१७; १६:३२; याकूब १:१९) अपने आप से पूछिए, ‘क्या मुझे अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में ज़्यादा ध्यान देना चाहिए?’
१३, १४. (क) संसार में, भावनाओं को नियंत्रित करने की असफलता से सामान्यतः क्या विकसित होता है? (ख) कौनसी बातें मसीहियों को दुर्भाव रखने की ओर ले जा सकती हैं?
१३ संसार में बहुत से लोग जो अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में असफल होते हैं, कुलबैर आरम्भ करते हैं—स्वयं अपने या एक सम्बन्धी के विरुद्ध वास्तविक या काल्पनिक अपराध के कारण कटु, यहाँ तक कि हिंसात्मक, दुश्मनी। एक बार जब भावनाएँ अनियंत्रित हो जाती हैं, तब वे अपना हानिकर प्रभाव लंबे समय के लिए डाल सकती हैं। (उत्पत्ति ३४:१-७; २५-२७; ४९:५-७; २ शमूएल २:१७-२३; ३:२३-३०; नीतिवचन २६:२४-२६ से तुलना कीजिए.) निःसंदेह मसीहियों को, चाहे किसी भी राष्ट्रीय या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के हों, ऐसी कटु दुश्मनियों और दुर्भावों को ग़लत और बुरा समझना चाहिए, जिनसे दूर रहा जाए। (लैव्यव्यवस्था १९:१७) क्या आप दुर्भावों से दूर रहने को भावनाओं के सम्बन्ध में अपने संयम के भाग के तौर पर देखते हैं?
१४ ठीक यूओदिया और सुन्तुखे के मामले के जैसे, भावनाओं को नियंत्रित करने में असफलता आज समस्या की ओर ले जा सकती है। एक बहन शायद विवाह के दावत पर न आमंत्रित किए जाने पर अपमानित महसूस करे। या हो सकता है कि उसके बच्चे या उसके चचेरे भाई या बहन को सम्मिलित नहीं किया गया। या शायद एक भाई ने संगी मसीही से एक पुरानी कार ख़रीदी, और थोड़े ही समय बाद वह बिगड़ गई। जो भी कारण हो, इससे क्षत-भाव उत्पन्न हुआ, भावनाओं को नियंत्रित नहीं किया गया, और इसमें सम्मिलित व्यक्ति अशांत हुए। फिर क्या हो सकता है?
१५. (क) मसीहियों के बीच दुर्भाव से कौनसे दुःखद परिणाम परिणित हुए हैं? (ख) बाइबल की कौनसी सलाह दुर्भाव रखने की प्रवृत्ति से सम्बन्धित है?
१५ यदि एक अशांत व्यक्ति अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में और अपने भाई के साथ शांति बनाए रखने में परिश्रम नहीं करता, तो दुर्भाव विकसित हो सकता है। ऐसे उदाहरण रहे हैं जब एक गवाह ने निवेदन किया कि उसे एक ख़ास कलीसिया पुस्तक अध्ययन के लिए नियुक्त न किया जाए क्योंकि वहाँ उपस्थित होनेवाले कुछ मसीही या परिवार को वह “पसन्द नहीं करता।” कितना दुःखद! बाइबल कहती है कि एक दूसरे को सांसारिक कचहरियों में ले जाना मसीहियों के लिए एक हार होगी, लेकिन क्या समान रूप से यह एक हार न होगी यदि हम अपने प्रति या कुछ सम्बन्धियों के प्रति पूर्व अपमान के कारण एक भाई से दूर रहते हैं? क्या हमारी भावनाएँ प्रकट करती हैं कि हम रक्त-सम्बन्धियों को अपने भाई-बहनों के साथ शांति से ज़्यादा महत्त्व देते हैं? क्या हम कहते हैं कि हम अपनी बहन के लिए मरने को तैयार होंगे, लेकिन हमारी भावनाओं ने हमें इतना प्रेरित किया कि अब हम उससे बात तक नहीं करते? (यूहन्ना १५:१३ से तुलना कीजिए.) परमेश्वर हमें स्पष्ट रूप से बताता है: “बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; . . . जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो। हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु क्रोध को अवसर दो।”—रोमियों १२:१७-१९; १ कुरिन्थियों ६:७.
१६. भावनाओं के साथ व्यवहार करने के सम्बन्ध में इब्राहीम ने कौनसा अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया?
१६ बैरभाव को रहने देने के बजाय, अपनी भावनाओं को दोबारा नियंत्रित करने के लिए शांति बनाना या शिकायत का कारण दूर करना एक क़दम है। अनुस्मरण कीजिए जब भूमि इब्राहीम के विशाल झुंडों के साथ-साथ लूत के झुंडों का भरण-पोषण नहीं कर सकती थी, और इस कारण उनके किराए के कार्यकर्त्ता झगड़ने लगे। क्या इब्राहीम ने अपनी भावनाओं को अपने पर विजयी होने दिया? या क्या उसने संयम प्रकट किया? सराहनीयता से, उसने व्यवसाय की लड़ाई के लिए एक शांतिपूर्ण समाधान का सुझाव दिया; दोनों का एक अलग क्षेत्र हो। और उसने लूत को पहला चुनाव दिया। इब्राहीम बाद में लूत के लिए लड़ने गया, यह प्रमाणित करते हुए कि उसमें कोई कटुता नहीं थी और न ही वह कोई दुर्भाव रखता था।—उत्पत्ति १३:५-१२; १४:१३-१६.
१७. पौलुस और बरनबास एक अवसर पर कैसे असफल हुए, लेकिन उसके बाद क्या हुआ?
१७ पौलुस और बरनबास से सम्बन्धित एक घटना से भी हम संयम के बारे में सीख सकते हैं। सालों से साथी रहने के बाद, उनमें यह मतभेद हुआ कि मरकुस को यात्रा पर ले जाना है या नहीं। “ऐसा टंटा हुआ, कि वे एक दूसरे से अलग हो गए: और बरनबास, मरकुस को लेकर जहाज पर कुप्रुस को चला गया।” (प्रेरितों १५:३९) इस बात से कि उस अवसर पर इन परिपक्व पुरुषों ने अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं किया, हमें एक चेतावनी मिलनी चाहिए। यदि यह उनके साथ हो सकता था, तो यह हमारे साथ भी हो सकता है। लेकिन, उन्होंने एक स्थायी दरार को विकसित नहीं होने दिया और न ही एक कुलबैर को बढ़ने दिया। रिकार्ड प्रमाणित करता है कि इसमें सम्मिलित भाइयों ने अपनी भावनाओं को दोबारा नियंत्रित किया और बाद में शांति में इकट्ठे कार्य किया।—कुलुस्सियों ४:१०; २ तीमुथियुस ४:११.
१८. यदि भावनाओं को चोट पहुँची है, तो परिपक्व मसीही क्या कर सकते हैं?
१८ हम अपेक्षा कर सकते हैं कि परमेश्वर के लोगों के बीच क्षत-भाव, यहाँ तक कि दुर्भाव भी हो सकते हैं। ये यहूदियों के समय में और प्रेरितों के दिनों में मौजूद थे। ये हमारे समय में यहोवा के सेवकों के बीच भी हुए हैं, क्योंकि हम सब अपरिपूर्ण हैं। (याकूब ३:२) यीशु ने अपने अनुयायियों से आग्रह किया कि भाइयों के बीच ऐसी समस्याओं का समाधान करने के लिए जल्द से जल्द कार्य करें। (मत्ती ५:२३-२५) लेकिन प्रथमतः अपने संयम को सुधारने के द्वारा उनसे बचे रहना और भी बेहतर है। यदि आप किसी ऐसी अपेक्षाकृत छोटी बात द्वारा अपमानित महसूस करते हैं या आप महसूस करते हैं कि उससे आपको ठेस पहुँची है, जिसे आपके भाई या बहन ने कहा या किया हो, तो क्यों न केवल अपनी भावनाओं को नियंत्रित करके मात्र उसे भूल जाएँ? क्या वास्तव में उस व्यक्ति का सामना करना ज़रूरी है, मानो कि आप तब तक संतुष्ट नहीं होंगे जब तक कि वह दोषी होना स्वीकार न कर ले? आप अपनी भावनाओं पर ठीक कितना नियंत्रण रख रहे हैं?
यह संभव है!
१९. यह क्यों उपयुक्त है कि हमारी चर्चा हमारी भावनाओं को नियंत्रित करने पर केंद्रित थी?
१९ हम ने मुख्यतः संयम के एक पहलू की जाँच की है, अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना। और यह एक मूल क्षेत्र है क्योंकि अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में असफलता के कारण हम अपनी जीभ, अपने लैंगिक आवेगों, अपने खाने की आदतों, और जीवन के उन अनेक अन्य पहलुओं पर नियंत्रण खो सकते हैं जहाँ हमें संयम प्रदर्शित करना है। (१ कुरिन्थियों ७:८, ९; याकूब ३:५-१०) फिर भी, साहस रखिए क्योंकि आप संयम बनाए रखने में सुधार कर सकते हैं।
२०. हम कैसे आश्वस्त हो सकते हैं कि सुधार संभव है?
२० यहोवा हमारी सहायता करने के लिए इच्छुक है। हम कैसे आश्वस्त हो सकते हैं? ख़ैर, संयम उसकी आत्मा का एक फल है। (गलतियों ५:२२, २३) इस प्रकार, जिस हद तक हम यहोवा की ओर से पवित्र आत्मा के योग्य बनने और उसे प्राप्त करने तथा उसके फल प्रकट करने के लिए कार्य करते हैं, उस हद तक हम ज़्यादा संयम रखने की अपेक्षा कर सकते हैं। यीशु के आश्वासन को कभी भी न भूलिए: “स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा . . . देगा!”—लूका ११:१३; १ यूहन्ना ५:१४, १५.
२१. आपने संयम और अपनी भावनाओं के बारे में भविष्य में क्या करने का संकल्प किया है?
२१ यह कल्पना मत कीजिए कि यह आसान होगा। और यह शायद उन कुछेक व्यक्तियों के लिए ज़्यादा मुश्किल हो जो उन लोगों के बीच बड़े हुए हैं जिन्होंने अपनी भावनाओं को खुली छूट दी है, उन कुछेक व्यक्तियों के लिए जिनका ज़्यादा उत्तेजनीय मिज़ाज है, या उन कुछेक व्यक्तियों के लिए जिन्होंने संयम प्रदर्शित करने की कभी भी कोशिश नहीं की। एक ऐसे मसीही के लिए, संयम को बनाए रखना और उमड़ते देना एक वास्तविक चुनौती हो सकती है। फिर भी यह संभव है। (१ कुरिन्थियों ९:२४-२७) जैसे-जैसे हम रीति-व्यवस्था के अन्त के और नज़दीक पहुँचते जाते हैं, तनाव और दबाव बढ़ेंगे। हमें कम नहीं बल्कि ज़्यादा, बहुत ज़्यादा, संयम की ज़रूरत होगी! अपने संयम के विषय में अपनी जाँच कीजिए। यदि आप उन क्षेत्रों को देखते हैं जिनमें आपको सुधार की ज़रूरत है, तो उस पर कार्य कीजिए। (भजन १३९:२३, २४) परमेश्वर से उसकी आत्मा और अधिक माँगिए। वह आपकी सुनेगा और आपकी सहायता करेगा जिससे आपका संयम बना रहेगा और उमड़ता जाएगा।—२ पतरस १:५-८.
चिंतन के लिए मुद्दे
▫ आपकी भावनाओं पर नियंत्रण क्यों इतना महत्त्वपूर्ण है?
▫ आपने हामान के तथा यूओदिया और सुन्तुखे के उदाहरणों से क्या सीखा है?
▫ यदि ठेस के लिए कोई कारण मिलता है, तो आप ईमानदारी से क्या करने की कोशिश करेंगे?
▫ कोई भी दुर्भाव रखने से दूर रहने के लिए संयम कैसे आपकी सहायता कर सकता है?
[पेज 26 पर तसवीरें]
जब पौलुस फेलिक्स और द्रुसिल्ला के सामने था, उसने धर्म और संयम के बारे में बात की